Monday, 24 February 2025

दिल्ली विधानसभा: माननीयों और मीडिया/ दर्शकों के बीच शीशे की दीवार, विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता इस दीवार को हटाएगें या अमानवीय व्यवस्था को जारी रखेंगे ?, अरविंद केजरीवाल का कारनामा।

           विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता


दिल्ली विधानसभा: माननीयों और मीडिया/दर्शकों के बीच शीशे की दीवार


इंद्र वशिष्ठ, 
दिल्ली विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार एक ऐसा अमानवीय कारनामा कर गई, जो किसी सरकार ने कभी नहीं किया। जिसे लोकतंत्र में किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। 
जेल बना दी-
वह विधानसभा सदन में माननीयों/विधायकों और मीडिया/दर्शकों के बीच में शीशे की पारदर्शी दीवार खड़ी कर गई।
यह दीवार जेल में कैदी और मुलाकाती के बीच लगी शीशे की दीवार जैसा अहसास कराती है। 
अमानवीय व्यवस्था-
विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष रामनिवास गोयल के कार्यकाल में विधायकों की सुरक्षा के नाम पर मीडिया और दर्शक दीर्घा में यह दीवार लगाई गई। शीशे की इस दीवार को अब भाजपा सरकार हटाएगी है या इस अमानवीय व्यवस्था को जारी रखेगी ? यह तो आने वाला समय ही बताएगा। 
जेल में बंद कैदी की तरह पत्रकार शीशे की दीवार के पीछे से ही सदन की कार्यवाही देखने/कवर करने को मजबूर हैं।
तानाशाही-
जो जनता इन नेताओं को चुन कर विधानसभा में बैठने लायक बनाती है। वह जनता भी सदन की कार्यवाही शीशे की दीवार के पीछे से देखने को मजबूर है। यह सरासर तानाशाही है। 
सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर मीडिया और दर्शक दीर्घा में शीशे की दीवार लगाना लोकतंत्र में किसी भी तरह से सही/जायज नहीं ठहराया जा सकता।
दीवार हटाएं-
दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को दीवार हटा कर मीडिया और दर्शकों को इस पिंजरे/कैद से मुक्त करके पहले जैसी लोकतांत्रिक/ खुली स्थिति को बहाल करना चाहिए। 
वैसे तो आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा मीडिया और दर्शक दीर्घा में जब यह दीवार लगाई थी। तभी तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा और मीडिया को इसका विरोध करना चाहिए था। 
संसद से सीखें-
संसद भवन में 13 दिसंबर 2023 को लोकसभा में दो युवक दर्शक दीर्घा से कूदे और रंगीन धुंआ (कलर स्मोक) उड़ाया। नई संसद में लोकसभा सत्र के दौरान सुरक्षा में चूक हुई। 
इसके बावजूद भी लोकसभा और राज्य सभा में मीडिया और दर्शक दीर्घा को पहले की तरह खुला ही रखा गया है। उसे तो किसी भी तरह की  दीवार लगा कर बंद नहीं किया गया। 
केजरीवाल की तानाशाही-
मीडिया की कृपा/मदद के कारण ही अरविंद केजरीवाल का राजनीति में इतना वजूद बना है। लेकिन धूर्त और अहसान फरामोश  अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले मीडिया पर ही तानाशाही दिखाई। मुख्यमंत्री बनते ही उसने दिल्ली सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी। पत्रकारों ने विरोध किया तो सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश के लिए एक समय सीमा निश्चित कर दी गई। ऐसा करने से केजरीवाल का असली चेहरा, दोहरा चरित्र और घटिया मानसिकता उजागर हुई। 
कोई बंदिश नहीं-
अब देखना है कि भाजपा सरकार  सचिवालय में भी मीडिया की एंट्री पहले की तरह बहाल करती है या नहीं? 
पहले तो भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में सचिवालय ही नहीं, मंत्रियों के घर और दफ़्तर के दरवाजे पत्रकारों के लिए हमेशा खुले रहते थे। 










