Monday, 2 October 2017

तलाक देते हैं पर हक नहीं देते, मासूम बच्चों का भी


तलाक देंगे पर हक नहीं देंगे, मासूम बच्चों का भी 
-- इंद्र वशिष्ठ
बेटियां तो बेटियां ही होती है और वह सबकी सांझी होती है। बेटी किसी की भी दुखी नहीं रहनी चाहिए। 
 पर उपदेश कुशल बहुतेरे। तीन तलाक़ की ग़लत परंपरा को खत्म करने के लिए मुसलमानों को उपदेश देने और हल्ला मचाने वाले हिंदुओं पर यह बात खरी उतरती है। हिंदुओं अपने गिरेबान में भी झांक लो।  हिंदू  लड़कियों की जो दुर्गति हो रही है। उसकी ओर इनका ध्यान नहीं जा रहा। हिंदू लड़कियों और उनके बच्चों पर जो बीत रही है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। पत्नी को तलाक दे कर पति तो तुरंत दूसरी शादी करना चाहता है लेकिन पत्नी और बच्चों को उनका हक ( गुज़ारे के लिए खर्चा आदि) भी नहीं देना चाहता है। इसमें लड़के के मां बाप भी पूरी तरह  शामिल ही नहीं होते बल्कि वह ऐसे रास्ते निकालते हैं कि बहू और पोते-पोती को कुछ भी नहीं देना पड़े। 
कोई भी अपनी लड़की के लिए लड़के का घर परिवार देख कर ही रिश्ता करता है। उस समय लड़के वाले अपनी और लड़के की आर्थिक स्थिति और लड़के के बारे में ऐसा ब्यौरा देते हैं कि जिससे लड़की वाले संतुष्ट हो जाए कि उनकी बेटी को ससुराल में आर्थिक रूप से भी कोई परेशानी नहीं होगी। 
पति-पत्नी में अगर नहीं बनती या पति मार-पीट तक भी करता है तो भी लड़की के माता-पिता की कोशिश तो अंत तक यही होती है कि शादी बनी रहे। लेकिन कई मामले ऐसे भी देखें हैं कि पति और ससुराल वाले मिल कर साजिश करते हैं ताकि उनको पत्नी और बच्चों को कुछ भी‌‌ न देना पड़े और आराम से तलाक ले कर लड़का दूसरी शादी कर ले। ऐसे में पत्नी और बच्चों का चाहे जो हो उससे उनको कोई मतलब नहीं। हालांकि ऐसी भी बहुएं होती है जो पति का ही नहीं सास-ससुर का भी जीना हराम कर देती है।
 साजिश--  साजिश के पहले क़दम के रूप में ससुराल वाले बेटे बहू को अपने पैतृक घर से किराए के मकान में रहने भेज देते हैं यह कह कर कि अलग रहने से संबंध ठीक हो जाएगें। इसके बाद जब पत्नी मायके गई होती है तो पति किराए के मकान को खाली कर गायब हो जाता है। मायके से वापस आने पर यह सब देख लड़की ससुराल जाती है तो वह ससुराल वाले जो दुनिया के सामने बहू को बेटी मानने का दावा करते है उसे घर में भी नहीं घुसने देते हैं। अब लड़की पुलिस में शिकायत करती है तो वहां से मामला महिला अपराध शाखा में भेज दिया जाता है जिसका गठन इसलिए किया गया था कि पति पत्नी को बुला कर समझाया जा सके ताकि रिश्ता बना रहे। हालांकि ज्यादातर मामलों में वहां समय की बरबादी ही होती है। यहां आकर ससुराल वाले साज़िश का दूसरा पत्ता फेंकते हैं। ससुराल वाले कहते हैं कि उन्होंने तो अपने बेटे को संपत्ति से बेदखल कर दिया है उनका बेटे से कोई संबंध नहीं है। इन्हीं ससुराल वालों ने रिश्ता करने के लिए लड़की के परिवार वालों के सामने इस तरह भरोसा दिलाया था कि उनकी बेटी को कोई दिक्कत नहीं होगी। और अब यह कहते हैं कि उनका अपने बेटे से ही कोई वास्ता नहीं है।
