Tuesday 28 March 2017
Saturday 25 March 2017
देश के लिए शहादत देने में उत्तराखंड नम्बर वन
शहादत देने में उत्तराखंड नंबर वन
इंद्र वशिष्ठ
देश के लिए शहादत देने के मामले में
उत्तराखंड नम्बर एक पर है। संसद में एक सवाल के जवाब में दिए गए सरकारी आंकड़े
बताते हैं कि इस राज्य में शहीद सैनिकों की विधवाओं (युद्ध विधवाएं) की तादाद एक
हजार से ज्यादा है। यूं तो सबसे ज्यादा शहीदों की विधवाएं उत्तर प्रदेश में हैं
जिनकी तादाद 1500 से ज्यादा
है लेकिन आबादी के औसत से देखा जाए तो उत्तराखंड बहुत आगे है।
सरकार ने लोकसभा में युद्ध में शहीद
सैनिकों की विधवाओं का ब्योरा देश के सामने रखा। ये आंकड़े 31 दिसंबर 2016 तक के हैं, जो जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों में
दर्ज हैं। आंकड़े चौकाने वाले हैं क्योंकि उत्तराखंड जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्य
में इनकी संख्या 1416 दर्ज है, जो देश में दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर
पर उत्तर प्रदेश है, जहां शहीदों
की 1566 विधवाएं
जिला कार्यालयों में रजिस्टर्ड हैं।
उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 2014 के हिसाब से करीब 20 करोड़ है जबकि उत्तराखंड की महज एक
करोड़। ऐसे में अगर देखा जाए तो देश के लिए जान देने वाले सबसे ज्यादा जवान
उत्तराखंड से हैं। इसी तरह
सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से हरियाणा में शहीदों की 1243 विधवाएं हैं जबकि यहां की जनसंख्या उत्तर
प्रदेश से करीब 10 गुनी कम
यानि ढाई करोड़ है।
पंजाब में विधवाओं की संख्या 1050, राजस्थान में 1267 है। बिहार में यह संख्या 354, हिमाचल प्रदेश में करीब 600, जम्मू-कश्मीर में 417 है। सबसे कम संख्या वाले राज्य हैं, अरुणाचल प्रदेश (1), गोवा (2), सिक्किम (2), त्रिपुरा (5)। पुडुचेरी और अंडमान निकोबार में शहीद
जवान की एक भी विधवा नहीं है।
Wednesday 22 March 2017
सेना में सहायक व्यवस्था
इंद्र वशिष्ठ
पिछले
दिनों सेना में ‘सहायक’ व्यवस्था पर सवाल उठाने वाले सेना के जवान रॉय
मैथ्यू की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद ‘सहायक’ व्यवस्था का
मुद्दा राज्यसभा में गूँजा। इस सम्बन्ध में रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे ने
साफ़ किया कि भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना में सहायकों की कोई व्यवस्था नहीं
है। भारतीय सेना में सहायक व्यवस्था तो है पर उसके सुपरिभाषित कर्तव्य होते हैं।
हालांकि उन्होंने कहा कि सहायकों को तुच्छ कार्यों में नहीं लगाया जाए, इसके लिए समय-समय पर विशेष आदेश जारी किए
जाते हैं।
सांसद संजीव कुमार ने सशस्त्र बलों में ‘सहायक’ सिस्टम पर रक्षा मंत्री से तीन सवाल पूछे
थे। पहला सवाल सशस्त्र बलों में सहायकों/बड्डीज को अधिकारियों के साथ तैनात करने
के औचित्य पर था। साथ ही उन्होंने पूछा कि क्या ऐसी परिपाटी सशस्त्र बलों में
संबंधित कार्मिकों के मनोबल के विपरीत। इसके जवाब में डॉ भामरे ने विस्तार से पूरे
