Tuesday 16 May 2017

घूंघट की आड़ में केजरीवाल

घूंघट की आड़ में केजरीवाल

इंद्र वशिष्ठ
आरोपों का सटीक जवाब देने की बजाए कपिल मिश्रा को शिखंडी और भाजपा का मोहरा बताने वाले आपाईयों(आप नेताओ) के बाद केजरीवाल ने अपनी पत्नी को आगे करके साबित कर दिया कि दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली। चीख चीख कर दूसरों पर आरोप लगाने वाले केजरीवाल अब उसी मीडिया के सामने आने से कतरा रहे है जिस मीडिया ने उनका यह वजूद/ हैसियत बना दी। केजरीवाल का पत्नी की आड़ लेना शर्मनाक तो है ही इससे केजरीवाल के चरित्र की असलियत एक बार फिर उजागर हो गई। केजरीवाल के आपाई आरोपों के जवाब देने की बजाए यह तमाशा कर रहे है कि कपिल के पीछे भाजपा है मान लो कि कपिल के पीछे भाजपा है तो इससे आरोपों का दम तो कम नहीं हो जाता। केजरीवाल ईमानदार होता तो पत्नी की आड़ लेने की बजाए आरोपों का सीधे सीधे जवाब देता। केजरीवाल का चरित्र ही लोगों को गुमराह करने वाला रहा है।  
केजरीवाल और ईमानदार?, केजरीवाल का असली चरित्र --किसी भी व्यक्ति के चरित्र का पता छोटी छोटी बातों से चलता है। केजरीवाल ने नौकरी के दौरान आयकर विभाग से कम्प्यूटर के लिए कर्ज लिया था। सरकार ने जब उससे दो साल का वेतन और क़र्ज़ अदा करने को कहा तो उसने विभाग से यह पैसा माफ करने को कह दिया। विभाग ने पैसा जमा कराने को कहा तो केजरीवाल ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह आंदोलन कर रहा है इस लिए सरकार उसे तंग कर रही है। केजरीवाल उस पैसे को वेव आफ करने की मांग कर रहा था जो देश के करदाताओं​ का था। केजरीवाल वेतन और क़र्ज़ तो खुद खा गया और बाद में लोगों से 9 लाख रूपए लेकर सरकार को ऐसे वापस किया जैसे अहसान कर रहा हो। 2011 में ही केजरीवाल के असली चरित्र का आकलन कर दिया था। केजरीवाल ने निजी हित को जन हित का मुद्दा बना कर लोगों को गुमराह किया। जो केजरीवाल अपना क़र्ज़ भी नहीं चुकाना चाहता था वह भला कहां से ईमानदार हो सकता है। ईमानदारी से नौकरी करने वाले को न तो एनजीओ चलाने की जरूरत होती और न ही उसके पास समय होता है। प्रभावशाली पद बैठे अफसर अपने पद का दुरुपयोग कर एनजीओ चलाते हैं। केजरीवाल ही नहीं किरण बेदी और आमोद कंठ भी ऐसे लोगों में शामिल हैं। मीडिया ने उस समय पत्रकारिता धर्म का पालन नहीं किया। मीडिया की पैदाइश केजरीवाल ने सीएम बनते ही सबसे पहले मीडिया को ही आंख दिखाई।
 केजरीवाल कहता है कि पेन खरीदने का भी अधिकार नहीं है। पर लुटा रहा सरकारी खजाना

एनआईए के डीएसपी तंजील अहमद की हत्या के मामले में केजरीवाल ने उनके परिवार को एक करोड़ रूपए मुआवजे के रूप में दे दिए। तंजील की हत्या निजी रंजिश के कारण उसके रिश्तेदार ने कराई। ऐसे मे तंजील की मौत शहीद की श्रेणी में नहीं आती । भारत सरकार ,एनआईए किसी ने भी तंजील को शहीद नहीं माना। लेकिन केजरीवाल ने तंजील के परिवार को एक करोड़ रूपए दे दिए। दिल्ली के उन सैंकड़ो परिवार को भी एक- एक करोड़ रूपए मिलना चाहिए, जिनके परिवार के सदस्य की हत्या कर दी गई। दिल्ली में हर साल हत्या की सैंकड़ों वारदात होती है। ऐसे में अपराध पीड़ित हर परिवार एक करोड़ के मुआवजे का हकदार है। 
केजरीवाल यानी प्रचारवाल- कांग्रेस, बीजेपी को कोस कर खुद को उनसे अलग बताने वाला केजरीवाल भी इन दलों जैसा निकला । अपनी छवि बनाने के लिए केजरीवाल विज्ञापनों पर सरकारी खजाने का करोड़ो रूपए खर्च करने में दूसरे दलों से किसी तरह कम नहीं है। दिल्ली के बाहर के अखबारों में भी विज्ञापन देकर दिल्ली की जनता के पैसे को बर्बाद किया।
।विज्ञापनबाजी पर पैसा बर्बाद करने की बजाए यह रकम सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज पर खर्च की जानी चाहिए । केजरीवाल सरकारी अस्पतालों में जाएं तो पता चलेगा कि विज्ञापनों पर जो करोड़ों रूपए वह फूंक रहे है उस रकम से कितने मरीजों की जान बचाई जा सकती है। 
कथनी, करनी में अंतर- केजरीवाल ने कहा था कि गाड़ी,बंगला , सुरक्षा कुछ नहीं लूंगा, लेकिन सत्ता मिलते ही यह सब ले लिया । केजरीवाल का दूसरे दलों से अलग होने का दावा खोखला निकला ।
चाणक्य से सीखें सरकारी खजाने का इस्तेमाल- चाणक्य से एक बार एक विदेशी मिलने आया, वह उस समय कुछ कार्य रहे थे। कार्य समाप्त करने के बाद चाणक्य ने दीया बुझा दिया । विदेशी के पूछने पर चाणक्य ने कहा कि दीये में जल रहा तेल सरकारी खजाने का था। आपसे बातचीत के दौरान उसका इस्तेमाल करना उचित नही है।