Tuesday, 19 September 2017

भेड़ चाल में मीडिया मदारी घनचक्कर, खबर रफूचक्कर, पत्रकारिता का तमाशा


नंबर वन का चक्कर, कौवे के पीछे घनचक्कर, खबर रफूचक्कर ।
लाश में तीर मार बनते मीडिया के मदारी ' शिकारी 



'
इंद्र वशिष्ठ
मीडिया खासकर न्यूज चैनलों में पत्रकारिता का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है। पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह खुद समाज में होने वाले ग़लत काम और ग़लत व्यक्ति /ढोंगी की करतूतों का पर्दाफाश करेगा। जैसे सिरसा में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने  बलात्कारी राम रहीम का पर्दाफाश किया था। लेकिन आजकल मीडिया पोस्टमार्टम की पत्रकारिता कर पत्रकार होने का ढोंग करता है। पहले शेर का शिकार करने के बाद शिकारी उसके साथ फोटो खिंचवाता था इसी तरह तरह मीडिया को भी किसी का पर्दाफाश करने पर श्रेय मिलता था। आज़ हालत यह कि अपराधी जब खुद अपने कुकर्मों के कारण कोर्ट के चंगुल में फंस कर जेल पहुंच जाता है तो मीडिया के मदारी “ बहादुरों ” की टीम मरे मराए शिकार में तीर मार- मार कर अपनी बहादुरी का बेशर्मी से बखान करने की होड शुरू करती है। जैसे राम रहीम के जेल जाने के बाद मीडिया कर रहा है। राम रहीम के बारे में पहले चुप रहने वाला मीडिया अब भी इस तरह खबर दिखा रहा है जैसे वह बहुत जोखिम का काम का कर रहा है। 
सबसे पहले के चक्कर में घनचक्कर, ख़बर रफूचक्कर ---राम रहीम को जिस दिन सजा सुनाई गई उस दिन दोपहर से ही सभी चैनल दस साल सजा की खबर सबसे पहले दिखाने का दावा करते रहे। मैं उस शाम सीबीआई मुख्यालय में था सीबीआई प्रवक्ता ने शाम को इस मामले से संबंधित अपने अफसर से सूचना लेने  के बाद ही वहां मौजूद 8-10 पत्रकारों को बताया कि बलात्कार के दो मामलों में दस-दस साल यानी कुल बीस साल की सजा हुई है और एक सज़ा पूरी होने पर दूसरी सज़ा शुरू होगी। तब वहां मौजूद पत्रकारों (एबीपी समेत) ने अपने चैनलों में खबर सही करवाई। अब दोपहर से ही गलत खबर दिखाने वाले चैनल वालों से कोई पूछे कि जब कोर्ट से काफी दूर ही पत्रकारों को रोक दिया गया था। कोर्ट की कार्यवाही शाम तक चली। कोर्ट की कार्यवाही खत्म होने से पहले कोई  भी बता ही नहीं सकता कि सजा क्या दी गई। तो ये दोपहर से ही ग़लत ख़बर दिखा कर लोगों को गुमराह क्यों कर रहे थे। रोहतक में मौजूद पत्रकरों को राम रहीम के वकील ने भी शाम को कोर्ट से बाहर निकलने के बाद अधूरी जानकारी दी। ऐसे में कोर्ट या सीबीआई से आधिकारिक सूचना मिलने पर ही सही खबर देनी चाहिए थी या अंतर्यामी बन कर कोर्ट के अंदर की गतिविधियों की झूठी खबर देना पत्रकारिता है। बेशर्मी की हद है कि कई चैनल अब भी यह श्रेय ले रहे है कि उन्होंने सबसे पहले दोपहर में साढे तीन बजे ही यह खबर दी कि राम रहीम को दस साल की सजा हो गई।
कौवे के पीछे भागते मदारी---न्यूज चैनल की हालत ऐसी हो गई कि अगर कोई इनको कह दे कि कौवा तुम्हारा कान ले गया तो ये पहले अपना कान देखने की बजाय कौवे के पीछे शोर मचाते हुए भागना शुरू कर देंगे।
न्यूज चैनल माध्यम अच्छा, मदारी गड़बड़-- अफसोस होता है कि न्यूज़ चैनल बहुत अच्छा कार्य कर सकते हैं लेकिन सबसे पहले दिखाने के चक्कर में घनचक्कर बन गलत और आधी अधूरी ख़बर दिखा देते हैं। इसलिए लिए मीडिया पर आम लोगों का भरोसा खत्म हो जा रहा है। न्यूज़ चैनलों की मिट्टी पलीद इनके एंकरों ने भी कराई हैं। एंकर मदारी और पटरी बाजार के दुकानदारों की तरह चीख चीख कर ख़बर बेचते लगते हैं। ऐसे भी एंकर हैं जो बम धमाका होते ही तुरंत बेचारे रिपोर्टर से यह भी पूछने लगते हैं कि बताईए धमाके में कौन सा विस्फोटक इस्तेमाल किया गया है। अब इन एंकर से कोई पूछे कि घटनास्थल पर जांच के लिए विस्फोटक विशेषज्ञ भी अभी पहुंचे नहीं। ऐसे में रिपोर्टर क्या उन विशेषज्ञ से भी ज़्यादा ज्ञानी या अंतर्यामी है जो तुरंत बता देगा कि कौन सा विस्फोटक इस्तेमाल किया गया। ऐसे एंकर अपना दिमागी दिवालियापन दिखाते है।

