Thursday 7 November 2019

पुलिस के पाप गिनवाने से वकीलों के पाप कम नहीं हो जाते। लाख कमियों के बावजूद पुलिस पर भरोसा, टकराव ख़तरे की घंटी





पुलिस-वकील टकराव ख़तरे की घंटी।
लाख कमियों के बावजूद पुलिस पर भरोसा।

इंद्र वशिष्ठ
पुलिस निरंकुश हैं भ्रष्ट हैं, आम आदमी से सीधे मुंह बात तक नहीं करती है। बेकसूर पर भी हाथ छोड़ना अपना अधिकार समझती हैं। पुलिसवाले संगीन अपराध तक में शामिल पाए जाते हैं।
आम आदमी आज़ भी अकेला थाने जाते हुए डरता है। पुलिस लुटे पिटे लोगों की रिपोर्ट तक आसानी से नहीं लिखती हैं। 
प्रधानमंत्री की भतीजी लुटी,जज साहब का मोबाइल लुटा तो तुरंत लुटेरों को पकड़ लिया। लाखों लोगों के चोरी हुए या लुटे मोबाइल बरामद करने में पुलिस की बिल्कुल रुचि नहीं हैं।
आपके साथ, आपके लिए, सदैव,। सिटीजन फर्स्ट और शांति- सेवा-न्याय  की बातें  सिर्फ एक नारा बन कर रही गई है। 
पुलिस के व्यवहार से तो यही लगता है कि वह सिर्फ वीवीआईपी, नेताओं, रसूखदार प्रभावशाली लोगों और अपराधियों के लिए ही है। लूट के मामलों को दर्ज न करके पुलिस एक तरह से लुटेरों की मदद करने का अपराध तक कर रही हैं।
 लुटेरे बेख़ौफ़ हैं महिलाएं हो या पुरुष कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं है। 
पुलिस का ध्यान  सिर्फ और सिर्फ दिन-रात  वसूली में ही रहता हैं। 
पुलिस आम आदमी की शिकायत पर आसानी से कार्रवाई करना तो दूर उससे ढंग से बात तक नहीं करती है।

पुलिस व्यवहार सुधारें--

पुलिस का ख़राब व्यवहार और भ्रष्टाचार ये दो ऐसे मुख्य कारण है जिसके कारण पुलिस की छवि दिनों दिन ख़राब होती जा रही है।
पुलिस के ऐसे व्यवहार के कारण ही आम आदमी में वकीलों द्वारा पीटे जाने पर भी पुलिस के प्रति हमदर्दी बहुत ही कम है। हालांकि लोग यह तो चाहते हैं कि कानून हाथ लेने वाले वकीलों को सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।
पुलिस कमिश्नर, आईपीएस अफसरों से लेकर सिपाही तक को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और पुलिस के व्यवहार को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। 

लाख बुराईयां पर फिर भी भरोसा-

पुलिस में चाहे लाख बुराईयां है पुलिस की आलोचना भी जमकर होती है। लेकिन फिर भी एक बात तय है कि कहीं न कहीं लोगों का भरोसा पुलिस पर ही है। 
पुलिस के होने का अहसास ही लोगों में सुरक्षा की भावना भर देता है।

कानून व्यवस्था बनाए रखना, अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाना तो पुलिस का मुख्य कार्य है ही। इसके आलावा मामूली से मामूली मामले में पुलिस को ही मददगार के रूप में याद किया जाता है। कहीं पर कोई भी समस्या/ संकट हो , कोई ग़लत हरकत या बदसलूकी करता है तो हरेक के मुंह से सबसे पहले यहीं निकलता है कि पुलिस को बुला लो। अभी इसकी सारी अकड़ निकल जाएगी।

जैसा समाज वैसी पुलिस-वकील-

माना कि पुलिस बुरी है लेकिन है तो वह भी इसी समाज का ही हिस्सा। जो बुराईयां समाज में मौजूद हैं वहीं पुलिस में है।  आज़ अगर हमारे साथ कोई बदसलूकी करें तो हम चाहते हैं कि पुलिस उसकी ऐसी पिटाई करें कि वह हमेशा याद रखें। लेकिन जब किसी अन्य के मामले में पुलिस किसी की पिटाई कर दें तो पुलिस पर कानून हाथ में लेने और बर्बरतापूर्ण कार्रवाई का आरोप लगा देते हैं।
समस्या समाज के दोगलेपन की भी है। जैसे नेता जब विपक्ष में होते हैं तो वह पुलिस पर अत्याचारी, भेदभाव करने वाली, भ्रष्ट होने के आरोप लगाते हैं। वहीं नेता सत्ता में आने पर पुलिस का इस्तेमाल अपने ग़ुलाम और लठैत की तरह करते हैं।
अपने मामले में सब चाहते हैं कि पुलिस कानून अपने हाथ में लेने से भी न हिचकचाए। वहीं पुलिस कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल प्रयोग करें तो उसे अपराधी माना जाता हैं।
समाज में भी तो बुरे और दुष्ट लोग हैं अगर समाज में बुरे लोग न होते तो पुलिस की भला जरुरत ही क्या  होती। इसलिए जैसा समाज वैसी ही पुलिस और वैसे ही वकील है। सभी पेशों में अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं। 

 पुलिस के अपराध/ पाप गिनवाने से वकीलों के अपराध/ पाप कम नहीं हो जाते।-

इस मामले में कुछ लोग बड़े ही हास्यास्पद तर्क दे रहे हैं कि पुलिस ने गोली क्यो चलाई ?
सबसे पहली बात पुलिस को गोली चलाने का हिसाब और जवाब अपने महकमे और सरकार को देना ही होता है। ऐसा नहीं कि पुलिस वाले का मन किया तो गोली चला दी और उससे कोई पूछने वाला नहीं है। 

सैकड़ों वकीलों की हिंसक भीड़ पुलिस वालों पर हमला कर रही हो पिस्तौल तक लूट ले तो ऐसे में हथियार क्या पुलिस को दिखाने के लिए दिया जाता हैं?
आगजनी , तोड़फोड़ कर रही हिंसक भीड़ पर गोली चला कर ही काबू पाया जा सकता हैं और काबू पाया भी गया। 
पुलिस ने हवा में गोली चलाई तभी हमलावर "बहादुर"  सिर पर पैर रखकर भागे। वर्ना यही सैकड़ों वकील गिने चुने पुलिस वालों को घेर कर बेरहमी से पीट पीट कर अपनी बहादुरी/ मर्दानगी दिखाते रहते। पुलिस लाठीचार्ज और गोली नहीं चलाती तो वकीलों के हाथों कब तक पीटती रहती।
पुलिस हिंसक भीड़ को खदेड़ने के लिए यदि पहले ही गोली चला देती तो हालात पर पहले ही काबू पाया जा सकता था।
पुलिस ने गोली चलाने का विकल्प अंत में इस्तेमाल किया।

दूसरी बात भीड़ पर पहले पानी की बौछार ( वाटर कैनन), आंसू गैस, लाठी चार्ज और सबसे अंत में गोली चलाने की पूरी प्रक्रिया का पालन उस हालात में किया जाता हैं जब कोई समूह पहले से प्रदर्शन करने की सूचना पुलिस को देता है। यहां तो अचानक किया गया हिंसक हमला था ऐसे में पुलिस पिटते हुए पहले क्या वाटर कैनन की गाड़ी मंगवाती।


पुलिस ने आपा नहीं खोया।

डीसीपी मोनिका भारद्वाज के आपरेटर का एक आडियो वायरल है जिससे पता चलता हैं कि बुरी तरह पिटने के बावजूद उसने अपनी पिस्तौल तक नहीं निकाली। बल्कि उसे डर सता रहा था कि वकील पिस्तौल न लूट लें। 
उस पुलिसवाले ने  जितना बर्दाश्त किया कोई भी आम आदमी बिल्कुल नहीं करता। अगर किसी आम आदमी या बदमाश के पास पिस्तौल है तो आप उसे पीटना तो दूर गाली भी देने की हिम्मत नहीं कर सकते। लेकिन उस  जिम्मेदार पुलिस वाले ने अपना आपा नहीं खोया। इसलिए उसने बुरी तरह पिटते हुए भी गोली नहीं चलाई। अगर वह पुलिस वाला गोली चला भी देता तो हालात के हिसाब से बिल्कुल जायज माना जाता। सबको आत्मरक्षा करने का अधिकार है।

अपनी रक्षा करना धर्म है।

दूसरा धर्म के हिसाब से भी देखा जाए तो
जिस गीता पर हाथ रखवा कर अदालत में भी शपथ दिलाई जाती हैं। उसमें में तो यहां तक कहा गया है अपना अनिष्ट करने के लिए आते हुए आततायी को बिना विचार किए मार देना चाहिए। आततायी को मार देने से मारने वाले को पाप नहीं लगता है।‌ आग लगाने वाला, जान लेने को उतारू को आततायी की श्रेणी में रखा गया है। 
ऐसे में कानून हाथ में लेने वाला चाहे पुलिस वाला हो या वकील दोनों अपराधी के साथ-साथ  आततायी कहलाएंगे।  

महिला डीसीपी से बदसलूकी-
डीसीपी मोनिका भारद्वाज के साथ बदसलूकी करने वाले वकीलों की पहचान करके उनकी फोटो मीडिया में दी जानी चाहिए। जिससे पता चले कि इनकी नज़र में महिलाओं का कितना सम्मान हैं। उन वकीलों के परिजनों को भी मालूम चले कि उनके संस्कारी  बहादुर पति/बेटे/पुत्र  की नजर में महिलाओं के लिए कितना सम्मान हैं। ऐसी हरकत करने वालों ने अपनी परवरिश और संस्कारों का ही परिचय दिया है।
कानून की धज्जियां उड़ाने वाले पुलिस को  कानून बता रहे हैं।

वकील कह रहे है कि पुलिस वालों का प्रदर्शन ग़ैर क़ानूनी हैं। वकील साहब यह गैर कानूनी है या नहीं यह तो सरकार देख लेगी इसके लिए वकीलों को परेशान होने की जरूरत नहीं है।
दूसरी बात  अपनी समस्याओं को लेकर अपने पुलिस कमिश्नर से मिलने पुलिस मुख्यालय जाना क्या गैर कानूनी और विद्रोह होता है ? अपनी बात कहने के लिए यह चाहें तो गृहमंत्री और प्रधानमंत्री तक भी जा सकते हैं।
सबसे अहम बात पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाले लोग कानून हाथ में लेने वाले वकीलों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग क्यों नहीं कर रहे। 
पुलिस के अपराध गिनवाने से वकीलों को माफ़ी नहीं मिल सकती ।
वकीलों को भी यह तो मालूम ही होगा कि
अदालत तो पुलिस के अपराध पर पुलिस को और वकीलों के अपराध के आधार पर वकीलों को सज़ा सुनाएगी। एक दूसरे के पाप गिनवाने से किसी के पाप कम नहीं हो जाते‌ और ना ही इस आधार पर अदालत किसी को माफ़ करती है।

वेश्या के साथ किया गया बलात्कार भी अपराध ही होता है। बलात्कारी के इस तर्क से  कानून उसे माफ़ नहीं करता कि शिकायतकर्ता तो वेश्या हैं।

इंसाफ होना चाहिए --

वकीलों की संस्थाओं को इस मामले की गंभीरता को समझना चाहिए। कानून हाथ में ले कर अपराध कर पूरे पेशे पर दाग़ लगाने वालों की हिमायत बिल्कुल नहीं करना चाहिए। 
इन संस्थाओं को तो आदर्श पेश करना चाहिए ताकि लोगों में संदेश जाए कि वह गलत के साथ नहीं है। 

पुलिस वालों ने अपराध किया है तो उसके लिए अदालत सज़ा देगी ही। उनके खिलाफ तो  विभागीय कार्रवाई की भी व्यवस्था है

इस मामले में इंसाफ का तकाज़ा यहीं हैं कि कानून हाथ में लेने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए। फिर चाहे वो खाकी वर्दी वाले हो या काले कोट वाले।

जागो आने वाले ख़तरे को महसूस करो।-

इस मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को समझना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आशंका है कि आने वाले समय में तनातनी इतनी बढ़ जाएगी कि भयंकर ख़ून ख़राबे की नौबत आ सकती हैं।
मान लीजिए अगर ज़ज, राजनेता, वकीलों के दबाव या डर के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करते तो कानून हाथ में लेने वाले ओर निरंकुश हो जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर तक कह चुके हैं कि कोई
वकील अगर गलती करें तो भी पूरी जमात उसके साथ खड़ी होकर जजों को धमकाने लगती है। ऐसे में बेहतर होगा कि हम सुप्रीम कोर्ट ही बंद कर दें हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा ने कहा कि जज वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने से डरते हैं। इससे ही यह आशंका पैदा होती हैं कि इस मामले में न्याय होगा या नहीं। 

वैसे पूरी घटना के वीडियो के माध्यम से पूरी दुनिया जान चुकी हैं कि कानून हाथ में लेकर किसने कानून की धज्जियां उड़ाई हैं।  

अगर इंसाफ नहीं मिलेगा तो पुलिस बल का मनोबल टूटेगा। इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि निरंकुश वकील फिर कोई हरकत करेंगे तो पुलिस के अंदर दबी हुई चिंगारी आग का रुप ले सकती है जिसका परिणाम दोनों पक्षों और समाज के लिए अच्छा नहीं होगा।
इस मामले में ऐसा इंसाफ होना चाहिए कि जिसने भी कानून हाथ में लेने का अपराध किया है उसे सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।  सही इंसाफ किए जाने ही से मामला सुलझेगा वर्ना अंदर ही अंदर चिंगारी सुलगती रहेगी।

पुलिस वकील मिलकर लड़े अपराध से।-

पुलिस और वकील आपराधिक न्याय व्यवस्था के आधार स्तम्भ है।
दोनों को अपनी ताकत और कानूनी ज्ञान का इस्तेमाल आपस में लड़ने की बजाए अपराध और अपराधियों से लड़ने के लिए करना चाहिए।
पुलिस और वकील ठान लें और ईमानदारी से प्रयास करें तो अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक नाकारा-

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और अन्य आईपीएस अफसरों के रवैए को लेकर पुलिस में जबरदस्त रोष है। पुलिस अफसर घायल पुलिस वालों का हाल जानने तक तुरंत नहीं  गए थे। अमूल्य पटनायक को ऐसे नाकारा कमिश्नर के रूप में याद किया जाएगा जिसके समय में खाकी मिल गई ख़ाक में। सिपाही से लेकर आईपीएस तक पिटने लगे। अमूल्य पटनायक ने पुलिस का बंटाधार कर दिया।

पुलिस के बारे में कहा जाता हैं कि वह रस्सी का सांप बना देती हैं।

वकीलों के बारे में अकबर इलाहाबादी का  मशहूर शेर है।

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा 
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए 




                                     SBT



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