Thursday, 18 September 2014

मेट्रो जेबकतरों के चंगुल में





मेट्रो  जेबकतरों के चंगुल में

इंद्र वशिष्ठ

सावधान दिल्ली मेट्रो में सफर के दौरान अपनी जेब और सामान का पूरा ध्यान रखें और चौकन्ना रहें। मेट्रो में जेबकतरों के कई गिरोह सक्रिय है। जेबकटने के मामलों में जबरदस्त
बढ़ोतरी हो रही है। इस साल सितंबर के शुरू तक ​ही पुलिस ने कुल 1447 मामले दर्ज किए। इनमें से ज्यादातर मामले जेबकटने के है। जेबकतरे पर्स चोरी करने के अलावा मोबाइल और लैपटाप चोरी भी करते ​है। वर्ष 2013 में चोरी के 875 मामले दर्ज ​हुए थे। मेट्रो में बढ रहे चोरी के मामले पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते ​​है। हालांकि पुलिस के अपराध के आंकडे सचाई से कोसों दूर होते ​​है क्योंकि अपराध कम दिखाने के लिए पुलिस जेबकटने के ज्यादातर मामलों को दर्ज नहीं करती है। फिर भी पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामलों से भी यह साफ पता चलता है कि पहले की तुलना में मेट्रो में होने वाले अपराध के मामलों में  बढोतरी हुई है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार जेबकतरों के गिरोह ज्यादा भीड़ भाड़ वाले राजीव चौक,कश्मीरी गेट,चांदनी चौक और चावडी बाजार स्टेशनों पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। पुलिस के अनुसार मेट्रो में बढती भीड जेबकतरो के लिए माहौल मुफीद बना देती है।
मेट्रो में सवार होते समय लोगों द्वारा की जानी वाली धक्का मुक्की भी जेबकतरों को जेबकाटने या सामान चोरी करने का मौका देती है। जेबकाटते या बैग से नकदी आदि चोरी करते हुए अपराधियो के फोटो मेट्रो में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों में कई बार पाए भी गए ​है। इसके बावजूद जेब​कतरों पर पुलिस अंकुश नहीं लगा पा रही है।

मेट्रो के कुल 145 स्टेशन ​है रोजाना लगभग 25 लाख लोग सफर करते ​है। मेट्रो की सुरक्षा सीआइएसएफ और दिल्ली पुलिस के हवाले ​है। मेट्रो में ​होने वाले अपराध की रोकथाम और जांच का जिम्मा दिल्ली पुलिस के पास है। इस कार्य के लिए 200 पुलिसकर्मी/अफसर तैनात है। पुलिस अफसर मेट्रो के लिए इतने पुलिसवालों को पर्याप्त् नहीं मानते। मेट्रो के लिए कम से कम 2000 पुलिसवालों की जरूरत है। तभी अपराध और अपराधियों पर ​कंट्रोल किया जा सकता है। 
पुलिस द्वारा गुम सामान/दस्तावेज की आन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने की सेवा इस साल 27 फरवरी को शुरू की गई। इस सेवा के शुरू होने के दो महीने के अंदर ही मेट्रो में सफर के दौरान सामान गुम होने की लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करवाने का आंकडा पचास हजार के करीब प​हुंच गया था। अब ऐसे में यह शक होना लाजिमी है कि क्या वाकई मेट्रो के मुसाफिरों के सामान इस कदर गु​म ​हो रहे ​​है या फिर असल में ये चोरी के मामले ​है।

Monday, 15 September 2014

Lost Report,-- ​ पांच लाख लोगों के सामान / दस्तावेज गुम हो गए




​ पांच लाख लोगों के सामान या दस्तावेज गुम हो गए,  आॅन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट

इंद्र वशिष्ठ
गुम हो गए दस्तावेज या सामान की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए थाने के चक्कर काटने के दिन गए। अब आॅन लाइन पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है। इसके लिए आप दिल्ली पुलिस की वेबासाइट www.delhipolice.nic.in पर जाए। वेबसाइट पर लॉस्ट रिपोर्ट के लिंक पर जाकर अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकते है। ध्यान रहे यह केवल लॉस्ट रिपोर्ट होगी और इसमें पुलिस आपके सामान को खोजने के लिए कोई जांच आदि नहीं करेंगी। यह भी ध्यान रहे कि अगर आपका सामान दिल्ली में गुम हुआ है तभी यह रिपोर्ट दर्ज करा सकते है। सावधान अगर आपकी रिपोर्ट झूठी पाई गई तो आपके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर आपको एक बॉक्स दिखाई देगा जिसमें उपर लॉस्ट रिपोर्ट लिखा होगा। बांई ओर री—ट्रीव,नीचे एफएक्यू और दांई ओर रजिस्टर लिखा होगा। रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए रजिस्टर पर क्लिक करना होगा। इसके बाद आपके सामने एक पेज ओपन हो जाएगा। इसमें शिकायतकर्ता को अपना नाम,पता,मोबाइल नंबर,ई मेल आई डी,सामान गुम होने का स्थान,तारीख और समय अगर याद है तो और सामान की डिटेल देनी होगी। इसके बाद दिए गए कोड नंबर को देख कर उसे लिखकर सबमिट करना होगा। सबमिट करते ही आपके द्वारा दी गई ईमल पर लॉस्ट रिपोर्ट की कॉपी सैंड कर दी जाएगी। उसमें आपको एक नंबर भी दिया जाएगा। इसकी आप कॉपी ले सकते है। बस हो गई रिपोर्ट दर्ज।
(*)स्टार का मतलब—पेज के जिन—जिन बॉक्स की राइट साइड में स्टार दिखाई देगा। उस बॉक्स में मांगी गई जानकारी देना जरूरी होगा। अगर उसे खाली छोड़ दिया जो आपकी रिपोर्ट सबमिट नहीं हो पाएगी।
री ट्रीव— अगर आप किसी अफसर या किसी अन्य के सामने अपनी लॉस्ट रिपोर्ट की
विश्वसनीयता को चेक कराना चाहते है तो री—ट्रीव वाले आॅप्शन पर क्लिक करे। वहां पर दिए गए लॉस्ट रिपोर्ट नंबर और उस ई मेल आई डी को डालना होगा जो रिपोर्ट दर्ज कराते समय दिया था। इसके बाद सर्च करते ही आपके सामने आपकी लॉस्ट रिपोर्ट होगी।
मोबाइल एप से— अगर आपका मोबाइल फोन विंडो और एंड्रॉयड है तो आप उस पर भी गूगल प्ले स्टोर पर दिल्ली पुलिस लॉस्ट रिपोर्ट नाम की इस एप को सर्च कर डाउनलोड कर सकते है।
अगर आपको कोई संदेह है तो एफएक्यू पर क्लिक कर सकते है। यहां से भी परेशानी दूर नहीं होती तो आप पुलिस के हेल्प लाइन नंबर 23237006 पर संपर्क कर सकते है।
 27 फरवरी 2014 से दिल्ली पुलिस ने लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज कराने की यह मोबाइल और वेब एप्लीकेशन शुरू की थी। 16 सितंबर 2014 तक चार लाख 76 हजार 777 लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज ​​की गई। इनमें से चार लाख 54 हजार 218 लोगों ने वेबसाइट पर और 22 हजार 559 लोगों ने मोबाइल फोन से अपने गुम हुए सामान या दस्तावेज की लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज कराई।

