Saturday 6 June 2020

कमिश्नर, IPS खाकी को ख़ाक में मत मिलाओ। ईमानदारी काबिलियत की मिसाल बनाओ।"IPS जो ईमानदार हो तो ईमानदार नज़र आना ज़रूरी है।"

कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव

उसूलों पर जहां आंच आए, तो टकराना ज़रूरी है।
जो जिंदा हो, तो जिंदा नज़र आना ज़रूरी है।

जागो IPS जागो जो ईमानदार हो, तो ईमानदार तो नज़र आना ज़रूरी है।

कसम पर खरे उतरने वाले IPS का अकाल।

IPS तो बहुत हैं लेकिन मिसाल लायक चंद ही।
     
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे वेद मारवाह का निधन हो गया। वेद मारवाह की पेशेवर काबिलियत के अनेक किस्से पुलिस अफसर सुनाते हैं। उनकी काबिलियत, बहादुरी और दमदार नेतृत्व की मिसाल देते है।
वेद मारवाह के बाद के दौर के सिर्फ गिने चुने  ही आईपीएस या कमिश्नर ऐसे रहे हैं जिनको पेशेवर काबिलियत और कर्तव्य पालन में ईमानदारी के लिए याद किया जाता है।

ईमानदार, काबिल IPS अफसरों का अकाल-

 दिल्ली पुलिस में आज़ के दौर में आईपीएस अफसरों  से उनकी तुलना की जाए तो साफ़ पता चल जाएगा कि कमिश्नर और आईपीएस में पेशेवर काबिलियत में कितनी जबरदस्त गिरावट आई है। यह गिरावट ही अपराध और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ़ने की मुख्य वजह है।

ईमानदारी की कसम तोड़ने वाले को ईमानदार कैसे मान लें-
जो पुलिस अफसर लूट, झपटमारी, हत्या की कोशिश जैसे अपराध को ही सही दर्ज नहीं करते या हल्की धारा में दर्ज़ करते हैं। मातहतों को अपने निजी काम में लगाते हैं।
 उनको ईमानदार भला कैसे माना जा सकता है। अपराध को दर्ज़ न करके एक तरह से अपराधी की मदद करने वाले पुलिसवाले तो अपराधी से भी बड़े गुनाहगार है। 
 आईपीएस और मातहत पुलिस वाले तो भर्ती के समय बकायदा ईमानदारी से कर्तव्य पालन की कसम खाते हैं। इसके बाद कसम के विपरीत आचरण करना अक्षम्य अपराध है।
                     
मातहतों के साथ भी नाइंसाफी-
हवलदार महेंद्र पाल सिंह की छाती पर चाकू से जान लेवा हमला कर दिया गया । हवलदार को केशव पुरम थाना में एफआईआर दर्ज कराने के लिए वरिष्ठ अफसरों से गुहार लगानी पड़ी। ट्रैफिक में तैनात हवलदार के  वरिष्ठ अफसर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त शंखधर मिश्रा ने डीसीपी विजयंता गोयल आर्य को सारी बात बताई लेकिन इसके बावजूद हत्या की कोशिश का मामला दर्ज नहीं किया गया। हवलदार के हमलावर खुले आम घूम रहे।
                      विजयंता गोयल आर्य
सिपाही तड़पता हुआ मर गया-
भारत नगर थाने का युवा  सिपाही अमित राणा इलाज के लिए अस्पतालों में डॉक्टरों के सामने गिडगिड़ता रहा। लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया। समय पर आक्सीजन/ इलाज न मिलने के कारण तड़पते हुए अमित राणा ने दम तोड दिया।
उत्तर पश्चिम जिला के आईपीएस अफसर तो दूर भारत नगर एस एच ओ तक भी अमित के साथ अस्पताल तक नहीं गया।
इस मामले में इलाज न करने और भर्ती करने से इंकार करने वाले डाक्टरों और अस्पताल के खिलाफ अफसरों द्वारा एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई।  अमित राणा की मौत के बाद अफसरों को सुध आई और पुलिस कमिश्नर ने कोरोना पीड़ित पुलिस वालों को अस्पताल में भर्ती कराने की व्यवस्था सुनिश्चित की।
             
