Friday, 8 September 2017

सत्ता की लठैत बनी हुई पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी--

सत्ता की लठैत बनी हुई पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी--
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली या अन्य बड़े शहरों में सड़क पर पुलिस को सामने देख कर अपराधी तक आम तौर पर वारदात करने की हिम्मत नहीं करता है। लेकिन दूसरी ओर आम जनता और बच्चे तक पुलिस पर हमला, पथराव और आगजनी का दुस्साहस करने लगे है। जैसा हाल ही में हरियाणा में राम रहीम के गुंड़ों ने किया। हरियाणा में हुई गुंड़ागर्दी के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और राम बिलास शर्मा जैसे मंत्री जिम्मेदार है राम रहीम के चरणों में लोटने वाले राम बिलास शर्मा ने तो सीआरपीसी की धारा 144 की अपने हिसाब से व्याख्या कर बेशर्मी की हद ही पार कर दी। इनके साथ ही वह आईपीएस अफसर भी कसूरवार है जिन्होंने अपनी पेशेवर काबलियत को मनचाही/मलाईदार पोस्टिंग के लिए नेताओं के चरणों  में गिरवी रख दिया। हरियाणा में हुए जान-माल के नुकसान के लिए ये सब कसूरवार है। ऐसे नेता और अफसरों का पुलिस व्यवस्था को इस तरह बर्बाद करना समाज के लिए खतरनाक होता जा रहा है। अगर सरकार और आईपीएस अफसर अभी नहीं चेते तो पुलिस और कानून के राज की जगह गुंड़ाराज कायम हो जाएगा। अफसोस होता है यह देखकर कि अपनी काबलियत के दम पर आईपीएस अफसर बनने वाले भी मनचाहे/मलाईदार पद या अन्य लालच के कारण नेताओं के तलुए चाटते हुए नेता/जमींदार के लठैत की तरह काम करते है। सत्ता के इशारे पर कठपुतली की तरह नाचने वाली पुलिस में ईमानदारी और निष्पक्षता की जबरदस्त कमी के कारण ही आम आदमी को उस पर भरोसा नहीं है।
पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी-- दिल्ली दरबार और कश्मीर सरकार की अगर नीयत ठीक हो और पुलिसबलों के भी हाथ ना बंधे हो तो भला किसी की मजाल कि कोई पुलिस पर पत्थर फेंकना तो दूर पत्थर फेंकने की सोचेगा भी नहीं। पुलिस का तो सिर्फ नाम ही काफी होता है गुंड़ों की कंपकंपी छुड़ाने के लिए। अफसोस नेताओं ने अपने स्वार्थ में पुलिस की ