शांति,सेवा,न्याय का दावा खोखला,लुटे-पिटे को भी धोखा देती है पुलिस,
अपराध पर अंकुश के लिए सारे अपराध दर्ज करना ही एकमात्र रास्ता,
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में दिनोंदिन अपराध बढ़ रहे है। अपराध बढ़ने का मुख्य कारण है पुलिस का सभी वारदात को दर्ज न करना। अपराध के सभी मामले दर्ज होंगे तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दवाब बनेगा। पुलिस यह चाहती नहीं इसलिए पुलिस की कोशिश होती है कि अपराध के मामले कम से कम दर्ज किए जाए या फिर हल्की धारा में दर्ज किया जाए। लेकिन ऐसा करके पुलिस अपराधियों की ही मदद करती है। अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने का एकमात्र और सटीक रास्ता सिर्फ अपराध के सभी मामलों को दर्ज करना ही है। अपराध को दर्ज न करके आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का झूठा दावा करने की परंपरा है। ऐसी बाजीगरी से ही पुलिस कमिश्नर अपने को सफल कमिश्नर साबित करने की कोशिश करते है इसी तरीके से एसएचओ और डीसीपी अपने को सफल अफसर दिखाते है। केंद्र में सरकार चाहे किसी दल की हो उसकी शह पर ही पुलिस यह तरीका अपनाती है। सरकार भी आंकड़ों की इस बाजीगरी के दम पर कानून-व्यवस्था अच्छी होने का झूठा दावा करती है। पिछले 26 साल में सिर्फ तत्कालीन पुलिस कमिश्नर वी एन सिंह और भीम सेन बस्सी ने ही ईमानदार कोशिश की थी कि अपराध के मामले सही दर्ज किए जाए। बस्सी को कुछ हद तक इसमे सफलता भी मिली। इसका पता आंकड़ों से भी चलता है जुलाई 2013 से फरवरी 2016 तक बस्सी पुलिस कमिश्नर रहे। साल 2012 में आईपीसी के तहत दर्ज मामलों की संख्या 54287 थी। साल 2013 में 80184 ,साल 2014 में 155654,साल 2015 में 191377 और साल 2016 में 209519 मामले दर्ज हुए।
जागो लोगों जागो -पुलिस मोबाइल/चेन/पर्स की लूट/स्नैचिंग,चोरी, या जेबतराशी के शिकार हुए लोगों को बहका कर उनसे ही यह लिखवा लेती है कि उनका मोबाइल या अन्य सामान गिर या खो गया है या शिकायतकर्ता को खुद ही ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने को कह देते है। शिकायतकर्ता महिला हो तो उसे कह देते है कि केस दर्ज कराओंगी तो अपराधी की पहचान करनी पड़ेगी, कोर्ट में भी चक्कर काटने पड़ेंगे आदि। पुलिस वाले इस अंदाज में महिला को समझाते है कि महिला को लगता कि पुलिसवाला उसका शुभ चिंतक है और पुलिस के बहकावे में आकर वह पुलिस के मुताबिक अपनी रिपोर्ट लिख देती है। आपके लिए, आपके साथ, सदैव की दुहाई देने वाली पुलिस इस तरह लोगों के साथ धोखा करती है। अपराध की एफआईआर न दर्ज करने के लिए पुलिस ऐसा करती है।
लोगों को पुलिस के बहकावे में नहीं आना चाहिए और अपराध की एफआईआऱ ही दर्ज कराने के लिए अड़ना चाहिए। क्योंकि अपराध दर्ज होगा तो रिकार्ड में आएगा और अपराधियों को पकड़ने का पुलिस पर दवाब बनेगा। लूट,चेन स्नैचिंग, चोरी,जेबकटने के मामलों में पीड़ित 100 नंबर पर पुलिस को सही सूचना देता है। लेकिन पुलिस पीड़ित को लॉस्ट रिपोर्ट पकड़ा देती है। ज्यादातर लोग इस लॉस्ट रिपोर्ट को ही एफआईआऱ समझते है। कई लोग यह सोचते है कि एफआईआऱ की बजाए लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने से उनको क्या फर्क पड़ेगा यह भी पुलिस रिपोर्ट तो है ही। यह सोच ही गलत है। लोगों को मालूम नहीं कि ऐसा करके पुलिस के साथ वह भी अपराधियों की मदद कर रहे है। दूसरा उनको मालूम नहीं की जिस लॉस्ट रिपोर्ट के आधार पर वह यह मान रहे है कि पुलिस अपराधी को पकड़ लेगी और उनका सामान बरामद हो जाएगा। तो आप भ्रम में हैं क्योंकि जब पुलिस ने एफआईआऱ ही दर्ज नहीं की तो वह तफ्तीश ही नहीं करेगी । तो ऐसे में उनके सामान की बरामदगी को तो सवाल ही नहीं उठता।
दर्ज होगा तभी तो अंकुश लगेगा अपराध और अपराधी पर-- कुल अपराध दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की वास्तविक और सही तस्वीर सामने आएगी । अपराध की सही तस्वीर के आधार पर ही अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना सफल हो सकती है। अपराध को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करना अपराधी की मदद करना और अपराध को बढ़ावा देना है। मान लो एक लुटेरा पकड़े जाने पर 100 वारदात करना कबूल करता है लेकिन उसमें से दर्ज दस भी नहीं पाई जाती है अगर 100 की 100 वारदात दर्ज होती तो लुटेरे को सभी मामलों में जमानत करानी पड़ती ,जेल में काफी समय तक रहता। जमानत और इतने केसों को लड़ने के लिए उसे वकीलों को इतना पैसा देना पड़ता कि उसकी हालत खराब हो जाती। इसके अलावा इतने सारे केस में से कुछ में तो सजा होने की संभावना रहती । ऐसे में वह लंबे समय तक जेल में रहता। इस तरह अपराध और अपराधी पर अंकुश लग सकता है। अब हालात ये है कि अपराधी को मालूम है कि पुलिस सारी वारदात दर्ज नहीं करती है इसलिए वह बेखौफ वारदात की सेंचुरी बनाता है। पकड़ा भी जाता है तो जल्द जेल से बाहर आकर फिर से वारदात करने लगता है।
11 लाख लॉस्ट रिपोर्ट -- इस साल अब तक 11 लाख से ज्यादा लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है इसमें से 5 लाख 70 हजार तो मोबाइल फोन खोने की ही दर्ज हुई है। क्या आप यकीन करेंगे कि दिल्ली में 11 लाख लोग इतने लापरवाह है कि उनका मोबाइल या अन्य सामान खो गया होगा। सचाई यह है इनमें अधिकांश मामले लूट,चोरी, जेबकटने के होते है। जिन्हें पुलिस लॉस्ट रिपोर्ट में दर्ज करती है या शिकायतकर्ता को ही ऑन लाइन दर्ज करने के लिए कह देती है। अगर 11 लाख में से आधे मामले भी लूट, चोरी या जेबकटने के मान लें तो इस साल के 6 महीने में ही आईपीसी के मामलों की संख्या ही 5 लाख से ज्यादा होती है। जिस दिन ईमानदारी से अपराध के सारे मामले दर्ज होने शुरू हो जाएंगे तो एक साल में आईपीसी के दर्ज मामलों की संख्या दस लाख तक पहुंच जाएगी। य़ह भी सचाई है कि अपराध और अपराधियों पर अंकुश भी उस दिन से लगना शुरू हो जाएगा।
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