Wednesday 27 November 2019

झपटमारी की FIR दर्ज़ न करने पर 18 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई, संसद में उठा मामला।


FIR दर्ज न करने पर 18 पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई।
संसद में उठा झपटमारी की एफआईआर दर्ज न करने का मामला।

इंद्र वशिष्ठ
आम आदमी ही नहीं अब सांसद भी संसद तक में यह बात कहने लगे हैं कि दिल्ली पुलिस झपटमारी के मामले दर्ज नहीं करती है। झपटमारी को चोरी में दर्ज़ करती हैं।
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि एफआईआर दर्ज न करने वाले 18 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।

पुलिस झपटमारी की FIR दर्ज नहीं करती-
राज्य सभा में सांसद राजकुमार धूत ने पूछा कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि झपटमारी/ स्नैचिंग की घटनाओं में दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती और यदि करती भी है तो झपटमारी के बजाए चोरी में एफआईआर दर्ज करती है।
पुलिस दुर्व्यवहार करती है?-
सांसद ने यह भी पूछा कि क्या यह सच है कि पुलिस वाले एफआईआर दर्ज करने की बजाए पीड़ित व्यक्ति से दुर्व्यवहार/बदसलूकी करते है। 
FIR  दर्ज न करने की शिकायतें मिली हैं-
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने इस सवाल के जवाब में बताया कि दिल्ली पुलिस ने 31-10-2019 तक झपटमारी के 5307 मामले दर्ज किए हैं।  
झपटमारी के मामले दर्ज न करने या कानून की सही धारा में दर्ज न करने की तीन शिकायत पुलिस को इस साल मिली हैं। जिन पर कार्रवाई की जा रही है।
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने बताया है कि सभी थानों को निर्देश दिए गए हैं कि संज्ञेय अपराध के मामले कानून की उपयुक्त/ सही धारा में दर्ज करना सुनिश्चित करें। 
FIR दर्ज न करने पर 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई-
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि इस साल अक्टूबर तक एफआईआर दर्ज न करने वाले दोषी 18 पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई  है।
इनमें से 14 पुलिसवालों को चेतावनी/नाराजगी/ स्पष्टीकरण/ सलाह ज्ञापन दिए गए और 4 पुलिस वालों के खिलाफ सेंश्योर (निंदा) की कार्रवाई की गई हैं ।
थानों में महिला जन सुविधा अफसर तैनात-
गृह राज्य मंत्री ने बताया कि पुलिस वालों द्वारा किसी पीड़ित व्यक्ति / शिकायतकर्ता के उत्पीड़न या बदसलूकी किए जाने का कोई मामला जानकारी में नहीं आया है। लोगों की सुविधा के साथ-साथ ऐसे मामलों से बचने के लिए पुलिस ने शिकायतकर्ता के साथ उपयुक्त व्यवहार के लिए थानों में महिला जन सुविधा अफसर तैनात करने की योजना शुरू की है।

कमिश्नर सुस्त, IPS, SHO मस्त, लोग त्रस्त, लुटेरे बेख़ौफ़-  
दिल्ली में बेख़ौफ़ लुटेरों ने आतंक मचा रखा है। महिला हो या पुरुष कोई भी कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं
लूटपाट और लुटेरों पर अंकुश लगाने में नाकाम पुलिस अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने में जुटी हुई हैं। लूटपाट की वारदात को दर्ज़ न करके या हल्की धारा में दर्ज कर पुलिस एक तरह से लुटेरों की ही मदद कर रही हैं।
पुलिस के ऐसे हथकंडों के कारण ही अपराध बढ़ रहे हैं और अपराधी बुलंद हौसले के साथ बेख़ौफ़ होकर लगातार वारदात कर रहे हैं।

पुलिस कमिश्नर अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करते हैं। --

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को शायद आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने में माहिर आईपीएस अफसर ही ज्यादा पसंद है इसलिए ऐसे अफसरों को ही बेहतर/ महत्वपूर्ण माने जाने वाले जिलों में डीसीपी लगाते हैं।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस कमिश्नर की सहमति और शह के कारण ही अपराध सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाते हैं। पुलिस के आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर होते हैं।

