Tuesday 26 February 2019

सावधान- चौकन्ने रहना आतंकवाद को हराना, आतंकी हमले का खतरा बरकरार, सावधानी हटी दुर्घटना घटी

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सावधान- चौकन्ने रहना , आतंकवाद को हराना ।
सावधानी हटी- दुर्घटना घटी।
आतंकी हमले की आशंका बरकरार।

इंद्र वशिष्ठ
सावधान-- जागो लोगों जागो,  सतर्क और  चौकन्ना रहने का समय अब आ गया है। पाकिस्तान के पाले हुए आतंकी गिरोहों द्वारा आतंकी हमला किए जाने का खतरा बरकरार है। देश के भीतर ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पाले हुए  आतंकी गिरोहों के ना जाने कितने आतंकी  मौजूद हैं। बौखलाया और खिसियाया पाकिस्तान आतंकी हमला करने की कायराना हरकत अब भी कर सकता है। वैसे कहा भी जाता है कि दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। लोगों के सहयोग के बिना पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरना मुश्किल है।

इसलिए आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में  सहयोग देकर लोगों को भी अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

पाक की नापाक साजिशों को विफल करने के  लिए  लोगों को  सतर्क, जागरुक और चौकन्ना रहने की जरूरत है। बाजारों,मॉल, सिनेमा हॉल,रेल ,बस, स्टेशन, बस अड्डे, एयरपोर्ट, अस्पताल आदि भीड़ भाड़ वाले स्थानों/ संवेदनशील इलाकों और महत्त्वपूर्ण इमारतों में चौकन्ना रहे। 
आतंकी अक्सर ऐसे स्थानों पर ही बम धमाके/ गोली बारी करते  हैं। इस लिए यदि कोई लावारिस वस्तु, गाड़ी और संदिग्ध व्यक्ति/गतिविधियां  नजर आए तो तुरंत पुलिस को सूचना दे। 
पुरानी कार आदि  बेचने में कार डीलरो और अन्य लोगों को भी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। 
दिल्ली और अन्य महानगर आतंकियों के निशाने पर हमेशा ही रहते हैं।

सेना तो अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाने के लिए हमेशा तैयार रहती है।  देश के अंदर की सुरक्षा  के लिए पुलिस है लेकिन पाकिस्तान द्वारा थोपे गए आतंकवाद रुपी इस छद्म युद्ध से तभी पूरी तरह निपटा जा सकता है जब लोग भी इससे निपटने में सहयोग कर अपनी जिम्मेदारी निभाए। 
भारतीय वायुसेना ने अदम्य साहस का परिचय दिया और पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के अड्डों को नेस्तनाबूद किया। लेकिन अब बारी हमारी हैं इसलिए लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

यह नहीं भूलना चाहिए कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी पाकिस्तान बाज नहीं आया। हमारे देश के  युवाओं को ही बरगला कर वह अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देता है।
हमले से सबक -- खुफिया तंत्र और सीमा सुरक्षा मजबूत करने की जरूरत।
पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले ने खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। खुफिया एजेंसियों की नाकामी का खामियाजा जवानों को भुगतना पड़ा।  यह ठीक है कि इस हमले का जबरदस्त तरीके से जवाब वायुसेना ने दे दिया है। लेकिन पाकिस्तान अब भी अपनी नापाक हरकतों से बाज आने वाला नहीं है। आतंकियों के मंसूबों को विफल करने के लिए खुफिया एजेंसियों को पुख्ता इंतजाम करने चाहिए। 

कश्मीरी लड़के सीमा पार कर पाकिस्तान जाते हैं। बम बनाना और हथियार चलाना सीख कर आतंकी बन वापस कश्मीर आ भी जाते हैं। वापसी में वह हथियार और गोला-बारूद भी लेकर आते हैं। पाकिस्तानी आतंकी भी कश्मीर में घुस जाते हैं। भारत पाक सीमा की सुरक्षा व्यवस्था अगर कड़ी हो तो आतंकियों का इस तरह आना-जाना नहीं हो सकता है। इससे सीमा सुरक्षा बल की भूमिका/ कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग जाता है।
पाकिस्तान आतंकवाद के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। इतिहास गवाह है कि वह सुधरने वाला नहीं है। उस पर ना ही  हमारा कोई नियंत्रण है। लेकिन अपनी  सीमा की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी/सुधार करके और अपने खुफिया तंत्र को तो हम मजबूत कर ही सकते हैं। तभी आतंकवाद को हराना संभव होगा। इसलिए सुरक्षा व्यवस्था में जो कमियां हैं। सबसे पहले उन्हें दूर करना चाहिए।

