निजी हित को किस तरह जनहित का नाम दिया जा सकता है इसका अनूठा उदाहरण अरविंद केजरीवाल ने पेश किया है। अपने फायदे के लिए अन्ना का किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है ये भी केजरीवाल ने दिखा दिया है। केजरीवाल को इनकम टैक्स विभाग ने 9 लाख रुपए का भुगतान करने का नोटिस 5 अगस्त को दिया थां। केजरीवाल ने इस नोटिस के जवाब में मीडिया को जो बयान दिए है उनसे ही यह बात साफ हो जाती है कि इनकम टैक्स विभाग का उनसे पैसा वापस मांगना बिलकुल जायज है। केजरीवाल ने बताया कि दो साल तक वह स्टडी लीव पर थे इस दौरान उनको वेतन मिलता रहा। इसके लिए बांड में शर्त थी कि छुटटी से वापस आने के बाद तीन साल तक अगर वह नौकरी छोडते है तो उन्हें स्टडी लीव के दौरान मिला वेतन वापस करना होगा। 1 नवंवर 2002 को केजरीवाल ने नौकरी वापस ज्वॉइन की और सवा साल बाद लीव विदाउट पे पर चले गए। इसके बाद फरवरी 2006 में इस्तीफा दे दिया। इस पर इनकम टैक्स विभाग ने दो साल का वेतन उसका ब्याज और कंपयूटर लोन के तौर पर लिए रुपए चुकाने के लिए केजरीवाल को नोटिस दिया। केजरीवाल ने 2006-7 में इनकम टैक्स विभाग से कहा कि चंूकि वह आरटीआई के लिए काम कर रहे थे इसलिए मेरे मामले को जनहित में सरकार वेव ऑफ यानी माफ कर दें। केजरीवाल का कहना है कि सीबीडीटी के चेयरमैन ने भी उनको छूट देने की सिफारिश की थी लेकिन रेवेन्यू सेक्रेटरी इसके लिए राजी नहीं हुए और उनको स्टडी लीव के दौरान दिया गया वेतन वापस करने को कहा गया। इस पर केजरीवाल ने कहा कि उनके खाते में सिर्फ बीस हजार रुपए है। केजरीवाल के बयान से ही यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि विभाग 2006 से ही रकम वापस करने के लिए केजरीवाल से कह रहा था केजरीवाल ने वेतन की रकम तो दूर कंपयूटर लोन की रकम तक वापस नहीं की। केजरीवाल के बयान से ही यह भीे साफ है इनकम टैक्स विभाग का उनसे रकम वापस मांगना नियमानुसार और जायज है। वरना केजरीवाल सरकार से इसे जनहित का मामला मान कर माफ करने की मांग क्यों करतें? वेतन की रकम वापस करने से बचने के लिए सरकार से छूट मांगने वाले केजरीवाल शायद ये भूल गए कि वे उस रकम को वापस नहीं करना चाहते जो कि करदाताओं की है। उस करदाता की जिनके हित की लडाई लडने की दुुहाई देते वह थकते नही। क्या यह केजरीवाल का दोहरा चऱित्र नहीें है? केजरीवाल ने यह भी कहा कि वह इस बारे में अन्ना हजारे से पूछेंगे। ये तो केजरीवाल का नौकरी के दौरान का विभागीय और निजी मामला है। ये मामला जनहित या आंदोलन का तो है नहीं । जिसके बारे में अन्ना से पूछने की बात केजरीवाल कर रहे है। इस तरह तो वह निजी फायदे के लिए अन्ना या उन लोगों का इस्तेमाल करना चाहते है जो उनसे जुडे है। केजरीवाल के बयान विरोधाभासी और गुमराह करने वाले है एक ओर कहते है कि राजनीतिक आकाओं के दबाव में उनको इस समय इनकम टैक्स विभाग ने नोटिस दिया है। जबकि खुद ही कहते है कि पहले भी नोटिस दिए गए थे।केजरीवाल भी तो इस मामले मे राजनीति कर रहे है। माना कि अब राजनीतिक दबाव में नोटिस दिया गया है लेकिन सच तो यह है ही कि सरकार का बकाया है तो उसे वसूला जाना ही चाहिए। सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आइंदा भी जनहित के नाम पर किसी सरकारी अफसर का बकाया माफ न किया जाए। पैसा तो करदाताओं का है किसी के निजी हित के लिए बकाया माफ करना जनहित नहीं होता।
Friday, 16 September 2011
अरविंद केजरीवाल का कारनामाः निजी हित बना जन हित
