छोटे मामले सुलझानें में पुलिस को तकलीफ होती
है। अपराध के सिर्फ 25
फीसदी मामले सुलझाना बड़ी कामयाबी मानती है सरकार।
इंद्र वशिष्ठ
अपराध के 75 फीसदी से ज्यादा मामलों को दिल्ली पुलिस
सुलझा नहीं पाई है। ऐसे अपराधों की संख्या डेढ़ लाख से भी ज्यादा है।
साल 2016 में आईपीसी के तहत अपराध के 209519 मामले दर्ज हुए थे। पुलिस सिर्फ 56613
मामलों को ही सुलझा पाई है।
देश के गृहमंत्री ने कुल अपराध के सिर्फ 25 फीसदी
मामलों को सुलझाने के लिए पुलिस को संसद
में बधाई तक दे दी। जबकि पुलिस के आंकड़ों से ही पता चलता है कि हत्या हो या
बलात्कार ज्यादातर मामलों में आरोपी जानकार या रिश्तेदार थे। मतलब जघन्य अपराध को
सुलझाने के लिए पुलिस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। गृह मंत्री ने ऐसे मामलों
को सुलझाने के लिए पुलिस को शबाशी दे दी जो कि सुलझे सुलझाए थे।
75 फीसदी से
ज्यादा अपराध के मामलों को सुलझाने में नाकाम पुलिस को फटकार लगाना तो दूर गृह
राज्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि छोटे मामलों को सुलझाने में पुलिस को तकलीफ
होती है।
राज्यसभा में वकील केटीएस तुलसी ने अपराध के 75 फीसदी
से ज्यादा अनसुलझे मामलों पर चिंता प्रकट करते हुए सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया।
तुलसी ने कहा कि तथ्यों से पता चलता है कि दिल्ली में क्रिमनल जस्टिस सिस्टम
पूरी तरह खत्म हो गया है। जघन्य,गैर जघन्य और गैर आईपीसी समेत तीनों
श्रणियों में दर्ज हुए कुल 216920 मामलों में से कुल 154647 मामले अनसुलझे है ये
सभी अनसुलझे मामले संज्ञेय अपराध के है और सभी में तीन साल से ज्यादा की सजा का
प्रावधान है। तुलसी ने कहा कि क्या पुलिस हत्या होने का इंतजार करेगी और तब तक कोई
कार्रवाई नहीं करेगी। इससे पता चलता है कि दिल्ली मे पुलिस की क्या स्थिति है। दिल्ली मे पुलिस की कार्य प्रणाली के लिए केंद्र सरकार सीधे तौर पर
जिम्मेदार है। जब राजधानी का यह हाल है तो देश में किस प्रकार के क्रिमनल जस्टिस
सिस्टम की अपेक्षा कर सकते है। मूल सवालकर्ता सांसद राम कुमार कश्यप ने भी अनसुलझे
मामलों की बहुत ज्यादा संख्या पर चिंता जताई।
छोटे मामलों को सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती
है।---गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि जो गैर गंभीर मामले होते है उनमें
ज्यादातर घरेलू मामले होते है। ऐसे मामलों में समझौता करा दिया जाता है।छोटी-छोटी
चोरियां और मामूली बातों पर झगड़े होते है। ऐसे मामलों को सुलझाने की दर पूरी
दुनिया में कम है। चोरी करने के बाद अपराधी को ट्रेस करने में पुलिस को तकलीफ होती
है। सबसे ज्यादा गाड़ी चोरी के मामले है। छोटी चोरी के आरोपी नहीं मिलते यह बात भी
सही है।
गृह मंत्री
राज नाथ ने कहा कि जघन्य अपराध के 75 फीसदी और गैर जघन्य अपराध के 25 फीसदी से
ज्यादा मामलों को सुलझाने में पुलिस ने कामयाबी हासिल की है। जो छोटी मोटी घटनाएं
हुई है किसी को चोट लग गई या किसी की जेब से कोई कलम निकाल ले तो वह गैर जघन्य में
आ गया।
गैर जघन्य अपराध जिनको सरकार छोटे मामले मानती है-- - स्नैचिंग 9571,हर्ट
1489,सेंधमारी 14307,वाहन चोरी 38644,
घर में चोरी 14721,अन्य चोरी 77563, महिलाओं से छेड़खानी/बदतमीजी 4165, अपहरण 6596,जानलेवा दुर्घटना 1548, सामान्य दुर्घटना के 5827
मामले साल 2016 में दर्ज हुए थे। गैर जघन्य के कुल दर्ज 201281 में से सिर्फ 50423
मामले पुलिस सुलझा पाई है। इन मामलों को सुलझानें में मेहनत लगती और पुलिस की
तफ्तीश की काबिलयत का पता चलता। लेकिन जब मंत्री ही कह रहे है कि पुलिस को ऐसे
मामले सुलझाने में तकलीफ होती है। तो पुलिस क्यों रूचि लेगी ऐसे मामलों को सुलझाने में।
जघन्य अपराध- डकैती 46, हत्या
528, हत्या की कोशिश 646,लूट 4761,दंगा 79, फिरौती के लिए अपहरण 23 और बलात्कार के
2155 मामले साल 2016 में दर्ज हुए थे। जघन्य अपराध के कुल दर्ज 8238 में से 6190
मामले सुलझाए गए।
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के स्पेशल कमिश्नर ताज हसन
के अनुसार वर्ष 2016 में रेप के आरोपियों में 96 फीसदी से ज्यादा आरोपी महिलाओं के जानकार या रिश्तेदार थे। सिर्फ 3.57 फीसदी आरोपी ही महिलाओं से अनजान /अजनबी थे।वर्ष 2016 में छेड़छाड़ के 4165 मामले दर्ज हुए।
इनमें 3033 मामलों में आरोपी पकड़े गए। 2016 में
हत्या की 528 वारदात हुई । इसमें से 19.32 फीसदी हत्याएं पुरानी दुश्मनी के कारण हुई। 16 फीसदी हत्याएं मामूली सी बात पर अचानक तैश में
आकर आपा खोने के कारण की गई। 12.69 हत्याएं सेक्स संबंधों के कारण हुई । 8.90
फीसदी मामलों में पारिवारिक मतभेद के कारण हत्या कर दी गई।
8.33 फीसदी मामलों में सम्पत्ति या पैंसों के विवाद के कारण हत्या कर दी गई।
सिर्फ 7.77 फीसदी मामलों में अपराध के लिए हत्या की गई। पुलिस ने हत्या के
77.46 मामलों को सुलझाने का दावा किया है। पुलिस के आंकड़ों से ही पता चलता है कि
हत्या हो या बलात्कार ज्यादातर मामलों में आरोपी जानकार या रिश्तेदार थे। मतलब
जघन्य अपराध को सुलझाने के लिए पुलिस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।
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