                 (दैनिक बन्दे मातरम 28-2-2019)




Monday 25 February 2019

पुलवामा हमले में इस्तेमाल वैन का मालिक छात्र सज्जाद बट आतंकी गिरोह जैश ए मोहम्मद में शामिल।

                               सज्जाद बट
पुलवामा हमले में इस्तेमाल वैन का मालिक छात्र आतंकी गिरोह जैश ए मोहम्मद में शामिल।

इंद्र वशिष्ठ
राष्ट्रीय जांच एजेंसी( एनआईए )ने पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए फिदायीन/ आत्मघाती हमले में इस्तेमाल वैन और उसके मालिक की पहचान कर ली।

 एनआईए के आईजी आलोक मित्तल ने बताया कि  घटनास्थल पर मिले वाहन के टुकड़ों की विशेषज्ञों ने जांच की जिससे पता चला कि हमले में इस्तेमाल वाहन मारुति ईको वैन है। वैन के इंजन चेसिस नंबर के आधार पर पता चला कि यह वैन 2011 में अनंत नाग की हैवन कालोनी निवासी मुहम्मद जलील हक्कानी  को बेची गई थी। 

 तफ्तीश में पता चला कि इसके बाद यह वैन आगे सात बार बिक चुकी है आखिरी खरीददार अनंत नाग के बिजबेहडा निवासी  छात्र सज्जाद बट ने यह वैन 4  फरवरी 2019 को खरीदी। यानी हमले से दस दिन पहले यह वैन सज्जाद ने ली।

  एनआईए और कश्मीर पुलिस 23 फरवरी को सज्जाद बट के घर पहुंचीं तो वह गायब मिला।  मकबूल बट का बेटा सज्जाद बट शोंपिया में सिराज उल उलूम का छात्र है।
अब पता चला है कि सज्जाद बट आतंकी गिरोह जैश ए मोहम्मद में शामिल हो गया है। 
हाथ में हथियार लिए सज्जाद बट की फोटो सोशल मीडिया पर मिली है।

14  फ़रवरी को जैश ए मोहम्मद के आत्मघाती आतंकी आदिल मोहम्मद डार ने विस्फोटक से भरी कार से सीआरपीएफ के काफिले की बस पर हमला किया था। हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे।
                           आलोक मित्तल




Wednesday 20 February 2019

देश के सैंकड़ो थानों में टेलिफोन, वायरलैस, वाहन तक नहीं। थानों की अपनी इमारत भी नहीं। पुलिस बल भी कम।


थानों में वायरलैस, टेलिफोन, वाहन तक नहीं। पुलिस भी है कम।

इंद्र वशिष्ठ
अपराध और अपराधियों से निपटने की बातें बहुत की जाती है। योजनाएं भी बनती हैं। लेकिन दूसरी ओर पुलिस के पास वायरलैस और टेलीफोन जैसे संसाधन तक नहीं है। संसद में भी बार बार यह सवाल उठाया जाता हैं लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।
देशभर में पुलिस बल और संसाधनों की कमी है।
पुलिस थाने में वायरलेस, टेलिफोन और वाहन तक नहीं है।
गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने राज्यसभा में  बताया कि पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के अनुसार देशभर में कुल पुलिस थानों में से  267 थाने टेलिफोन के बिना, 129 थाने वायरलैस/वीएचएफ सैट के बिना और 273  पुलिस थाने बिना आधुनिक वाहनों के काम कर रहे हैं। 863 थानों के पास अपने भवन/इमारत भी नहीं है।

 दिलचस्प बात यह है कि यही आंकड़े पिछले साल भी गृह राज्य मंत्री ने राज्य सभा में एक अन्य सवाल के जवाब में दिए थे। इस बार भाजपा के सांसद राकेश सिन्हा द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में भी यहीं जानकारी दी गई। इससे पता चलता है कि एक साल बाद भी स्थिति में कोई सुधार ही नहीं हुआ।

बिना संसाधनों के पुलिस किस तरह से अपराध और अपराधियों से निपटती होगी इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