आज के कमिश्नर, IPS-
दिल्ली पुलिस शराब तस्कर को पकड़ कर अपनी वाहवाही कराने के लिए तो मीडिया में ज़ोर शोर से प्रचार करती है। लेकिन अपराधियों और पुलिस की सांठ-गांठ के मामले में मीडिया से बात करने से भी कतराती हैं। उत्तरी जिला पुलिस के स्पेशल स्टाफ ने शराब तस्करी के मामले में कालका जी मंदिर के पुजारी सत्यनारायण उर्फ पोनी को गिरफ्तार किया था। डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने मीडिया में यह जानकारी प्रचार के लिए  दी ।
                        मोनिका भारद्वाज
पुलिस और शराब तस्करों की सांठ-गांठ?-
इस मामले में एक बेहद सनसनीखेज चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि शराब तस्करी के इस मामले में अनेक लोग शामिल थे। इनमें से एक ने तो इस पत्रकार को खुद बताया कि पुलिस की सैटिंग से वह बच गया। 
त्री नगर इलाके में यह भी चर्चा में है कि पुलिस द्वारा छोड़ दिया गया शराब तस्कर अपने ताऊ के बेटे के साथ काफी समय से शराब तस्करी में शामिल है।
 चर्चा यह भी है कि एक बार पहले भी बहादुर गढ़ से शराब लाते हुए वह पकड़े गए थे लेकिन पुलिस की मिली भगत से छूट गए। यह भी पता चला कि शराब की तस्करी में स्कारपियो और करेटा कारों का इस्तेमाल किया गया। 
कारों का रहस्य-
पुलिस ने सैंत्रो कार से शराब की 23 पेटियां बरामद बताई  है। 
कई पुलिस अफसरों का भी मानना है कि शराब की 23 पेटियां सैंत्रो में भरी जाए तो वह आसानी से नजर आ जाएगी। कोई भी तस्कर ऐसी मूर्खता शायद नहीं करेगा। पुलिस से जबरदस्त सांठ-गांठ के कारण तो इस तरह खुलेआम कार को पूरी भर कर तस्करी कर सकता है। सैत्रों में 23 पेटियां भरी रखी जा सकती है या नहीं यह भी जांच से ही पता चल सकता है। अब यह तो पुलिस अफसरों की जिम्मेदारी है कि वह ईमानदारी से जांच करें तो बहुत ही आसानी से  पता चल जाएगा कि किस किस कार में शराब की तस्करी की गई और तस्करी में कुल कितने लोग शामिल हैं।
मोती नगर थाना की नाक के नीचे शराब तस्कर का अड्डा-
इस मामले में मोती नगर थाना पुलिस की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग गया है। शराब तस्करी में पकड़ा गया सत्य नारायण उर्फ़ पोनी जखीरा पुल के नीचे रहता है। सरकारी जमीन पर कब्जा कर बनाए घर में जाने का एक ही रास्ता है। पुल के नीचे इस घर के बाहर‌ ही ‌ मोती नगर थाना पुलिस की बकायदा बूथ/पिकेट बनी हुई है। यहां तैनात पुलिसकर्मियों की भूमिका की भी जांच की जानी चाहिए।
उत्तरी जिला पुलिस के स्पेशल स्टाफ ने बताया कि पोनी कई सालों से सट्टा आदि ग़ैर क़ानूनी काम भी कर रहा था। इसके बावजूद वह अब तक कैसे नहीं पकड़ा गया इस पर स्पेशल स्टाफ ने भी हैरानी  जताई।
                       सतीश गोलछा
पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव, विशेष आयुक्त कानून व्यवस्था सतीश गोलछा, संयुक्त पुलिस आयुक्त सुभाशीष चौधरी और डीसीपी मोनिका भारद्वाज को यह  जानकारी 30 मई दे दी गई थी। 

कमिश्नर का दावा कार्रवाई करता हूं -
पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा था कि उनकी जानकारी में आने के बाद गड़बड़ करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई जरुर की जाती है।
इस मामले में क्या कार्रवाई की गई यह जानने के लिए आज इन सभी पुलिस अफसरों से मोबाइल फोन और एसएमएस के माध्यम से संपर्क की कोशिश की गई । लेकिन किसी ने भी जवाब नहीं दिया।
उपरोक्त तीनों मामलों में पुलिस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया।
क्या पुलिस में ईमानदार अफसरों का अकाल पड़ गया-
ख़बर में इतनी जानकारी दी गई थी कि कोई भी आईपीएस अफसर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करता तो एक दिन में पुलिस और शराब तस्करों की सांठ-गांठ उजागर हो सकती थी।
लेकिन इस मामले में आईपीएस अधिकारियों द्वारा चुप्पी साध लेने से लगता है कि दिल्ली पुलिस में ईमानदारी और पारदर्शिता से कर्तव्य पालन करने वाले आईपीएस अधिकारियों का अकाल पड़ गया।
अगर ऐसा नहीं होता तो पुलिस आयुक्त और संबंधित आईपीएस तुरंत मामले की जांच करा कर दोषी पुलिसकर्मियों और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करते और बताते भी।

दमदार ,काबिल कमिश्नर अजय राज़ शर्मा- 
वर्ष 1999 से 2002 तक दिल्ली पुलिस में अजय राज़ शर्मा जैसे दबंग पुलिस कमिश्नर भी रहे। जो आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ भी न केवल सख्त कार्रवाई करते थे बल्कि मीडिया में भी खुल कर बोलते थे। आईपीएस के 1966 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के अजय राज़ शर्मा के कर्तव्य पालन के इन तीन उदहारणों से उनकी पेशेवर काबिलियत और दबंगता का अंदाजा लगाया जा सकता है। अजय राज़ शर्मा दिल्ली पुलिस के बाद सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक भी रहे ।
                             सत्येंद्र गर्ग
डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को हटाया -
उत्तरी पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी सत्येंद्र गर्ग द्वारा माडल टाऊन के बिजनेसमैन सुशील गोयल की पत्नी से लाखों रुपए मूल्य की विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने का मामला इस पत्रकार द्वारा 1999 में उजागर किया गया।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने तुरंत डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया। इस मामले में जांच के आदेश दिए।तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कृष्ण कांत पाल ने अपनी जांच रिपोर्ट में इसे भ्रष्टाचार का मामला पाया।
                         मुक्तेश चंद्र
डीसीपी मुक्तेश चंद्र को हटाया-
मध्य जिला पुलिस के तत्कालीन डीसीपी मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशी युवतियों को मीडिया के सामने ही पेश करने का मामला भी इस पत्रकार ने उठाया। जिससे मुक्तेश चंद्र की पेशेवर काबिलियत और संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लग गया था।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने इस मामले में भी मुक्तेश चंद्र को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया। यही नहीं संसद में इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में भी खुल कर यह जानकारी दी कि इस मामले में डीसीपी को फटकार लगाई गई है और जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया गया है।
दिल्ली पुलिस का काला दिन-
सीबीआई ने आईपीएस जे के शर्मा के यहां छापे मारी की थी उस समय अजय राज़ शर्मा ने मीडिया में खुल कर कहा कि आज़ का दिन पुलिस के लिए काला दिन है।
फ़रवरी 2020 में हुए दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका को लेकर भी अजय राज़ शर्मा ने मीडिया में खुल कर पुलिस आलोचना की।
कमिश्नर, IPS दमदार हो तो लगे अपराध और भ्रष्टाचार पर अंकुश। -
अब देखिए आज़ के पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसरों को जो पुलिस और अपराधियों से सांठ-गांठ के मामले में भी कुछ बोलने तक की हिम्मत नहीं दिखाते  हैं।
पुलिस कमिश्नर और आईपीएस दमदार हो तो ही अपराधियों और भ्रष्ट पुलिस वालों पर अंकुश लगाया जा सकता है।
लेकिन जो आईपीएस मातहतों की करतूतों पर बोलने की हिम्मत नहीं दिखाते। वह भला दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे ?
इसके  सिर्फ दो ही कारण हो सकते है या तो अफसर में पेशेवर काबिलियत और ईमानदारी का अभाव है या वह  जानबूझकर आंखें बंद किए हुए हैं। दोनों ही सूरत में यह खतरनाक है और अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हैं।

                         अमूल्य पटनायक
सबसे नाकाम, नाकारा कमिश्नर अमूल्य पटनायक-
पिछले कुछ सालों में पुलिस कमिश्नर स्तर पर भी पेशेवर काबिलियत में गिरावट देखने को मिली हैं।
अमूल्य पटनायक को तो ऐसे पुलिस कमिश्नर के रूप में याद किया जाएगा कि पुलिसकर्मियों को वकीलों के खिलाफ कार्रवाई कराने के लिए पुलिस मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन करना पड़ा।
                             मधुर वर्मा
 IPS मधुर वर्मा की गुंडागर्दी, इंस्पेक्टर को पीटा-
दिल्ली में पुलिसकर्मियों को गुंडे ही नहीं आईपीएस भी पीटने लगे  हैं। गिरेबान पर हाथ डालने वाले नेता को सबक सिखाने के समय तो आईपीएस को सांप सूंघ जाता हैं। आईपीएस की अकड़/ ताकत/ अहंकार/ कर्तव्य पालन सब गायब हो जाता है। दूसरी ओर मातहत इंस्पेक्टर को पीट कर आईपीएस पद को कलंकित कर बहादुरी दिखा रहे हैं।
 ट्रैफिक पुलिस के इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक ने 10 मार्च 2019 को  गृहमंत्री ,उपराज्यपाल, पुलिस आयुक्त से गुहार लगाई है कि  दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता/ नई दिल्ली जिला के डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ थप्पड़ मारने, गाली गलौज करने और अवैध रूप से बंधक बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की जाए।
लेकिन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। सर्तकता विभाग को जांच सौंप कर मामले को रफा-दफा कर दिया गया।

