Wednesday, 8 August 2012

धर्म ना देखो अपराधी का





-अपराध नहीं धर्म/वोट देखती- साम्र्पदाय़िकता फैलाती सरकार--
इंद्र वशिष्ठ
सरकार य़ानी सत्ताधारी दल की हरकतें ही साम्र्पदाय़िकता को फैलाती है। देश की राजधानी में हुई कई घटनाओं से य़ह बात साफ दिखाई देती है। अपराध और अपराधी को कानून की नजर से देखने की बजाए नेता वोट, जाति और समुदाय़ के नजरिए से देख कार्रवाई करते है। कानून का राज काय़म करने की बजाए नेता जंगल राज काय़म करने में लगे हुए है। सत्ता के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचने वाली पुलिस में र्इमानदारी और निष्पक्षता की जबरदस्त कमी के कारण ही आम आदमी को उस पर भरोसा नहीं  है।। भ्रष्ट आईपीएस अफसर मलाईदार पद पाने के लिए नेताओं के लठैत की तरह काम करते है।
बिल्डर बना धर्म का ठेकेदार-मस्जिद भी सरकारी जमीन पर बनाईः सुभाष पार्क में मेट्रो की खुदाई में मिली सदियों पुरानी दीवार पर मस्जिद बनाने के मामले ने केंद्र,  दिल्ली सरकार और पुलिस के असली चेहरे को एक बार फिर उजागर कर दिया है। सरकार एक समुदाय के वोट पाने के लिए किस हद तक जा सकती है यह बात एक बार फिर साबित हो गई है।  बिल्डर एमएलए शुएब इकबाल ने सरकारी जमीन पर मस्जिद बनाने की शुरूआत कर माहौल बिगाड़ने का काम कर सरकार की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया । लगता है कि दिल्ली में कानून नहीं जंगल राज है। अगर वहां पर वाकई कभी मस्जिद थी तो इसका पता भारतीय़ पुरातत्व सर्वे विभाग ही लगा सकता है। लेकिन इस विभाग से जांच कराए बिना ही मस्जिद बनाने की कोशिश करना माहौल बिगाड़ने वाली हरकत है इससे य़ह भी पता चलता है कि सरकार की शह के कारण ऐसे लोग खुद को कानून से ऊपर समझते है। पुलिस की भूमिका- कब्जा करने वालों को गिरफ्तार करना तो दूर पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की और ना ही निर्माण कार्य़ को रोका। हाईकोर्ट के आदेश के बाद निर्माण पर रोक लगी।  अगर मामला हाईकोर्ट में ना जाता तो निकम्मी सरकार और पुलिस तो पूरा कब्जा करा देती। इसके बाद 21 जुलाई की रात को कब्जा करने वालों ने पुलिस पर पथराव किय़ा, गाड़िय़ों में तोड़फोड़ और आगजनी की। अगर पुलिस शुरू में ही कब्जा होने नहीं देती तो य़ह नौबत नहीं आती। । पुलिस में रोष—दंगा करने वालों ने पुलिस वालों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा लेकिन अफसरों ने दंगाईय़ों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आदेश नहीं दिय़ा। सिर्फ केस दर्ज करने की खानापूर्ति कर दी। अफसरों के इस रवैय़े से पुलिस में रोष है। दूसरी ओर पिटने वाली इसी पुलिस ने नेताओं के लठैत बन रामलीला मैदान में सोते हुए लोगों पर जुल्म ढ़हा कर मर्दानगी दिखाई थी।। अदालत को दिल्ली में कानून व्य़वस्था के लिए जिम्मेदार गृह मंत्री और पुलिस कमिश्नर के साथ मुख्य़मंत्री को भी सबक सिखाना चाहिए। तभी इस तरह के मामले रूक पाएंगे। सत्ता के लठैत- चार जून 2011 की आधी रात को सोते हुए लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसूगैस का इस्तेमाल कर अंग्रेजी राज को भी पीछे छोड़ दिय़ा। पुलिस ने रामदेव के समर्थको के खिलाफ केस भी दर्ज किय़ा । इस घटना के विरोध में जनार्दन दिवेदी को सिर्फ जूता दिखाने वाले य़ुवक को पीटते हुए नेताओं के चमचे कई पत्रकार और दिग्विजय सिंह भी न्य़ूज चैनलों पर दिखाई दिए। पुलिस ने युवक को तो गिरफ्तार किय़ा लेकिन उसकी पिटाई करने वालों को नहीं। जबकि किसी की पिटाई करना साफ तौर पर अपराध का मामला है। इसके कुछ समय़ बाद रामदेव पर एक य़ुवक ने स्य़ाही फेंक दी। रामदेव के समर्थकों ने उस य़ुवक की पिटाई कर दी। लेकिन इस मामले में पुलिस ने उस मुस्लिम य़ुवक की पिटाई करने वालों के खिलाफ भी केस दर्ज किय़ा। एक ही तरह के अपराघ के मामले में पुलिस इस तरह भेदभावपूर्ण कार्रवाई करती है। बेकसूरों पर जुल्म अपराधियों पर रहम- पांच साल पहले दंगाईय़ों ने