सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश करें खुलासा न्यायपालिका को किस से हैं खतरा ।
कौन हैं साजिशकर्ता
इंद्र वशिष्ठ
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला द्वारा लगाये गए यौन उत्पीड़न के आरोप बेेहद गंभीर/संगीन/ चिंताजनक है। लेकिन इस मामले में मुख्य न्यायधीश ने जो कहा वह तो बहुत ही हैरान करने वाला और न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला द्वारा लगाये गए यौन उत्पीड़न के आरोप बेेहद गंभीर/संगीन/ चिंताजनक है। लेकिन इस मामले में मुख्य न्यायधीश ने जो कहा वह तो बहुत ही हैरान करने वाला और न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ है।
महिला के आरोपों की सच्चाई का पता तो जांच द्वारा ही चल सकता है। लेकिन बिना किसी जांच के ही मुख्य न्यायधीश ने महिला के बारे में जो कुछ कहा है वह न केवल हास्यास्पद है बल्कि मुख्य न्यायाधीश यानी आरोपी की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हैं।
महिला ने यौन उत्पीडन के गंभीर आरोप लगाए हैं लेकिन आरोपी रंजन गोगोई ने जो तर्क दिया वह बड़ा ही अजीब है रंजन गोगोई ने कहा कि महिला चार दिन जेल में भी रही हैं। उसके खिलाफ पुलिस ने दो मामले दर्ज किए हैं।
यह तर्क ठीक ऐसा ही है जैसे कि किसी वेश्या का कोई बलात्कार कर दें तो यह कहा जाए कि वह तो वेश्या हैं। इसलिए उसके आरोप झूठे होंगे ।
यह तर्क ठीक ऐसा ही है जैसे कि किसी वेश्या का कोई बलात्कार कर दें तो यह कहा जाए कि वह तो वेश्या हैं। इसलिए उसके आरोप झूठे होंगे ।
सच्चाई यह है कि कानून के अनुसार बलात्कार की शिकार हुई वेश्या को भी मामला दर्ज कराने का न केवल हक है बल्कि पुलिस की यह ड्यूटी हैं कि बिना किसी भेदभाव के वेश्या के बलात्कारी के खिलाफ कार्रवाई करें।
न्याय के सिद्धांत और कानून की धज्जियां उड़ाई----
मुख्य न्यायधीश ने खुद इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अलावा कानून की भी धज्जियां उड़ाई है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53 ए में साफ़ प्रावधान है कि यौन उत्पीडन या इसके प्रयासों के मामले में पीड़िता का चरित्र प्रासंगिक नहीं है और इस पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार कोई भी अपने मामले में जज नहीं हो सकता। लेकिन मुख्य न्यायधीश ने इस मामले में स्वयं तीन न्ययाधीशों की पीठ की अध्यक्षता की। मुख्य न्यायधीश ने महिला के आपराधिक मामलों के बारे में भी तब बोला, जबकि महिला अपना बचाव करने के लिए वहां उपस्थित नहीं थी।
न्याय के सिद्धांत और कानून की धज्जियां उड़ाई----
मुख्य न्यायधीश ने खुद इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अलावा कानून की भी धज्जियां उड़ाई है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53 ए में साफ़ प्रावधान है कि यौन उत्पीडन या इसके प्रयासों के मामले में पीड़िता का चरित्र प्रासंगिक नहीं है और इस पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार कोई भी अपने मामले में जज नहीं हो सकता। लेकिन मुख्य न्यायधीश ने इस मामले में स्वयं तीन न्ययाधीशों की पीठ की अध्यक्षता की। मुख्य न्यायधीश ने महिला के आपराधिक मामलों के बारे में भी तब बोला, जबकि महिला अपना बचाव करने के लिए वहां उपस्थित नहीं थी।
मुख्य न्यायधीश साजिश का पर्दाफाश क्यों नहीं करते---
मुख्य न्यायधीश ने कहा कि इसमें एक बड़ी साज़िश है और इसके पीछे कुछ बड़ी ताकतें हैं जो मुख्य न्यायधीश के दफ्तर को निष्क्रिय करना चाहती हैं। देश की न्यायपालिका जबरदस्त ख़तरे में हैं।
यह बड़ी सनसनीखेज और चौंकाने वाली बात है क्योंकि मुख्य न्यायधीश ने बहुत ही गंभीर और खतरनाक बात कही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि मुख्य न्यायधीश उस साजिश का पर्दाफाश क्यों नहीं करते ? अगर उनकी बात में दम है तो वह उन बड़ी ताकतों के नाम दुनिया के सामने उजागर क्यों नहीं करते?
