Tuesday 31 July 2018

दिल्ली में हजारों करोड़ के 32 लाख मोबाइल ‘खोए ’/ चोरी/लूटे गए ।

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दिल्ली में  32 लाख मोबाइल  खोए ’/ चोरी/लूटे गए ।
 हजारों करोड़ के मोबाइल  फोन बरामद करने में पुलिस बुरी तरह फेल। 
 इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में हर महीने करीब दो लाख मोबाइल फोन चोरी/गुम ,लूट/झपट लिए जाते है। यानी रोजाना लगभग सात हजार  लोग अपना मोबाइल फोन गंवा देते है। मोबाइल फोन चोरी/ खोने  के मामलों में दिनों-दिन जबरदस्त वृद्धि होती जा रही है। दूसरी ओर  पुलिस की मोबाइल फोन बरामद करने की दर शर्मनाक है।
इस साल 30जून 2018 तक ही मोबाइल चोरी/ खोने/ लूट  के करीब बारह लाख  (1158637)मामले दर्ज  हुए है । इनमें 1129820 मामले मोबाइल गुम/खोने ,  26440 चोरी,  1715 झपटमारी  और  662 लूट  के तहत दर्ज हुए है । 
साल 2017 में  मोबाइल चोरी/ खो जाने / लूट के कुल 1481147 मामले दर्ज  हुए  थे  इनमें से 1418541 मोबाइल गुम होने,56898  चोरी, 4266 झपटमारी और 1442 लूट के तहत दर्ज हुए है । 
साल 2016 में  मोबाइल चोरी/ खो जाने / लूट के कुल 382116 मामले दर्ज  हुए  थे  इनमें से 356667  मोबाइल गुम होने,18687 चोरी, 5121 झपटमारी और 1641 लूट के तहत दर्ज हुए है ।  
यह खुलासा चौंकाने वाला है क्योंकि साल 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के 62373 और साल 2014 में 66724 मामले ही दर्ज हुए थे । इसके बाद से मोबाइल फोन चोरी/गुम ,लूट/झपटने के मामले बेतहाशा  बढ़ रहे है । 
2014 से 30 जून 2018 तक  मोबाइल चोरी / खोने / लूट के करीब 32 लाख मामले दर्ज हुए है  इनमें से तीस लाख से ज्यादा (3021900) मामले तो पिछले ढाई साल यानी वर्ष 2016,2017 और 30 जून  2018 तक के ही है। करीब 32 लाख फोन की कीमत हज़ारों करोड़ रुपए है। 
गृहमंत्री को भी परवाह नहीं --साल 2017 में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी सालाना प्रेस कॉफ्रेंस में  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की मौजूदगी में ही मोबाइल फोन की बिल्कुल ही कम बरामदगी पर पूछे गए सवाल को हंसी में उड़ा दिया था । इसके पहले गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने तो राज्यसभा में यह तक कह दिया था कि छोटे मामले सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। कुल अपराध के 75 फीसदी मामलों को सुलझाने में विफल दिल्ली पुलिस को फटकार की बजाए संसद में गृह मंत्री राजनाथ शाबशी देंगे तो पुलिस भला मेहनत वाली तफ्तीश क्यों करेगी । यही नेता विपक्ष में हो तो ऐसे मामलों पर खूब हल्ला मचाते है । सचाई यह है मोबाइल फोन खोने( लॉस्ट रिपोर्ट)  में दर्ज हुए अधिकांश मामले चोरी और झपटमारी के ही होते है। झपटमारी ,चोरी में एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी और अपराध के आंकड़े से अपराध की वृद्धि उजागर हो जाएगी। इस लिए पुलिस में यह परंपरा है कि झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में एफआईआर दर्ज न की जाए। झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट कराने पहुंचे व्यकित को पुलिस कह देती है रिकवरी के चांस तो है नहीं और तुम्हारा काम तो खोने की पुलिस रिपोर्ट से भी चल जाएगा । पहले ऐसे मामलों में पुलिस एनसीआर दर्ज करके या कागज पर लिखी शिकायत पर थाने की मोहर लगा देती थी । अब यह काम ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट से हो जाता है ।  पुलिस अगर ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करे तो उस पर झपटमारों, चोरों को पकड़ने का दवाब बनेगा  है । पुलिस को तफ्तीश में मेहनत करनी पड़ेगी। जो वह करना नहीं चाहती । इसलिए अपराध  को दर्ज न करना एसएचओ,डीसीपी और पुलिस कमिश्नर से लेकर गृह मंत्री तक के अनुकूल है । लेकिन ऐसा करके ये अपराधियों की मदद कर रहे है । अपराधी को मालूम है कि अगर पकड़ा भी गया तो उसके खिलाफ दर्ज मामले तो बहुत ही कम मिलेंगे । पुलिस लुटेरों को गिरफ्तार करके कई बार सैकड़ों केस सुलझाने के दावे करती है लेकिन कभी भी उन सैकड़ों केसों की सूची नहीं देती । सचाई यह है अपराधी द्बारा की गई सभी वारदात पुलिस ने दर्ज ही नहीं कर रखी होती । इसलिए पुलिस प्रचार पाने के लिए तो दावा कर देती है लेकिन सूची नहीं दे सकती । क्राइम रिपोर्टर भी पुलिस के दावे पर ही निर्भर रहते है और खुद पड़ताल कर य़ह सचाई मालूम करने कोशिश ही नहीं करते कि पुलिस ने जितने केस सुलझाने का दावा किया है असल में उसमें से कितने केस दर्ज है । 
 पुलिस की फोन बरामद करने में बिल्कुल रूचि नहीं होती है। इसकी पुष्टि नीचे दिए आंकड़ों से भी होती है। पुलिस की रिकवरी दर शर्मनाक है । 
साल 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के 62373 और साल 2014 में 66724 मामले दर्ज हुए थे ।  पुलिस साल 2015 में 3415  और साल 2014 में 2237  मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है।  साल 2014,2015 और 30 जून 2016 तक  मोबाइल चोरी या खो जाने के 153579 मामलों में पुलिस सिर्फ 6720 मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है ।   राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने यह जानकारी दी ।  दिल्ली में मोबाइल फोन चोरी के बारे में सांसद राम कुमार कश्यप और हिशे लाचुंगपा ने सरकार से सवाल पूछे थे।
  उल्लेखनीय है कि मोबाइल फोन का आई.एम.ई.आई. नंबर  पुलिस को दिए जाने और सर्विलांस पर रखे जाने के बावजूद मोबाइल मालिक को न तो  कोई सूचना दी जाती है और न  ही मोबाइल खोजा जाता है।  पुलिस द्वारा मोबाइल फोन की  बरामदगी  के आंकड़ों से ही यह बात साबित होती है कि पुलिस की  फोन खोजने में  कोई रूचि  नहीं होती । 
आम आदमी का फोन बरामद करने में तो पुलिस की बिल्कुल रूचि नहीं होती । लेकिन  मंत्री, राजदूत ,बडे नौकरशाह या पुलिस अफसर का फोन तलाश करने में पुलिस इतनी फुर्ती दिखाती है कि 24 घंटे में अपराधी को पकड़ कर फोन भी बरामद कर लेती है। 

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