Saturday, 1 March 2014

देश भर में अवैध बंदूकों का बोलबाला


अवैध बंदूक  बनाने में बिहार बना पाकिस्तान, मध्य प्रदेश भी पीछे नहीं

 इंद्र  वशिष्ठ,
 देश भर में अपराध में अवैध पिस्तौल का इस्तेमाल बढ़ रहा  है। दिल्ली और एनसीआर में भी पिछले 3-4 सालों में  हत्या और लूट की वारदात में देसी पिस्तौल के इस्तेमाल में जबरदस्त इजाफा हुआ है। उम्दा किस्म के देसी पिस्तौल का आसानी से मिल जाना इसका मुख्य कारण है।
मुंगेर गढ़- अपराध में अवैध पिस्तौलों के बढ़़ते इस्तेमाल को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने एक स्टडी की, जिसमें पता चला कि उम्दा किस्म के ये देसी पिस्तौल बिहार के मुंगेर में बनाए जाते है। क्वालिटी के मामले में ये हथियार भारतीय आयुध फैक्टरी में बने हथियार से किसी भी तरह कम नहीं है। मुंगेर में बनी पिस्तौल से एक बार में 7-8 गोलियां तक आसानी से चलाई जा सकती है। इसलिए इन  पिस्तौलों की  अपराधियों में जबरदस्त मांग है। तफ्तीश के दौरान पता चला कि मुंगेर में छोटी-छोटी फैक्टरियों में हथियार बनाए जाते है और संगठित गिरोह द्वारा पूरे देश में सप्लाई किए जाते है। यह भी पता चला कि अवैध हथियार मेरठ,आगरा और इलाहाबाद के हथियार तस्करों द्वारा सप्लाई किए जाते है। हथियार बिहार से लाकर दिल्ली और आसपास के राज्यों में सप्लाई किए जाते है। हथियारों की तस्करी में महिलाओं का भी इस्तेमाल किया जाता है। उन पर शक न हो इसलिए वह महिलाओं के साथ परिवार की तरह यात्रा करते है।

आतंकियों और नक्सलियों को भी सप्लाई-पुलिस ने पाया कि हथियार तस्कर मध्य प्रदेश,उड़ीसा,बिहार और झारखंड के नक्सलियों को भी हथियार सप्लाई करते है। 19-9-2010 को जामा मस्जिद के बाहर विदेशियों पर गोलियां चलाने और पुणे बम धमाकों के आरोप में पकड़े गए इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों से भी मुंगेर की बनी 4 पिस्तौल बरामद हई थी।
मुंगेर बना दर्रा----पाकिस्तान में उत्तर-पश्चिम फरंटियर इलाके में दर्रा- नामक इलाके में  अवैध हथियार बनाना बड़े कुटीर उद्योग की तरह है। उसी तरह भारत में मुंगेर उम्दा किस्म के देसी पिस्तौल/रिवाल्वर बनाने के बड़े  स्त्रोत के रूप में उभरा है। पुलिस के अनुसार सरकार ने मुंगेर में कुछ साल पहले बंदूक बनाने के लिए 32 फैक्टरियों को लाइसेंस दिए थे। इनमें काम करने वाले या रिटायर हुए कुछ लोग मोटा पैसा कमाने के लिए अवैध हथियार बनाने लगे। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर, कैराना में भी देसी तमंचे बनाए जाते है। हरियाणा के मेवात में भी हथियार बनाए जाने की भी जानकारी पुलिस को मिली है।
मध्य प्रदेश भी गढ़- मुंगेर के बाद अवैध हथियार बनाने में मध्य प्रदेश का नंबर आता है। पुलिस ने स्टडी में पाया कि मध्य प्रदेश के खरगौन, धार और बरवानी में भी अवैध पिस्तौले बनाई जाती है। ये पिस्तौले  दिल्ली समेत कई राज्यों के अपराधियों को सप्लाई किए जाते है।  मध्यप्रदेश के इन इलाकों से लाए गए अवैध हथियार इस साल भी दिल्ली पुलिस ने पकड़े है। 12 जनवरी 2014 को स्पेशल सेल ने खरगौन के दिनेश और सुनील को १६ अवैध पिस्तौलों के साथ गिरफ्तार किया। इन दोनों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि ये दोनों दिल्ली ,एनसीआर के अलावा मुजफ्फरनगर ,आगरा, अलीगढ़ और हाथरस में हर पखवाड़े हथियारों की एक खेप  सप्लाई करते रहे  है। 5 फरवरी को स्पेशल सेल ने मध्यप्रदेश के बरवानी निवासी मोह बार्ई उर्फ मुन्नी को उस समय पकड़ा जब वह मथुरा निवासी शम्सु को 9 पिस्तौलें सौंप रही थी। मुन्नी ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि गांव में अवैध पिस्तौल बनाने वाले व्यकित के लिए वह हथियार सप्लाई करती है। हथियार की एक खेप पहुंचाने की एवज में उसे 2500 रूपए मिलते है। मुन्नी अवैध हथियारों के साथ पहले बीना जिला सागर और सेंधवा में भी पकड़ी जा चुकी है। 19 फरवरी को स्पेशल सेल ने ही हाथरस के संजू को 10 पिस्तौलों के साथ पकड़ा। संजू ने पुलिस को बताया कि खरगौन में वीरपाल सिंह अवैध पिस्तौलें बनाता है और वहीं मुख्य सप्लायर भी है। संजू खरगौन से हथियार लाकर हाथरस के ही हमबीर के माध्यम से देश के ज्यादातर हिस्से में सप्लाई करता  है।
देसी को विदेशी बताते है।-मोटे मुनाफे के लिए इन पिस्तौलों को विदेशी बता कर बेचने के लिए इन पर मेड इन इंग्लैंड और यूएसए भी लिख दिया जाता है। मुंगेर से पिस्तौल 10-12 हजार रुपए में लाकर हथियार तस्कर 25-30 हजार रुपए में अपराधियों को बेचते है।
99 मुंगेरी पिस्तौल - दिल्ली पुलिस ने पिछले साल जुलाई  में मुंगेर से लाई गई 99 पिस्तौल और 198 मैगजीन  बरामद की। एम्बेसडर कार की हेडलाइटों के पीछे बनाए गए विशेष स्थान पर ये पिस्तौले छिपा कर लाई गई थी।  इस मामले में गिरफ्तार किए गए  मुंगेर निवासी निरंजन मिश्र और फिरोज आलम ने  पुलिस को बताया कि वह देश के ज्यादातर हिस्से में हथियार सप्लाई करते है। इन्होंने ने यह भी बताया कि वह हर महीने हथियारों की कम से कम एक खेप  दिल्ली और आसपास के राज्यों में सप्लाई करते है।  उन्होंने मुजफ्फर नगर के हाजी उर्फ मुल्लाजी को 85 पिस्तौले सप्लाई की थी। बरामद पिस्तौल पर ‘आर्मी सप्लाई केवल’ और ‘मेड इन यूएसए ’ लिखा हुआ है। वर्ष 2013में 196 पिस्तौलें दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने बरामद की थी