देश के मुख्य न्यायधीश के पद पर बैठे ताकतवर व्यक्ति द्वारा साजिश का पर्दाफाश करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाने से मुख्य न्यायधीश की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाएगा ।
मुख्य न्यायधीश जैसे पद पर विराजमान व्यक्ति द्वारा उन ताकतों का पर्दाफाश किया जाता तो उनकी बात में दम नजर आता।
यौन उत्पीडन और बैंक बैलेंस का क्या ताल्लुक--
मुख्य न्यायधीश ने कहा कि उनका बैंक बैलेंस सिर्फ 6.80 लाख रुपए है। कोई भी पैसे के मामले में मुझे पकड़ नहीं सका इसलिए यह सब किया।
यह तर्क भी बड़ा ही अजीब और हास्यास्पद लगता है।पहली बात यौन उत्पीडन का कोई अन्य आरोपी भी यही तर्क अदालत में देता तो क्या यही माननीय मुख्य न्यायधीश महोदय क्या इस आधार पर उसे बेकसूर मान लेते ?
क्या यह माना जाना चाहिए कि कम बैंक बैलेंस वाला ही ईमानदार होता है और वह यौन उत्पीडन नहीं कर सकता।
क्या यह माना जाना चाहिए कि कम बैंक बैलेंस वाला ही ईमानदार होता है और वह यौन उत्पीडन नहीं कर सकता।
दूसरा क्या यह माना जाए कि ज्यादा बैंक बैलेंस वाले ही इस तरह की हरकत कर सकते हैं।
जांच से सच सामने आता हैं।---
मुख्य न्यायधीश ने कहा कि मैं इतना भी नीचे नहीं जाऊंगा कि इन आरोपों का खंडन करुं।
मुख्य न्यायधीश का यह कहना भी बड़ा अजीब है क्योंकि उनके खंडन करने या न करने से यह साबित नहीं हो सकता हैं कि महिला के आरोप झूठे हैं। महिला ने यौन उत्पीडन के आरोप लगाएं हैं ऐसे में सिर्फ जांच से ही यह साबित हो सकता हैं कि महिला के आरोप झूठे हैं या सच्चे।
महिला ने सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को शिकायत भेजी हैं। महिला चाहती तो इस अपराध के लिए सीधे पुलिस में भी शिकायत दर्ज करा सकती थी।
महिला ने सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को शिकायत भेजी हैं। महिला चाहती तो इस अपराध के लिए सीधे पुलिस में भी शिकायत दर्ज करा सकती थी।
न्याय करो अन्याय नहीं---
यौन उत्पीडन के मामले में जो प्रक्रिया, नियम, कायदे कानून बनाएं गए हैं। वह सब मुख्य न्यायधीश अपने मामले में भी लागू करें तो पता चलता कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। लेकिन मुख्य न्याक्षधीश ने तो बिना किसी जांच के एक आम आरोपी की तरह यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यह उनके खिलाफ साजिश है।
लेकिन मुख्य न्यायधीश का यह व्यवहार हमेशा के लिए उन पर ही संदेह पैदा करेगा।
सच्चाई सामने आनी चाहिए--
महिला के आरोप गलत है या सही दोनों ही सूरत में यह खतरनाक और गंभीर है। यह सिर्फ निष्पक्ष जांच से पता चल सकता है कि महिला झूठी है या सच्ची। दोनों ही सूरत में यह सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।
महिला के आरोप सही पाए जाए तो मुख्य न्यायधीश जैसे पद पर विराजमान व्यक्ति के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई कर यह मिसाल कायम की जाए कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। यही न्याय व्यवस्था में लोगों का भरोसा कायम करता हैं ।
दूसरी ओर अगर महिला के आरोप झूठे हैं तो उसका पर्दाफाश कर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए। ताकि आगे से कोई महिला झूठे आरोप लगाने की हिम्मत न करें।
इस मामले में सच सामने लाने, न्याय व्यवस्था में लोगों का भरोसा कायम करने की जिम्मेदारी मुख्य न्यायधीश की हैं।
पिछले साल 12-1-2018 को रंजन गोगोई समेत चार जजों ने सुप्रीम कोर्ट के बाहर खुले आम मीडिया के सामने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की कार्य शैली पर सवाल उठाए थे। इन जजों ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ठीक तरह काम नहीं कर रहा।
मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई को अब यौन उत्पीडन के आरोपों के बारे में भी खुले आम जांच का सामना करके आदर्श पेश करना चाहिए।
न्यायाधीश अपने फ़ैसलों में टॉन फुलर का यह कथन अक्सर उद्धत करते हैं कि" कोई कितना भी ऊंचा क्यों न हो, कानून उससे ऊपर है" यह उन पर भी लागू होना चाहिए।
न्यायाधीश अपने फ़ैसलों में टॉन फुलर का यह कथन अक्सर उद्धत करते हैं कि" कोई कितना भी ऊंचा क्यों न हो, कानून उससे ऊपर है" यह उन पर भी लागू होना चाहिए।
वर्ना यह तो ठीक ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस द्वारा आरोप लगाने पर भाजपा कहती है कि राहुल, सोनिया गांधी सब जमानत पर हैं। इसलिए उनकी बात में कोई दम नहीं है। जैसे भ्रष्टाचार के आरोप के मामले में कार्रवाई होने पर राबर्ट वाड्रा, चिदम्बरम, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, लालू यादव जैसे नेता कहते हैं कि भाजपा बदले की भावना से काम कर रही हैं।
न्याय के सिद्धांत के खिलाफ सुनवाई----
यह मामला सामने आने के बाद 20 अप्रैल को सीजेआई ने अपने घर पर इसकी तुरंत सुनवाई के लिए न्यायधीश अरुण मिश्रा और न्यायधीश संजीव खन्ना की दो सदस्यीय पीठ गठित की थी.