                      असलम खान
महिला डीसीपी को भी न्याय नहीं मिला-
उत्तर पश्चिम जिला की तत्कालीन महिला डीसीपी असलम खान के बारे में हवलदार देवेंद्र सिंह ने फेसबुक पर आपत्तिजनक भ्रष्टाचार संबंधी टिप्पणी की थी। पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर में तैनात हवलदार देवेंद्र सिंह के बारे में डीसीपी ने खुद पुलिस कमिश्नर को शिकायत की। लेकिन हवलदार के खिलाफ तुरंत कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस पत्रकार द्वारा यह मामला उठाए जाने पर हवलदार को निलंबित किया गया।
पुलिस कमिश्नर की पसंदीदा न होने का खामियाजा असलम खान को भुगतना पड़ा। एक ओर पुलिस कमिश्नर और मंत्रियों के चहेते  तीन चार साल तक जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर जमे रहते हैं वहीं असलम खान का करीब सवा साल में दिल्ली से बाहर तबादला कर दिया गया।
यही नहीं असलम खान के पति पूर्वी जिले के तत्कालीन डीसीपी पंकज सिंह का भी कुछ महीनों में तबादला कर दिया गया।
        अतुल ठाकुर की गिरेबान पकड़े मनोज तिवारी

खाकी को ख़ाक में मिलाया आईपीएस ने-
भाजपा सांसद मनोज तिवारी द्वारा
उत्तर पूर्वी जिले के तत्कालीन डीसीपी अतुल ठाकुर को गिरेबान से पकड़ने और अतिरिक्त उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा को धमकाने का मामला मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा।
लेकिन तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और उपरोक्त अफसरों ने मनोज तिवारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
                        रोमिल बानिया 
डीसीपी ने कुत्तों के लिए दफ्तर में कमरे बनवाए, सेवा में  मातहत लगाए-
दक्षिण पूर्व जिला के तत्कालीन डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने दफ्तर में अपने कुत्तों के लिए कमरे बनवाए, कूलर लगवाए और कुत्तों  की सेवा में पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने रोमिल बानिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने तो यह तक नहीं बताया कि कमरे सरकारी धन के दुरुपयोग से बनाए गए या भ्रष्ट तरीके से बनवाए गए।
                       मोनिका भारद्वाज
सिपाही वफ़ा करके तन्हा रह गए आईपीएस दगा दे गए।
पिछले साल वकीलों ने पुलिस वालों को जम कर पीटा।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और डीसीपी मोनिका भारद्वाज घायल पुलिसकर्मिर्यों के हाल चाल जानने भी कई दिनों के बाद गए। जबकि मोनिका भारद्वाज का आपरेटर तो मोनिका भारद्वाज को बचाते हुए ही घायल हुआ था।
मोनिका भारद्वाज के साथ वकीलों ने बदसलूकी की लेकिन मोनिका भारद्वाज ने एफआईआर दर्ज कराने की हिम्मत तक नहीं दिखाई।
बिना किसी तैयारी के यानी पर्याप्त संख्या में पुलिस बल के बिना तीस हजारी कोर्ट में  पहुंच गई मोनिका भारद्वाज को हमलावर वकीलों के सामने हाथ जोड़ने पड़े और अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा इससे उनकी पेशेवर काबिलियत की पोल खुल गई।

मोनिका भारद्वाज को अपराध कम दिखाने के लिए 88 वारदात को एक ही एफआईआर में दर्ज करने में महारत हासिल है।