Saturday, 22 February 2014

कांग्रेस MLA जय किशन ने विधवा को ठगा।

      (सांध्य टाइम्स,  टाइम्स आफ इंडिया ग्रुप 3-8-1996)

Friday, 21 February 2014

कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने 1984 दंगों के हत्यारे को रिहा करने की सिफ़ारिश की।



कांग्रेस का असली चेहरा ,1984 के दंगों के हत्यारे को रिहा करने की सिफारिश की थी कांग्रेस ने

इंद्र वशिष्ठ,

राजीव गांधी के हत्यारों को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा रिहा करने के फै सले की कांग्रेस द्वारा आलोचना करना उसके दोगलेपन की पोल खोलने वाला है क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस की शीला सरकार  खुद 1984 के दंगों में हत्या केमामले में उम्रकैद काट रहे एक अपराधी को रिहा करने की सिफारिश कर चुकी है। लेकिन दिल्ली में सिख विरोधी दंगों के मामले में उम्र-कैद की सजा काट रहे इस अपराधी की समय-पूर्व रिहाई को दिल्ली के उपराज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी। दिल्ली सरकार ने समय-पूर्व रिहाई की सिफारिश की थी।
पंजाब की सांसद हरसिमरत कौर बादल द्वारा वर्ष 2012 में इस बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में लोकसभा में यह जानकारी दी गई।
गृह राज्यमंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने बताया कि 1984 के दंगों में कल्याण पुरी में हुई हत्या के मामले में दोषी  किशोरी उम्र 59 साल आजीवन कारावास में से 15 साल 4 महीने की कठोर कारावास की वास्तविक सजा पहले ही काट चुका है। इस आधार पर दिल्ली सरकार द्वारा गठित किए गए सेंटेंस रिव्यू बोर्ड ने 29-12-2011 को हुई एक बैठक में सीआरपीसी की धारा 432 के अंतर्गत  किशोरी की समय-पूर्व रिहाई की सिफारिश की  थी । किशोरी की  समय-पूर्व रिहाई की एसआरबी द्वारा सिफारिश करते समय पुलिस और मुख्य प्रोबेशन अफसर की अनुकूल रिपोर्टो पर विचार किया गया था। तथाति इस मामले पर सक्षम प्राधिकारी अर्थात दिल्ली के उप-राज्यपाल द्वारा सहमति प्रदान नहीं की गई ।