एंकर डाकिया या स्वयंभू जज --अपराध की जो खबर क्राइम रिपोर्टर बेहतर कवर कर सकता है उसमें भी संपादक स्तर के एंकर कूद जाते हैं। बम धमाका या कोई बड़ी वारदात हो उस समय ज्यादा लोग समाचार देखते हैं इसलिए लगता है संपादक स्तर के लोग अपनी सूरत दुनिया को दिखाने के लिए घटना स्थल पर पहुंच जाते हैं। ऐसे एंकर संपादकों की भूमिका ज्यादातर डाकिया या स्वयंभू जज की ही नजर आती है। क्राइम के मामले में बेतुका ज्ञान बांटते हुए यह तक भूल जाते हैं कि पुलिस किसी को भी सबूतों के आधार पर गिरफ्तार करेगी तुम्हारे कुतर्क पर नहीं और कोर्ट भी सबूतों और गवाहों के आधार पर सज़ा देगा तुम्हारे चीखने चिल्लाने पर नहीं। चैनल में एक चीज और हास्यास्पद होती है ज्यादातर रिपोर्टर एक साथ मिलकर कोई खबर करते हैं लेकिन सब अपने चैनलों पर श्रेय इस तरह लेते हैं जैसे यह उनकी ही एक्सक्लूसिव है। ताज़ा उदाहरण बलात्कारी राम रहीम के बारे में  चैनलों पर दिखाई जा रही ख़बरें है।

क्राइम रिपोर्टिंग गंभीर और जिम्मेदारी वाला कार्य है -- लेकिन न्यूज चैनलों के आने के बाद से इसमें काफी गिरावट आ गई है। सबसे पहले दिखाने की अंधी दौड़ में गलत खबरें तक दे दी जाती है। बिना यह समझे कि गलत खबर से किसी पर क्या बीतेगी। कुछ साल पहले लाइव इंडिया चैनल के सुधीर चौधरी ने वेश्यावृत्ति का फर्जी स्टिंग दिखा कर स्कूल टीचर उमा खुराना को बदनाम कर दिया था। पुलिस ने भी दंगा भड़कने की आशंका में बिना तफतीश किए तुरन्त उमा को जेल में डाल दिया। बाद में तहकीकात में पुलिस ने पाया कि उमा बेकसूर है और उसके बारे में दिखाई खबर फर्जी है।
कुछ साल पहले की बात है एक सुबह न्यूज चैनलों ने खबर दी कि नोएडा में स्कूल बस दुर्घटना में पांच बच्चों की मौत हो गई। जबकि उस दुर्घटना में किसी की मौत नहीं हुई थी। ऐसी खबर से उस बस में सवार बच्चों के मां-बाप पर क्या बीती होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। एक अन्य मामले में तो सनसनीखेज खबर दिखाने के चक्कर ने दिल्ली में एक युवक की जान ले ली। खबरों को सनसनीखेज तरीके से पेश करने वाले एक चैनल ने खबर चला दी कि इस युवक ने अपनी रिश्तेदार लड़की से बलात्कार किया है। इस खबर के कारण शादीशुदा इस युवक ने आत्महत्या कर ली। गैर जिम्मेदाराना और संवेदनहीन क्राइम रिपोर्टिंग के ये तो कुछ उदाहरण है। इसके अलावा भी यह देखा गया है कि सबसे पहले दिखाने की होड़ में गलत या एकतरफा खबर दिखा दी जाती हैं। पुलिस के दावे को ही प्रमुखता दी जाती है चाहे बाद में वह दावा कोर्ट में खोखला कयों न निकलें।  
दागी संपादक--आपराधिक मामलों के आरोपी ही जब न्यूज़ चैनल के संपादक बन बैठे है तो क्राइम रिपोर्टिंग का स्तर तो गिरेगा ही। जी न्यूज़ के सुधीर चौधरी और उसके मालिक लाला सुभाष चन्द्र गोयल के खिलाफ तो 100 करोड़ की जबरन वसूली के आरोप में दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किया हुआ है। सुधीर इस मामले में जेल भी जा चुका है।यह वहीं सुधीर चौधरी हैं जिसने लाइव इंडिया चैनल में वेश्यावृत्ति का फर्जी स्टिंग दिखा कर स्कूल टीचर उमा खुराना को बदनाम कर दिया था। सुभाष चन्द्र गोयल की किताब का विमोचन प्रधानमंत्री निवास में मोदी द्वारा करने और सुधीर चौधरी को पुलिस सुरक्षा देने से मोदी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है। एनडीटीवी के प्रणय रॉय के खिलाफ तो सीबीआई ने धोखाधड़ी और साजिश का मामला दर्ज किया है। दीपक चौरसिया के खिलाफ तो दिल्ली छावनी थाने में फौजियों से भी मारपीट का मामला दर्ज हो चुका है। मदारी की तरह चीख चीख कर पत्रकारिता का तमाशा सिर्फ भारत में हो रहा है। विदेशों में बम धमाकों / आतंकवादी हमलों के समय क्या कभी बीबीसी ,सीएनएन आदि न्यूज चैनलों पर पत्रकारों को मदारी की तरह चीखते हुए देखा है।
गुरूग्राम के रायन पब्लिक स्कूल में बच्चे की हत्या के बाद लोगों ने शराब के ठेके को आग लगा दी। क्या किसी की दुकान , संपत्ति को नुकसान पहुंचाना गुंड़ागर्दी नहीं है ? आगजनी करने पर उतारू भीड़ पर लाठीचार्ज करना क्या गलत हैलेकिन न्यूज चैनलों ने आगजनी करने वालों की आलोचना करने की बजाय लाठीचार्ज को प्रमुखता से दिखाया।
अंध विश्वास और डर फैलाते हैंसाल 2001 में काला बंदर के मामले में आजतक चैनल ने तो हद ही कर दी थी अपनी कल्पना से मंकी मैन का चित्र ही बना कर दिखा दिया। 




Tuesday, 12 September 2017

कश्मीरी युवाओं को उकसाने वाले अपने बच्चों को क्यों नहीं जन्नत भेजते ।

कश्मीरी युवाओं को उकसाने वाले अपने बच्चों को क्यों नहीं जन्नत भेजते ।
कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ने की एनआईए की कोशिश तेज,


इंद्र वशिष्ठ
कश्मीर में युवाओं को आतंकवाद में धकेलने वाले नेताओं की असलियत उजागर होने  लगी है। कश्मीरियों को ऐसे नेताओ से सावधान रहना चाहिए। ऐसे नेता ही कश्मीरियों के असली दुश्मन है। कश्मीरियों को ऐसे नेताओं से पूछना चाहिए कि  अगर जेहाद इतना महान और पवित्र है कि वह सीधा जन्नत पहुंचाता है तो फिर दूसरों को उकसाने वाले पहले अपने बच्चों को जन्नत जाने का मौका क्यों नहीं देते है। जो जेहाद के नाम पर उकसाते है वह अपने बच्चों को तो बड़े शहरों या विदेश में हिफाजत से रखते है। गरीब के बच्चों को उकसा कर मरवा देते है। कश्मीर की समस्या के लिए इन नेताओं से ज्यादा कसूरवार दिल्ली दरबार के वह नेता है जिन्होंने सालों से दामाद की तरह इन अलगावादियों को  पाल कर रखा। इनकी सुरक्षा आदि पर जनता के टैक्स का करोड़ों रूपया सालाना लुटाया।