देशभर में क़रीब साढ़े चार लाख पुलिसकर्मियों की  कमी है।

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार 1-1-2017 की स्थिति के अनुसार देश भर में 1989295 पुलिस कर्मियों की कुल स्वीकृत संख्या की तुलना में 1545771 पुलिस कर्मी पद स्थापित है  443524 पुलिस कर्मियों की कमी है।

गृह राज्य मंत्री ने बताया कि राज्य सरकारों को राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की योजना के अंतर्गत गृह मंत्रालय द्वारा सहायता दी जाती है। हथियार, उपकरण, प्रशिक्षण, पुलिस संचार, कंप्यूटरीकरण,विधि विज्ञान, पुलिस भवन/आवास आदि के लिए यह सहायता दी जाती है।
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Tuesday 19 February 2019

दिल्ली पुलिस के 43, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 307 जवानों ने आत्महत्या की।



दिल्ली पुलिस के 43 , केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 307 जवानों द्वारा आत्महत्या।

इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस में पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं। हर साल औसतन दस पुलिस वाले खुदकुशी कर लेेेते है। पिछले  चार साल में 43 पुलिसकर्मियों  द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले सामने आए हैं।

पुलिसवालों द्वारा आत्महत्या करने के मामलों में वृद्धि के बारे में संसद में सवाल उठाया गया। 
सांसद प्रभाकर रेड्डी द्वारा सरकार से पूछा गया कि क्या पुलिस वालों द्वारा आत्महत्या करने का मुख्य कारण डिप्रेशन/तनाव  है।

गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने राज्य सभा में बताया कि साल 2015 में 7, साल 2016 में 12, साल 2017 में 13 और नवंबर 2018 तक 11 पुलिस वालों ने आत्महत्या की।

गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने बताया कि आत्महत्या की वजहों में निजी समस्या, बीमारी और पारिवारिक वजह शामिल है।

पुलिस वालों को तनाव मुक्त रखने के लिए तनाव प्रबंधन कोर्स, ध्यान, योग, खेल कूद और स्वास्थ्य जांच आदि क़दम उठाए गए हैं। यह सुनिश्चित किया गया है हरेक पुलिस वाले को नियमित रूप से आराम/रेस्ट मिले। उनको छुट्टी देने में उदारता बरती जाए। बैरक का माहौल अच्छा हो, उनके मनोरंजन के लिए टेलीविजन आदि की व्यवस्था की गई है। जिम बनाएं गए। पुलिस वालों के बच्चों के लिए स्कूल की व्यवस्था की गई है।

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 307  कर्मियों द्वारा आत्महत्या।--

 एक अन्य सवाल के जवाब में राज्यसभा सभा में बताया गया कि पिछले तीन सालों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों/असम रायफल्स के 307 पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या की गई।। 

साल 2016 में 90, साल 2017 में 121 और साल 2018 में 96 पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले सामने आए हैं।

गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने बताया कि कार्य  परिस्थितियों में लगातार सुधार किया जा रहा है। इसके लिए पेशेवर एजेंसियों की भी मदद ली जाती है।






Saturday 9 February 2019

कमिश्नर मंत्रियों को, SHO IPS को खुश करने में व्यस्त, लाखों अपराधियों को पकड़ने में नाकाम, लोग त्रस्त।