Friday, 21 February 2025

अपराधों की FIR दर्ज न करना दंडनीय अपराध हो





अपराधों की एफआईआर दर्ज होना जरूरी




इंद्र वशिष्ठ
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कानून व्यवस्था मजबूत बनाने के लिए अपराधों का दर्ज होना ज़रूरी है, इसलिए एफआईआर दर्ज करने में किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए। देशवासियों को त्वरित व पारदर्शी न्याय प्रणाली देने के लिए सरकार संकल्पित है। 
एफआईआर दर्ज न करना अपराध हो-
गृह मंत्री अगर अपराधों को दर्ज कराने को लेकर वाकई गंभीर हैं, तो एफआईआर दर्ज न करने को दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। अपराधों को दर्ज न करने वाले पुलिस अफसर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किए जाने का कानून बनाया जाना चाहिए। 
मिसाल बनाएं- गृहमंत्री को सबसे पहले दिल्ली में ही यह सुनिश्चित करना चाहिए, कि सभी अपराधों की सही और बिना देरी के एफआईआर दर्ज हो। दिल्ली में ऐसा कमाल करके वह देश भर की पुलिस के सामने मिसाल पेश कर सकते हैं। 
कथनी और करनी में अंतर-
नए आपराधिक कानूनों से लोगों को क्या वाकई न्याय जल्द मिलेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इस नए कानून का एक प्रावधान सरकार के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। इससे सरकार की कथनी और करनी में अंतर साफ़ नज़र आता है। 
एसएचओ के रहमोकरम पर-
नए कानून के अनुसार अब अपराध के कुछ मामलों में तो एफआईआर दर्ज करना या ना करना सब एसएचओ के विवेक/मर्जी पर निर्भर होगा। अपराध के कुछ मामलों में अब एसएचओ प्रारंभिक जांच करके यह तय करेगा, कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। पुराने कानून में अपराध के हर मामले में एफआईआर दर्ज करना कानूनन अनिवार्य था। लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के नए कानून 173(3) के अनुसार जिस संज्ञेय अपराध में सज़ा तीन साल या उससे ज्यादा लेकिन सात साल से कम है। ऐसे मामले में डीएसपी स्तर के अफसर की पूर्व अनुमति से प्रारंभिक जांच करके ही एसएचओ यह तय करेगा, कि एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। यानी उसकी समझ से जो मामला सही होगा है, तभी वह‌ एफआईआर दर्ज करेगा। यानी अब ऐसे हर मामले में एफआईआर दर्ज करना कानूनन अनिवार्य नहीं होगा। 
भ्रष्टाचार बढ़ेगा- इस नए प्रावधान से तो पुलिस में भ्रष्टाचार पहले से भी ज्यादा बढ़ेगा। पुलिस को पीड़ित और आरोपी दोनों से पैसा वसूलने का पहले से ज्यादा मौका मिल जाएगा। पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में मनमानी भी पहले से ज्यादा बढ़ेगी। 
अब ऐसे में पीड़ित/शिकायतकर्ता के लिए एफआईआर दर्ज कराना ही पहले से भी ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। जब उसकी एफआईआर ही दर्ज नही होगी ,तो भला उसे न्याय कहां से मिलेगा। ।
संवेदनहीन पुलिस- गृहमंत्री के अन्तर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस द्वारा महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने और एफआईआर आसानी से दर्ज किए जाने का दावा किया जाता है। लेकिन महिला पहलवानों को कुश्ती संघ के अध्यक्ष भाजपा के तत्कालीन सांसद बृज भूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन शोषण/ उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ी थी।
