Friday, 23 December 2011

पुलिस का राजनीतिकरण

पुलिस यानी सत्ता के लठैत, 
 
इंद्र वशिष्ठ
पुलिस किस तरह सत्ताधारियों के राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए ही कार्य  करती है इसका अंदाजा दिल्ली पुलिस के तीन काले कारनामों से ही लगाया जा सकता है। अमर सिंह को गिरफतार न करना,अन्ना और रामदेव के खिलाफ कार्रवाई करना पूरे देश में पुलिस और सत्ता की असली तस्वीर दिखाने के लिए काफी है। अमर सिंह को कोर्ट ने जेल भेजा, उसे पुलिस ने पहले गिरफतार नहीं किया। अन्ना को पहले गिरफतार किया, फिर कुछ ही घंटों में खुद ही जेल से रिहा कराया और अनशन की इजाजत भी दे दी। रामदेव के मामले में तो पुलिस ने गदर ही कर दिया। सत्ता के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचने वाली पुलिस में ईमानदारी और निष्पक्षता की जबरदस्त कमी के कारण ही आम आदमी को उस पर भरोसा नहीं  है।
पुलिस की बर्बरता-रामलीला मैदान में आधी रात को सोते हुए लोंगों पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई किसी भी तरह से सही नहीं ठहराई जा सकती है। इस घटना में घायल हुई राजबाला की 26 सितंबर को अस्पताल में मौत हो गई। पुलिस ने कहा कि राजबाला भगदड़ में घायल हुई थी। लेकिन इस बयान से पुलिस का अपराध कम नहीं हो जाता। पुलिस के इस बयान को ही अगर सही मान लिया जाए तो सवाल उठता है कि भगदड किस वजह से हुई थी? इसका बिलकुल स्पष्ट उत्तर जगजाहिर है कि पुलिस के लाठीचार्ज और आंसूगैस के गोले दागने से ही भगदड़  हुई थी।
 स्टन गैस शैल- पुलिस ने स्टन गैस शैल के गोले दागे थे। जबरदस्त धमाके की आवाज के  साथ फटने वाले इस गोले के टुकडे़ चिनगारी  और धुंए के साथ निकलते है। इसी वजह से पंडाल में आग लगी थी, आग लगने की आशंका के कारण ही इन गोलों को बंद स्थान पर चलाने की मनाही  है फिर भी पुलिस ने रामलीला मैदान के सिर्फ एक गेट खुले और बंद पंडाल में ये गोले चलाए। सूत्रों के अनुसार पहले मैदान को रात डेढ़ बजे खाली कराने की योजना बनी थी,लेकिन फिर अचानक न जाने ऐसा क्या हुआ कि पुलिस ने एक बज कर दस मिनट पर ही एक्शन शुरु कर दिया।
 गलत नीयत और राजनीतिक मकसद - पुलिस चाहे जो तर्क दे लेकिन राजबाला की मौत के लिए पुलिस  ही जिम्मेदार है। अपराध के मामले में अपराधी की नीयत (इंटेंशन ) यानी इरादा और उसके मकसद( मोटीव ) आदि के  आधार पर कोर्ट सजा तय करती है। आधी रात को पुलिस की कार्रवाई से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस ने राजनेताओं के मकसद को पूरा करने के लिए ही गलत नीयत से कार्य किया था। इस तरह पुलिस ने  अपराध किया है।
 फिरंगी कानून/पुलिस- इस तरह की अमानवीय कार्रवाई सरकारें करती रहेगी  जब तक फिरंगियों के बनाए कानून और पुलिस व्यवस्था में बदलाव या सुधार  नहीं किया जाएगा। क्योंकि  किसी भी दल की सरकार हो वह पुलिस को अपने लठैतों की तरह रखना चाहती है। ताकि अपने विरोधियों को डंडे के दम पर कुचल सकें। इसीलिए लोगों का दमन करने और उन पर राज करने के लिए बनाए फिरंगियों के कानून आजादी के बाद भी जारी है। सत्ता में चाहे कोई भी दल हो किसी की भी नीयत इन काले कानूनों को बदलने और पुलिस में सुधार करने की नहीं रहीं । इसीलिए धर्मवीर आयोग की पुलिस में सुधार के लिए दी गई रिपोर्ट सालों से धूल खा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्धारा पुलिस में सुधार के लिए दिए गए निर्देशों पर भी सरकारें पूरी तरह अमल नहीं कर रही है। किसी भी राजनैतिक दल को पुलिस की ज्यादतियों पर आवाज उठाने की याद सिर्फ उस समय आती है जब वह विपक्ष में होते है। सत्ता में सब उसी कानून और पुलिस के सहारे अपना राज कायम  रखना चाहते है।  इसके लिए जिम्मेदार है नेताओं की फिरंगियों वाली सोच। संविधान के अनुसार तो वे जनप्रतिनिधि है।लेकिन सत्ता मिलते ही वे गिरगिट की तरह रंग बदल कर  मालिक बन बैठते है ये सोच ही सभी समस्याओं की जड़ है।
तलुए चाटते  अफसर -सत्ता के अहंकार  में चूर नेता भ्रष्ट अफसरों के बलबूते ही इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई  कराते है।  ऐसे अफसर ही पुलिस कमिश्नर या डीजी बनने के लिए नेताओं के तलुए चाटते है। नेता की सेवा का फल उसे रिटायरमेंट के बाद भी मिलता है।  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है तो अफसरों की नियुकित  प्रकि्रया पूरी तरह पारदर्शी और काबलियत के आधार पर हीं होनी चाहिए। नौकरशाह और पुलिस अफसरों को रिटायरमेंट के बाद गर्वनर या अन्य किसी पद पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन ये सब होगा कैसे ये सबसे बडा सवाल है इस समय तो सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीद की थोडी बहुत किरण नजर आती है। जुल्म ढहाने वाले अफसरों के खिलाफ जब तक कड़ी कार्रवार्इ नहीं होगी वे सरकार यानी नेताओं के निजी लठैत बने रहेंगें। पुलिस के बढ़ते राजनीतिकरण पर अगर अभी से अकुंश नहीं लगाया गया तो पुलिस अत्याचार करने में अंग्रेजों की पुलिस को भी पीछे छोड़ देगी।

