Wednesday 13 October 2021

IPS अफसरों की सेवा में तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने का फरमान।दूसरे राज्यों में तैनात IPS की सेवा में भी पुलिसकर्मी तैनात, IPS का IPS से हैं, ये भाईचारा। गृहमंत्री,कमिश्नर IPS पर अंकुश लगाओ।

        कमिश्नर राकेश अस्थाना  

आईपीएस की सेवा में तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने का आदेश।
दूसरे राज्यों में तैनात आईपीएस की सेवा में भी दिल्ली पुलिसकर्मी तैनात।
आईपीएस का आईपीएस से हैं भाईचारा।


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में अपराध से निपटने या कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बेशक पुलिस कम पड़ जाए।
लेकिन आईपीएस अफसरों की सेवा मेंं पुलिसकर्मी हमेशा उपलब्ध रहते हैं। 
दिल्ली पुलिस में तैनात आईपीएस अफसरों के लिए ही नहीं, दिल्ली से हजारों मील दूर के राज्यों में तैनात आईपीएस अफसरों की सेवा में भी दिल्ली पुलिसकर्मियों को लगा दिया जाता है। यहीं नहीं सेवानिवृत्त होने के बाद भी आईपीएस इस सेवा का लाभ उठाते हैं। और तो और आईएएस अफसर को भी आईपीएस अफसर यह सुविधा उपलब्ध करा देते हैंं।
हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है, और न ही ऐसा कोई नियम हो सकता कि आईपीएस किसी दूसरे राज्यों में तैनात हो, तब भी दिल्ली पुलिस का सिपाही उसके साथ तैनात किया जा सके।
आईपीएस किसी अफसर/ पुलिसकर्मी को अपने साथ सरकारी कार्य के लिए डेपुटेशन पर तो ले जा सकता है। जैसा कि पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने किया है बीएसएफ से दो अफसर और दो ड्राइवर को डेपुटेशन पर वह दिल्ली पुलिस में लाए हैं।
सिपाही क्या गुलाम हैं-
 सिपाहियों को अस्थाई रुप से आईपीएस के पास बिना किसी ठोस कारण के तैनात करना या गुलाम की तरह उनका निजी/ घरेलू कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाना पुलिसकर्मियों का दुरुपयोग और एक तरह से उनका शोषण करना है।  
आईपीएस का भाईचारा-
 असल में यह आईपीएस अफसरों का आपस का भाईचारा है कि वह एक दूसरे को निजी सेवा के लिए भी सिपाही, रसोइया, ड्राइवर, कार आदि उपलब्ध करवाते हैं। 
ऐसा करने वाले आईपीएस अपने निजी फायदे के लिए सरकारी खजाने को चूना लगाते है। क्योंकि  सरकार सिपाही को वेतन सरकारी कार्य के लिए देती है ना कि आईपीएस के निजी/ घरेलू कार्य करने के लिए।
सामंती मानसिकता-
सामंती मानसिकता वाले ऐसे अफसर मातहत पुलिसकर्मियों को गुलाम समझते हैंं। दूसरे राज्यों में तैनात अफसरों के दिल्ली में स्थित घर परिवार की सेवा/देखभाल के लिए भी पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल किया जाता है।
सिपाहियों को हाजिर होने का आदेश-
यह परंपरा जारी है इसका खुलासा एक आदेश से भी हो जाता है।
आठ अक्टूबर को द्वारका जिले के डीसीपी की ओर से उनके मातहत द्वारा एक आदेश जारी किया गया। जिसमें दस पुलिसकर्मियों को आदेश दिया गया कि वह तुरंत जिला पुलिस लाइन में हाजिर हो, वरना आदेश का पालन न करने पर उनका वेतन रोक दिया जाएगा। इस आदेश के मुताबिक यह दस पुलिसकर्मी नौ अफसरों के साथ अस्थाई रुप से तैनात हैं।
दबंग दीपक मिश्रा- आदेश के अनुसार दिल्ली पुलिस में भी रह चुके और सीआरपीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए दबंग आईपीएस दीपक मिश्रा के साथ हवलदार अनिल अस्थाई रुप से तैनात है।
पुदुचेरी डीजीपी- दिल्ली पुलिस में रहे और आजकल पुदुचेरी के पुलिस महानिदेशक रणवीर सिंह कृष्णियांं के साथ सिपाही विजय पाल तैनात है।
अंडमान में तैनात-इस समय अंडमान निकोबार द्वीप समूह में तैनात आईपीएस मधुप तिवारी के साथ सिपाही अशोक तैनात है।
 दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में तैनात आईपीएस सुनील कुमार गौतम के साथ सिपाही बिजेंद्र तैनात है।
  संयुक्त पुलिस आयुक्त बी के सिंह के साथ एएसआई प्रताप और सिपाही सतीश तैनात हैं।
 आईबी में तैनात आईपीएस एंटो अल्फोंस के साथ सिपाही विनोद तैनात है। 
यह वहीं एंटो अल्फोंस हैं जो द्वारका जिले से तीन टच स्क्रीन कंम्प्यूटर बिना कागजी कार्रवाई के अवैध तरीक़े से उत्तरी जिले में ले गए थे। इस पत्रकार के पूछने पर उन्होंने कंप्यूटर लाने से साफ इंकार कर दिया था।
इस पत्रकार द्वारा यह मामला उजागर किया गया । तत्कालीन कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की जानकारी में यह मामला लाया गया, तब उन्होंने पता लगाया तो कंप्यूटर एंटो के पास ही मिले। इसके बाद कंप्यूटर एंटो की री एलोकेट करके बचा लिया गया। अगर यह मामला उजागर न होता तो तीन कंप्यूटर का गबन हो जाता।
 दिल्ली पुलिस में डीसीपी (सिक्योरिटी) आर पी मीणा के साथ सिपाही मनोज तैनात है।
आईएएस को भी सिपाही- आईएएस अफसर रामगोपाल के साथ सिपाही संदीप तैनात है। इसके  अलावा विक्रम जीत के साथ सिपाही जितेंद्र तैनात है। विक्रम जीत का पद आदेश में नहीं लिखा गया है।
जान को खतरा नहीं है-
यह सिपाही अफसरों की जान को खतरे के कारण तैनात नहीं किए गए। क्योंकि सुरक्षा के लिए तैनात होते, तो इस तरह से तुरंत जिला लाइन मेंं हाजिर होने का आदेश नहीं दिया जाता। जान को खतरा होता, तो सिपाही आईपीएस के साथ साये की तरह रहता। ऐसा भी नहीं होता कि जिसकी जान को खतरा है वह अफसर दूसरे राज्यों में तैनात और उनका सुरक्षाकर्मी दिल्ली में है। सुरक्षा के लिए तैनात करने के लिए तो उस व्यक्ति की जान को खतरे का आकलन समेत बकायदा एक पूरी  प्रक्रिया का पालन किया जाता हैं। सुरक्षा विभाग से पुलिसकर्मी तैनात किया जाता है।
किस आधार पर तैनात किए ?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि  आईपीएस अफसरों को, खासकर जो दूसरे राज्यों में या डेपुटेशन पर हैं या सेवानिवृत्त हो गए हैं, तो उन्हें पुलिसकर्मी किस आधार या किन नियमों के तहत उपलब्ध कराए गए हैं ?
 अगर नियमानुसार तैनात किए गए हैं, तो अचानक उन्हें तुरंत जिला लाइन हाजिर होने का आदेश देना और वेतन रोकने की धमकी क्यों दी गई। 
क्या सिपाही अनुशासनहीन हैं कि वह वेतन रोकने की धमकी देने पर ही हाजिर होंगे।
किन अफसरों ने तैनात किया?-
अगर नियमों के खिलाफ अस्थाई रुप से तैनात किया गया था तो वह कौन- कौन से आईपीएस हैं जिन्होने इन पुलिसकर्मियों की तैनाती का आदेश दिया था ? 