जबकि आईपीसी की धारा 166 ए (सी)में साफ कहा गया था कि महिला के खिलाफ अपराध के मामले में एफआईआर दर्ज न करना दंडनीय अपराध है। महिला की एफआईआर दर्ज न करने पर पुलिसकर्मी के खिलाफ आईपीसी की धारा 166 ए(सी) के तहत एफआईआर दर्ज करने का कानून था। यह कानून निर्भया गैंगरेप कांड के बाद साल 2013 में बनाया गया था।
पुलिस राज का खतरा - ऐसे में अब इस नए कानून की आड़ में अपराध के कुछ मामलों में शुरुआती जांच के आधार/नाम पर एफआईआर दर्ज न करने के लिए पुलिस को एक तरह से कानूनी रूप से छूट मिल गई। शिकायतकर्ता से सीधे मुंह बात तक न करने के लिए बदनाम पुलिस अब और ज्यादा निरंकुश हो जाएगी। लोकतंत्र और सभ्य समाज के लिए पुलिस राज खतरनाक होता है। 
आंकड़ों की बाजीगरी-  सच्चाई यह है कि अपराध को आंकड़ों की बाजीगरी के माध्यम से कम दिखाने के लिए पुलिस में पहले से ही अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा है। लोगों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए अदालत तक में गुहार लगानी पड़ती है। अपराध को दर्ज ना करके तो पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करने का गुनाह ही करती है।
पुलिस के हथकंडे-  सच्चाई यह है कि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए डकैती/लूट, स्नैचिंग/झपटमारी, चोरी/जेबकटने/ठगी आदि अपराधों के ज्यादातर मामलों को भी या तो दर्ज ही नहीं करती या हल्की धारा में दर्ज करती है। हत्या तक के मामले में भी एफआईआर दर्ज नहीं करने के मामले भी इस पत्रकार ने उजागर किए हैं। दिल्ली में पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से क्राइम रिपोर्टिंग के दौरान इस पत्रकार ने ऐसा ही होते हुए देखा है और ऐसे अनगिनत मामले खबरों के माध्यम से उजागर किए है। जब देश की राजधानी में गृह मंत्री के अन्तर्गत आने वाली पुलिस का यह हाल है तो देश भर का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।
एक ही रास्ता- अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज करना ही है। अभी तो हालत यह है कि मान लो अगर कोई लुटेरा पकड़ा गया, जिसने लूट/छीना झपटी की 100 वारदात करना कबूल किया है। लेकिन एफआईआर सिर्फ दस-बीस वारदात की ही दर्ज पाई गई। अगर पुलिस सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करे, तो अपराधी ज्यादा समय तक जेल में रहेगा। अपराधी को हरेक मामले में जमानत कराने और मुकदमेबाजी के लिए वकील को पैसा देना पड़ेगा, जिससे वह आर्थिक रूप से भी कमज़ोर हो जाएगा। ज्यादा मामलों में शामिल होने के कारण उसे जमानत भी आसानी से नहीं मिलेगी। अपराधी के अंदर सज़ा मिलने का डर बैठेगा।
पुलिस अगर अपराधों की सही एफआईआर दर्ज करें, तभी अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर भी सामने आ पाएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटा जा सकता है। 
न्याय की बुनियाद एफआईआर-  
आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियाद ही एफआईआर पर टिकी हुई है। लेकिन जब एफआईआर आसानी से दर्ज ही नहीं होगी या पुलिस की मनमर्जी से दर्ज होगी, तो भला न्याय कैसे मिलेगा। 
कड़ी निगरानी- नए कानूनों से सभी को खासकर गरीब को न्याय मिले, पीडितों/शिकायतकर्ता के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कोई ठोस व्यवस्था भी बनानी चाहिए। नए कानूनों की आड़ में पुलिस निरंकुश न हो जाए। कानूनों को लागू करने में पुलिस पूरी ईमानदारी/ जिम्मेदारी और सावधानी बरतें। यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को गंभीरता से कड़ी निगरानी की व्यवस्था भी करनी चाहिए।