कमिश्नर मंत्रियों को , SHO IPS को खुश करने में व्यस्त।
पुलिस सुस्त, अपराधी चुस्त,लोग त्रस्त
इंद्र वशिष्ठ
सावधान- घर और बाहर हर जगह चौकन्ना रहे क्योंकि दिल्ली में लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं। अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद कर लें पुलिस के भरोसे मत रहे। क्योंकि इन अपराधियों को पकड़ना पुलिस की प्राथमिकता में नहीं है और न ही उसकी नीयत हैं। पुलिसिंग के अपने मूल काम को छोड़ कर पुलिस बाकी सब कुछ करने में व्यस्त हैं। पुलिस कमिश्नर झाड़ू लगाने और युवाओं को हुनरमंद बनाने में व्यस्त हैं। डीसीपी क्रिकेट मैच खेलने में व्यस्त हैं। एस एच ओ अपने अफसरों के इन सब कामों को पूरा करने में ही जुटे  रहते हैं। यही नहीं कमिश्नर की पत्नी  की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रमों में  सारे इंतजाम की जिम्मेदारी भी  डीसीपी/एस एच ओ इतनी प्राथमिकता और शिद्दत से निभाते हैं कि अपराधियों को पकड़ने की फुर्सत ही नहीं है। कमिश्नर मंत्री को,  डीसीपी कमिश्नर को और एस एच ओ इन सब अफसरों को इस तरह के कामों से ही खुश करने में लगे हुए हैं। जाहिर सी बात है एस एच ओ सब इंतजाम अपनी जेब से तो करते नहीं है। यही वजह है कि दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भ्रष्टाचार और अपराध कम न होने के लिए आईपीएस अफसर ही मूल रूप से जिम्मेदार हैं।
 पुलिस के गैर जिम्मेदाराना रवैए के कारण लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं ऐसे अपराधी ही बाद में बड़े अपराधी बन जाते हैं।
इस लिए सतर्क/जागरुक रह कर खुद ही अपनी जान माल की हिफाज़त करने की कोशिश करें।
दिल्ली पुलिस हर साल अपराध के 60 से 75 फीसदी तक मामलों को सुलझा ही नहीं पा रही हैं। यानी पुलिस अपराध में शामिल लाखों अपराधियों का पता तक भी नहीं लगा पा रही हैं। इनमें हत्या, लूट/झपटमारी ,अपहरण, महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़/छेड़छाड़ और चोरी आदि करने वाले अपराधी शामिल हैं। यह खतरनाक/गंभीर स्थिति है कि लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं। इस लिए लोगों की जान माल पर हमेशा खतरा बना हुआ है। यही वजह है कि अपराध दिनों-दिन बढ़ रहे  हैं। ज्यादातर अपराधी पकड़े ही नहीं जा रहे तो अपराध भला कम कैसे होगा । 
दिल्ली पुलिस की सालाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में अपराध  के 63 फीसदी मामलों को दिल्ली पुलिस सुलझा नहीं पाई। साल 2018 में भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के 236476 मामले दर्ज किए गए। इनमें से सिर्फ 36.53 फीसदी मामले पुलिस ने सुलझाए है।
 साल 2017 में  दर्ज अपराध के 223077 मामलों में से 34.60 फीसदी और साल 2016 में दर्ज 199107 मामलों में से सिर्फ 26.64 फीसदी मामलों को ही पुलिस सुलझा पाई है। इस तरह तीन साल में अपराध के साढ़े 6 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन अपराध के लाखों मामलों को सुलझाने में पुलिस नाकाम रही हैं।
इन आंकड़ों से  पता चलता है कि पुलिस की अपराध सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने की दर बहुत ही कम है। इससे पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो जाते हैं। 
दोस्त/रिश्तेदार/जानकार ने किए बलात्कार--  साल  2018 में  बलात्कार के 2043 मामले दर्ज हुए। बलात्कार के आरोपियों में 97 फीसदी से ज्यादा आरोपी महिलाओं के दोस्त/पारिवारिक दोस्त/रिश्तेदार/पड़ोसी/अन्य जानकार आदि थे। सिर्फ 2.5 फीसदी आरोपी ही महिलाओं से अनजान/अजनबी थे। बलात्कार के करीब 95 फीसदी मामलों में आरोपी पकड़े गए।
दुश्मनी के कारण सबसे ज्यादा हत्या--- साल 2018 में हत्या की 477 वारदात हुई । इसमें से 38  फीसदी हत्याएं दुश्मनी/विवाद के कारण हुई। 21 फीसदी हत्याएं मामूली सी बात पर अचानक तैश में आकर आपा खोने के कारण की गई। 11 फीसदी जुनून ( पैशन रिलेटेड) हत्याएं  हुई ।  सिर्फ 11 फीसदी मामलों में अपराध के लिए हत्या की गई। पुलिस ने हत्या के 86.16 फीसदी मामलों को सुलझाने का दावा किया है।
 पुलिस के आंकड़ों से ही पता चलता है कि हत्या हो या बलात्कार ज्यादातर मामलों में आरोपी जानकार या रिश्तेदार थे। मतलब इन जघन्य अपराध को सुलझाने के लिए पुलिस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। 