बाबू की इतनी हिम्मत है ?- यह आदेश उजागर होने के बाद मामले में नया मोड आ गया।
द्वारका जिले के डीसीपी शंकर चौधरी ने मीडिया में कहा कि यह आदेश उनकी स्वीकृति यानी अप्रूवल के बगैर बाबू ने उनकी ओर से जारी कर दिया है। इसलिए उस बाबू को निलंबित कर जांच की जा रही है। 
डीसीपी का बयान विरोधाभासी हैं क्योंकि अगर उनकी स्वीकृति के बिना आदेश जारी हुआ है, तो फिर यह सीधा सीधा जालसाजी का ही मामला बनता है। लेकिन फिर भी वह इसे जालसाजी नहीं मानते। 
उल्लेखनीय है कि आदेश में साफ लिखा है कि डीसीपी की स्वीकृति से जारी किया गया है।
बाबू क्या अपने  स्तर पर आईपीएस अफसरों के यहां तैनात पुलिसकर्मियों को हटाने की हिम्मत कर सकता है ?
वैसे यह भी हो सकता है कि आदेश उजागर होने के बाद डीसीपी ने  उपरोक्त आईपीएस अफसरों के कोप/ नाराजगी से बचने के लिए बाबू को बलि का बकरा बना दिया हो।
खुलासा तो हुआ-
वैसे चाहे आदेश डीसीपी की स्वीकृति के बिना जारी किया गया हो, लेकिन इससे यह खुलासा तो हो ही गया कि आईपीएस अफसरों के पास अस्थाई रुप से एक जिले से ही कितने पुलिसकर्मी तैनात हैं। बाकी 14 जिलों , बटालियन और सिक्योरिटी आदि इकाइयों से कितने पुलिसकर्मी अस्थाई रुप से आईपीएस की सेवा में लगे होंगे, उसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं।
वैसे इस आदेश पर अमल होने की संभावना बहुत ही कम हैं क्योंकि आईपीएस द्वारा एक दूसरे को ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने की परंपरा हैं और वह इस तरह की सेवाएं लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। 
आईपीएस नायक बनो, खलनायक नहीं।
आईपीएस सिर्फ़ यूपीएससी की परीक्षा में पास होने के समय ही मीडिया में ईमानदारी और आदर्श की बड़ी बड़ी बातें करते हैं। कुर्सी पर बैठने के बाद ईमानदारी से कर्तव्य पालन और आदर्श आचरण की मिसाल पेश करने वाले विरले ही होते हैं।
सिपाही अब कहां हैं?-
पुलिस मुख्यालय और द्वारका के डीसीपी शंकर चौधरी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जिन पुलिसकर्मियों को जिला लाइन में हाजिर होने का आदेश दिया गया था, क्या वह अब जिला लाइन में आ गए हैं या अभी तक उपरोक्त आईपीएस अफसरों के यहां पर ही तैनात हैं।
सुरक्षा से 500 पुलिसकर्मी से ज्यादा हटाए - 
पुलिस के सुरक्षा विभाग ने हाल में एक ऑडिट किया है। जिसमें पाया गया कि पुलिस के करीब साढ़े पांच सौ जवान (535) पूर्व पुलिस कमिश्नरों, पूर्व जजों, पूर्व नौकरशाहों  और नेताओं के यहां तैनात है। जबकि उनकी जान को खतरा है या नहीं इसका आकलन तक भी पिछले कई साल से नहीं किया गया। जबकि  नियमानुसार हर छह महीने में खतरे का आकलन किया जाना चाहिए।
कई पूर्व कमिश्नर के पास तो दस-पंद्रह पुलिसकर्मी तक तैनात है। सुरक्षाकर्मियों के अलावा घरेलू काम के लिए रसोईया, ड्राइवर आदि अलग से तैनात हैं।
इन पुलिसकर्मियों को वहां से हटा कर या संख्या कम करके उन्हें पुलिस के कार्य में लगाया जा रहा है।
इसके अलावा स्पेशल सेल के अफसरों की सुरक्षा में भी कटौती की गई है।
जिन्हें वास्तव में खतरा है उन्हें ही सुरक्षा दी जाएगी।