 एनआईए का एक्शन वीक -- कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ने की एनआईए की कोशिश तेज हो गई है। आतंकवदियों,पत्थरबाजों को धन मुहैया कराने वाले व्यापारी/ हवाला कारोबारी और अलगावादी नेताओं के गठजोड़ पर अगर जबरदस्त चोट जारी रही तो आतंकवाद पर अंकुश लग सकता है। लेकिन एनआईए या किसी भी जांच एजेंसी के लिए आतंकवादियों को पैसा मुहैया कराने वालों के खिलाफ अदालत में आरोपों को साबित करना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के आईजी आलोक मित्तल के अनुसार  6-7 सितंबर को आतंकवादियों को धन मुहैया कराने के मामलें में व्यापारियों और हवाला का धंधा करने वालों के 38  ठिकानों पर छापे मारे गए । इनमें से 29 ठिकाने कश्मीर, 7 ठिकाने दिल्ली और जम्मू और गुड़गांव का एक-एक ठिकाना है। दो करोड़ 20 लाख रूपए नगद, एक करोड़ की एफडी बरामद हुई है । इसके अलावा देश विरोधी काम में धन के  लेन देन के कागजात, लैपटॉप,मोबाइल फोन और हवाला कारोबारियों की डायरी आदि बरामद हुए। जिनके यहां छापे मारे गए है उनमें हुरियत नेता गुलाम नबी शमझी, सैयद आगा हसन बडगामी,शब्बीर शाह के साथी जमीर शेख, रज्जाक चौधरी और हवाला कारोबारी जहूर वताली के सीए भी शामिल है। शब्बीर शाह को हाल ही में ईडी ने गिरफ्तार किया है।
इसके पहले 5 सितंबर को एनआईए ने कश्मीर में पत्थरबाजी में शामिल जावेद अहमद भट और कामरान युसूफ को गिरफ्तार किया। जावेद कुलगाम और कामरान पुलवामा का रहने वाला है। आतंकवादियों को धन मुहैया कराने के मामले में कश्मीर बार एसोसिशन के अध्यक्ष मिंया अब्दुल कय्यूम को भी एनआईए ने पूछताछ के लिए समन किया है।