इस तरह आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एस एच ओ तक खुद को सफ़ल अफसर दिखाते हैं।

अपराध दर्ज न कर अपराधी की मदद करने वाले पुलिस अफसर पर दर्ज की जानी चाहिए एफआईआर--

लेकिन ऐसा करके ये सब पुलिस अफसर एक तरह से  अपराधी की ही मदद कर उसके अपराध में शामिल हो जाते हैं। जिस तरह किसी अपराधी की मदद करने या शरण देने वाले व्यक्ति को भी अपराधी माना जाता हैं । ऐसे में यह अफसर भी अपराधी माने जाने चाहिए। अपराध को दर्ज न कर अपराधी को फायदा पहुंचाने वाले ऐसे पुलिस अफसरों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए।  तब ही अपराध के मामले सही दर्ज किए जाने लगेंगे। फिर अपराध और अपराधी पर अंकुश लग सकेगा।

वारदात की सही FIR दर्ज नहीं करती पुलिस---

अब तो हालत यह है कि लुटेरों को भी मालूम है कि अगर पकड़े भी गए तो उनके द्वारा की गई अनगिनत वारदात में से सिर्फ कुछेक वारदात ही पुलिस ने दर्ज की होंगी। ऐसे में लुटेरे जल्द जमानत पर रिहा हो कर फिर से बेख़ौफ़ होकर वारदात करने लगते हैं।

लूटपाट रोकने और लुटेरों पर अंकुश लगाने का सिर्फ एक ही रास्ता लूट की सभी और सही एफआईआर दर्ज की जाएं--

लूटपाट को रोकने और लुटेरों पर अंकुश लगाने का सिर्फ और सिर्फ एक मात्र रास्ता है कि पुलिस लूट की सभी वारदात को दर्ज़ करें।
ऐसे में लुटेरे को सभी मामलों में जल्द जमानत भी नहीं मिल पाएगी और  सज़ा होने पर जेल में ज्यादा समय तक बंद रहना पड़ेगा। इस तरीके से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लग पाएगा। 
लेकिन अफसनोक बात यह है कि पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर ऐसा नहीं करते हैं। ऐसे अफसरों के कारण ही एस एच ओ भी निरंकुश हो जाते हैं।
अपराध दर्ज होगा तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी।
पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दवाब रहेगा। पुलिस को अपराधी को पकड़ने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी जो वह करना नहीं चाहती हैं। इसलिए वह अपराध को दर्ज ही न करने का तरीका अपना कर खुद को काबिल अफसर दिखाना चाहते हैं।  लेकिन ऐसा करके वह अपराध और अपराधियों को बढ़ावा दे रहे हैं। अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन न करके ऐसे पुलिस अफसर बहुत बड़ा अपराध करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी लुट गया,पुलिस ने खेल कर दिया-
पहाड़ गंज थाना इलाके में उत्तराखंड निवासी मार्शल आर्ट के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं पत्रकार सतीश जोशी का मोबाइल स्कूटी सवार लुटेरों ने लूट/ छीन लिया। 23 नवंबर की रात में हुई इस वारदात को भी पुलिस ने झपटमारी की बजाए चोरी में दर्ज़ कर दिया।

महिलाओं की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील होने के पुलिस दावे की पोल खुल गई-

महिलाओं की चेन, पर्स, मोबाइल लूटने के मामले दर्ज तक न करना पुलिस के महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की पोल खोल रहा है।

'आपके लिए, आपके साथ, सदैव' का दावा करने वाली पुलिस की हरकतों से तो लगता है कि पुलिस "अपराधी के लिए, अपराधी के साथ, सदैव" हैं।