(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1989 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)








सनलाइट कालोनी थाने का एएसआई गिरफ्तार, एसएचओ लाइन हाज़िर



सनलाइट कालोनी थाने का एएसआई गिरफ्तार, एसएचओ लाइन हाज़िर


इंद्र वशिष्ठ, 
सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के सनलाइट कालोनी थाने में तैनात एएसआई राम सिंह को 10 हज़ार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। एएसआई राम सिंह ने एक दम्पति को जेल भेजने की धमकी दे कर 30 हज़ार रुपए रिश्वत मांगी। एएसआई राम सिंह को निलंबित कर दिया गया है। 
इस मामले में सनलाइट कालोनी थाने के एसएचओ गुलशन नागपाल को लाइन हाज़िर किया गया है। 
महिलाओं में झगड़ा-
सीबीआई के अनुसार ग्रेटर कैलाश निवासी शिकायतकर्ता राजकुमार शर्मा का हरिनगर आश्रम में दफ्तर में है। 19 फरवरी को दफ़्तर में राजकुमार की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी और महिला कर्मचारी में कहासुनी/झगड़ा हो गया. महिला कर्मचारी ने पुलिस को फोन कर दिया।
जेल भेजने की धमकी-
 सनलाइट कालोनी थाने के एएसआई राम सिंह ने राजकुमार को थाने बुलाया। एएसआई राम सिंह ने  राजकुमार और उसकी पत्नी को जेल भेज देने की धमकी दे कर तीस हजार रुपए रिश्वत मांगी। परस्पर बातचीत के बाद एएसआई राम सिंह 15 हजार रुपए लेने को तैयार हो गया। राजकुमार की शिकायत पर सीबीआई ने 20 फरवरी को मामला दर्ज किया। 
सीबीआई ने 20 फरवरी की रात को जाल बिछाया और 10 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए एएसआई राम सिंह को गिरफ्तार कर लिया।
भ्रष्टाचार के मामले- 
सीबीआई ने 29 जनवरी 2025 को दिल्ली पुलिस के लाहौरी गेट थाने में तैनात सब- इंस्पेक्टर अनिल खटाना को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़ने में विफल हो गई। सब- इंस्पेक्टर अनिल खटाना रिश्वत की रकम लेकर थाने से भागने में सफल हो गया।सीबीआई ने 10 जनवरी 2025 को आउटर डिस्ट्रिक्ट के राज पार्क थाने में तैनात सब- इंस्पेक्टर दीपक झा को आपराधिक मामले को बंद करने के लिए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया।  सीबीआई ने 2 जनवरी 2025 को उत्तर पश्चिम जिले के नेताजी सुभाष प्लेस थाने में तैनात हवलदार शिव हरि को खाने की रेहड़ी लगाने वाले सतीश यादव से दस हज़ार रुपए लेते हुए गिरफ्तार किया। 2 जनवरी 2025 को ही सीबीआई शाहदरा जिले के सीमा पुरी थाने में तैनात सब- इंस्पेक्टर राजेन्द्र को रंगे हाथ पकड़ने में विफल हो गई। सब- इंस्पेक्टर राजेन्द्र रिश्वत की रकम लेकर भाग गया। 





Tuesday, 18 February 2025

हत्यारों का साथी दिल्ली पुलिस का सब- इंस्पेक्टर गिरफ्तार, व्यापारी के हत्यारों को पैसा और पनाह देने वाला निकला वर्दी वाला गुंडा


हत्यारों का साथी दिल्ली पुलिस का सब- इंस्पेक्टर गिरफ्तार, 
हत्यारों को पैसा और पनाह देकर मदद की, 


इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने बर्तन व्यापारी के हत्यारों को पैसे और पनाह देकर मदद करने के आरोप में  सब-इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह को गिरफ्तार किया है। 
व्यापारी सुनील जैन (52) की 8 दिसंबर 2024 को शाहदरा के फर्श बाजार थाना इलाके में ‘गलत पहचान’ के कारण गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
पैसा और पनाह-
स्पेशल सेल की काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट ने उत्तर-पूर्वी जिले में तैनात सब- इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह (45) को व्यापारी के हत्यारों नवीन कसाना और सचिन उर्फ मुकेश उर्फ गोलू को शरण/पनाह देने तथा पैसे से सहायता करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। 
पुलिस सूत्रों के अनुसार सुखबीर सिंह लगातार गोलू के संपर्क में था और हत्या के बाद उसकी मदद कर रहा था। सुखबीर सिंह सिंह को 16 फरवरी को गिरफ्तार किया गया और वह चार दिन की पुलिस हिरासत में है।
जुगाड़ से तबादला-
उत्तर पूर्वी जिले के डीसीपी आशीष कुमार मिश्रा ने बताया कि सब- इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह अब इस जिले में तैनात नहीं है। उसे दिसंबर 2024 में ही रिलीव कर दिया गया था। 
 दूसरी ओर पता चला है कि सब- इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह ने जुगाड़ लगा कर अपना तबादला मध्य जिले में करा लिया है लेकिन उसने अभी वहां पर आमद/ ज्वाइन नहीं किया। 
गलत पहचान-
8 दिसंबर 2024 की सुबह सुनील की सैर से घर लौटते समय बाइक सवार दो बदमाशों ने  गोलियां मार कर हत्या कर दी । पहले यह मामला लूट या आपसी रंजिश का लग रहा था, लेकिन जांच में सामने आया कि जैन को पहचान में हुई गलती के कारण मार दिया गया।
पुलिस जांच से पता चला कि सुनील जैन की  कदकाठी असली निशाना/टारगेट के समान थी, और उनकी दिनचर्या समान थी।
असल में हत्यारे किसी और को मारने आए थे। उनका असली निशाना एक नाबालिग का पिता था, जिस पर आरोप था कि उसने सट्टेबाज/प्रॉपर्टी डीलर आकाश शर्मा और उनके भतीजे ऋषभ की हत्या की साजिश रची थी। दीवाली पर गैंगस्टर हाशिम बाबा गिरोह के अनिल उर्फ सोनू मटका ने आकाश और ऋषभ की गोली मार कर हत्या कर दी थी।
मृतक आकाश शर्मा पर हत्या के प्रयास सहित आधा दर्जन आपराधिक मामले दर्ज थे। वह सामूहिक दुष्कर्म के मामले में तीन साल तक जेल में भी रह चुका था। एक मामला सट्टा चलाने को लेकर भी है।
आकाश शर्मा की हत्या से सचिन उर्फ गोलू  बौखला गया था। वह आकाश को अपना भाई मानता था और उसके लिए बदला लेना चाहता था। लेकिन पहचान में गलती के कारण सुनील की हत्या कर दी। 
फरारी में मदद-
पुलिस के अनुसार इस मामले की जांच के दौरान पुलिस को शक हुआ कि कोई ( पुलिस वाला) अंदर से हत्यारों की मदद कर रहा है। फोन ट्रैकिंग/ टेक्निकल सर्विलांस से पता चला कि सब-इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह लगातार गोलू के संपर्क में था। हत्या के बाद सुखबीर ने उसे पैसे भी दिए, ताकि वह फरार हो सके।
पर्याप्त तकनीकी साक्ष्य मिले हैं जो हत्यारों के साथ सुखबीर सिंह की सीधी संलिप्तता को दर्शाते हैं। पुलिस अब हत्या में आपराधिक साजिश में उसकी भूमिका की भी जांच कर रही है। 
 गुंडे ने हवालात में ईद मनाई-
सब- इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह का नाम पहले भी बदमाश हाशिम बाबा के मामलों में आ चुका है। 
पिछले साल जून में कुख्यात हाशिम बाबा को रिमांड पर लाकर ईद की पार्टी करवाने के आरोप में उत्तर पूर्वी जिले के स्पेशल स्टाफ में तैनात सब- इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह समेत तीन-चार पुलिसकर्मियों को लाइन हाज़िर किया गया था। 
 रमजान के दिनों में स्पेशल स्टाफ ने एक बदमाश को पिस्तौल के साथ पकड़कर उसका लिंक गैंगस्टर हाशिम बाबा से निकाला था। जिसके बाद हाशिम बाबा को पूछताछ के लिए रिमांड पर लाया गया था। मगर वहां उसकी वीआईपी की तरह खातिरदारी की गई। पुलिस वालों ने उसकी ईद मनवाई थी। जिसमें हाशिम के घरवाले, रिश्तेदार और जानकार भी पहुंचे थे।
चर्चा तो यह भी है कि जेल के बाहर आकर ईद मनाने के लिए ही हाशिम ने पुलिसकर्मियों से सांठगांठ की। योजना अनुसार हाशिम ने अपने एक गुर्गे की पिस्तौल के साथ "गिरफ्तारी" और अपने "रिमांड " का नाटक रचा। 