                        वेद मारवाह
दमदार व्यक्तित्व और काबिलियत की मिसाल पूर्व कमिश्नर वेद मारवाह-
वेद मारवाह 1985 से 1988 तक दिल्ली पुलिस में कमिश्नर के पद पर रहे।
इस दौरान उनके मातहत रहे पुलिसवालों के पास उनकी काबिलियत, बहादुरी और ईमानदारी के किस्सों की भरमार है।
आईपीएस को फटकार लगाई-
13 अगस्त 1985 का दिन दिल्ली पुलिस स्वतंत्रता दिवस के लिए फुल ड्रेस रिहर्सल कर रही थी। लालकिले में लिफ्ट के सामने का स्थान जहां पर प्रधानमंत्री की कार आ कर रुकती।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर वेद मारवाह और सेना के मेजर जनरल अपने अपने मातहतों के साथ मौजूद थे। उत्तरी रेंज के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त राजेंद्र मोहन सादे कपड़ों में यानी बिना पुलिस की वर्दी में वहां पहुंच गए।
उनको देखते ही वेद मारवाह ने कहा "टू डे इज फुल ड्रेस रिहर्सल, सी माई एडशिनल सीपी हू इज रोमिंग अराउंड इन सिवीज "  
 यानीआज  फुल ड्रेस रिहर्सल है और देखिए हमारे अतिरिक्त पुलिस आयुक्त राजेंद्र मोहन सादे कपड़ों में घूम रहे हैं।
दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर बलबीर सिंह उस  समय वहां मौजूद थे। बलबीर सिंह उस समय ट्रैफिक पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे।

कमिश्नर की कार तो चांदी की बनवा दोगे -
वेद मारवाह थानों की साफ-सफाई और पुलिस की गाड़ियों के रख रखाव पर भी पूरा ध्यान देते थे।
वेद मारवाह ने मातहत अफसरों को कह दिया था अगर तुम्हारी गाड़ी धुंआ छोड़ती दिखी तो तुम को उसी समय हटा दिया जाएगा।
वेद मारवाह ने कहा कि  अगर तुम्हें कहूं कि मेरी कार की मरम्मत करा दो तो तुम मेरी कार को तो चांदी की बनवा दोगे। लेकिन अपनी गाड़ी को ठीक भी नहीं रखते हो।
कोतवाली थाने में दौरे के गंदगी पाए जाने पर एस एच ओ और एसीपी को तुरंत पद से हटा लिया था।
उप राज्यपाल की सिफारिश नहीं मानी।-
तत्कालीन उपराज्यपाल एच के एल कपूर की सुरक्षा में तैनात एक पीएसओ तरक्की पा कर इंस्पेक्टर बन गया। उप राज्यपाल ने वेद मारवाह से उसे थाने में तैनात करने को कहा। वेद मारवाह ने कहा देखता हूं इस तरह काफी समय तक टालते रहे। आखिरकार उसे संसद मार्ग थाने में अतिरिक्त एस एच ओ के पद पर तैनात तो कर दिया लेकिन इस शर्त के साथ कि वह वोट क्लब पर होने वाले प्रदर्शन और धरना की ड्यूटी ही करेगा।
मीटिंग में देरी पर तबादला-
ट्रैफिक पुलिस के तत्कालीन एसीपी डीपी वर्मा एक मीटिंग में देरी से पहुंचे । वेद मारवाह ने उसी समय उनका तबादला पुलिस ट्रेनिंग स्कूल कर दिया। इसके बाद वर्मा का तबादला अंडमान निकोबार द्वीप कर दिया गया।
दंगों में घायल-
सदर बाजार में 1974 में हुए दंगों में घायल वेद मारवाह इलाज के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हुए थे उस समय वह अतिरिक्त पुलिस आयुक्त थे।
अस्पताल में कमरे के बाहर उन्होंने तख्ती लगा दी "डोंट डिस्टर्ब, विजीटर्स नॉट अलाउड"।
आज तो आलम यह है कि आईपीएस खुद मातहतों को अपनी और अपने परिवार ही नहीं कुत्तों तक की सेवा में लगा देते हैं।
दंगों पर बहादुरी से काबू पाने के लिए वेद मारवाह को राष्ट्रपति के वीरता पदक से सम्मानित किया गया था।

काबिलियत के कारण डटे रहे-
1987 में रुस के  उप प्रधानमंत्री के भारत दौरे के दौरान वीवीआईपी रुट (हुक्मीबाई मार्ग) पर उनके काफिले के बीच में वेद मारवाह की कार घुस गई थी। वेद मारवाह की कार में ही मंत्री नटवर सिंह भी सवार थे। हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता भजन लाल की कार भी वेद मारवाह की कार के पीछे पीछे थी। ये सभी रुस के उप प्रधानमंत्री के स्वागत समारोह में शामिल होने जा रहे थे। इसे सुरक्षा में चूक मानते हुए वेद मारवाह को पुलिस कमिश्नर के पद से हटाने की मांग उठाई गई। इस मामले में उच्च स्तरीय जांच भी हुई। 