सिस्टम को बताया।
डॉ भामरे ने कहा कि सहायक किसी यूनिट के संगठनात्मक ढाँचे का अभिन्न अंग
होता है और उसके पास युद्ध और शांतिकाल के दौरान विशिष्ट कार्य होते हैं। फील्ड
में ऑपरेशंस के दौरान वह और अफसर/जेसीओ बड्डीज इन-आर्म्स के रूप में काम करते हैं।
एक बड्डी दूसरे बड्डी के मूवमेंट को कवर प्रदान करता है और आपरेशंस में उसकी रक्षा
करता है। इसके अलावा जहां आवश्यकता होती है वह मानसिक, शारीरिक अथवा नैतिक सहयोग देता है।
उन्होंने सहायक के कार्यों को विस्तार से बताया कि वह अपने सामान्य सिपाही
के कार्यों के अलावा शांति और युद्ध दोनों में अफसरों/जेसीओ को आवश्यक समर्थन
प्रदान करता है ताकि वे (अफसर/जेसीओ) सौंपे गए कार्य ध्यान से कर पाएं। यह बड्डी
सैन्य टुकड़ियों के साथ एक वैकल्पिक सम्पर्क भी मुहैया कराता है जिससे अफसर को
जमीनी हकीकत का पता लग जाता है। चूंकि, अफसरों और बड्डीज के बीच के सौहार्दपूर्ण
संबंध से सैन्य भावना बढ़ती है तो ऐसे में उनके मनोबल पर कोई बुरा प्रभाव पड़ने की
संभावना ही नहीं होती। हालांकि समय-समय पर विशेष अनुदेश जारी किए जाते हैं जिससे
सहायकों को एक लड़ाकू सिपाही होने के नाते ऐसे तुच्छ कार्यों में न लगाया जाए जो
उसके स्वाभिमान और आत्मसम्मान के विपरीत हों।
मंत्री से यह भी पूछा गया था कि क्या सरकार ने विशेष रूप से सातवें वेतन
आयोग के पश्चात हजारों सहायकों/बड्डीज की तैनाती से राजकोष पर आने वाली लागत का
मूल्यांकन किया गया है, इस पर
मंत्री ने साफ़ किया कि सरकार के राजकोष पर इसका कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ता है।
Tuesday 21 March 2017
सेना में महिला अधिकारियों का उत्पीड़न
सेना में महिला
अधिकारियों का उत्पीड़न
इंद्र वशिष्ठ
सेना में महिला
अधिकारियों के उत्पीड़न के 12 मामले सामने आए है। राज्यसभा में रक्षा राज्य
मंत्री
सुभाष भामरे ने यह जानकारी दी।
सेना में महिला अधिकारियों के उत्पीड़न और भेदभाव की शिकायतों
के बारे में सांसद श्रीमती झरना
दास वैद्य के सवाल के जवाब में मंत्री ने बताया कि
तीन साल के दौरान सेना में 6, नौसेना में
3,वायुसेना में 2 ,मेडिकल और नर्सिंग में
एक मामला सामने आया है। भारतीय सेना के
तीन अंगो
और सेना के चिकित्सा अधिकारियों एवं नर्सिंग में महिला अधिकारियों की
संख्या 8960 है। इनमें
थल सेना में 1528,
नौसेना में 469,वायुसेना में 1581, मेडिकल में 1288 और नर्सिंग में 4994
महिला अधिकारी है।
मंत्री ने बताया कि महिलाओं की सेना में भागीदारी बढ़ाने के लिए
सरकार द्वारा कई निर्णय लिए
गए है। साल 2011 में सरकार ने तीनों सेनाओं की विशिष्ट
शाखाओं अर्थात जज एडवोकेट जनरल
और सेना की सैन्य शिक्षा कोर तथा नौसेना एवं
वायुसेना में, उनकी समकक्ष शाखाओं नौसेना में
नौसैन्य निर्माता और वायुसेना में
लेखा शाखा में पुरूष एसएससीओ के साथ स्थाई कमीशन प्रदान
किए जाने के लिए महिला
शॉर्ट सर्विस कमीशन अफसरों पर विचार किए जाने को अनुमोदित किया
है।
