Monday, 3 October 2011

पुलिस य़ानी नेताओं के लठैत

 पुलिस बनी सत्ता की लठैत

इंद्र वशिष्ठ
रामलीला मैदान में आधी रात को शांतिपूर्ण तरीके से सत्याग्रह  करने वाले लोगों पर पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई किसी भी तरह से सही नहीं ठहराई जा सकती है। इस घटना में घायल हुई राजबाला की 26 सितंबर को अस्पताल में मौत हो गई। पुलिस ने कहा कि राजबाला भगदड में घायल हुई थी। लेकिन इस बयान से पुलिस का अपराध कम नहीं हो जाता। पुलिस के इस बयान को ही अगर सही मान लिया जाए तो सवाल उठता है कि भगदड किस वजह से हुई थी? इसका बिलकुल स्पष्ट उत्तर है और यह जगजाहिर है कि पुलिस के लाठीचार्ज और आंसूगैस के गोले दागने से ही भगदड  हुई थी।
इस तरह पुलिस चाहे जो तर्क दे लेकिन राजबाला की मौत के लिए पुलिस  ही जिम्मेदार है। अपराध के मामले में अपराधी की नीयत( इंटेंशन) यानी इरादा और उसका मकसद देखा जाता है। आधी रात को पुलिस की कार्रवाई से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस ने राजनेताओं के मकसद को पूरा करने के लिए ही गलत नीयत से कार्य किया था। इस तरह पुलिस ने  अपराध किया है। इस तरह की अमानवीय कार्रवाई सरकारें करती रहेगी जब तक फिरंगियों के बनाए कानून और पुलिस व्यवस्था में बदलाव या सुधार  नहीं किया जाएगा। क्योंकि  किसी भी दल की सरकार हो वह पुलिस को अपने लठैतों की तरह रखना चाहती है। ताकि अपने विरोधियों को  डंडे के दम पर कुचल सकें। इसीलिए लोगों का दमन करने और उन पर राज करने के लिए बनाए फिरंगियों के कानून आजादी के बाद भी जारी है।
 सत्ता में चाहे कोई भी दल हो किसी की भी नीयत इन काले कानूनों को बदलने और पुलिस में सुधार करने की नहीं रहीं । इसीलिए धर्मवीर आयोग की पुलिस में सुधार के लिए दी गई रिपोर्ट सालों से धूल खा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्धारा पुलिस में सुधार के लिए दिए गए निर्देशों पर भी  सरकारें पूरी तरह अमल नही कर रही है। किसी भी राजनैतिक दल को पुलिस की ज्यादतियों पर आवाज उठाने की याद सिर्फ उस समय आती है जब वह विपक्ष में होते है। सत्ता में सब उसी कानून और पुलिस के सहारे अपना राज कायम  रखना चाहते है। इसीलिए बेकसूर लोग पुलिस के जुल्म के शिकार होते रहेंगें। इसके लिए जिम्मेदार है नेताओं की फिरंगियों वाली सोच।
 संविधान के अनुसार  तो वे जनप्रतिनिध या जनसेवक है।लेकिन सत्ता मिलते ही वे गिरगिट की तरह रंग बदल कर मालिक बन बैठते है ये सोच ही सभी समस्याओं की जड है। सत्ता के अहंकार या नशे में चूर नेताओं से न्यायपूर्ण और भ्रष्टाचार मुक्त शासन की कल्पना करना बेमानी है। और कहा ही जाता है कि अहंकार सबसे पहले व्यकित के दिमाग पर असर डालता और उसकी  सोचने समझने की शकित खत्म कर देता है इसी लिए सत्ता के मद मे डूबे नेता इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई कराते है। भ्रष्ट अफसरों के बलबूते ही सरकार अमानवीय कार्रवाई पुलिस से करवा पाती है। अफसोसनाक  बात है कि आईएएस या आईपीएस बनने के बाद ज्यादातर अफसरों की सोच भी फिरंगियों वाली हो जाती है। और जनसेवक के पद पर बैठे ये अफसर भी लोगों पर राज करने की मानसिकता में रहते है। मलाईदार पद पाने के लिए भ्रष्ट अफसर ही बेईमान नेताओं की हां में हां मिलाते है और बेकसूर लोगों पर जुल्म ढहाते है। पुलिस कमिश्नर या डीजी बनने के लिए नेताओं के तलुए चाटते है। ऐसे में  बेईमान अफसर अपने आका नेताओं के ही हुक्म का पालन करेगा। उस कसम को वो अफसर बेच खाता है जो उसने सर्विस में शामिल होते समय ली थी।