सुनवाई के दौरान सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता ‘ बेहद गंभीर खतरे ’में है. उन्होंने कहा, ‘यह (आरोप) अविश्वसनीय है. मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए. कोई मुझे पैसे के मामले में नहीं पकड़ सकता है, लोग कुछ ढूंढना चाहते हैं और उन्हें यह मिला. इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी. वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं.
’सीजेआई ने यह भी कहा कि जिस महिला ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए उसका आपराधिक इतिहास रहा है. उनके मुताबिक महिला के खिलाफ दो एफआईआर पहले से दर्ज हैं. गौरतलब है कि महिला सीजेआई के घर में बतौर जूनियर असिस्टेंट काम करती थी. पिछले साल रजिस्ट्री कार्यालय में उसके खिलाफ अनुचित व्यवहार करने की शिकायत की गई थी. उसके बाद उसे निकाल दिया गया था।
सॉलिसिटर जनरल और महासचिव की भूमिका पर सवाल--
सॉलिसिटर जनरल और महासचिव की भूमिका पर सवाल--
इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और सुप्रीम कोर्ट के महासचिव की भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं। तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया कि इस बारे में मीडिया में खबर के प्रकाशन पर रोक लगाई जाए। वकील तुषार मेहता ने कैसे मान लिया कि आरोप झूठे हैं क्या वकील तुषार मेहता न्याय का यह मूल सिद्धांत भी नहीं जानते कि जांच एवं विचारण के बिना कोई निष्कर्ष निकालना गलत है।
महासचिव ने अजीब बयान दिया कि आरोप मनगढ़ंत, झूठे और बदनीयती से लगाए गए है। महासचिव सुप्रीम कोर्ट का मुख्य कर्मचारी होता है मुख्य न्यायधीश का निजी सचिव नहीं। फिर बिना किसी जांच के वह ऐसा बयान कैसे दे सकते हैं।
महासचिव ने अजीब बयान दिया कि आरोप मनगढ़ंत, झूठे और बदनीयती से लगाए गए है। महासचिव सुप्रीम कोर्ट का मुख्य कर्मचारी होता है मुख्य न्यायधीश का निजी सचिव नहीं। फिर बिना किसी जांच के वह ऐसा बयान कैसे दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों के मामले में सुनवाई के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह कानून की तयशुदा प्रक्रिया और नेचुरल जस्टिस के तहत सही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड बार एसोसिएशन ने भी प्रकिया से असहमति जताई है। इस मामले में फुल कोर्ट ज़रुरी क़दम उठाए।
सरकार , सभी राजनीतिक दलों और मीडिया को देशहित में यह मामला उठाना चाहिए कि मुख्य न्यायाधीश साजिश और साजिशकर्ताओं के नाम का खुलासा करें।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज एके गांगुली और स्वतंत्र कुमार पर भी कानून की दो छात्राओं ने यौन उत्पीडन के आरोप लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने माना कि एके गांगुली पर छात्रा द्वारा लगाए आरोप सही हैं। लेकिन घटना के समय गांगुली सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो चुके थे इसलिए उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई नहीं कर सकता है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम के अनुसार एके गांगुली मामले में 5 दिसंबर 2013 को अदालत के फैसले के अनुसार इस न्यायायल के पूर्व जजों के खिलाफ आए मामलों पर सुप्रीम कोर्ट प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हो सकती हैं। स्वतंत्र कुमार के खिलाफ छात्रा की शिकायत को सुप्रीम कोर्ट ने इसी आधार पर स्वीकार नहीं किया।