ब्लैक मनी नहीं सिर्फ व्हाइट मनी -
लंदन में दूतावास में  तैनात होने के दौरान वेद मारवाह ने एक कार खरीदी थी जिसे वह भारत ले आए।  वेद मारवाह ने बाद में उस कार को बेचना चाहा। कार खरीदने के इच्छुक एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि कितना पैसा सफेद और कितना काले ‌‌‌‌धन के रूप में देना होगा। इस पर वेद मारवाह ने कहा कि जितनी कीमत है वह सारी सफेद धन के रूप में देना होगा।

राज्यपाल-
आईपीएस के 1956 बैच के वेद प्रकाश मारवाह मूलतः पश्चिम बंगाल काडर के थे बाद में केंद्र शासित यानी यूटी काडर में आ गए। वेद मारवाह नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के महानिदेशक (1988-90) भी रहे।
 सेवा निवृत्त होने के बाद वह मणिपुर, मिजोरम और झारखंड के  राज्यपाल के पद पर भी रहे।
87 वर्षीय वेद मारवाह का 5-6-2020 को  बीमारी के कारण गोवा में निधन हो गया



                  
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यह खबर 30 मई को पुलिस कमिश्नर और सभी संबंधित आईपीएस अधिकारियों को भेजी गई।

शराब तस्कर पुजारी का रिश्तेदार पुलिस की मिलीभगत से छूट गया ?
पुलिस कमिश्नर जांच कराएं/कार्रवाई करें।