कांग्रेस के अनेक चेहरे - हरियाणा में कुछ समय पहले हत्या के  आरोपी पूर्व एमएलए ने अपने हथियारबंद साथियों के दम पर पुलिस और कानून का कई दिनों तक खुल कर मखौल उडाया और पुलिस मूक दर्शक बनी रही। बाद में जुलूस के साथ जाकर उसने अपनी मर्जी से समर्पण किया। राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर गुजरों ने 
कई दिन तक रेल पटरी और सडकों पर रास्ता रोके रखा। जिसकी वजह से आम लोगों को परेशानी का सामना करना पडा। मुंबई में राजठाकरे के बदमाशों ने यूपी-बिहार के लोगों को वहां से भगाने के लिए  मारपीट  कर कानून का मजाक उडाया। इन तीनों  राज्यों में कांग्रेस की ही सरकारें हैं इन सभी जगहों पर सरकार ने धारा 144 लगा कर कार्रवार्इ क्यों नहीं की? वहां पर कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए पुलिस एक्शन क्यों नहीं लाजिमी हुआ? जबकि रामलीला मैदान की अमानवीय कार्रवाई के बारे में तो मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून व्यवस्था कायम रहनी चाहिए, इसलिए ये एक्शन लाजिमी था। दूसरी ओर महाराष्ट्र में ही पुलिस ने बेकसूर किसानों को  गोली तक मार  दी।  यू पी पुलिस ने भी भटठा परसौल में किसानों पर  अत्याचार किए। इन मामलों से ही स्पष्ट है कि नेता राजनीतिक मकसद से पुलिस का इस्तेमाल लठैतों की तरह करते है।

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