Friday, 14 February 2025

अजय राज शर्मा: बहादुरी और काबिलियत की मिसाल



अजय राज शर्मा: बहादुरी और काबिलियत की मिसाल



इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस में पिछले कुछ वर्षों से कमिश्नर के पद पर ऐसे आईपीएस अफसर तैनात किए जा रहे हैं जो पेशेवर रुप से कमजोर/दब्बू और नाकाबिल साबित होते है। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही न केवल दिल्ली पुलिस की बल्कि आईपीएस जैसी प्रतिष्ठित सेवा की छवि भी खराब होती है। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही बेईमान पुलिसकर्मी निरंकुश हो जाते है और अपराध और अपराधियों पर अंकुश भी नहीं लग पाता है। लगता है अब काबिल और दमदार आईपीएस अफसरों का अकाल पड़ गया है।
अजय राज नंबर वन -
लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर ऐसे काबिल और दमदार आईपीएस भी रहे। जिनकी  काबिलियत, दबंगता, दमदार नेतृत्व और निर्णय क्षमता, कुशल प्रशासन की आज भी मिसाल दी जाती है।
पिछले तीन दशकों में अगर 2-3 बेहतरीन कमिश्नरों की गिनती की जाए, तो उनमें नंबर वन पर अजय राज शर्मा हैं। 
साल 1999 से 2002 तक दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर रहे दबंग और काबिल  अजय राज शर्मा का 10 फरवरी 2025 को बीमारी के कारण निधन हो गया।
आईपीएस के 1966 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के अजय राज़ शर्मा के कर्तव्य पालन के उदाहरणों से उनकी पेशेवर काबिलियत और दबंगता का अंदाजा लगाया जा सकता है। 
दमदार कमिश्नर -  
अजय राज शर्मा ने ही दो डीसीपी को जिले से तुरन्त हटाने की हिम्मत दिखाई थी। दिल्ली पुलिस के इतिहास मेंं शायद ही ऐसी दूसरी कोई मिसाल हो जिसमें भ्रष्टाचार और पेशेवर लापरवाही/ संवेदनहीनता पर दो डीसीपी/आईपीएस को जिले से तुरंत हटाया गया। 
दो डीसीपी को हटाया - 
उत्तरी पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी सत्येंद्र गर्ग द्वारा माडल टाऊन के बिजनेसमैन सुशील गोयल की पत्नी से लाखों रुपए मूल्य की विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने का भ्रष्टाचार का अनोखा मामला इस पत्रकार द्वारा 1999 में उजागर किया गया। कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने तुरंत डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया।
मध्य जिला के तत्कालीन डीसीपी मुक्तेश चंद्र  द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशी युवतियों को मीडिया के सामने पेश करने पर इस पत्रकार ने सवाल उठाया था। कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने इस मामले में भी मुक्तेश चंद्र को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटा दिया। 
काला दिन- सीबीआई ने आईपीएस जे के शर्मा के यहां छापे मारी की थी, उस समय अजय राज़ शर्मा ने मीडिया में खुल कर कहा कि आज़ का दिन पुलिस के लिए काला दिन है। आईपीएस अफसरों द्वारा तबादले के साथ ही अपने निजी स्टाफ यानी चहेते पुलिस कर्मियों को भी साथ ले जाने पर भी अजय राज शर्मा ने अंकुश लगाया था।
संसद पर हमला, बौखलाए नहीं -
झपटमारी/लूट की वारदात होने पर ही जब आईपीएस अफसर वारदात दर्ज न करने या खबर दबाने की नीयत से मीडिया का सामना करने से घबराते या बौखलाते हैंं। पत्रकार का फोन तक नहीं उठाते है। अजय राज ऐसे पुलिस कमिश्नर थे, जो आतंकी हमले के दौरान भी बिना विचलित हुए पत्रकार से बात करने का दम रखते थे।
संसद पर आतंकवादी हमला (13 दिसंबर 2001)होने की सूचना मिलते ही इस पत्रकार ने कमिश्नर अजय राज शर्मा को मोबाइल पर फोन किया। फोन मिलाते समय ही यह ख्याल आया था, कि ऐसे समय मेंं जब संसद पर हमला हो रहा है, वह फोन नहीं उठाएंगे। लेकिन अजय राज शर्मा ने फोन रिसीव किया और बिल्कुल ही सहज शांत भाव से आतंकी हमले की पुष्टि की और बताया कि वह अभी संसद भवन जाने के लिए रास्ते मेंं ही हैं। आतंकी हमले जैसे संकट के समय भी इस तरह का व्यवहार ही उनकी पेशेवर काबिलियत दिखाता है।
लालकिले पर आतंकी हमला(22 दिसंबर 2000) भी अजय राज के समय मेंं ही हुआ और दोनों मामलों को पुलिस ने सुलझा भी लिया। 
सिफारिश के बाद भी एसएचओ नहीं लगाया--