इंद्र वशिष्ठ
कालका जी मंदिर के पुजारी को शराब तस्करी में गिरफ्तार करने के मामले में बहुत ही चौंकाने वाली संगीन और खतरनाक जानकारी सामने आई हैं। शराब तस्करी में शामिल एक युवक को पुलिस द्वारा छोड़ देने की जानकारी मिली है।
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को किसी ईमानदार अफसर से इसकी जांच करानी चाहिए। 
यह ऐसी जानकारी है जिससे पता चलता है कि पुलिस की मिलीभगत से ही अपराधी बेख़ौफ़ होकर अपराध कर रहे हैं।
इससे पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है।
IPS चुप-
 इस मामले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए विशेष पुलिस आयुक्त सतीश गोलछा (कानून एवं व्यवस्था), संयुक्त पुलिस आयुक्त सुवाशीष चौधरी और डीसीपी मोनिका भारद्वाज को मोबाइल फोन पर संपर्क करने की कोशिश की गई।
व्हाट्सएप और एसएमएस पर मैसेज भी किया गया।
लेकिन इनमें किसी ने भी न तो फोन रिसीव किया और न ही मैसेज का जवाब दिया।
शराब तस्कर के रिश्तेदार को छोड़ दिया- 
हैरानी की बात यह है कि यह जानकारी खुद उस युवक ने दी है जो यह दावा करता है कि  सत्यनारायण उर्फ पोनी  के साथ शराब की तस्करी के समय वह भी उसके साथ था लेकिन पुलिस से सैटिंग करके वह छूट गया। 
 इस बात से यह भी पता चलता है कि पुलिस की मिलीभगत के चलते अपराधी इतने दुस्साहसी हो गए हैं कि वह इस पत्रकार को खुद फोन करके बड़ी शान से बिना डरे बेशर्मी से यह बात बता रहा है।  
अपनी पुलिस से सैटिंग हैं-
पुजारी के रिश्तेदार हिमांशु गोयल उर्फ़ आशु ( त्री नगर, शांति नगर निवासी ) ने बीती रात करीब 12 बजे इस पत्रकार को फोन कर कहा कि आप को असली कहानी नहीं पता। उसने दावा किया कि सत्यनारायण उर्फ पोनी के साथ उस समय कार में वह भी था। 
 उसे पुलिस ने कैसे छोड़ दिया ? इस पर उसने कहा कि अपनी पुलिस में सैटिंग हैं। 
कितने पैसे देकर वह छूटा ? इस बारे में बताने से उसने यह कह कर इंकार कर दिया कि सारी कहानी बता दी तो आप छाप देंगे। उसने कहा कि मिल कर सारी कहानी बता दूंगा। 
इस पत्रकार ने उसे कहा कि अगर तुम ग़लत काम करते हो तो मुझे दोबारा फोन मत करना। ग़लत काम करने वाले से मै कोई वास्ता नहीं रखता हूं।
मोबाइल फोन बोलेंगे सारे राज़ खोलेंगे-
पुलिस कमिश्नर को इस गंभीर और हैरतअंगेज मामले की किसी ईमानदार अफसर से ही जांच करानी चाहिए।
आशु और सत्य नारायण के मोबाइल फोन के डिटेल से दोनों के उस समय साथ होने का आसानी से पता चल जाएगा। यह भी पता चल जाएगा कि पोनी और उसके साथी एक ही कार में थे या आगे पीछे अलग-अलग कारों में थे।
इनके फ़ोन रिकॉर्ड की जांच से ही यह भी पता चल जाएगा कि किस-किस पुलिस वाले की इनसे सांठ-गांठ हैं। उत्तरी जिला पुलिस के स्पेशल स्टाफ के किस पुलिसकर्मी के साथ सैटिंग करके आशु गिरफ्तार होने से बच गया।
सीसीटीवी फुटेज-
इसके अलावा हरियाणा (बहादुर गढ) से लेकर  बुराड़ी तक के रास्तों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से भी यह आसानी से पता चल जाएगा कि शराब की तस्करी में शामिल कुल कितने तस्कर कार में सवार थे।
जखीरा में पोनी के घर पर भी सीसीटीवी कैमरे लगे हुए बताए जाते हैं। उसकी फुटेज से भी यह पता चल सकता है कि वहां पर शराब तस्करी और सट्टेबाजी से जुड़े कौन-कौन लोग और मिलीभगत वाले पुलिस वाले आते जाते रहते थे।
शराब तस्करी में कौन-कौन शामिल-
पोनी के जानकार बताते हैं कि वह अकेला तो कहीं पर भी नहीं जाता है। शराब तस्करी करने भी वह अकेला नहीं जा सकता। ऐसे में उसके साथ कौन-कौन था इसका खुलासा होना चाहिए।
पुलिस को असलियत का पता लगाने के लिए पोनी के बेटों/दोस्तों आदि  के मोबाइल फोन रिकॉर्ड की भी जांच करनी चाहिए।
पुलिस हिरासत में पोनी से कौन कौन मिलने गया और क्या वहां पर आशु भी गया था। इसका पता भी उत्तरी जिला पुलिस के स्पेशल स्टाफ के दफ्तर में पूछताछ और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से भी लगाया जा सकता है।
पुलिस से सैटिंग कर बेख़ौफ़- 
वैसे लगता है कि पुलिस से मिलीभगत के कारण उपजे अहंकार के कारण आशु ने बेख़ौफ़ हो कर बेशर्मी से यह सच्चाई  बताने का दुस्साहस किया होगा।
क्योंकि वैसे तो कोई भी अपराधी किसी पत्रकार के सामने इस तरह की बात करने की मूर्खता नहीं करेगा। वह शायद यह भी दिखाना चाहता होगा कि उसकी पुलिस में कितनी जबरदस्त सैटिंग हैं।
कार मालिक कौन है ?-
 उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज ने इस मामले में मीडिया में जो जानकारी दी वह भी आधी अधूरी है। 
जिस सफेद रंग की सैंत्रो कार (DL-4C-AJ 6854) में शराब बरामद हुई, उसके मालिक के बारे में मीडिया में जानकारी नहीं दी गई।
पुलिस की भूमिका-
