एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिस वाले अब जेल जाएंगे
इंद्र वशिष्ठ
अपराध की रिपोर्ट यानी एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिसवाले को अब जेल की हवा खानी पड़ेगी । केंद्र सरकार ने अपराध को दर्ज न करने को भी अब
भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है।
यहीं नहीं जानबूझ कर गैर कानूनी रुप से अपराध की जांच के नाम पर दूर-दराज
रहने वाले व्यकित को भी थाने में हाजिर होने का नोटिस भेज कर परेशान करना
और सीआरपीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर तफ्तीश ठीक ना करना भी अब
दंडनीय अपराध हो गया है। ।
ऐसा अपराध करने वाले पुलिस वाले को अब एक साल तक की कैद की सजा और
जुर्माना दोनों हो सकते है। सरकार ने आइपीसी में संशोधन कर एक नई धारा
166 ए जोड़ी है। इसमें तीन उप धाराएं एबीसी है। उपधारा ए के अनुसार
जानबूझकर गैरकानूनी प्रक्रिया से दूर-दराज रहने वाले किसी व्यक्ति को अपराध की जांच के नाम पर सीआरपीसी की धारा 160 का नोटिस देकर बुलाना
अपराध है । उप धारा बी के अनुसार तफ्तीश के दौरान जानबूझ कर किसी के लिए
पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर सीआरपीसी के दिशा- निर्देशों का उल्लंघन भी
अपराध है। उप धारा सी के अनुसार किसी संज्ञेय अपराध की सूचना को दर्ज न करना और खासकर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को दर्ज न करना अपराध
अब हो गया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 3 फरवरी 2013 को जारी
किए गए एक अध्यादेश से यह कानून लागू हो गया है।
सीआरपीसी में प्रावधान है कि अपराध की जांच के सिलसिले में जांच अफसर
सिर्फ अपने थाने के इलाके और सटे हुए इलाके में रहने वाले को ही धारा
160 के तहत थाने में हाजिर होने का नोटिस दे सक·ता है। लेकिन पुलिस इस
नियम का उल्लंघन कर दूसरे शहर में रहने वाले व्यक्ति को भी 160 का नोटिस भेज देती है। कानूनी जागरुकता के अभाव् में लोग डर के मारे नोटिस मिलते ही
उस शहर के थाने में पहुंच जाते है। लेकिन अब इस तरह से नोटिस देने वाले
पुलिस वाले के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा।
अभी तक संज्ञेय अपराध को दर्ज न करने, तफ्तीश ठीक तरह से न करने और 160 के
नोटिस के दुरुपयोग की शिकायत क रने पर पुलिसवाले के खिलाफ सिर्फ विभागीय
क़ार्रवाई ही की जाती थी।
बस में गैंगरेप की वारदात के बाद कानूनों को सख्त बनाने के सिलसिले में
सरकार ने आईपीसी,सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में अनेक संशोधन किए है।
इनमें से उपरोक्त संशोधन को सबसे अहम माना जा रहा है। इस संशोधन से अपराध
पीडि़त को बड़ी राहत मिलेगी। क्योंकि अभी हालत यह है कि देश की राजधानी
तक में अपराध के शिकार व्यक्ति की रिपोर्ट आसानी से दर्ज नहीं की जाती
है। देश भर में अपराध को आंकड़ों के द्वारा कम दिखाने के लिए अपराध की सभी
वारदात को दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा है। यह
पुलिस और सत्ता पक्ष दोनों के अनुकूल होता है ।
पुलिस द्वारा सभी वारदात को दर्ज न करने की परंपरा के कारण ही अपराध बढ़
रहे है। सभी अपराध को दर्ज करने से ही अपराध की पूरी और सही तस्वीर सामने
आ पाएगी और तभी उससे निपटने की कोई योजना सफल हो पाएगी। डकैती , लूट या
चेन झपटने की वारदात करने वाले अपराधियो को भी पता है अगर पकड़े भी गए
तो उनके द्वारा की गई सारी वारदात तो पुलिस ने दर्ज भी नहीं कर रखी होगी।