मार्च 2016 में ,महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अफसरों को समुद्री
टोह शाखा में पायलट के रूप में
और ऩौसैन्य आयुदध निरीक्षणालय(एनएआई) संवर्ग में शामिल
किए जाने के लिए अनुमोदन प्रदान
किया गया है।
साल 2017 के मध्य से इन्हें शामिल किए जाने की योजना है। भारतीय वायुसेना ने
महिलाओं को लड़ाकू शाखा में
पांच साल की अवधि के लिए प्रयोगात्मक आधार पर शामिल करने
के लिए शॉर्ट सर्विस
कमीशन स्कीन में संशोधन किया है। पहले बैच की तीन महिला अफसरों को
लड़ाकू शाखा में 18
जून 2016 को कमीशन दिया गया था।
Thursday 2 March 2017
दिल्ली में दुश्मनी के कारण हत्याओं में वृद्धि ।
दिल्ली में दुश्मनी के कारण हत्याओं में वृद्धि ।
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में दुश्मनी के कारण हत्या के मामले बढ़ रहे है। मामूली सी बात
पर आपा खो कर हत्या तक करना हत्या का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। हत्या का तीसरा कारण
सेक्स संबंधी है। पारिवारिक विवाद के कारण हत्या करना चौथा कारण रहा । साल 2016
में सिर्फ अपराध के लिए हत्याएं कम हुई है।
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के स्पेशल पुलिस कमिश्नर ताज हसन के
अनुसार साल 2016 में दिल्ली में हत्या की 528 वारदात हुई । इसमें से 19.32 फीसदी हत्याएं पुरानी दुश्मनी के कारण हुई। 16 फीसदी हत्याएं मामूली
सी बात पर अचानक तैश में आकर आपा खोने के कारण की गई। 12.69 हत्याएं सेक्स संबंधों
के कारण हुई । 8.90 फीसदी मामलों में पारिवारिक मतभेद के कारण हत्या कर दी गई। 8.33 फीसदी मामलों में सम्पत्ति या पैंसों
के विवाद के कारण हत्या कर दी गई। सिर्फ
7.77 फीसदी मामलों में अपराध के लिए हत्या की गई। पुलिस ने हत्या के 77.46 मामलों
को सुलझाने का दावा किया है।
हथियार— 36 फीसदी मामलों में
हत्या चाकू जैसे तेजधार हथियार से की गई। 17 फीसदी हत्या भारी वस्तु से वार कर की
गई। 15 फीसदी हत्याएं गोली मार कर की गई । 14 फीसदी मामलों में हत्याएं गला घोंट
कर की गई। 14 फीसदी में ही अन्य हथियार से
हत्या की गई। 2 फीसदी में जहर या
शराब का हत्या के लिए इस्तेमाल किया गया । हत्या के 2 फीसदी मामलों में पेट्रोल या तेल का इस्तेमाल
किया गया।
बुजुर्गों की हत्या— साल 2016 में बुजुर्गों की हत्या की 19 वारदात
हुई। इनमें से 16 मामलों को पुलिस ने सुलझा लिया।
साल 2015 में दिल्ली में
हत्या की 541 वारदात हुई । इसमें से 18.67
फीसदी हत्याएं पुरानी दुश्मनी के
कारण हुई। 16.64 फीसदी हत्याएं मामूली सी
बात पर अचानक तैश में आकर आपा खोने के कारण की गई। 9.61 हत्याएं सेक्स संबंधों के
कारण हुई । 13.49 फीसदी मामलों में पारिवारिक मतभेद के कारण हत्या कर दी गई। 9.61 फीसदी मामलों में सम्पत्ति या पैंसों
के विवाद के कारण हत्या कर दी गई। सिर्फ
9.43 फीसदी मामलों में अपराध के लिए हत्या की गई। पुलिस ने हत्या के 76.89 मामलों
को सुलझाने का दावा किया ।
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