Monday, 17 February 2014

पंडित नेहरु के दादा थे दिल्ली के आखिरी कोतवाल

गंगाधर


पंडित नेहरु के दादा थे दिल्ली के आखिरी कोतवाल,  पुलिस का इतिहास,  दिल्ली के कोतवाल

इंद्र वशिष्ठ, 
दिल्ली में पुलिस व्यवस्था की शुरूआत करीब आठ सौ साल पुरानी मानी जाती है। तब दिल्ली की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी शहर कोतवाल पर हुआ करती थी। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा गंगाधर दिल्ली के आखिरी कोतवाल थे। उस समय के शहर कोतवाल से आज देश की सबसे ज्यादा साधन सम्पन्न  दिल्ली पुलिस ने लंबी दूरी तय की है। 

दिल्ली का पहला कोतवाल मलिक उल उमरा फखरूद्दीन थे।वह सन् 1237 ईसवी में 40 की उम्र में कोतवाल बने। कोतवाल के साथ उन्हें नायब ए गिब्त(रीजेंट की गैरहाजिरी में )भी नियुक्त किया गया था। अपनी ईमानदारी के कारण ही वह तीन सुलतानों के राज-काल में लंबे अर्से तक इस पद पर रहे।
आज भले ही दिल्ली पुलिस की छवि दागदार है,पहले के कोतवालों की ईमानदारी के अनेक किस्से इतिहास में दर्ज है। एक बार तुर्की के कुछ अमीर उमराओं की संपत्ति सुलतान बलवन के आदेश से जब्त कर ली गई। इन लोगों ने सुलतान के आदेश को फेरने के लिए कोतवाल फखरूद्दीन को रिश्वत की पेशकश की। कोतवाल ने कहा ‘यदि मैं रिश्वत ले लूंगा तो मेरी बात का कोई वजन नहीं रह जाएगा࠿’। कोतवाल का पुलिस मुख्यालय उन दिनों किला राय पिथौरा यानी आज की महरौली में था। इतिहास में इसके बाद कोतवाल मलिक अलाउल मल्क का नाम दर्ज है। जिसे सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में कोतवाल तैनात किया था। सुलतान खिलजी ने एक बार मलिक के बारे में कहा था कि इनको कोतवाल नियुक्त कर रहा हूं जबकि यह है वजीर (प्रधानमंत्री ) पद के योज्य है। इतिहास में जिक्र है कि  एक बार जंग को जाते समय सुलतान खिलजी कोतवाल मलिक को शहर की चाबी सौंप गए थे। सुलतान ने कोतवाल से कहा था कि जंग में जीतने वाले विजेता को वह यह चाबी सौंप दें और इसी तरह वफादारी से उसके साथ भी काम करें।
मुगल बादशाह शाहजहां ने 1648 में दिल्ली में शाहजहांनाबाद बसाने के साथ ही गजनफर खान नाम के व्यक्ति को नए शहर का कोतवाल बनाया था। गजनफर खान को बाद में कोतवाल के साथ ही  मीर-ए-आतिश (चीफ ऑफ आर्टिलरी भी बना दिया गया।