दूसरी ओर सुरक्षा इकाई में पुलिसकर्मियों की संख्या पहले ही कम है। स्वीकृत पद 6828 है लेकिन 5465 पुलिसकर्मी ही हैं।
कमिश्नर आईपीएस पर अंकुश लगाएं।
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना को आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईए और कार आदि संसाधनों के निजी इस्तेमाल/ दुरुपयोग पर रोक लगानी चाहिए।
दबंग कमिश्नर-
आईपीएस अफसर द्वारा तबादले के साथ ही अपने निजी स्टाफ यानी चहेते पुलिस कर्मियों को भी साथ ले जाने पर तत्कालीन पुलिस अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था।
इसके बाद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर युद्धवीर सिंह डडवाल ने भी पूरी दबंगता से आईपीएस अफसरों द्वारा पुलिसकर्मियों, रसोईए और कार आदि संसाधनों के दुरुपयोग को रोक दिया था।


थानों के रसोइया IPS की रसोई में।
 सरकारी कार बनी, परिवार की सवारी।
 गृहमंत्री अफसरों पर अंकुश लगाओ।

थानो के रसोइया/ बावर्ची आईपीएस अफसरों के घरों में रोटियां सेकने मेंं लगे हुए हैं।.इसीलिए पुलिस के जवानों को कई बार थाने के मैस मेंं ढंग का खाना भी समय पर नहीं मिलता है। 
इसी तरह पुलिस की गाड़ियों का भी अनेक आईपीएस अफसरों द्वारा अपने निजी कार्यों के लिए जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। 
और तो और रिटायर्ड आईपीएस अफसर द्वारा पुलिस के रसोइयों और ड्राइवर का इस्तेमाल किया जाता है।
आईपीएस की रसोई मेंं पुलिस के रसोइया-
पुलिस सूत्रों के अनुसार थाने मेंं ही रहने वाले पुलिसकर्मियों के लिए थाने के मैस मेंं भोजन की व्यवस्था है। भोजन के लिए पुलिसकर्मियों को खुराक/ डाइट के हिसाब से पैसा देना होता है। इसके बावजूद उन्हें कई बार समय पर  ढंग का खाना तक नहीं मिलता है। क्योंकि मैस के अनेक  रसोईये कई आईपीएस अफसरों के घरों पर काम करते हैं। थाने के मैस के लिए बाहर से दूसरे काम चलाऊ रसोईये का इंतजाम करना पड़ता है। जिसके लिए पुलिसकर्मियों को अलग से ज्यादा पैसा देना पड़ता है। संपर्क सभाओं में वरिष्ठ अफसरों के सामने मातहतों द्वारा मैस मेंं रसोईये न होने की बात उठाई जाती है। थाने में रहने वाले पुलिसकर्मियों को मजबूरी में कई बार ढाबों मेंं खाना पडता है।
IPS की नकचढ़ी पत्नी की सेवा को मजबूर रसोईया-
पुलिस सूत्रों के अनुसार एक रिटायर्ड स्पेशल सीपी जिसके खिलाफ जबरन वसूली का मामला भी दर्ज हुआ था उनके घर पर भी पुलिस का रसोइया ही भोजन बनाता है। हालांंकि अफसर की तुनकमिजाज/बदतमीज पत्नी के कारण एक रसोईये ने तो वहां काम करने से इंकार कर दिया है। रिकॉर्ड के अनुसार रसोईया पश्चिम जिले  के थाने मेंं तैनात है लेकिन वह खाना रिटायर्ड अफसर के घर बनाता है। एक रसोईये ने जिले के वरिष्ठ अफसरों को उस अफसर की बदतमीज पत्नी के बारे मेंं बताया। जिला पुलिस के अफसर ने उस रसोईये की बात मान ली और उसे  मैस मेंं ही काम करने को कह दिया। उधर रसोईए के न आने पर रिटायर्ड अफसर ने जिले के वरिष्ठ अफसर पर दबाव डाला जिसके बाद एक दूसरे रसोईये को उस रिटायर्ड अफसर के घर भेजा गया। यह कहानी सिर्फ़ किसी एक रसोईये/ कुक की नहीं है। ऐसे अनेक वर्तमान एवं रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं जो पद का दुरुपयोग का सरकारी रसोईये/ड्राइवर/ सफाई कर्मचारी/माली का इस्तेमाल अपने घरों पर कर रहे हैं।
