सरकार यानी आईपीएल टीम, सरकार है या आईपीएल टीम,
सरकार-कंपनी मालामाल लोग कंगाल, --सरकार राज या कंपनी राज
सरकार-कंपनी मालामाल लोग कंगाल, --सरकार राज या कंपनी राज
इंद्र वशिष्ठ
बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय, कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ या गरीबी हटाओं के नारे देकर सालों से लोगों के वोट लेकर सत्ता पाने वाली कांग्रेस के हाल के शासन में तो ये सब कहीं नजर नहीं आता है अब तो लगता है कि कांग्रेस का राज कंपनी हिताय -कंपनी सुखाय और सिर्फ कंपनियों के लिए ही है। इस समय भ्रष्टाचार और बेकाबू मंहगाई ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री और ईमानदार होने पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। सरकार के अहम फैसले देखें तो लगता ही नही कि ये जनता के लिए जनता के द्धारा चुनी हुई सरकार है। लगता है कि उद्योग घरानों के चुने हुए लोग सरकार चला रहें है। फिरंगियों की ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कांग्रेस भी अब इंडियन कांग्रेस कंपनी की तरह ही कार्य कर रही है।इसकी मुखिया भी संयोग से विदेशी है। विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए रिटेल में एफडीआई लाने के लिए सरकार पूरा जोर लगा रही है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज भी व्यापारी बन कर आए और भारत को गुलाम बना लिया। अपने स्वार्थ के लिए उठाए सरकार के गलत कदम भारत को दोबारा से गुलामी की ओर धकेलने वाले है।
सरकार बनी आइपीएल टीम- आइपीएल में जैसे क्रिकेट टीमों को बड़े उधोग घराने खरीद लेते है। उसी तरह लगता है कि सरकार में भी उनकी टीमें है। कांग्रेस पार्टी की भूमिका क्रिकेट बोर्ड और मंत्रियों की भूमिका क्रिकेट खिलाड़ियों
पीएम भूल गए राजधर्म -पेट्रोल के दाम बढ़ाने को प्रधानमंत्री ने जायज ठहराते हुए कहते है कि बाजार को अपने हिसाब से चलने देना चाहिए और तेल की कीमतों को ओर नियंत्रण मुक्त किए जाने की जरुरत है। अर्थशास्त्री पीएम का यह बयान हैरानी वाला है सामान्य सी बात है बाजार का हिसाब तो वे बड़े-बड़े कारोबारी या कंपनियां तय करती है जिनका एकमात्र लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना होता है। अगर सब कुछ कंपनियों ने ही तय करना है तो सरकार की भी क्या जरुरत है। कंपनी या व्यापारी मनमानी न कर सके इसी लिए तो सरकारी नियंत्रण की जरुरत होती है। कंपनियां लोगों को लूट न सके इस बात को देखना राज धर्म या सरकार का प्रमुख कर्तव्य नहीं होता ? कांग्रेस की विदेशी मुखिया के बनाए हुए पीएम क्या राज धर्म की यह मूल बात भी नहीं जानते कि उनका सबसे पहला कर्तव्य और धर्म जनता के हित के लिए होना चाहिए न कि कंपनियों के हित में। तत्तकालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक बार बयान दिया कि तेल महंगा होने के बारे में सरकार में किसी को पहले से जानकारी नहीं थी । मंत्री जी अगर सच बोल रहे है तो यह बात बड़ी ही गंभीर और सरकार की काबलियत पर सवालिया निशान लगा देती है कंपनियां क्या कर रही है क्या वाकई इसके बारे में सरकार को कोई खबर नहीं रहती है? चाणक्य ने कहा था कि राजा वहीं सफल होता है जिसका खुफिया तंत्र मजबूत होता है। 2जी घोटाले और कोयला घोटाले ने तो एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सरकार कंपनियों के फायदे के लिए काम करती है।
महंगाई धीमी मौत-पेट्रोल के दाम बार-बार बढ़ाने पर केरल हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि सरकारें इस मसले पर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती । बढ़ती महंगाई धीमी मौत की तरह है। इसके विरोध के लिए सियासी दलों का इंतजार करने की बजाए लोगों को खुद सामने आना चाहिए।
