Sunday 20 October 2019

PM की भतीजी लुटी तो परिजनों की सादगी हुई उजागर। प्रधानमंत्री के परिजनों में भी सादगी मुमकिन है।



                            दमयंती बेन मोदी

लुटेरों के कारण मोदी के परिजनों की सादगी हुई उजागर।
प्रधानमंत्री के परिजनों में भी सादगी मुमकिन है।

इंद्र वशिष्ठ

प्रधानमंत्री मोदी को फेंकू, लाखों के सूट-बूट पहनने वाला, नौटंकीबाज और न जाने क्या क्या कहा जाता हैं।
लेकिन एक मामला ऐसा सामने आया है जिससे मोदी के परिजनों की  सादगी का पता चलता हैं। यह सादगी दुनिया के सामने लाने में मोदी का रत्ती भर भी योगदान नहीं है।
मीडिया में अपनी छवि बनाने के लिए मोदी चाहे जो हथकंडे अपनाते हो। लेकिन दिल्ली के लुटेरों के कारण मोदी के परिजनों की सादगी का यह मामला इत्तफाक से सामने आया है।

मोदी की भतीजी लुटी -

12 अक्टूबर की सुबह सिविल लाइंस इलाके में एक महिला से स्कूटी सवार दो लुटेरों ने पर्स लूट लिया। पर्स में नकदी और और 2 मोबाइल फ़ोन आदि था।
दमयंती बेन नामक इस महिला ने वारदात की सूचना पुलिस को दी और बताया कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भतीजी  हैं। दमयंती नरेन्द्र मोदी के छोटे भाई प्रह्लाद मोदी की बेटी हैं। यह सुनते ही पुलिस अफसरों में हड़कंप मच गया। पुलिस ने चौबीस घंटे में ही लुटेरों को गिरफ्तार कर लूटा गया सामान भी बरामद कर लिया।
दमयंती बेन अपने परिजनों के साथ सुबह ही अमृतसर से आई थी पुरानी दिल्ली स्टेशन से वह गुजराती समाज भवन ऑटो रिक्शा में पहुची। गुजराती समाज भवन के बाहर ही लुटेरों ने उनका पर्स लूट लिया। दमयंती बेन ने बताया कि वह पहली बार दिल्ली आई है।
प्रधानमंत्री की भतीजी के साथ लूट हुई तो मामला सुर्खियों में आना ही था।

सादगी का उदाहरण -

इस मामले के कारण ही यह बात सामने आई कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिजन आम आदमी की तरह ऑटो में सवार थे। 
आज़ के माहौल में विधायक, सांसद, मंत्री के परिजन  ऑटो में शायद ही सफर करते हैं।‌‌‌‌ ऐसे राजनेता भी हैं जो हेलिकॉप्टर, चार्टर्ड विमान का टैक्सी की तरह इस्तेमाल करते हैं।

ऐसे में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिजनों द्वारा ऑटो में सफर करना समाज के सामने अच्छा उदाहरण है। इससे लोगों में भी अच्छा संदेश जाता हैं। राजनेताओं और नौकरशाहों को भी इससे सीख लेनी चाहिए।
सच्चाई यह है कि अगर मोदी के परिजन चाहते तो दिल्ली में उनको वीवीआईपी आवास और सत्कार मिलता। वह गाड़ियों के काफिले में चल सकते थे। 

ऑटो में सफर करना और गुजराती समाज भवन में ठहरने से पता चलता हैं कि  परिजन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री होने का मामूली-सा लाभ भी नहीं लेना चाहते थे।

दूसरी ओर आज समाज में यह खूब देखा जा सकता हैं कि राजनेता और उनके परिजन ही नहीं उनके दूर के रिश्तेदार, जानकर आदि भी पद का रौब रुतबा दिखाने और उसका लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।

दमयंती बेन ने यह भी बताया कि वह दिल्ली पहली बार आई है। दूसरी ओर ऐसे नेता भी है जो दिल्ली में आने के बाद न केवल अपने परिजनों, रिश्तेदारों बल्कि अन्य जानकारों तक को भी यहीं बुला लेते हैं। ऐसे नेता नियमों को ताक पर रख कर अपने लोगों के लिए सरकारी आवास तक आवंटित करा लेते हैं। कुछ समय पहले यह उजागर हुआ था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोती लाल वोरा ने अपने परिजनों, अतिथियों आदि के लिए 9 बंगले/फ्लैट आवंटित करा रखे थे।

प्रधानमंत्री कानून व्यवस्था पर भी ध्यान दें--

भतीजी के लुट जाने से लगता है कि शायद अब प्रधानमंत्री मोदी  दिल्ली की बिगड़ती कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की ओर ध्यान दे। 

दिल्ली की महिलाओं को लुटेरों के जिस कहर का सामना करना पड़ रहा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भतीजी ने खुद उसका अनुभव किया है।
प्रधानमंत्री को शायद अब  उन महिलाओं के दर्द का भी अहसास हो  जो लुटेरों का शिकार हुई  है। इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जिनकी पुलिस ने रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की थी।

पुलिस बिना भेदभाव ईमानदारी से करें कर्तव्य पालन --

 दिल्ली पुलिस के उन एसएचओ और आईपीएस अफसरों को भी इस मामले से सीख लेनी चाहिए जो सरकारी गाड़ियों का इस्तेमाल अपने निजी कार्यों  बच्चों को स्कूल भेजने, पत्नी को शॉपिंग, रिश्तेदारों को भी एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन से लाने पहुंचाने आदि कामों के लिए करते हैं। 

पुलिस को  सिर्फ खास लोगों के साथ हुई लूट के मामले सुलझाने के बजाए आम आदमी के साथ हुई लूट के मामले सुलझाने में भी इतनी ही तत्परता और ईमानदारी से काम करना चाहिए। जितनी मुस्तैदी प्रधानमंत्री की भतीजी के मामले में दिखाई।









   

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