पुलिस की भूमिका-- महिला अपराध शाखा में कई महीने धक्के खाने के बाद‌ भी कोई समाधान नहीं निकलने पर वहां से संबंधित थाने में मामला दर्ज करने के लिए रिपोर्ट भेज दी जाती है। एफआईआऱ दर्ज हो जाने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी तो दूर जांच  के नाम पर पुलिस कई महीने निकाल देती है। ऐसे में आरोपी को अग्रिम जमानत तक का मौका मिल जाता है। पुलिस अदालत में आरोपपत्र दाखिल करने में भी सालों लगा देती है। दूसरी ओर लड़की थाने के चक्कर काटती रहती है। अदालत में अपने और बच्चों के गुज़ारा खर्चा के लिए मुकदमे में उलझ कर परेशान रहती है। आर्थिक और मानसिक रूप से वह टूट जाती हैं दूसरी ओर समाज ही नहीं रिश्तेदार भी लड़की को ऐसे नजरिए से देखता है जैसे कि सारा कसूर लड़की का ही है। लड़की मायके में भी बेचारी सी बन कर रह जाती है।
तलाक देते पर हक नहीं देते-- मान लो कि पति तो बिल्कुल दूध का धुला है और सारी कमी पत्नी में ही है और तलाक  ही एकमात्र  रास्ता बचा है। तो भी पत्नी और बच्चों का कानूनन जो हक़ बनता है ईमानदारी से वह तो देना चाहिए। हक़ नहीं देना पड़े इसलिए अपने बेटे को बेदखल करना तो ससुराल वालों की ही नीयत में खोट दिखाता है। सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे तलाक देने वाला पत्नी और बच्चों का हक़ ना मार पाए। हक़ देने से बचने के लिए बेटे को बेदखल करने की कार्रवाई को अवैध माना जाए। लड़की की शादी में मां-बाप अपनी हैसियत से ज्यादा पैसा लगाते है। लालचीनालायक,शराबी और लड़की से मारपीट तक करने वाले लड़के को भी लड़की और लड़की के मां-बाप सिर्फ इस उम्मीद से झेलते रहते है कि रिश्ता बना रहे। ज्यादतर मामलों में  लड़की अपनी ओर से तलाक के लिए पहल भी नहीं करती है। लड़की वाले इतने बेबस हो जाते है कि वह चाह कर भी कोई सख्त कदम मार पीट तक करने वाले दामाद के खिलाफ नहीं उठाते। वे यह सोचते है कि रिश्ता बना रहे। समाज की भी सोच ऐसी है कि एक बार जिसके साथ शादी हो गई उसके साथ ही लड़की को जीवन बिताना चाहिए चाहे पति  में लाख बुराई क्यों न हो। पति/ ससुराल  से परेशान लड़की पीहर में रहने की सोचे तो 'समाज बात बनाएगा ' यह सोच कर लड़की के मां बाप भी उसे अपने साथ रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है। ऐसे में ही लड़की को जब कहीं से कोई सहारा नहीं मिलता तो आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है। तब मां-बाप पछताते है कि अगर समाज की परवाह न करते तो बेटी तो जिंदा रहती। इसलिए मां बाप को संवेदनहीन समाज या किसी की भी परवाह किए बगैर अपनी परेशान बेटी को अपने साथ रखना चाहिए। किसी की जान से बढ़ कर कुछ नहीं होना चाहिए।
 धोखाशराबीजुआरीबेरोजगार ही नहीं नपुंसक और समलैंगिक लड़के की भी शादी ल़ड़की वालों को धोखा दे कर लड़के के मां-बाप कर देते है।कई मामले तो ऐसे भी होते है कि ल़ड़के के किसी लड़की से संबंध होते है यह जानते हुए भी मां-बाप लड़के की शादी किसी दूसरी लड़की के साथ कर देते है। उनकी सोच होती है कि शादी के बाद लड़का ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसा करके वह  बहू  का जीवन तो बरबाद करते ही है। लड़के के ना सुधरने पर बहू को ही दोष देते है। हाल ही में एक रिटायर्ड आईएएस अफसर के बेटे का मामला सामने आया। शारीरिक संबंध बनाने में अक्षम युवक ने बेशर्मी के साथ पत्नी से कहा कि उसने तो शादी दोस्ती करने के लिए की है संबंध बनाने के लिए नहीं। इस तरह से पत्नी की गरिमा/ जीवन से खिलवाड़ किया जाता है।
