Thursday, 2 November 2017

पहलवानों को भी बंदूक का सहारा


पहलवानों को बंदूक का सहारा,
इंद्र वशिष्ठ
हथियार अपनी सुरक्षा के लिए होता है लेकिन अब बंदूक रुतबा ,शान,  रौब जमाने और डराने के लिए इस्तेमाल की जाती है। जिसकी जान को सचमुच खतरा हो उसे तो बेशक बंदूक का लाइसेंस बनवाने में पसीने छूट जाते हैं लेकिन धनबलियों और बाहुबलियों को चुटकी बजाते ही हथियार के लाइसेंस मिल जाते हैं देश की राजधानी दिल्ली में ही ऐसा होता है तो देश भर में लाइसेंस किस तरह बनाए जाते हैं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पिछले दिनों बिहार में एमएलसी के बेटे राकेश रंजन उर्फ राकी  यादव को हत्या के मामले में उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई। कार ओवर टेक करने से बौखला कर राकी ने छात्र आदित्य की गोली मारकर हत्या कर दी थी। तभी यह खुलासा हुआ कि कि पेशे से  ठेकेदार और शौकिया शूटर राकी यादव की पिस्तौल का लाइसेंस दिल्ली पुलिस ने बनाया था।उस समय लाइसेंसिंग विभाग के मुखिया अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मधुप तिवारी थे। गया की एसएसपी गरिमा मलिक ने बिना अनिवार्य वेरीफिकेशन के राकी यादव  का लाइसेंस बनाने पर दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान भी लगाया था इसके बावजूद मधुप तिवारी समेत लाइसेंसिंग विभाग के किसी अफसर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। देश की स्मार्ट पुलिस में शुमार दिल्ली पुलिस में ऐसे लाइसेंस बनाए जाते हैं तो देश भर में सरकारी अफसरों की मिलीभगत से गलत तरीके या जालसाजी करके हथियार के लाइसेंस बनाने के आंकड़ों का अंदाजा ही लगाया जा सकता है। आपराधिक मामलों के आरोपी धनबलियों, बाहुबलियों और सत्ताबलियों के लिए दिल्ली पुलिस विशेष छूट देती है कांग्रेस के पूर्व विधायक जयकिशन इसका प्रमुख उदाहरण है अनेक आपराधिक मामले के आरोपी  जयकिशन ने रिवाल्वर का लाइसेंस पंजाब से करीब बीस साल पहले बनवा लिया। इसके बाद दिल्ली पुलिस के लाइसेंसिंग विभाग में उसे दर्ज करा लिया। कुछ दिन पहले ही वह अपना लाइसेंस रिन्यू कराने गया तो तब उसके हथियार से लाइसेंसिंग विभाग में ही गोली भी चल गई थी। लाइसेंस रिन्यू के फार्म में भी आपराधिक मामलों की जानकारी देनी होती है। इसके बावजूद जय किशन का लाइसेंस रद्द न करना पुलिस के असली चेहरे को उजागर करता है।  
दिल्ली में पहलवाननुमा लोग भी रिवाल्वर / पिस्तौल लगा कर खुलेआम घूमते हैं जो पुलिस के अलावा सब को दिखाई देते हैं। ओलंपिक पदक विजेता सुशील के आस पास भी  बंदूकधारी पहलवानों का जमावड़ा खतरनाक साबित हो सकता है।