खून चूसता करंट -दिल्ली में बिजली कंपनियों की लूट से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे है लेकिन सीएम खुलेआम कंपनियों का पक्ष लेती है। बिजली के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप खुद पीएसी के तत्कालीन चेयरमैन और कांग्रेस एमएलए डा एस सी वत्स ने अपनी रिपोर्ट में लगाए थे। लेकिन इस मामले में कोई जांच तक न कराए जाने से कांग्रेस की विदेशी अध्यक्ष सोनिया गांधी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है। कंपनियों ने मनमाने तरीके से गर्मियों में हुई बिजली की खपत को आधार बना कर बिजली का लोड बढ़ा दिया और बढ़ाए गए लोड के बिल लोगों से वसूले है। निजीकरण के बाद से बिजली की चोरी कम हो गई। कई गुना रेट बढ़ा कर कंपनियों ने अपना मुनाफा भी बढ़ा लिया। इसके बावजूद कंपनियां घाटा होने का नाटक करती है। सीएम उनकी हां में हां मिलाती रहती है। ऐसा लगता है कि शीला लोगों की नहीं कंपनियों की नुमाइंदा है। दिलचस्प बात यह है कि एनडीएमसी इलाके में बिजली पूरी दिल्ली से सस्ती है। बिजली सस्ती देने के बाद भी एनडीएमसी को घाटा नहीं हो रहा। लेकिन वह देखने की बजाए दाम बढ़ाने के लिए सीएम नोएडा और गुड़गांव के बिजली दाम से तुलना करती है। तेज भागते मीटरों से भी लुटे लोग परेशान है।
पुलिसिया बाजीगरी- बिजली कंपनी आंकड़ों की बाजीगरी से इस तरह घाटा दिखा रही है जैसे पुलिस अपराध को आंकड़ों से कम दिखाने के लिए अपराध के सभी मामलों को दर्ज ही नहीं करती है ।
करो सेवा मिलेगी मेवा - दिल्ली इलैकट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन में रहे कई बड़े अफसर बाद में उस कंपनी से जुड़ गए जिसको उन्होंने उस समय फायदा पहंचाया और लोगों को चूना लगाने में कंपनी की मदद की। नेताओं के अलावा नौकरशाहों से सांठ-गांठ करने में रिलायंस तो शुरु से ही शातिर- माहिर मानी जाती है।
कोर्ट फटकारे.सीएम पुचकारे- सुप्रीम कोर्ट ने बिजली कंपनियों को फटकार लगाते हुए कहा था कि अगर उन्हें मुशिकल हो रही तो वह सप्लाई का कार्य छोड़ सकते है। देश में और भी कंपनियां है। जो यह काम कर सकती है। कंपनियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके बिना काम नहीं चलेगा। कोर्ट ने कंपनियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्हें भारी घाटा हो रहा है। लेकिन इसके बाद भी शीला दीक्षित ने बिजली की दर बढ़ाने को जायज ठहराते हुए भविष्य में फिर दाम बढ़ने के संकेत देने का बयान दे दिया था। हाल ही में बिजली के रेट बढ़ा भी दिए। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने और कंपनियों के हित के लिए ये बेशर्मी की हद तक जा सकते है। कोई कंपनी अगर लोगों की अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतर रही तो उसे हटा कर सरकार दूसरी कंपनियों कों इस कार्य के लिए बुला सकती है लेकिन सरकार तो ये सब तब करती न जब कंपनी वालों से उसकी कोई सांठ-गांठ न होती। कांग्रेस के कई एमएलए भी जनता में अपनी छवि बनाने के लिए बिजली दरों के बढ़ने पर विरोध करने का सिर्फ नाटक करते है। क्या कोई उधोगपति घाटे का कारोबार करेगा? घाटे के कारोबार को वह जल्द से जल्द छोड़ देगा। दिलचस्प बात यह कि निजीकरण के बाद से ही कंपनियां घाटे का रोना रो रही है लेकिन उसे छोड़ नहीं रही है। इस बात से ही कंपनियों की नीयत पर संदेह होता है। सचाई यहीं है कि कंपनियों को मुनाफा हो रहा है घाटा नहीं। फिर भी कंपनी सरकार के साथ साजिश कर लोगों को लूटने में लगी हुई है।
कांग्रेस की कब्र -लंबे समय तक सत्ता का सुख/नशा अहंकारी बना देता है। अहंकार के कारण ही जनविरोधी फैसले लिए जाते है। कांग्रेस अगर अब भी नहीं चेती तो अपनी कब्र खोदने के लिए वह खुद ही जिम्मेदार होगी।
No comments:
Post a Comment