प्रधानमंत्री की भतीजी लुट गई तो पुलिस ने
कुछ घंटों में ही लुटेरे पकड़ लिए।-

12 अक्टूबर की सुबह प्रधानमंत्री की भतीजी दमयंती बेन का पर्स स्कूटी सवार दो लुटेरों ने लूट लिया। वारदात सिविल लाइंस इलाके में गुजराती समाज भवन के सामने उस समय हुई जब वह ऑटो रिक्शा से उतरी। पुलिस ने 24 घंटे के भीतर ही लुटेरों को पकड़ कर दमयंती का पर्स, मोबाइल और नकदी आदि सब कुछ बरामद कर लिया।
इसके बाद ही एक जज का फोन लुटेरों ने छीन लिया। इस मामले में भी लुटेरों को तुरंत पकड़ कर उत्तरी जिला पुलिस ने जज साहब का फोन बरामद कर लिया।
 इन मामलों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शिकायतकर्ता वीवीआईपी हो तो पुलिस कुछ घंटों में ही लुटेरों को पकड़ लेती। आम आदमी के मामले में भी पुलिस इतनी ही तत्परता से कार्रवाई करें और लुटेरों को पकड़े तब ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता हैं।

महिला लुट गई गिर गई, पुलिस ने लूट की बजाए चोरी की रिपोर्ट लिखी।

4 अक्टूबर को रोहिणी सेक्टर 13 में  सुबह स्कूटर से जा रही ज्योति राठी से बाइक सवार लुटेरों ने चेन लूट ली। ज्योति स्कूटर से गिर गई। लुटेरे इसके बाद भी ज्योति के पास पहुंच गए और चेन का टूटा हुआ लॉकेट ले जाने लगे,शोर मचाने पर  वह लॉकेट नहीं ले जा पाएं।

प्रशांत विहार थाना पुलिस ने  लूट/झपटमारी की एफआईआर दर्ज करने की बजाए चोरी की
 ई-एफआईआर दर्ज कर दी। पुलिस वालों ने ज्योति से कहा कि " मैडम ऐसा रोजाना ही होता हैं क्या करें"।
ज्योति ने खुद इलाके में घूम घूम कर सीसीटीवी फुटेज लिया और पुलिस को दिया। ज्योति ने इस मामले का वीडियो बना कर टि्वटर पर अपलोड कर दिया। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने एफआईआर में लूट की धारा जोड़ी।

आला अफसर कसूरवार-
 इस मामले में  एएसआई सखाराम को निलंबित कर दिया गया। एएसआई को निलंबित करना सिर्फ खानापूर्ति हैं। लूट को चोरी में दर्ज़ करने के लिए असल में आला अफसर जिम्मेदार होते हैं। एसएचओ, एसीपी और डीसीपी की मर्जी/सहमति/आदेश के बगैर एएसआई लूट को चोरी में दर्ज़ नहीं कर सकता।

महिला लुटी और कार के नीचे आते-आते बची।  पुलिस ने एफआईआर तक  दर्ज नहीं की--

16 सितंबर को सदर बाजार इलाके में स्कूटर सवार

लुटेरे ने एक महिला से चेन छीनने में ऐसा झटका मारा कि वह सड़क पर गिर गई। महिला के पीछे से वैन और सामने से कार आ रही थी महिला कार के नीचे आते-आते बची। पुलिस को 100 नंबर पर  कॉल की गई। पीसीआर महिला को थाने ले गई। पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। महिला से एक सादे काग़ज़ पर शिकायत लिखवा ली गई। महिला के पति ने खुद लोगों के पास जाकर सीसीटीवी फुटेज दिखाने की गुहार लगाई। इसके बाद वारदात का सीसीटीवी फुटेज सामने आया। वारदात की जगह पर पुलिस का सीसीटीवी कैमरा भी लगा हुआ है लेकिन वह शो-पीस बन हुआ है। आरोप है कि सीसीटीवी फुटेज पुलिस को दिए जाने के बाद भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वारदात को अंजाम देने के बाद भी वह लुटेरा इलाके में ही घूमता देखा गया। सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे के स्कूटर का नंबर भी साफ़ है। 23 सितंबर को समाचार पत्र में यह मामला उजागर होने पर  पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

महिला डीसीपी मोनिका भारद्वाज के होते हुए पीड़ित महिला की रिपोर्ट न दर्ज करने से पुलिस के महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की पोल खुल गई।




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