Saturday 25 December 2021

ढाई लाख से ज्यादा गाड़ियां चोरी,बरामद सिर्फ़ 29 हजार। चोरों को पकड़ने में पुलिस फिसड्डी।

ढाई लाख से ज्यादा गाड़ियां चोरी।
बरामद सिर्फ़ 29 हजार।



इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस चोरी हुए वाहनों को बरामद करने के मामलोंं में लगातार फिसड्डी साबित हो रही है।
पुलिस ने इस साल भी चोरी हुए सिर्फ आठ फीसदी कार /चार पहिया और तेरह फीसदी दो पहिया वाहन ही बरामद किए हैं। 
लोकसभा में सांसद ए.के.पी.चिनराज के सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि इस साल जनवरी से तीस नवंबर तक कार(चार पहिया वाहन) चोरी के कुल 6161मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 495 (8.03फीसदी) कार/चार पहिया वाहन पुलिस ने बरामद किए हैं। इस अवधि मे दोपहिया वाहन (बाइक/स्कूटर) चोरी के कुल 25078 मामले दर्ज किए गए हैं। पुलिस ने 3329 (13.27 फीसदी) दोपहिया वाहन ही बरामद किए हैं।
सिर्फ़ 29 हजार वाहन बरामद।-
साल 2014 से तीस नवंबर 2021 तक कार /चार पहिया वाहन चोरी के 60534 और दो पहिया वाहन चोरी के 207212 मामले दर्ज किए गए। इनमें से पुलिस सिर्फ़ 4207 कार/चार पहिया और 25237 दोपहिया वाहन ही बरामद कर पाई है। इस तरह सात साल और 11 महीने में दिल्ली में कुल 267746 वाहन चोरी हुए। जिसमें से पुलिस ने सिर्फ़ 29444 वाहन ही बरामद किए हैं। इस अवधि में पुलिस द्वारा कार बरामद करने की दर चार से आठ फीसदी के बीच ही रही। दोपहिया वाहन बरामद करने की दर आठ से साढे़ तेरह फीसदी के बीच ही रही।
मोबाइल फोन लुटेरों का आतंक-
दिल्ली वाले बेखौफ मोबाइल फोन लुटेरों/ झपटमारों से त्रस्त है। इस साल जनवरी से तीस नवंबर 2021 तक मोबाइल फोन झपटमारी के 6111 मामले पुलिस ने दर्ज किए हैं। पुलिस ने 1613 मामलों में मोबाइल फोन बरामद किए हैं। 
साल 2014 से साल 2021 (नवंबर तक) मोबाइल फोन की झपटमारी के कुल 36369 मामले दर्ज किए गए। पुलिस कुल 9874 मामलों में मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है।
जेबतराशी-
इस साल जनवरी से तीस नवंबर तक जेब कटने
के 2760 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 880 मामलों को पुलिस ने सुलझाने का दावा किया है। साल 2014 से साल 2021 (नवंबर तक) जेब कटने के कुल 59958 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 13198 मामलों को ही पुलिस ने सुलझाया है।

आईपीएस की भूमिका पर सवालिया निशान-
पुलिस द्वारा बरामद मोबाइल फोन और वाहनों के आंकड़ों से पुलिस की कार्यप्रणाली और अफसरों की काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लूटे गए मोबाइल फोन और चोरी गए वाहन को बरामद करने के लिए पुलिस बिल्कुल भी गंभीर कोशिश नहीं करती। 
आलम तो यह है कि जब से चोरी की ऑनलाइन ई-एफआईआर दर्ज होने लगी है चोरी की सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर जाने से भी परहेज करती है।
आईपीएस अफसर भी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते है कि वाहन मालिक को वाहन के बीमा की रकम तो मिल ही जाती है।
आईपीएस अफसरों के ऐसे कुतर्क से उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस का मूल काम अपराधियों को पकड़ना होता है। लेकिन पुलिस अपना मूल काम ही नहीं करती। इसीलिए लुटेरे और वाहन चोर बेखौफ हो कर अपराध कर रहे है।
आंकड़ों की बाजीगरी बंद हो-
अपराध को कम दिखाने के लिए मामलों को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा जारी है। 
सच्चाई यह है कि अपराध के सभी मामलों को सही तरह दर्ज किए जाने से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। 
अभी तो आलम यह है कि लूट, स्नैचिंग, मोबाइल /पर्स चोरी आदि के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं किए जाते। 
सफल अफसर ?-
अपराध को दर्ज न करना एसएचओ से लेकर  कमिश्नर/आईपीएस अफसर तक सभी के अनुकूल है।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर वह खुद को सफल अफसर दिखाते हैं। जबकि अपराध को दर्ज न करके पुलिस एक तरह से अपराधी की मदद करने का गुनाह ही करती है।
अपराध सही दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की  कोई भी योजना सफल हो सकती है। अभी तो आलम यह है कि मान लो कोई लुटेरा पकड़े जाने पर सौ वारदात करना कबूल कर लेता है लेकिन उसमें से दर्ज तो दस ही पाई जाएगी । अगर सभी सौ वारदात दर्ज की जाती तो लुटेरे को उन सभी मामलों में जमानत कराने में ही बहुत समय और पैसा लगाना पड़ता। लुटेरा ज्यादा समय तक जेल में रहता। 
इस तरह अपराध और अपराधी पर काबू किया जा सकता है।
अपराध के सभी मामले दर्ज होंगे तो, तभी एसएचओ,एसीपी और डीसीपी पर अपराधियों को पकड़ने का दबाव बनेगा। 




No comments:

Post a Comment