जघन्य अपराध- साल 2018 में 5407, साल 2017 मेंं 6125 और साल 2016 में 7911 मामले जघन्य अपराध के दर्ज किए गए। हत्या, बलात्कार, डकैती, लूट, फिरौती के लिए अपहरण, हत्या की कोशिश,दंगा जघन्य अपराध की श्रेणी में आते हैं। पिछले तीन साल में दर्ज अपराध के  658660  मामलों में सिर्फ 19443 मामले जघन्य अपराध के है। यानी दर्ज हुए अपराध के कुल मामलों में जघन्य अपराध के मामले तीन फीसदी ही है। पुलिस जघन्य अपराध के  71 से 91 फीसदी मामलों को सुलझाने में सफल हुई है। पुलिस आसानी से सुलझने वाले जघन्य अपराध के मामले सुलझाने पर तो अपनी पीठ थपथपाती हैं लेकिन दर्ज कुल अपराध के 60 से 75 फीसदी तक मामले सुलझाने में पुलिस विफल रही है। इन अपराधों में शामिल अपराधी पकड़े ही नहीं गए। 
पुलिस अगर गंभीरता से इन लाखों मामलों की जांच कर अपराधियों को पकड़ने की कोशिश करें तो अपराधी पकड़ में आ सकते है। तभी अपराध और अपराधी पर अंकुश लग पाएगा। वर्ना यहीं अपराधी बाद में बड़े अपराधी भी बन सकते है।
दिल्ली में चोरी सबसे ज्यादा - राजधानी में लोग सबसे ज्यादा चोरों से त्रस्त है। हर समय नकदी, सामान, गाड़ी आदि चोरी हो जाने का डर बना रहता है।  जेब से लेकर घर, दुकान, फैक्ट्री, गोदाम , गाड़ी सब कुछ चोरों के निशाने पर हैं।
साल 2018 में आईपीसी के तहत दर्ज अपराध के कुल 236476 मामलों में से 75 फीसदी मामले चोरी के हैं। यानी चोरी सबसे ज्यादा होने वाला अपराध है इसके बावजूद पुलिस इस अपराध को सुलझाने के लिए गंभीर नहीं दिखाई देती। चोरी के 86 फीसदी  मामलों में पुलिस चोरों का पता ही नहीं लगा पाई है। 
वाहन चोरी बढ़ी-- साल 2018 में वाहन चोरी बढ़ी । कार/बाइक चोरी के 44158 मामले दर्ज हुए। लेकिन पुलिस सिर्फ 4619 वाहन बरामद कर पाई हैं। यानी सिर्फ 10.46 फीसदी वाहन बरामद हुए हैं।

पिछले तीन साल में चोरी के 415000 मामलों में से सिर्फ 57100 मामले पुलिस ने सुलझाए हैं। चोरी के 14 फीसदी मामलों को ही पुलिस सुलझा पाई है।
मासूम बच्चों को तलाश करना हो या लूट/स्नैचिंग, चोरी के ऐसे मामले जिनमें मेहनत की ज्यादा जरूरत होती है उन मामलों को सुलझाने में पुलिस की रुचि दिखाई ही नहीं देती। पिछले करीब चार साल से दिल्ली से आठ हज़ार बच्चे लापता हैं।

संसद में भी उठा अनसुलझे अपराधों का मामला- 

साल 2017 में राज्यसभा में सांसद वकील केटीएस तुलसी ने अपराध के 75 फीसदी से ज्यादा अनसुलझे मामलों पर चिंता प्रकट करते हुए सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया। तुलसी ने कहा कि तथ्यों से पता चलता है कि दिल्ली में क्रिमनल जस्टिस सिस्टम पूरी तरह खत्म हो गया है। जघन्य,गैर जघन्य और गैर आईपीसी समेत तीनों श्रणियों में साल 2016 में दर्ज हुए कुल 216920 मामलों में से कुल 154647 मामले अनसुलझे है ये सभी अनसुलझे मामले संज्ञेय अपराध के है और सभी में तीन साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान है। 
तुलसी ने कहा कि क्या पुलिस हत्या होने का इंतजार करेगी और तब तक कोई कार्रवाई नहीं करेगी। इससे पता चलता है कि दिल्ली मे पुलिस की क्या स्थिति है। दिल्ली मे पुलिस की कार्य प्रणाली के लिए केंद्र सरकार सीधे तौर पर जिम्मेदार है। जब राजधानी का यह हाल है तो देश में किस प्रकार के क्रिमनल जस्टिस सिस्टम की अपेक्षा कर सकते है। 
गृहमंत्री ने कहा छोटे मामलों को सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। --- 75 फीसदी से ज्यादा अपराध के मामलों को सुलझाने में नाकाम पुलिस को फटकार लगाना तो दूर राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि छोटे मामलों को सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है।  गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि जो गैर गंभीर मामले होते है उनमें ज्यादातर घरेलू मामले होते है। ऐसे मामलों में समझौता करा दिया जाता है।छोटी-छोटी चोरियां और मामूली बातों पर झगड़े होते है। ऐसे मामलों को सुलझाने की दर पूरी दुनिया में कम है। चोरी करने के बाद अपराधी को ट्रेस करने में पुलिस को तकलीफ होती है। सबसे ज्यादा गाड़ी चोरी के मामले है। छोटी चोरी के आरोपी नहीं मिलते यह बात भी सही है।