पुख्ता इंतजाम--शादी के समय लड़की वालों की ओर से दिए जाने वाले सामान की सूची सबके सामने पढ़ कर सुनाई और लड़के वालों को दी जाती है। इस तरह से लड़के और उसके परिवार की संपत्ति/ आर्थिक स्थिति की सूची भी लड़के वालों द्वारा लड़की वालों को दी जानी चाहिए। लिखित में यह पुख्ता इंतजाम किया जाना चाहिए कि अगर पति तलाक देना चाहे तो पत्नी और बच्चों को उनका कानूनन हक देने में पति और ससुराल वाले कोई आनाकानी या साजिश न कर सके।
पत्नी भी नाक में दम करने में कम नहींशादीशुदा जीवन को स्वर्ग या नरक बनाने में पत्नी की भी अहम भूमिका होती है। जरूरी नहीं कि सिर्फ पति और ससुराल वाले ही दुष्टलालची और घटिया सोच के हो।  पत्नी और उसके मां-बाप भी बहुत दुष्ट और घटिया होते है।  असल में कुछ लोगों की सोच ऐसी भी होती है कि लड़का संपत्ति में से अपना हिस्सा लेकर अलग रहे। इसके लिए अगर आसानी से बात नहीं बनती तो मां बाप की शह पर लड़की अपने ससुराल वालों पर आरोप लगाने में किसी भी स्तर तक चली जाती है।  दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के शिकार हमेशा शरीफ ही होते है और पीड़ित लड़का –लड़की दोनों में से कोई भी हो सकता है। ऐसी दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के कारण विवाह जैसा पवित्र संबंध टूट रहे है और इन सबका खामियाजा उनके मासूम बच्चों को भुगतना पड़ता है।
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी जयपाल सिंह के अनुसार इन मामलों में पुलिस यदि सही तफ़तीश करे तो बहुत केस कोर्ट में जाने से पहले या तो घर बस जायेंगे या बेगुनाह माँ बाप और दूसरे रिश्तेदार बिना ग़लती किये अदालत के चक्करों से बच जायेंगे।अधिकतर केसों में पुलिस जांच किए बिना ही लड़की की बात को ही सही मान लेती हैं। शादी के समय जो सामान की लिस्ट पढ़ कर सुनाई जाती है उस पर साईन करने का क़ानून बनना चाहिये । शादी का रजिस्ट्रेशन सरल व ज़रूरी होना चाहिए उसी में सामान की लिस्ट संलग्न करने का प्रावधान होना चाहिये। स्त्री धन का भी सही विवरण उसमें होना चाहिये। निकाहनामा की तरह तलाक़ के समय दी जाने वाली रक़म/जायदाद का भी लिखा जाना आवश्यक होना चाहिये। शादी का रजिस्ट्रेशन थाने या लोकल मन्दिर में होना चाहिये और इलाक़े का एसडीएम हर महीने एसएचओ / मन्दिर के पुजारी के कार्यालय में जाये या वे उसके कार्यालय जायें और महीने भर में जो शादियां दर्ज हुई उनको एसडीएम अटैस्ट करें यह सब निःशुल्क होना चाहिए। इन सबका क़ानून में ऐसा प्रावधान हो कि इसमें कोई भी  लड़की / लड़के वाला या अफ़सर कोताही / ग़लती करे तो सख़्त सजा का प्रावधान हो।
वकील की भूमिका- दिल्ली पुलिस की महिला अपराध शाखा मेें रह चुके एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि कई बार वकीलों के कहने में आकर भी दोनों पक्ष ऐसे आरोप-प्रत्यारोप लगा देते है कि मामला सुलझने की बजाए बिगड़ जाता है।

                                                   

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