Wednesday 18 April 2012

बाउंसर यानी सफेदपोश गुंडे





इंद्र वशिष्ठ

बाउंसर यानी सफेदपोश गुंडे

 होटल, मॉल,पब और बार में बाउंसरों की गुंडागर्दी के अलावा फिल्म स्टारों के कार्यक्रमों में भी बाउंसरों के लोगों के साथ मारपीट के मामले दिनोंदिन बढते जा रहे है।  हाल ही में मुंबई में फिल्म स्टार नेहा धूपिया के कार्यक्रम में भी बाउंसरों द्वारा लोगों के साथ बदसलूकी का मामला सामने आया है। इसके पहले भी अनेक फिल्म स्टारों के फैन उनके बाउंसरों के हाथों पिट चुके है।
बाउंसरों पर अंकुश ..बाउंसरों की गुंडागर्दी को खत्म करने के लिए जल्द ही पुलिस को सख्त कदम उठाने चाहिए। कया पुलिस किसी बडी वारदात के बाद जागेगी या कोर्ट की फटकार के बाद। गुंडे बाउंसरों  के खिलाफ पुलिस को वैसी ही सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जैसी कार जबरन छीन लेने वाले बैंक या फाइनेंस कंपनियों के गुंडों के खिलाफ करने के आदेश कोर्ट ने दिए हुए है।  क्या पुलिस बाउंसरों के मामले में भी कोर्ट  के आदेश या फटकार के बाद कार्रवाई करना शुरु करेगी? जबरन फाइनेंसशुदा कार छीन लेना अपराध है लेकिन पुलिस को यह बात भी कोर्ट को समझानी पडी थी । रिकवरी एजेंट के नाम गुंडागर्दीं करने वाले बैंक के खिलाफ भी आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के लिए कोर्ट ने आदेश दिए। बाउंसरों का लोगों को पीटना उनके हाथ-पैर तोडना आइपीसी के तहत अपराध हैं । इसके बावजूद इनके हाथो पीट गए व्यकित की पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती है। बाउंसर से लोगों को पिटवाने वाले होटल.पब.बार  मालिकों के खिलाफ भी जब तक सख्त कार्रवाई नही की जाएगी ये गुंडागर्दी रुकने वाली नहीं है।
तगडे से युवकों को होटल/पब/बार में रखने का चलन इसलिए हुआ था कि शराब के नशे में चूर व्यंकित यदि हंगामा/दंगा करे तो उन्हें काबू किया जा सके और उसे वहां से हटाया जा सके।  लेकिन अब इसकी बजाए बाउंसर  खुद लोगों से बुरा व्यवहार और मारपीट तक करने लगे है। होटल वालों से मुफत की सेवाएं लेने व मिलीभगत  के कारण पुलिस होटल वालों और बाउंसरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है। दूसरी और यही पुलिस गली-मुहल्लों में मामूली सी मारपीट या कहा सुनी हो जाने पर ही  तुरन्त शांति भंग करने का मामला तो दर्ज करके आरोपी को तुरन्त हवालात में डाल देती है।
बाउंसरों की वैरीफिकेशन.....पुलिस नौकरों/किराएदारों की वैरीफिकेशन कराती है किराएदार के बारे में सूचना न देने वाले मकान मालिक के खिलाफ मुकदमा तक दर्ज कर देती है। लेकिन बाउंसर रुपी इन गुंडों की पुलिस वैरीफिकेशन कयों नहीं कराती? होटल.पब.बार  वालों के लिए इन बाउंसरों के बारे में पुलिस को पूरी जानकारी देना कयों नहीं अनिवार्य किया जाता, बाउंसर की पृष्टभूमि कया है होटल में उसे किस कार्य/सेवा के लिए रखा गया है।
बाउंसर के नाम पर  गुंडागर्दी करने वाले   होटल मालिक के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए।

पिछले दिनों बाउंसरों की गुंडागर्दी पर रोक लगाने के लिए गुडगांव पुलिस ने जिस तरह सख्त कदम उठाए है उस तरह की सख्ती पूरे देश में की जानी चाहिए।
दिल्ली में बाउंसरों की गुंडागर्दी ....
14 अप्रैल 2012 की रात को ग्रेटर कैलाश में दो भाइयों आशीष  और सार्थक  सहगल और उनके बाउंसर ने पुनीत टंडन और उसकी मां रजनी पर बेसबाल के बैट से हमला किया।
13 फरवरी 2012 की रात सूर्या क्राउन प्लाजा होटल के गेट के सामने बाउंसरों ने मारपीट  की । इस दौरान पीसीआर में सवार पुलिस वालों ने अनदेखी की और वहां से खिसक गए। वारदात के कई दिनों बाद मीडिया में इस घटना की फुटेज दिखाई गई तब जाकर पुलिस ने मुलजिमों को गिरफतार किया।

इसके कुछ समय पहले  तो सूर्या क्राउन प्लाजा होटल में ही बाउंसरों ने एक तिब्बती युवक को बैसबाल के बैट से इतना पीटा की उसकी  पैर की हडडी और दो दांत टूट गए। घायल युवक ने पीसीआर को कॉल की और खुद किसी तरह न्यू फ्रैंडस कालोनी थाने पहुंचा। पुलिस ने उसे एम्स में भर्ती करा कर अपनी डयूटी पूरी कर दी। उस युवक को रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस आयुक्त के दफतर जा कर गुहार लगानी पडी तब जाकर रिपोर्ट दर्ज की पुलिस ने। इस मामले से पुलिस को लोगों का दोस्त बनाने के दावे की पोल खोल दी। अरे दोस्त बनना तो दूर तुम पीडित की रिपोर्ट दर्ज करके अपनी डयूटी ही कर लो तो बहुत होगा। दोस्त तो कया बनोगें।

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