Friday, 8 September 2017

सत्ता की लठैत बनी हुई पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी--

सत्ता की लठैत बनी हुई पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी--
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली या अन्य बड़े शहरों में सड़क पर पुलिस को सामने देख कर अपराधी तक आम तौर पर वारदात करने की हिम्मत नहीं करता है। लेकिन दूसरी ओर आम जनता और बच्चे तक पुलिस पर हमला, पथराव और आगजनी का दुस्साहस करने लगे है। जैसा हाल ही में हरियाणा में राम रहीम के गुंड़ों ने किया। हरियाणा में हुई गुंड़ागर्दी के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और राम बिलास शर्मा जैसे मंत्री जिम्मेदार है राम रहीम के चरणों में लोटने वाले राम बिलास शर्मा ने तो सीआरपीसी की धारा 144 की अपने हिसाब से व्याख्या कर बेशर्मी की हद ही पार कर दी। इनके साथ ही वह आईपीएस अफसर भी कसूरवार है जिन्होंने अपनी पेशेवर काबलियत को मनचाही/मलाईदार पोस्टिंग के लिए नेताओं के चरणों  में गिरवी रख दिया। हरियाणा में हुए जान-माल के नुकसान के लिए ये सब कसूरवार है। ऐसे नेता और अफसरों का पुलिस व्यवस्था को इस तरह बर्बाद करना समाज के लिए खतरनाक होता जा रहा है। अगर सरकार और आईपीएस अफसर अभी नहीं चेते तो पुलिस और कानून के राज की जगह गुंड़ाराज कायम हो जाएगा। अफसोस होता है यह देखकर कि अपनी काबलियत के दम पर आईपीएस अफसर बनने वाले भी मनचाहे/मलाईदार पद या अन्य लालच के कारण नेताओं के तलुए चाटते हुए नेता/जमींदार के लठैत की तरह काम करते है। सत्ता के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचने वाली पुलिस में ईमानदारी और निष्पक्षता की जबरदस्त कमी के कारण ही आम आदमी को उस पर भरोसा नहीं है।
पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी-- दिल्ली दरबार और कश्मीर सरकार की अगर नीयत ठीक हो और पुलिसबलों के भी हाथ ना बंधे हो तो भला किसी की मजाल कि कोई पुलिस पर पत्थर फेंकना तो दूर पत्थर फेंकने की सोचेगा भी नहीं। पुलिस का तो सिर्फ नाम ही काफी होता है गुंड़ों की कंपकंपी छुड़ाने के लिए। अफसोस नेताओं ने अपने स्वार्थ में पुलिस की ऐसी मिट्टी पलीत करा दी की बच्चे भी पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे। कहावत है कि  पुलिस की मार के आगे तो भूत भी नाचता है । पुलिस को किसी की भी पिटाई करने का हक देने का बिलकुल भी पक्षधर नहीं हूं। पुलिस निरंकुश नहीं होनी चाहिए । लेकिन पुलिस को नेता ऐसा भी तो न बनाए कि कोई भी उस पर पत्थर मारने लगे। सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और  पुलिस पर पत्थर मारने वाले के साथ तो वैसे ही निपटना चाहिए जैसे पुलिस गुंड़ों से निपटती है। पुलिस की हालत अगर ऐसी ही  रही तो गुंड़े बेखौफ घूमेगें और शरीफों का जीना मुश्किल हो जाएगा। कहानी है  कि एक बार एक साधु के कहने पर सांप ने लोंगो को डसना /काटना छोड़ दिया । कुछ समय बाद साधु सांप के पास आया तो सांप को लहूलुहान मरणासन्न हालत में पाया। साधु के पूछने पर सांप ने बताया कि आपका कहना मान कर लोगों को डसना छोड़ दिया, जिससे लोगों में उसका डर खत्म हो गया और पत्थर मार-मार कर उसका यह हाल कर दिया। इस पर साधु ने कहा कि मैंने डसने से मना किया था फुफकारने से नहीं। इसी तरह पुलिस के फुफकारने मात्र से भी कोई पत्थर मारने की हिम्मत नहीं करेगा। पुलिस के पिटने के लिए वह आईपीएस अफसर भी जिम्मेदार होते है जो मलाईदार पोस्टिंग के लिए अपने आका नेता के इशारे पर नाचते है। आईपीएस नेता की मंजूरी की बाट देखने की बजाए अगर हालात की मांग के अनुसार खुद बल प्रयोग का फैसला करे तो स्थिति को बेकाबू होने से रोका जा सकता है और पुलिस को पीटने की भी कोई हिम्मत नहीं करेगा।
आईपीएस अफसर भी गुलाम की तरह पुलिस का इस्तेमाल करते है।-- देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस जब नेता के लठैत की तरह काम करती है तो बाकी देश के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। 4-6-2011 को रामलीला मैदान में रामदेव को पकड़ने के लिए सोते हुए औरतों और बच्चों पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता और धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर फिरंगी राज को भी पीछे छोड़ दिया। उस समय ये अफसर भूल गए कि पेशेवर निष्ठा,काबलियत को ताक पर रख कर लठैत की तरह लोगों पर अत्याचार करने का खामियाजा भुगतना भी पड़ सकता है। इसी लिए प्रमुख दावेदार होने के बावजूद अन्य कारणों के साथ इस लठैती के कारण भी धर्मेंद्र कुमार का दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सपना चूर चूर हो गया। रेलवे पुलिस के डीजी का पद भी मुश्किल से मिल पाया।
धर्म ना देखो अपराधी का -- रामलीला मैदान की बहादुर पुलिस को 21 जुलाई 2012 को सरकारी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की कोशिश करने वाले गुंड़ों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। माहौल बिगाड़ने लिए जिम्मेदार बिल्डर नेता शोएब इकबाल के खिलाफ पुलिस ने पहले ही कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुंड़ों ने पुलिस को पीटा, पथराव और आगजनी की। लेकिन अफसरों ने यहां गुंड़ों पर भी  रामलीला मैदान जैसी मर्दानगी दिखाने का आदेश पुलिस को  नहीं दिया। इस तरह आईपीएस अफसर भी नेताओं के इशारे पर पुलिस का इस्तेमाल कहीं बेकसूरों को पीटने के लिए करते है तो कहीं गुंड़ों से भी पिटने देते है। अफसरों की इस तरह की हरकत से निचले स्तर के पुलिसवालों में रोष पैदा हो गया था।
 बुखारी का भी बुखार क्यों नहीं उतारती सरकार ---दिल्ली पुलिस ने जामा मस्जिद के इमाम को  सिर पर बिठाया हुआ है। कोर्ट गैर जमानती वारंट तक भी जारी करती रही हैं लेकिन दिल्ली पुलिस कोर्ट में झूठ बोल कह देती है कि इमाम मिला नहीं। जबकि इमाम पुलिस सुरक्षा में रहता है। मध्य जिले में तैनात रहे कई डीसीपी  तक इमाम अहमद बुखारी को सलाम  ठोकने जाते रहे हैं। दिल्ली पुलिस में कर्नल सिंह ( वर्तमान ईडी डायरेक्टर ) ने ही इमाम की सुरक्षा कम करने की हिम्मत दिखाई थी। शंकराचार्य जैसा व्यक्ति जेल जा सकता है तो इमाम क्यों नहीं? एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा सिर पर बिठाना समाज के लिए खतरनाक है। इमाम को भला पुलिस सुरक्षा देने की भी क्या जरूरत है।  कानून सबके लिए बराबर हो होना चाहिए।अहमद बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं इसका भी खुलासा सरकार को करना चाहिए। 

                                                 (दैनिक बन्दे मातरम 9-9-2017)