 छत्रसाल स्टेडियम समेत अखाड़ों में आने जाने  वाले बंदूकधारियों पर भी अगर पुलिस निगरानी रखे और उनके लाइसेंस की जांच करे तो असली नकली पहलवानों की सांठगांठ और हथियारों की असलियत सामने आते देर नहीं लगेगी। पहलवानों की आड़ में  संदिग्ध लोग किस मकसद से यहां आते हैं यह भी खुलासा हो जाएगा। महिला डिप्टी डायरेक्टर के बारे उनके दफ्तर की दीवार पर अश्लील टिप्पणी लिखे जाने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्टेडियम में गुंडे भी बे रोक टोक जाते हैं।
वैसे इस स्टेडियम से बदमाशों का   पुराना नाता है।दिचांऊ के कुख्यात गुंडे कृष्ण पहलवान को एक बार पुलिस तलाश कर रही थी उस दौरान कृष्ण के  सतपाल पहलवान के साथ पुरस्कार बांटने का खुलासा पुलिस ने किया था। केशव पुरम थाने का घोषित अपराधी राजकुमार उर्फ राजू चिकना भी खुलेआम लाइसेंस शुदा रिवाल्वर लगा कर घूमता रहा । कंझावला थाना के जौंती गांव का बदमाश नरेंद्र भी सालों से दिल्ली और हरियाणा में खुलेआम बंदूकधारियों के साथ घूमता  है। कई साल पहले की बात है  नरेंद्र पर नजर रखने के लिए एक आईपीएस अफसर ने कंझावला के एसएचओ से कहा, तो नरेंद्र का जीजा उस अफ़सर के भाई के पास  ही पहुंच गया यह शिकायत लेकर कि तुम्हारा डीसीपी भाई सख्ती कर रहा है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एसएचओ पुलिस या अफ़सर से ज्यादा कुख्यात बदमाश के वफादार होते हैं। ऐसे पुलिस वालों के कारण ही गुंडे दिल्ली में हथियारों के साथ खुलेआम घूमते हैं।
यमुनापार  भी अनेक के पास उत्तर प्रदेश से बने लाइसेंस बताए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि यह सब पुलिस को दिखता नहीं है या उसे मालूम नहीं है। लेकिन पुलिस सिर्फ वारदात होने का इंतजार करती है।
पहलवान हो या बदमाश या धनबली  दिल्ली में खुलेआम हथियार  प्रदर्शित करते हुए घूमते हैं पुलिस यह जानने की कोशिश भी नहीं करती कि लाइसेंस किस राज्य से बना हुआ है और उस लाइसेंस के आधार पर दिल्ली में हथियार लाना मान्य/वैध है या नहीं।
 ऐसे लोग ही शादियों में गोलियां चला कर हादसे को न्योता देते हैं  रोडरेज में गोलियां भी ऐसे लोग ही चलाते हैं। 
 एक अति वरिष्ठ आईपीएस अफसर का भी कहना है कि लाइसेंस सिर्फ पैसे या सिफारिश के आधार पर ही बनते हैं। कोई भी ईमानदार पुलिस अफसर लाइसेंस विभाग की फ़ाइलें देख कर ही  आसानी से यह अंदाजा लगा सकता है।
अपने को सबसे बेहतर मानने वाली दिल्ली पुलिस में ऐसा होता है तो देश भर में लाइसेंस जारी करने वाले विभाग का अंदाजा ही लगाया जा सकता है।