इंद्र वशिष्ठ
अपराध की रिपोर्ट यानी एफआईआर दर्ज न करने वाले पुलिसवाले को अब जेल की हवा खानी पड़ेगी । केंद्र सरकार ने अपराध को दर्ज न करने को भी अब
भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है।
यहीं नहीं जानबूझ कर गैर कानूनी रुप से अपराध की जांच के नाम पर दूर-दराज
रहने वाले व्यकित को भी थाने में हाजिर होने का नोटिस भेज कर परेशान करना
और सीआरपीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर तफ्तीश ठीक ना करना भी अब
दंडनीय अपराध हो गया है। ।
ऐसा अपराध करने वाले पुलिस वाले को अब एक साल तक की कैद की सजा और
जुर्माना दोनों हो सकते है। सरकार ने आइपीसी में संशोधन कर एक नई धारा
166 ए जोड़ी है। इसमें तीन उप धाराएं एबीसी है। उपधारा ए के अनुसार
जानबूझकर गैरकानूनी प्रक्रिया से दूर-दराज रहने वाले किसी व्यक्ति को अपराध की जांच के नाम पर सीआरपीसी की धारा 160 का नोटिस देकर बुलाना
अपराध है । उप धारा बी के अनुसार तफ्तीश के दौरान जानबूझ कर किसी के लिए
पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर सीआरपीसी के दिशा- निर्देशों का उल्लंघन भी
अपराध है। उप धारा सी के अनुसार किसी संज्ञेय अपराध की सूचना को दर्ज न करना और खासकर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को दर्ज न करना अपराध
अब हो गया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 3 फरवरी 2013 को जारी
किए गए एक अध्यादेश से यह कानून लागू हो गया है।
सीआरपीसी में प्रावधान है कि अपराध की जांच के सिलसिले में जांच अफसर
सिर्फ अपने थाने के इलाके और सटे हुए इलाके में रहने वाले को ही धारा
160 के तहत थाने में हाजिर होने का नोटिस दे सक·ता है। लेकिन पुलिस इस
नियम का उल्लंघन कर दूसरे शहर में रहने वाले व्यक्ति को भी 160 का नोटिस भेज देती है। कानूनी जागरुकता के अभाव् में लोग डर के मारे नोटिस मिलते ही
उस शहर के थाने में पहुंच जाते है। लेकिन अब इस तरह से नोटिस देने वाले
पुलिस वाले के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा।
अभी तक संज्ञेय अपराध को दर्ज न करने, तफ्तीश ठीक तरह से न करने और 160 के
नोटिस के दुरुपयोग की शिकायत क रने पर पुलिसवाले के खिलाफ सिर्फ विभागीय
क़ार्रवाई ही की जाती थी।
बस में गैंगरेप की वारदात के बाद कानूनों को सख्त बनाने के सिलसिले में
सरकार ने आईपीसी,सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में अनेक संशोधन किए है।
इनमें से उपरोक्त संशोधन को सबसे अहम माना जा रहा है। इस संशोधन से अपराध
पीडि़त को बड़ी राहत मिलेगी। क्योंकि अभी हालत यह है कि देश की राजधानी
तक में अपराध के शिकार व्यक्ति की रिपोर्ट आसानी से दर्ज नहीं की जाती
है। देश भर में अपराध को आंकड़ों के द्वारा कम दिखाने के लिए अपराध की सभी
वारदात को दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा है। यह
पुलिस और सत्ता पक्ष दोनों के अनुकूल होता है ।
पुलिस द्वारा सभी वारदात को दर्ज न करने की परंपरा के कारण ही अपराध बढ़
रहे है। सभी अपराध को दर्ज करने से ही अपराध की पूरी और सही तस्वीर सामने
आ पाएगी और तभी उससे निपटने की कोई योजना सफल हो पाएगी। डकैती , लूट या
चेन झपटने की वारदात करने वाले अपराधियो को भी पता है अगर पकड़े भी गए
तो उनके द्वारा की गई सारी वारदात तो पुलिस ने दर्ज भी नहीं कर रखी होगी।
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