1857 की क्रांति के बाद फिंरगियों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उसी के साथ दिल्ली में कोतवाल व्यवस्था भी खत्म हो गई। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा और पंडित मोती लाल नेहरू के पिता पंडित गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे।
आइने अकबरी के अनुसार जब शाही दरबार लगा होता था तब कोतवाल को भी दरबार में मौजूद रहना पड़ता था। वह रोजाना शहर की गतिविधियों की सूचनाएं चौकीदारों और अपने मुखबिरों के जरिए प्राप्त करता था।
1857 में अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया।  उस समय दिल्ली पंजाब का हिस्सा हुआ करती थी। 1912 में राजधानी बनने के बाद तक भी दिल्ली में पुलिस व्यवस्था पंजाब पुलिस की देखरेख में चलती रही। उसी समय पहला मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया था। जिसे पुलिस महानिरीक्षक यानी आईजी के अधिकार  दिए गए थे उसका मुख्यालय अंबाला में था। 1912 के गजट के अनुसार उस समय दिल्ली की पुलिस का नियत्रंण एक डीआईजी रैंक के अधिकारी के हाथ में होता था। दिल्ली में पुलिस की कमान एक सुपरिटेंडेंट(एसपी)और डिप्टीएसपी के हाथों में थी। उस समय दिल्ली शहर की सुरक्षा के लिए दो इंस्पेक्टर,27सब-इंस्पेक्टर,110 हवलदार,985 पैदल सिपाही और 28 घुडसवार थे। देहात के इलाके के लिए दो इंस्पेक्टर थे। उनका मुख्यालय सोनीपत और बल्लभगढ़ में था। उस समय तीन तहसील-सोनीपत,दिल्ली और बल्लभगढ़ के अंतर्गत 10 थाने आते थे। दिल्ली शहर में सिर्फ तीन थाने कोतवाली,सब्जी मंडी और पहाड़ गंज थे। सिविल लाइन में पुलिस बैरक थी। दिल्ली पुलिस का 1946 में पुनर्गठन किया और पुलिसवालों की संख्या दोगुनी कर दी गई। 1948 में दिल्ली में पहला पुलिस महानिरीक्षक डी डब्लू मेहरा को नियुक्त किया गया। उनकी नियुक्ति 16 फरवरी को की गई थी इसलिए 16 फरवरी को दिल्ली पुलिस का स्थापना दिवस मनाया जाता है। 1जुलाई 1978 तक दिल्ली में आईजी प्रणाली के अंतर्गत पुलिस व्यवस्था चलती रही। इसके बाद पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू कर दी गई। आज दिल्ली पुलिस दुनिया के महानगरों के सबसे बड़े पुलिस बलों में एक है। इस समय दिल्ली पुलिस बल की संख्या लगभग 80000 है और थानों की संख्या 184 है।

(Press Club of India की पत्रिका The Scribes World)