 गैर जघन्य अपराध जिनको पुलिस/ सरकार छोटे मामले मानती है-- - स्नैचिंग ,हर्ट ,सेंधमारी ,वाहन चोरी,घर में चोरी ,अन्य चोरी,महिलाओं से छेड़खानी/बदतमीजी, अपहरण ,जानलेवा दुर्घटना ,सामान्य दुर्घटना। साल 2016 में  गैर जघन्य अपराध के कुल दर्ज 201281 में से सिर्फ 50423 मामले पुलिस सुलझा पाई । इन मामलों को सुलझानें में ज्यादा मेहनत लगती  और पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत का पता चलता। लेकिन जब मंत्री ही कह रहे है कि पुलिस को ऐसे मामले सुलझाने में तकलीफ होती है। तो पुलिस क्यों रूचि लेगी ऐसे  मामलों को सुलझाने में।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाते हैं---
सच्चाई यह है कि पुलिस के यह आंकड़े हकीकत से कोसों दूर हैं। क्योंकि  
 अपराध कम दिखाने के लिए अपराध के मामले सही/ पूूूरेे दर्ज ही नहीं करने की परंपरा पुलिस में कायम है। इसके बावजूद इन आंकड़ों से भी अपराध सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने में पुलिस की नाकामी  उजागर होती हैं। अगर यहीं स्थिति रही तो अपराध दिनों-दिन बढ़ता ही जाएगा। अपराध के मामले पूरे/ सही दर्ज न करना और अपराधियों को पकड़ने में नाकामी के लिए आईपीएस अफसर ही पूरी तरह जिम्मेदार है। आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखा कर ही पुलिस कमिश्नर, डीसीपी,एस एच ओ तक खुद को सफल अफसर दिखाना चाहते हैं। आंकड़ों से अपराध कम दिखाना गृहमंत्री से लेकर पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एसएचओ तक सब  के लिए अनुकूल रहता है।
अपराध और अपराधियो पर अंकुश लगाने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र  रास्ता यह है कि पुलिस अपराध के सभी मामलों को सही/पूरे दर्ज करें। अपराध सही दर्ज होगा तभी अपराध की सही तस्वीर सामने आएगी और तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना कामयाब हो सकती हैं। पुलिस अपराध को सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश कर अपनी पेशेवर काबिलियत का परिचय दें। आसानी से सुलझने वाले अपराध को सुलझा कर अपनी पीठ थपथपाने की बजाए उन अपराध को भी सुलझाए जिनमें वाकई पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत का पता चलता है।
जागो लोगों जागो एफआईआर जरुर दर्ज कराओ---
लोगों को भी जागरुक होना चाहिए लूट, झपटमारी और मोबाइल/ पर्स चोरी के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस के सामने अड़ना चाहिए। अभी हालत यह है कि पुलिस ऐसे मामलों में लोगों को थाने, कोर्ट के चक्कर काटने और अपराधी को पहचानने के ख़तरे बताने के  नाम पर डरा देती हैं। ऐसा पुलिस सिर्फ इसलिए करतीं हैं ताकि एफआईआर दर्ज ना करनी पड़े। क्योंकि एफआईआर दर्ज की तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराध सुलझाने का दबाव बनेगा। सच्चाई यह है कि पुलिस अपराध को दर्ज ना करके अपराधियों की ही मदद करने का अपराध करतीं हैं।
इसलिए अपराध होने पर लोगों को एफआईआर जरुर दर्ज करानी चाहिए।