मातहत रसोईया का इंतजाम खुद करते हैं-
सूत्रों के अनुसार मैस के लिए पुलिस का ही रसोईया होता है लेकिन अब निजी एजेंसियों द्वारा भी रसोईया लिए जाते हैं। इसके लिए 25 हजार रुपए प्रति रसोईया का भुगतान पुलिस एजेंसी को करती  है। दूसरी ओर जो सरकारी रसोईये हैं उनका तो वेतन पैंतालीस हजार रुपए तक है। अफसरों के घरों पर काम करने के कारण मैस के लिए अलग से दूसरा रसोईया रखना पडता है उसके वेतन के लिए पुलिसकर्मियों को अपनी जेब से  पैसा देना पडता हैं।
कारों का दुरुपयोग- 
आईपीएस अफसरों द्वारा सरकारी कार का निजी कार्यों के जमकर इस्तेमाल किया जाता है। अफसरों के बच्चों को स्कूल आने जाने, पत्नी और रिश्तेदारों तक के लिए सरकारी गाड़ियो का इस्तेमाल किया जाता है।
वरिष्ठ अफसर ही नहीं डीसीपी तक ऐसा करते हैं। हर अफसर को एक सरकारी कार मिलती है। इसका इस्तेमाल तो निजी कार्य के लिए करते ही है इसके अलावा थाने या जिले के अन्य अफसरों की गाड़ी लेकर अपने घर,परिवार के लिए इस्तेमाल करते हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार जिले में महिला अपराध शाखा (सीएडब्लू) , पीजी सेल और हेडक्वार्टर एसीपी के पद पर तैनात अफसरों के नाम से  नई गाडी आती है लेकिन वह गाडियां वरिष्ठ आईपीएस अफसरों द्वारा निजी इस्तेमाल के लिए ले ली जाती है।  एसएचओ के लिए भी स्कार्पियो हैं दूसरी ओर कई एसीपी पुरानी जिप्सी का ही इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। अगर कोई हल्का यानी कमजोर /शरीफ/दब्बू एडशिनल डीसीपी हैं तो उसकी नई गाड़ी भी अफसर अपने निजी इस्तेमाल के लिए रख लेते हैं। 
पुलिस की गाड़ी की पहचान हो -
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर का कहना है कि  पुलिस की गाड़ियों पर पुलिस का लाल नीला रंग करवाया जाना चाहिए। इसके अलावा गाड़ी पर अफसर का पद साफ लिखा जाना चाहिए ताकि लोगों को भी  पता रहे कि गाड़ी किस अफसर की है। अभी तो ऐसा होता है कि पुलिस की गाड़ियों से बत्ती उतार कर वरिष्ठ अफसरों के परिजनों द्वारा उसे निजी गाड़ी की तरह आसानी से इस्तेमाल किया जाता हैं। किसी को यह पता ही नहीं चलता कि यह पुलिस की गाड़ी है। गाड़ी पर पुलिस का रंग होने से उसका निजी गाड़ी के रुप मेंं इस्तेमाल बंद हो जाएगा। 
रिटायर्ड पुलिस अफसर पुलिस के ड्राइवर का भी सालों तक इस्तेमाल करते रहते हैं।
पुलिस की गाड़ी राजस्थान मेंं -
नई दिल्ली जिले के एक तत्कालीन डीसीपी के बारे में तो कहा जाता है कि उसने दो सरकारी गाड़ियां राजस्थान में अपने परिवार की सेवा में समर्पित की हुई थी।
दादी की सीख को खाक में मिलाया-
इसी तरह दो जिलों में डीसीपी रह चुकी महिला डीसीपी के बारे में बताया जाता है कि उसने भी पुलिस की एक गाड़ी अपने पिता/परिवार की सेवा में लगा दी थी। हालांकि यह डीसीपी कहती है कि उसने तो ईमानदारी अपनी दादी से सीखीं थी दादी कहती थी कि बिना पूछे किसी के खेत से एक गन्ना भी नहीं लेना चाहिए। 