निजी हित को किस तरह जनहित का नाम दिया जा सकता है इसका अनूठा उदाहरण अरविंद केजरीवाल ने पेश किया है। अपने फायदे के लिए अन्ना का किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है ये भी केजरीवाल ने दिखा दिया है। केजरीवाल को इनकम टैक्स विभाग ने 9 लाख रुपए का भुगतान करने का नोटिस 5 अगस्त को दिया थां। केजरीवाल ने इस नोटिस के जवाब में मीडिया को जो बयान दिए है उनसे ही यह बात साफ हो जाती है कि इनकम टैक्स विभाग का उनसे पैसा वापस मांगना बिलकुल जायज है। केजरीवाल ने बताया कि दो साल तक वह स्टडी लीव पर थे इस दौरान उनको वेतन मिलता रहा। इसके लिए बांड में शर्त थी कि छुटटी से वापस आने के बाद तीन साल तक अगर वह नौकरी छोडते है तो उन्हें स्टडी लीव के दौरान मिला वेतन वापस करना होगा। 1 नवंवर 2002 को केजरीवाल ने नौकरी वापस ज्वॉइन की और सवा साल बाद लीव विदाउट पे पर चले गए। इसके बाद फरवरी 2006 में इस्तीफा दे दिया। इस पर इनकम टैक्स विभाग ने दो साल का वेतन उसका ब्याज और कंपयूटर लोन के तौर पर लिए रुपए चुकाने के लिए केजरीवाल को नोटिस दिया। केजरीवाल ने 2006-7 में इनकम टैक्स विभाग से कहा कि चंूकि वह आरटीआई के लिए काम कर रहे थे इसलिए मेरे मामले को जनहित में सरकार वेव ऑफ यानी माफ कर दें। केजरीवाल का कहना है कि सीबीडीटी के चेयरमैन ने भी उनको छूट देने की सिफारिश की थी लेकिन रेवेन्यू सेक्रेटरी इसके लिए राजी नहीं हुए और उनको स्टडी लीव के दौरान दिया गया वेतन वापस करने को कहा गया। इस पर केजरीवाल ने कहा कि उनके खाते में सिर्फ बीस हजार रुपए है। केजरीवाल के बयान से ही यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि विभाग 2006 से ही रकम वापस करने के लिए केजरीवाल से कह रहा था केजरीवाल ने वेतन की रकम तो दूर कंपयूटर लोन की रकम तक वापस नहीं की। केजरीवाल के बयान से ही यह भीे साफ है इनकम टैक्स विभाग का उनसे रकम वापस मांगना नियमानुसार और जायज है। वरना केजरीवाल सरकार से इसे जनहित का मामला मान कर माफ करने की मांग क्यों करतें? वेतन की रकम वापस करने से बचने के लिए सरकार से छूट मांगने वाले केजरीवाल शायद ये भूल गए कि वे उस रकम को वापस नहीं करना चाहते जो कि करदाताओं की है। उस करदाता की जिनके हित की लडाई लडने की दुुहाई देते वह थकते नही। क्या यह केजरीवाल का दोहरा चऱित्र नहीें है? केजरीवाल ने यह भी कहा कि वह इस बारे में अन्ना हजारे से पूछेंगे। ये तो केजरीवाल का नौकरी के दौरान का विभागीय और निजी मामला है। ये मामला जनहित या आंदोलन का तो है नहीं । जिसके बारे में अन्ना से पूछने की बात केजरीवाल कर रहे है। इस तरह तो वह निजी फायदे के लिए अन्ना या उन लोगों का इस्तेमाल करना चाहते है जो उनसे जुडे है। केजरीवाल के बयान विरोधाभासी और गुमराह करने वाले है एक ओर कहते है कि राजनीतिक आकाओं के दबाव में उनको इस समय इनकम टैक्स विभाग ने नोटिस दिया है। जबकि खुद ही कहते है कि पहले भी नोटिस दिए गए थे।केजरीवाल भी तो इस मामले मे राजनीति कर रहे है। माना कि अब राजनीतिक दबाव में नोटिस दिया गया है लेकिन सच तो यह है ही कि सरकार का बकाया है तो उसे वसूला जाना ही चाहिए। सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आइंदा भी जनहित के नाम पर किसी सरकारी अफसर का बकाया माफ न किया जाए। पैसा तो करदाताओं का है किसी के निजी हित के लिए बकाया माफ करना जनहित नहीं होता।
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