Wednesday, 5 February 2014

दिल्ली पुलिस का नारा नया पर अंदाज पुराना

दिल्ली पुलिस का नारा नया पर अंदाज पुराना
 इंद्र वशिष्ठ,
पहले आपके लिए, आपके साथ, सदैव और फिर सिटीजन फर्स्ट   का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस ने अब अपना नया नारा शांति, सेवा और न्याय बनाया है लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस के ये दावे नारो तक ही सीमित है। हकीकत में पुलिस के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। पुलिस सेवा आम आदमी की नहीं नेताओं की कर रही है इसलिए आम आदमी को न्याय और शांति नहीं मिल  रही है।  नेता चाहे आम आदमी पार्टी का हो या भाजपा और कांग्रेस क ा पुलिस की कोशिश उनको बचाने की ही रहती है। ताजा उदाहरण दिल्ली सरकार के मंत्री सोमनाथ भारती द्वारा विदेशी महिलाओं से  बदसलूकी  का है। भारती ने आरोप लगाया कि अपराधिक गतिविधियों में शामिल महिलाओं के खिलाफ पुलिस ने उनके कहने के बावजूद कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई न करने वाले एसीपी और एसएचओ को सस्पेंड करने की मांग को  लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरना भी दिया था।
पुलिस की भूमिका-इस मामले में पुलिस की कार्रवाई से ही पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस ने महिला की शिकायत पर बाद में भारती आदि के खिलाफ केस दर्ज कर लिया । इससे यह सवाल उठता है कि बाद में भारती के खिलाफ केस दर्ज करने वाली पुलिस ने उसी समय भारती आदि को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जब वह पुलिस के सामने ही महिलाओं से दुव्र्यवहार कर रहे थे। अगर भारती आदि अपराध कर रहे थे तो पुलिस ने तभी उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। ऐसे में तो यही लगता है कि भारती आदि के खिलाफ पहले कार्रवाई न करना और बाद में कार्रवाई कहीं राजनीति से प्रेरित तो नहीं है? पुलिस की बात को ही अगर सही माने तो पुलिस ने अपने सामने ही महिलाओं की बेइज्जती क्यों होने दी? अगर पुलिस की बात सही है तो एसीपी समेत उन अफसरों के  खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जिनके सामने भारती आदि ने महिलाओ से बदसलूकी की। पुलिस महिलाओं की सुरक्षा करने का दावा करती है लेकिन पुलिस अफसरों की मौजूदगी में विदेशी महिलाओं से बदसलूकी ने पुलिस के इस दावे की पोल खोल दी है।
दूसरा उदाहरण इस मामले में अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा धारा 144  का उल्लंघन कर धरना देने का  है केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा कानून का उल्लघन करना जगजाहिर था इसके बावजूद पुलिस ने इस सिलसिले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
 नेताओं के लिए मीडिया की सुविधा- आम शिकायतकत्र्ता  मुख्यालय में पुलिस के खिलाफ शिकायत करने के बाद वहां मौजृद मीडिया के सामने जब अपना मामला उठाना चाहता है तो पुलिस उसे ऐसा करने से रोक देती है। आम शिकायतकत्र्ता से पुलिस कहती है कि वह अपनी समस्या पर मीडिया से मुख्यालस के गेट के बाहर बात कर सकते है मुख्यालय परिसर में नहीं। जबकि पिछले दिनों पुलिस कमिश्नर से  मिलने के बाद विजय गोयल ने पुलिस मुख्यालय के लॉन में मीडिया को संबोधित किया। पुलिस मुख्यालय  का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाजी के लिए किया गया। इन मामलों से पुलिस के दोहरे चरित्र का पता चलता है।

Saturday, 25 January 2014

दिल्ली पुलिस: नेताओं के लिए, नेताओं के साथ,सदैव

दिल्ली पुलिस: नेताओं के लिए, नेताओं के साथ,सदैव 
इंद्र वशिष्ठ,
आपके लिए, आपके साथ, सदैव का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस ने अपना नया नारा शांति, सेवा और न्याय बनाया है लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस सेवा आम आदमी की नहीं नेताओं की कर रही है इसलिए आम आदमी को न्याय और शांति नहीं मिल  रही है।
पीएचक्यू या पार्टी मुख्यालय- पुलिस आम आदमी के नहीं नेताओं के साथ है। इसका अंदाजा इस मामले से  लगाया जा सकता है जब दिल्ली पुलिस मुख्यालय भाजपा का दफ्तर बन गया। मामला गुरु वार 23 जनवरी क़ा है । भाजपा के दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष विजय गोयल अपने सहयोगी नेताओं के साथ पुलिस मुख्यालय में एक शिकायतकर्ता के रूप में पुलिस कमिश्नर भीम सेन बस्सी से मिलने पहुंचे। भाजपा नेता वहां पर अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री सोमनाथ भारती के खिलाफ पुलिस द्वारा कार्रवाई न किए जाने की शिकायत करने गए। पुलिस कमिश्नर से  मिलने के बाद विजय गोयल ने पुलिस मुख्यालय के लॉन में मीडिया को संबोधित किया। आधा घंटे से ज्यादा समय तक गोयल आदि ने पुलिस मुख्यालय के लॉन का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाजी के लिए इस तरह से किया जैसे कि वह भाजपा के मुख्यालय में करते हैं। भाजपा द्वारा पुलिस मुख्यालय का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाजी के लिए करने से पुलिस के दोहरे चरित्र का पता चलता है।
राजपथ और जनपथ- कमिश्नर से मिलने आने वाले वीआईपी शिकायतकत्र्ता पुलिस मुख्यालय में मुख्य द्वार यानी राजपथ से जाते है जबकि आम आदमी को इमारत में प्रवेश दूसरे द्वार यानी जनपथ से मिलता है। पुलिस का भेदभाव यहीं खत्म नहीं हो जाता है। आम आदमी को पुलिस कमिश्नर के दफ्तर के सामने लिफ्ट की गैलरी में रखी लोहे की कु र्सियों पर बैठाया जाता है। जबकि नेता या अन्य रसूखदार शिकायतकत्र्ता को न केवल  एसी कमरे में बिठाया जाता बल्कि चाय-पानी भी पेश की जाती है।
पुलिस मुख्यालय में नेताओं के लिए मीडिया की सुविधा- आम शिकायतकत्र्ता  मुख्यालय में पुलिस के खिलाफ शिकायत करने के बाद वहां मौजृद मीडिया के सामने जब अपना मामला उठाना चाहता है तो पुलिस उसे ऐसा करने से रोक देती है। आम शिकायतकत्र्ता से पुलिस कहती है कि वह अपनी समस्या पर मीडिया से मुख्यालय के गेट के बाहर बात कर सकते है मुख्यालय परिसर में नहीं। जबकि नेताओं के लिए पुलिस यह सुविधा उपलब्ध करा देती है।