सूत्रों के अनुसार दक्षिण जिले के एक तत्कालीन डीसीपी जो डेपुटेशन पर गए हुए है लेकिन पुलिस की गाड़ी उनकी सेवा में भी बताई जाती हैं।
 वैसे ऐसा नहीं है कि इस तरह कई गाड़ियां आजकल के अफसर ही रखने लगे हैंं। भ्रष्ट अफसरों द्वारा सरकारी कारों का इस तरह इस्तेमाल कर सरकार को चूना लगाने की पुरानी परंपरा है।
मातहत गुलाम ?-  
पुलिस मेंं सिपाही,हवलदार और अन्य मातहत  का इस्तेमाल अफसरों द्वारा निजी नौकर यानी गुलाम की तरह करने की परंपरा आज भी कायम है। पारिवारिक/निजी कामों के लिए अफसरों द्वारा इन्हें इस्तेमाल किया जाता है। कई ऐसे भी अफसर रहे हैं जो दिल्ली से बाहर के राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान में मौजूद अपने घर ,कोठी और फार्म हाऊस की देखभाल तक के लिए पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल करते रहे हैं। अफसर उन पुलिस वालों की हाजिरी रिकॉर्ड में दिल्ली में दिखाते हैं लेकिन उन्हें रखते अपने निजी ठिकानों पर हैं।
 ऐसा नहीं है कि आईपीएस ही ऐसा करते हैंं। एक तत्कालीन एसएचओ तो होमगार्डों से दक्षिण दिल्ली में अपनी हथियार की दुकान की चौकीदारी भी कराया करता था। 
कुछ पुलिस वाले ऐसे भी होते हैं जो अपने अफसरों को "सेवा" करके खुश रखते हैं और पुलिस की नौकरी के समय मेंं अपने दूसरे धंधे करते हैं। ऐसा ही एक मामला कुछ साल पहले सामने आया जब बस चलाते हुए एक ड्राइवर पकड़ा गया तो पाया कि वह पुलिसवाला है। 
IPS लगा रहे सरकार को चूना  -
नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि इस समय भी ऐसे बहुत सारे आईपीएस हैं जो कि एक से ज्यादा सरकारी कारों और अनेक पुलिसकर्मियों का अपने निजी कार्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
ऐसे  वरिष्ठ आईपीएस जो दिल्ली से बाहर तैनात हैं या डेपुटेशन पर गए हैं उनके घरों में भी दिल्ली पुलिस कर्मी सेवा में  हैं। रिकॉर्ड में यह सब थाने या अन्य यूनिट मेंं तैनात हैं लेकिन असल में काम अफसरों के घर परिवार के कर रहे हैं। 
पुलिसकर्मियों का निजी नौकर की तरह और सरकारी कारों का निजी इस्तेमाल करने वाले आईपीएस ईमानदार तो हो ही नहीं सकते। एक सिपाही का वेतन करीब चालीस हजार रुपए होता है। सरकारी गाडी पर ड्राइवर भी पुलिस का ही होता है। मान लो अगर किसी आईपीएस ने गैरकानूनी तरीक़े से एक सिपाही, एक ड्राइवर, एक रसोईया और एक गाडी भी अपने निजी इस्तेमाल में लगाई हुई हैं तो वह सरकार को हर महीने एक लाख रुपए से ज्यादा का चूना लगा रहा है।
आईपीएस हो ईमानदार तो भला कैसे न रुके भ्रष्टाचार-
 इस अफसर द्वारा बताया तो यहां तक गया है कि कई अफसरों ने तो बीसियों पुलिसकर्मियों को अपने निजी कामों/ सेवा के लिए रखा हुआ है। जबकि अपराध  की रोकथाम और कानून व्यवस्था के लिए पुलिस बल की संख्या कम होने की दुहाई दी जाती हैं।  भला ऐसे आईपीएस को ईमानदार कैसे माना जा सकता है। ऐसे अफसर ही एसएचओ से निजी काम /लाभ या सुविधा लेते है। ऐसे अफसरों के कारण ही पुलिस मेंं भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। जाहिर सी बात एसएचओ अगर एक रुपए की फटीक अफसर के लिए करेगा तो सौ रुपए की वसूली मातहतों से अपने  लिए भी कराएगा ही। 