केशव पुरम थाना इलाके में टीवी के डिब्बे मेंं एक युवक की लाश मिली थी। हत्या का मामला दर्ज करने की बजाए पुलिस ने लावारिस के रुप मेंं शव का अंतिम संस्कार कर दिया। इस मामले को इस पत्रकार द्वारा उजागर किया गया। अजय राज शर्मा ने केशव पुरम एसएचओ प्रदीप कुमार और चौकी इंचार्ज राज सिंह को निलंबित कर दिया। इस मामले से साबित हुआ कि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए हत्या के मामले भी दर्ज नहीं करती। दोबारा एसएचओ लगने के लिए प्रदीप कुमार ने कमिश्नर अजय राज शर्मा को कई बार सिफारिश करवाई। लेकिन अजय राज ने उसे साफ कह दिया कि तुम्हें दोबारा लगाया तो सान्ध्य टाइम्स मेंं फिर खबर छप जाएगी। 
पत्रकार को निकम्मे आईपीएस दुश्मन समझते हैं-
इससे पता चलता है कि कमिश्नर/ आईपीएस की नीयत अगर सही है और वह गलत काम करने वाले अफसर को थाने में तैनात नहीं करना चाहते, तो वह मीडिया का भय दिखा कर भी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन कर सकते हैं। आजकल तो हालात यह है कि खबर के आधार पर दोषी पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए पोल खोलने वाले पत्रकार को ही आईपीएस द्वारा दुश्मन की तरह देखा/ समझा जाता है।
जो आईपीएस पेशेवर काबिलियत वाले होते हैं।  वह तो मीडिया द्वारा उजागर मामलों को सकरात्मक रुप मेंं ले कर उस पर कार्रवाई जरुर करते हैंं। पुलिस मेंं व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए वह मीडिया के आभारी भी होते हैंं
पत्रकारों से बदसलूकी बर्दाश्त नहीं-
दैनिक जागरण के तत्कालीन पत्रकार अरविंद शर्मा और आलोक वर्मा ने आरोप लगाया कि स्पेशल सेल के एसीपी राजबीर सिंह ने उनके साथ बदतमीजी की जान से मारने की धमकी दी है।  पत्रकारों ने इस मामले की शिकायत अजय राज शर्मा से की। अजय राज शर्मा ने कहा कि अफसर का ऐसा व्यवहार बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उन्होंने तुरंत मामले की सतर्कता विभाग से जांच के आदेश दे दिए। लेकिन अरविंद शर्मा और आलोक वर्मा अपना बयान देने के लिए जांच मेंं शामिल ही नहीं हुए। बाद मेंं पता चला कि स्पेशल सेल के तत्कालीन डीसीपी अशोक चांद और एसीपी राजबीर ने होटल मेंं पत्रकारों को दावत देकर सब "ठीक" कर लिया।
पत्रकार को फंसाया- 
कमिश्नर अजय राज शर्मा और तत्कालीन स्पेशल कमिश्नर कृष्ण कांत पॉल को कश्मीर टाइम्स के पत्रकार इफ्तिखार गिलानी को देशद्रोह के झूठे मामले मेंं गिरफ्तार करने के लिए भी याद रखा जाएगा। स्पेशल सेल ने इफ्तिखार को 9-6-2002 को गिरफ्तार किया था। अदालत मेंं सेना के वरिष्ठ अफसर ने ही पुलिस की पोल खोल दी। सेना के अफसर ने कहा कि गिलानी से बरामद दस्तावेज गोपनीय और देश की सुरक्षा से संबंधित नहीं है। पुलिस की पोल खुली तो मुकदमा वापस लिया गया। लेकिन बेकसूर गिलानी को सात महीने जेल में सड़ना पड़ा।
भ्रष्ट आईपीएस की इज़्ज़त नहीं-
आईपीएस अफसरों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बारे में अजय राज शर्मा ने कहा था कि क्या जरूरत है, अपने को इतना नीचे गिराने की, छोटे छोटे कर्मचारियों से पैसा ले रहे हो। भ्रष्ट आईपीएस को पुलिस फोर्स से कभी इज़्ज़त नहीं मिलेगी। 
अजय राज शर्मा ने कहा था कि आईएएस, आईपीएस को इतनी तनख्वाह तो मिलती ही है, कि वह इज़्ज़त से रह सकते हैं और थोड़ा बहुत बचा भी सकते हैं। उन्हें वह रुतबा मिलता है जो बड़े बड़े बिजनेसमैन को भी नहीं मिलता है। 
शानदार पारी- उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ के संस्थापक मुखिया के पद पर रहते हुए अजय राज शर्मा ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त ऑपरेशन में कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला को 22 सितंबर 1998 को कथित एनकाउंटर में मार गिराया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अनेक डाकुओं का भी सफाया अजय राज शर्मा के नेतृत्व में पुलिस ने किया। 
अजय राज शर्मा दिल्ली पुलिस मेंं तीन साल की शानदार पारी के बाद साल 2002 में सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक बनाए गए।  साल 2004 में वह बीएसएफ महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। 


