दिल्ली पुलिस का नारा नया पर अंदाज पुराना
इंद्र वशिष्ठ,
पहले आपके लिए, आपके साथ, सदैव और फिर सिटीजन फर्स्ट का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस ने अब अपना नया नारा शांति, सेवा और न्याय बनाया है लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस के ये दावे नारो तक ही सीमित है। हकीकत में पुलिस के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। पुलिस सेवा आम आदमी की नहीं नेताओं की कर रही है इसलिए आम आदमी को न्याय और शांति नहीं मिल रही है। नेता चाहे आम आदमी पार्टी का हो या भाजपा और कांग्रेस क ा पुलिस की कोशिश उनको बचाने की ही रहती है। ताजा उदाहरण दिल्ली सरकार के मंत्री सोमनाथ भारती द्वारा विदेशी महिलाओं से बदसलूकी का है। भारती ने आरोप लगाया कि अपराधिक गतिविधियों में शामिल महिलाओं के खिलाफ पुलिस ने उनके कहने के बावजूद कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई न करने वाले एसीपी और एसएचओ को सस्पेंड करने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरना भी दिया था।
पुलिस की भूमिका-इस मामले में पुलिस की कार्रवाई से ही पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस ने महिला की शिकायत पर बाद में भारती आदि के खिलाफ केस दर्ज कर लिया । इससे यह सवाल उठता है कि बाद में भारती के खिलाफ केस दर्ज करने वाली पुलिस ने उसी समय भारती आदि को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जब वह पुलिस के सामने ही महिलाओं से दुव्र्यवहार कर रहे थे। अगर भारती आदि अपराध कर रहे थे तो पुलिस ने तभी उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। ऐसे में तो यही लगता है कि भारती आदि के खिलाफ पहले कार्रवाई न करना और बाद में कार्रवाई कहीं राजनीति से प्रेरित तो नहीं है? पुलिस की बात को ही अगर सही माने तो पुलिस ने अपने सामने ही महिलाओं की बेइज्जती क्यों होने दी? अगर पुलिस की बात सही है तो एसीपी समेत उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जिनके सामने भारती आदि ने महिलाओ से बदसलूकी की। पुलिस महिलाओं की सुरक्षा करने का दावा करती है लेकिन पुलिस अफसरों की मौजूदगी में विदेशी महिलाओं से बदसलूकी ने पुलिस के इस दावे की पोल खोल दी है।
दूसरा उदाहरण इस मामले में अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा धारा 144 का उल्लंघन कर धरना देने का है केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा कानून का उल्लघन करना जगजाहिर था इसके बावजूद पुलिस ने इस सिलसिले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
नेताओं के लिए मीडिया की सुविधा- आम शिकायतकत्र्ता मुख्यालय में पुलिस के खिलाफ शिकायत करने के बाद वहां मौजृद मीडिया के सामने जब अपना मामला उठाना चाहता है तो पुलिस उसे ऐसा करने से रोक देती है। आम शिकायतकत्र्ता से पुलिस कहती है कि वह अपनी समस्या पर मीडिया से मुख्यालस के गेट के बाहर बात कर सकते है मुख्यालय परिसर में नहीं। जबकि पिछले दिनों पुलिस कमिश्नर से मिलने के बाद विजय गोयल ने पुलिस मुख्यालय के लॉन में मीडिया को संबोधित किया। पुलिस मुख्यालय का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाजी के लिए किया गया। इन मामलों से पुलिस के दोहरे चरित्र का पता चलता है।
इंद्र वशिष्ठ,
पहले आपके लिए, आपके साथ, सदैव और फिर सिटीजन फर्स्ट का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस ने अब अपना नया नारा शांति, सेवा और न्याय बनाया है लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस के ये दावे नारो तक ही सीमित है। हकीकत में पुलिस के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। पुलिस सेवा आम आदमी की नहीं नेताओं की कर रही है इसलिए आम आदमी को न्याय और शांति नहीं मिल रही है। नेता चाहे आम आदमी पार्टी का हो या भाजपा और कांग्रेस क ा पुलिस की कोशिश उनको बचाने की ही रहती है। ताजा उदाहरण दिल्ली सरकार के मंत्री सोमनाथ भारती द्वारा विदेशी महिलाओं से बदसलूकी का है। भारती ने आरोप लगाया कि अपराधिक गतिविधियों में शामिल महिलाओं के खिलाफ पुलिस ने उनके कहने के बावजूद कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई न करने वाले एसीपी और एसएचओ को सस्पेंड करने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरना भी दिया था।
पुलिस की भूमिका-इस मामले में पुलिस की कार्रवाई से ही पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। पुलिस ने महिला की शिकायत पर बाद में भारती आदि के खिलाफ केस दर्ज कर लिया । इससे यह सवाल उठता है कि बाद में भारती के खिलाफ केस दर्ज करने वाली पुलिस ने उसी समय भारती आदि को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जब वह पुलिस के सामने ही महिलाओं से दुव्र्यवहार कर रहे थे। अगर भारती आदि अपराध कर रहे थे तो पुलिस ने तभी उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। ऐसे में तो यही लगता है कि भारती आदि के खिलाफ पहले कार्रवाई न करना और बाद में कार्रवाई कहीं राजनीति से प्रेरित तो नहीं है? पुलिस की बात को ही अगर सही माने तो पुलिस ने अपने सामने ही महिलाओं की बेइज्जती क्यों होने दी? अगर पुलिस की बात सही है तो एसीपी समेत उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जिनके सामने भारती आदि ने महिलाओ से बदसलूकी की। पुलिस महिलाओं की सुरक्षा करने का दावा करती है लेकिन पुलिस अफसरों की मौजूदगी में विदेशी महिलाओं से बदसलूकी ने पुलिस के इस दावे की पोल खोल दी है।
दूसरा उदाहरण इस मामले में अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा धारा 144 का उल्लंघन कर धरना देने का है केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा कानून का उल्लघन करना जगजाहिर था इसके बावजूद पुलिस ने इस सिलसिले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
नेताओं के लिए मीडिया की सुविधा- आम शिकायतकत्र्ता मुख्यालय में पुलिस के खिलाफ शिकायत करने के बाद वहां मौजृद मीडिया के सामने जब अपना मामला उठाना चाहता है तो पुलिस उसे ऐसा करने से रोक देती है। आम शिकायतकत्र्ता से पुलिस कहती है कि वह अपनी समस्या पर मीडिया से मुख्यालस के गेट के बाहर बात कर सकते है मुख्यालय परिसर में नहीं। जबकि पिछले दिनों पुलिस कमिश्नर से मिलने के बाद विजय गोयल ने पुलिस मुख्यालय के लॉन में मीडिया को संबोधित किया। पुलिस मुख्यालय का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाजी के लिए किया गया। इन मामलों से पुलिस के दोहरे चरित्र का पता चलता है।
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