सत्य नारायण ने अपना पता त्री नगर शांति नगर बताया है जो कि ग़लत है। वह अपने परिवार के साथ जखीरा में सरकारी जमीन पर कब्जा कर बनाए घर में रहता है। पुलिस को बताए गए पते को वैरीफाई करना चाहिए था। अगर त्री नगर के पते को वैरीफाई करने भी पुलिस चली जाती तो भी उसे सच्चाई पता चल सकती थी। 
घर/ ठिकाने की तलाशी नहीं ली-
पुलिस ने बताया कि पोनी शराब के अंतराज्यीय गिरोह से जुड़ा हुआ है।
उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज बताएं कि सत्य नारायण को पकड़ने के बाद क्या उसके घर या किसी अन्य ठिकाने की तलाशी ली गई ?
पुलिस ने अगर उसके घर/ ठिकाने की तलाशी ली होती तो शायद और शराब भी बरामद हो सकती थी।  इसके अलावा शराब की तस्करी से जुड़े सबूत भी वहां से मिल सकते थे।
इसके साथ ही पुलिस को यह भी पता चल जाता कि सत्य नारायण का स्थायी घर कहां पर है। ऐसा लगता है कि सत्य नारायण ने जो भी बताया पुलिस ने बिना वैरीफाई किए उस पर विश्वास कर लिया।
सरकारी जमीन पर कब्जा-
अगर पुलिस जखीरा जाती तो उसे पता चल जाता कि वहां पर उसने तो सरकारी जमीन पर कब्जा भी किया हुआ है।
 जखीरा (मोती नगर थाना क्षेत्र) में रेलवे लाइन के  पास जमीन पर कब्जा कर बनाए घर में रहता है। रेलवे लाइन के पास स्थित इस सरकारी जमीन पर पोनी, उसके भाइयों सोहन लाल उर्फ़ सोनू भारद्वाज और मनमोहन उर्फ़ टीटू का कब्जा है।
 तो जाहिर सी बात है कि बिजली के मीटर भी ग़लत तरीके से लगवाए गए होंगे।
ऐसे में पुलिस को शराब तस्कर के खिलाफ ज़मीन पर कब्जा करने के आरोप में भी कार्रवाई करने का मौका मिला है। 
पुलिस को खुद कार्रवाई करने के साथ-साथ संबंधित सरकारी एजेंसियों को भी कार्रवाई करने के लिए रिपोर्ट भेजनी चाहिए।
पुलिस को पूछताछ के दौरान पोनी के सट्टेबाजी से जुड़े होने का भी पता चला है।
पुलिस अगर गंभीरता से जांच करें तो सत्य नारायण उर्फ़ पोनी का पूरा कच्चा चिट्ठा पुलिस को पता चल जाएगा।
पुलिस ऐसा करें तभी अपराध और अपराधी पर अंकुश लग सकेगा।
कमिश्नर चाहें तो एक दिन में सच्चाई सामने आ जाए-
पुलिस कमिश्नर अगर‌ गंभीरता से कोशिश करें तो एक दिन में ही इस मामले की सारी सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। 
इसके बाद अपराधियों को छोड़ने का अपराध करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही इस मामले में छोड़े गए अपराधियों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
IPS सबक लें-
पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर को इस मामले से सबक लेना चाहिए। मातहत जिस भी अपराधी को पकड़ते हैं उसका प्रचार कराने तक ही उनको सीमित नहीं रहना चाहिए। आईपीएस अधिकारियों को हर मामले में मातहतों पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए। अफसरों को अपने स्तर पर और अपने विवेक से खुद भी पता लगाना चाहिए कि मातहत ने किसी अपराधी को छोड़ तो नहीं दिया या मातहत ने अपराधी के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने में लापरवाही तो नहीं बरती।
किसी अपराधी को सांठ-गांठ कर  छोड़ देने के कारण ही अपराधी बेख़ौफ़ हो कर अपराध कर रहे हैं।
सट्टा और शराब पुलिस की मिलीभगत बिना संभव नहीं-
इलाके में कौन-कौन सट्टा, अवैध शराब या अन्य ग़ैर क़ानूनी काम करता है इसकी जानकारी पुलिस को न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। बिना पुलिस की मिलीभगत के सट्टा और अवैध शराब का धंधा भला कोई  कर सकता है।  त्री नगर और जखीरा इलाके में भी वर्षों से सट्टा खेलने/ खिलाने वाले जगजाहिर/ बदनाम है। कल तक बहुत ही मामूली-सी आर्थिक स्थिति वाले अब सट्टे के कारण मकान और महंगी कारों के मालिक बन चुके हैं।
पुलिस हाजिरी लगाती है-
पोनी अपने रिश्तेदारों के सामने बड़े रौब से बताता भी  है कि पुलिस वाले तो उसके यहां हाजिरी लगाने आते हैं। शायद यही वजह है कि पुलिस ने पहले कभी पोनी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।
पुलिस का दावा-
 उत्तरी जिला पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार एक सूचना के आधार पर स्पेशल स्टाफ के इंस्पेक्टर सुनील कुमार शर्मा, सब इंस्पेक्टर प्रवीण शर्मा, एएसआई यशपाल सिंह, हवलदार अंसार ख़ान और सिपाही रवींद्र सिंह की टीम ने एक सूचना के आधार पर  बाहरी रिंग रोड पर बुराड़ी चौक के पास बैरीकेड लगा कर चेकिंग शुरू कर दी।
मुकरबा चौक की ओर से आई सफेद रंग की सैंत्रो कार को पुलिस ने बैरीकेड लगा कर रोक लिया।
कार में से शराब की 23 पेटी जब्त की गई। इन पेटियों में देसी और अंग्रेजी शराब के कुल 1140 पव्वे बरामद हुए हैं। कार सवार सत्य नारायण भारद्वाज उर्फ़ पोनी( 50) निवासी जखीरा (मोती नगर थाना क्षेत्र) को गिरफ्तार कर लिया गया। 
                    






सरोकार 8-6-2020

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