Tuesday, 21 January 2014

दिल्ली का हो अपना कोतवाल

दिल्ली का हो अपना कोतवाल
इंद्र वशिष्ठ
अरविंद केजरीवाल सरकार के मंत्रियों द्वारा पुलिसवालों को कार्रवाई करने का आदेश देने का मामला आजकल विवादों  में  है। मंत्रियों द्वारा खुुद मौके पर जाने और  पुलिस को आदेश देने की आलोचना की जा रही है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है। दिल्ली में चाहे किसी भी दल की सरकार हो सब पुलिस को अपने अधीन चाहते है। केंद्र पुलिस को दिल्ली सरकार के हवाले करने को तैयार नहीं है। इसलिए दिल्ली सरकार की सत्ता पर काबिज नेताओं द्वारा  पुलिस पर अपना प्रभाव जमाने और दबाव बनाने कीे कोशिश पहले भी की जाती रही है। ऐसा करने वालों की नीयत पर तब भी सवालिया निशान लगे थे। विडंबना यह है कि पहले खुद ऐसी हरकतें कर चुके लोग या राजनीतिक दल अब केजरीवाल के मंत्रियों की हरकत पर उपेदश दे रहे है। हालांकि सचाई यह है कि दिल्ली के भले के लिए पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन ही होनी चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार और आईपीएस अफसर यह होने नहीं देना चाहते।
थानों के दौरे कैमरा टीमों के साथ-बीजेपी की सुषमा स्वराज जब दिल्ली की मुख्यमंत्री थी, तब वह भी रात को थानों के दौरे करती थी। इन दौरों के प्रचार के लिए वह बाकायदा न्यूज चैनलों को जाती थी। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर  को भी वह दौरों के दौरान अपने साथ थानों में तलब करती थी। सुषमा स्वराज के इन दौरों से उस समय  पुलिस में नाराजगी थी खासकर दौरे के दौरान टीवी टीम साथ ले जाने को लेकर। अब बीजेपी केजरीवाल सरकार के मंत्रियों के पुलिस पर दबाव डालने के  तरीकों की आलोचना कर रही।
किरण बेदी-किसी समय केजरीवाल की सहयोगी रही पूर्व आईपीएस किरण बेदी भी पूर्व उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना को लेकर थानों के औचक निरीक्षण करती थी। तेजेंद्र खन्ना के उपराज्यपाल के पहले कार्यकाल 1997 के दौरान किरण बेदी उपराज्यपाल के साथ तैनात थी। उस समय किरण बेदी ने उपराज्यपाल को साथ लेकर थानों के दौरे करने शुरू कर दिए थे। तब यह माना जाता था कि तत्कालीन पुलिस कमिश्नर को नीचा दिखाने और अपने को सुपर दिखाने के लिए किरण बेदी यह सब कर रही है। किरण बेदी के इस कदम को उस समय पुलिस में पसंद नहीं किया गया था। आज किरण बेदी केजरीवाल को सरकार कैसे चलाई जाए इस पर नसीहत देती है।
शीला दीक्षित-तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पुलिस के बारे में अपनी नाराजगी तीखे शब्दों में कई बार जगजाहिर की थी।