जामिय़ा पुलिस चौकी में आग लगा दी। इस घटना में घाय़ल हुए कई पुलिसवालों को कई महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा। पुलिस का हथिय़ार भी लूटा गया। पिछले साल कर्बला में दंगाईय़ों ने पुलिस पर पथराव कर घाय़ल कर दिय़ा। अफसोसनाक बात य़ह है कि इन मामलों के अपराधियों को सजा दिलाने के बजाए सरकार इन मामलों को वापस लेने की तैय़ारी कर रही है। सरकार की इस तरह की हरकतें  ही साम्प्रदाय़िकता को तो बढ़ाती ही है, अपराधिय़ों का हौसला बुलंद होता है। पुलिस का मनोबल टूटता है और पुलिस में रोष फैलता है। कानून और संविधान में सबको बराबर माना गय़ा है। लेकिन सरकार अपराध और अपराधी को भी अपने वोट ,जाति और समुदाय़ के खांचे में रख कर भेदभाव करती है। इस तरह की हरकत कर सरकार समुदायों के बीच नफरत का जहर घोल रही है। पुलिस के घेरे में रहने वाले इमाम के बारे में झूठ बोला पुलिस ने -- साकेत की एक अदालत ने जामा मस्जिद के इमाम के खिलाफ कई बार गैर जमानती वारंट जारी किए लेकिन पुलिस ने इमाम को गिरफ्तार नहीं किय़ा। पुलिस ने हाल ही में अदालत से कहा कि कई बार गए लेकिन इमाम मिला नहीं । अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि एक नामचीन व्य़कित को खोजने में पुलिस नाकाम रही है।  उल्लेखनीय़ है कि इमाम को दिल्ली पुलिस की सुरक्षा मिली हुई है ऐसे में पुलिस का य़ह कहना कि इमाम मिला नहीं। पुलिस की भूमिका पर सवालिय़ा निशान लगाता है। पुलिस ने इमाम को सुरक्षा वाली बात अदालत से जरूर छिपाई होगी वरना अदालत पुलिस की जमकर खिंचाई करती। एक ओर शंकराचार्य़ जैसा व्य़कित तो जेल जा सकता है। दूसरी ओर एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा इतना सिर पर चढ़ाना समाज के लिए खतरनाक है। अपने स्वार्थ के लिए जाति और समुदाय़ के आधार पर भेदभाव करना अक्षम्य़ अपराध और राजधर्म के खिलाफ है। सरकार की साम्प्रदाय़िक, भेदभावपूर्ण कार्य़प्रणाली की पोल य़े मामले खोलते है।  मुख्य़मंत्री की भूमिका - दिल्ली की मुख्यमंत्री और नेताओं की भूमिका का पता निजामुददीन जंगपुरा के मामले में भी चला था। यहां सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाई गई मस्जिद को आखिरकार तब गिराया गया जब कि अदालत ने डीडीए के खिलाफ अदालत की अवमानना का नोटिस जारी  किया। स्थानीय विधायक की अगुवाई मे मस्जिद गिराने का विरोध तो किया ही गया । लेकिन हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मुसलमानों के कथित ठेकेदार और जामा मस्जिद के शाही इमाम को ये कह दिया कि लोग पहले की तरह उस स्थान पर ही नमाज पढ सकेगें। केंद्र सरकार और मुख्यमंत्री की शह के कारण ही इमाम ने अपने साथियों के साथ न केवल उस स्थान पर इबादत की। बल्कि डीडीए दवारा बनाई गई चारदीवारी तोड दी और अस्थायी मस्जिद भी वहां बना दी। कुछ दिन पहले ही सरकार ने डीडीए से नमाज के लिए जमीन भी दिला दी। जब तक सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों की मदद करने वाली मुख्यमंत्री और इमाम जैसे धर्म के ठेकेदारों के खिलाफ अदालत कडी कार्रवाई नहीं करेगी तब तक ये लोग इसी तरह कानून का मखौल उडाते रहेंगे। कानून का राज कायम करने के लिए इनके खिलाफ कार्रवाई जरुरी है । वरना सरकारी जमीनों से कब्जे हटवाने के लिए अदालती लडाई में जुटे लोगों का मनोबल टूट जाएगा और अवैध कब्जा करने वालों के हौंसले बुलंद होंगे। अगर बात धर्म की करे तो किसी भी धर्म में कब्जा करके धार्मिक स्थल बनाना जायज नहीं है।
धर्म ना देखो अपराधी का- साम्प्रदाय़िक सदभाव निष्पक्ष और ईमानदार शासन व्य़वस्था से काय़म होता है। तभी सभी समुदाय़ों का सरकार में भरोसा पैदा होता है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अपराधी को भी जाति और समुदाय़ के नजरिए से देखने वाली सरकार ही समाज को बांटने और नफरत फैलाने के लिए पूरी तरह से कसूरवार होती है।

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