एसएचओ एक रुपया देकर सौ वसूलेगा-
इस तरह फटीक/अन्य निजी लाभ लेने वाले अफसर को एसएचओ एक तरह से अपना जर खरीद गुलाम बना लेता है। ऐसे अफसर पूरी सर्विस के दौरान उस एसएचओ या पुलिस कर्मी को बचाने और मलाईदार तैनाती कराने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। एसएचओ या अन्य पुलिसकर्मी फटीक या सेवा अपनी जेब से तो  करेगा नहीं सीधी सी बात है कि इसके लिए वसूली या रिश्वतखोरी ही करेगा। इसलिए पुलिस में भ्रष्टाचार के लिए अफसर ही जिम्मेदार है।
कमिश्नर अजय राज और डडवाल ने लगाम कसी-
आईपीएस अफसर द्वारा तबादले के साथ ही अपने  चहेते पुलिस कर्मियों को साथ ले जाने पर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था। अजय राज शर्मा का कहना था कि आईपीएस को जहां तैनात हो वहीं के मातहत पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित कर अपने तरीक़े से उनसे काम लेना चाहिए।
 तत्कालीन कमिश्नर युद्ववीर सिंह डडवाल ने भी पुलिस अफसरों की उपरोक्त ऐसी  हरकतों पर रोक लगाई थी। लेकिन ज्यादातर आईपीएस इन सुविधाओं को भोगने में शामिल है इसलिए यह परंपरा जारी है।
कमिश्नर में दम है तो दिखाए-
अगर पुलिस कमिश्नर  चाहे और ईमानदारी से कोशिश करें तो पुलिसकर्मियों और गाड़ियों के दुरुपयोग को आसानी से बंद किया जा सकता है। पुलिस अफसरों की निजी सेवा मेंं लगे पुलिसकर्मियों को वहां से हटा पुलिस के कार्यों मेंं लगाया जाए। ऐसा नहीं हैं कि पुलिस कमिश्नर इन.सब बातों से अनजान होता है लेकिन कोई भी पुलिस कमिश्नर सरकारी धन की बर्बादी और पुलिस बल के दुरुपयोग की परंपरा को बंद नहीं करता क्योंकि वह खुद भी यह सब सुविधाएं भोगता  है।
गृहमंत्री अफसरों पर अंकुश लगाओ-
गृहमंत्री अमित शाह को सरकारी धन/ संसाधनों की बर्बादी करने वाले और पुलिस बल का निजी गुलाम की तरह इस्तेमाल करनेवाले आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने पर ही पुलिस मेंं व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है।
थाने में सफाई कैसे हो -
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के अनुसार
प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान चलाया हुआ है। पुलिस कमिश्नर भी थानों मेंं सफाई रखने को कहते हैं लेकिन थाने में सफाई के लिए तैनात सफाई कर्मी भी आईपीएस अफसरों के घरों की सफाई मेंं लगा दिए जाते हैं। इसलिए थानों मेंं सफाई का काम सही तरह नहीं होता है। जिससे बीमारी फैलने का खतरा रहता है। मातहत गंदे माहौल मेंं रहने को मजबूर हैं। एक रिटायर्ड एसीपी के अनुसार दो तिहाई सफाई कर्मी अफसरों के निजी काम में लगे होते हैं।
एक सेवानिवृत्त एसीपी ने बताया कि जब वह पांचवीं बटालियन में थे तब तत्कालीन डीसीपी नरेश कुमार ने एक अभियान चलाया था जिसके दौरान पता चला कि 12 से 14 रिटायर्ड आईपीएस अफसर भी रसोइया/ लांगरी की सेवा का लाभ ले रहे है।  इस वजह से बटालियन वालों को लांगरी कम होने की समस्या का सामना करना पड़ता है।




 

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