(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1989 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)

अपराधों की एफआईआर दर्ज करना जरूरी : गृह मंत्री अमित शाह


अपराधों की एफआईआर दर्ज करना जरूरी  : गृह मंत्री अमित शाह


इंद्र वशिष्ठ, 
अपराध और अपराधी तो दिनोंदिन बढ़ रहे हैं लेकिन पुलिस द्वारा अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने की परंपरा जारी है। अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने का सिलसिला जारी है। 
एफआईआर ही रास्ता-
अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता है कि पुलिस अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज करे। अपराध को दर्ज ना करके तो पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करने का गुनाह ही करती है। पुलिस अपराध की एफआईआर ही आसानी से दर्ज ही नहीं करती है। लोगों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए अदालत तक में गुहार लगानी पड़ती है। 
बुनियाद-
आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियाद ही एफआईआर पर टिकी हुई है। लेकिन जब एफआईआर आसानी से दर्ज ही नहीं होगी या पुलिस की मनमर्जी से दर्ज होगी, तो भला न्याय कैसे मिलेगा। 
दंडनीय अपराध  -
अपराध को दर्ज ना करने को दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। अपराध की एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिस अफसर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किए जाने का कानून बनाया जाना चाहिए। तभी कानून का शासन कायम हो सकता है। 
पुलिस अगर अपराधों की सही एफआईआर दर्ज करें, तभी अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आ पाएगी। सही तस्वीर सामने आने पर ही अपराध और अपराधियों से निपटा जा सकता है। 
एफआईआर जरूरी-
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने  अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने की दिशा में कदम उठाया है।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कानून व्यवस्था मजबूत बनाने के लिए अपराधों का दर्ज होना ज़रूरी है, इसलिए एफआईआर दर्ज करने में किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए। देशवासियों को त्वरित व पारदर्शी न्याय प्रणाली देने के लिए सरकार संकल्पित है।
गृह मंत्री ने शुक्रवार को नई दिल्ली में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की उपस्थिति में राज्य में तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन पर समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। 
बैठक में पुलिस, जेल, कोर्ट, अभियोजन और फॉरेन्सिक से संबंधित विभिन्न नए प्रावधानों के महाराष्ट्र में कार्यान्वयन और वर्तमान स्थिति की समीक्षा की गई।
 बैठक में केन्द्रीय गृह सचिव, महाराष्ट्र की मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक, पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) के महानिदेशक, राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NCRB) के महानिदेशक और केन्द्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार के अनेक वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
निगरानी जरूरी-
गृह मंत्री ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि संगठित अपराध, आतंकवाद और मॉब लिंचिंग के मामलों की वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियमित मॉनिटरिंग करें ताकि इन अपराधों से जुड़ी धाराओं का दुरुपयोग न हो।
सज़ा दिलाएं-
गृहमंत्री ने कहा कि 7 साल से अधिक सजा के मामलों में 90 प्रतिशत से अधिक दोषसिद्धि हासिल करने के प्रयास किए जाएं और पुलिस, सरकारी वकील एवं न्यायपालिका मिलकर दोषियों को जल्द से जल्द सजा दिलाने का प्रयास करें। 
जेलों, सरकारी अस्पतालों, बैंक, फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी इत्यादि परिसरो में वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिए साक्ष्य दर्ज करने के व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिसमें अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम ( सीसीटीएनएस) के जरिए दो राज्यों के बीच एफआईआर को ट्रांसफर किया जा सके। 
गृह मंत्री ने कहा कि पुलिस को पूछताछ के लिए हिरासत में रखे गए लोगों की जानकारी इलेक्ट्रॉनिक डैशबोर्ड पर प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने पुलिस थानों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बढाने पर जोर दिया। हर पुलिस सब डिवीजन में फॉरेंसिक साइंस मोबाइल वैन्स की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए। 
हकदार को संपत्ति-
गृहमंत्री यह भी कहा कि पुलिस को अपराधियों के पास से बरामद की गई संपत्ति को नए आपराधिक कानूनों के प्रावधानों के अनुसार उसके असली हकदार को लौटाने की व्यवस्था करनी चाहिए। गृह मंत्री ने पुलिस थानों को सुंदर बनाने पर भी बल दिया। 

 गृह मंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र नए आपराधिक कानूनों के अनुरूप एक आदर्श डायरेक्टरेट ऑफ प्रॉसिक्यूशन की व्यवस्था बनाए।