 बेईमान नौकरशाह हो या पुलिस अफसर जो अपने आका नेता की जितनी सेवा करता है उसका फल उसे रिटायरमेंट के बाद भी मिलता है। रिटायरमेंट के बाद भी उसे गर्वनर या किसी अन्य पद से नवाज दिया जाता है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है तो अफसरों की नियुकित पूरी तरह पारदर्शी और काबलियत के आधार पर हीं होनी चाहिए। नौकरशाह और पुलिस अफसरों को रिटायरमेंट के बाद गर्वनर या अन्य किसी पद पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। वरना बेईमान नेता और अफसर इसी तरह बेकसूर लोगों पर जुल्म करते रहेंगे। लेकिन ये सब होगा कैसे ये सबसे बडा सवाल है इस समय तो सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीद की थोडी बहुत किरण नजर आती है।
रामलीला मैदान में बेकसूर औरतों तक पर जुल्म ढहाने के लिए पुलिस कमिश्नर और गृह सचिव के खिलाफ ऐसी कडी कार्रवाई की जाए ताकि फिर कोई अफसर इस तरह की कार्रवार्इ करने की सोचे भी नही।  अफसरों के खिलाफ जब तक कडी कार्रवाई नहीं होगी वे सरकार के लठैत बने रहेंगें। रामलीला मैदान जैसी पुलिसिया कार्रवाई दोबारा कोई सरकार भी करने  की सोचे भी नही लिए इसके लिए जरुरी है कि  गृह मंत्री के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट  कडी कार्रवाई करें।
कांग्रेस सरकार के अनेक चेहरे ; हरियाणा में कुछ दिन पहले हत्या के  आरोपी पूर्व एमएलए ने अपने हथियारबंद साथियों के दम पर पुलिस और कानून का कई दिनों तक खुल कर मखौल उडाया और पुलिस मूक दर्शक बनी रही। बाद में जुलूस के साथ जाकर उसने अपनी मर्जी से समर्पण किया। राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर गुजरों ने कई दिन तक रेल पटरी और सडकों पर रास्ता रोके रखा। जिसकी वजह से आम लोगों को परेशानी का सामना करना पडा।
मुंबई में राजठाकरे के बदमाशों ने यूपी-बिहार के लोगों को वहां से भगाने के लिए  मारपीट  कर कानून का मजाक उडाया। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की ही सरकारें हैं इन सभी जगहों पर सरकार ने धारा 144 लगा कर कार्रवाई क्यों नहीं की? वहां पर कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए पुलिस एक्शन क्यों नहीं लाजिमी हुआ? जबकि रामलीला मैदान की अमानवीय कार्रवाई के बारे में तो मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून व्यवस्था कायम रहनी चाहिए, इसलिए ये एक्शन लाजिमी था। दूसरी ओर महाराष्ट में ही पुलिस ने बेकसूर किसानों को गोली तक मार  दी। अन्ना हजारे  को दिल्ली पुलिस ने गिरफतार किया । यू पी पुलिस ने भटटा परसौल में किसानों पर अत्याचार किए।इन मामलों से ही स्पष्ट है कि नेता राजनीतिक मकसद से पुलिस का इस्तेमाल जमींदार के लठैतों की तरह करते है।









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