हरियाणा‌ में रोहतक रेंज के  तत्कालीन आईजी अनिल कुमार राव ने रोहतक रेंज में एक मामले की तफ्तीश शुरू की तो  चौंकाने वाला खुलासा हुआ।  नागालैंड से जालसाजी ,ग़लत तरीके से बनाए गए करीब डेढ़ सौ लाइसेंस का पता चला। ऐसे लाइसेंस के आधार पर खरीदे गए करीब पांच सौ हथियार पुलिस ने जब्त कर मालखाने में जमा कराए हैं। पुलिस अफसर ने  पाया कि गोहाना और बहादुर गढ़ में आपस में रिश्तेदार हथियार डीलर्स ने भी ऐसे लाइसेंसधारियों को हथियार बेचे और लगातार कारतूस भी बेचते हैं। इस मामले की तफ्तीश में लाइसेंस बनवाने के पूरे नेटवर्क का खुलासा हुआ।
नागालैंड लाइसेंसिंग विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से  लाइसेंस बनाए गए थे।
जिस व्यक्ति का लाइसेंस बनवाना है। उस व्यक्ति की ओर से एक हलफनामा तैयार किया जाता है कि वह आजकल नागालैंड के फलां पते पर रह कर काम कर रहा है। गांव के सरपंच से उसका वहां का निवासी होने का प्रमाण पत्र बनवा लिया जाता है। इसके आधार पर संबंधित अफसर से  वहां का  पता/पहचान  संबंधी दस्तावेज बनवा लिया जाता है। इसके बाद लाइसेंसिंग विभाग के अधिकारी की मिलीभगत से किसी भी पुराने लाइसेंस धारी का ब्यौरा देकर  रिटेनर   के लिए उस व्यक्ति के नाम से आवेदन किया जाता । उसके आधार उस व्यक्ति के नाम से लाइसेंस की नई कापी बना दी जाती है। इस कापी पर रिटेनर शब्द भी नहीं लिखा जाता और जिस असली लाइसेंस धारक के ब्यौरे के आधार पर यह बनाया गया उसका ज़िक्र भी प्रमुखता से नहीं किया जाता। जिसका ब्यौरा इस्तेमाल किया जाता है उस लाइसेंस धारक को यह  पता ही नहीं चलता कि उसके लाइसेंस के आधार पर किसी को उसका रिटेनर भी बनाया जा चुका है।
जबकि नियमानुसार लाइसेंस धारक के लाइसेंस पर ही रिटेनर की फोटो लगाई जाती है रिटेनर के लिए अलग से कापी नहीं बनाई जाती।
इस तरह लाइसेंस बनवाने के बाद हथियार डीलर से हथियार खरीदे जाते हैं। कुछ समय बाद इस तरह बनवाए लाइसेंस को अपने असली पते वाले राज्य के लाइसेंस विभाग में दर्ज करा लिया जाता है।
वहां का लाइसेंस विभाग नागालैंड से उस लाइसेंस में दर्ज नंबर के आधार पर वेरीफिकेशन करता है तो वहां से सही रिपोर्ट दी जाती है क्योंकि उस नंबर से तो वहां से लाइसेंस जारी हुआ ही है।     ्
हरियाणा पुलिस की जांच में पता चला कि संगीन अपराध में शामिल राजेश नाहरी( कृष्ण पहलवान का साथी) जैसे कई  बदमाशों ने ऐसे लाइसेंस बनवा लिए है। 
कई बदमाश तो इन हथियारों के साथ बिजनेसमैन के बाडी गार्ड बने घूमते थे। 
हरियाणा पुलिस के आला अफसर ने बताया कि मेवात, फरीदाबाद, गुड़गांव समेत    पूरे हरियाणा में इस तरह के लाइसेंस की संख्या हजारों में हो सकती है।
 दूसरे राज्यों से बने लाइसेंस, लाइसेंस विभाग और हथियार डीलर्स के रिकॉर्ड की छानबीन ईमानदारी से की जाए तो बहुत ही चौंकाने वाला खुलासा होगा। अपराधियों ने भी लाइसेंस बनवा लिए है और वह खुलेआम इन हथियारों का प्रदर्शन करते घूमते हैं।
 पुलिस  अगर ईमानदारी से अपराध ं
 और  अपराधी पर अंकुश लगाना चाहे तो लाइसेंस शुदा हथियार वाले अपराधी के बारे में सूचना तो  बीट सिपाही  से भी एकत्र कराना मुश्किल नहीं है।  
धनबल से लाइसेंस बनवाने का अनोखा उदाहरण पोंटी चड्ढा का है  हाथों से विकलांग पोंटी का लाइसेंस राम पुर के जिला मजिस्ट्रेट ने  बना दिया। जिला मजिस्ट्रेट ने पोंटी समेत उसके परिवार के सात लाइसेंस एक ही दिन में उसी समय बना दिए जैसे ही आवेदन किया गया। नागालैंड के अलावा पहले जम्मू-कश्मीर का कठुआ भी लाइसेंस बनवाने के लिए कुख्यात था।


                       सुशील पहलवान

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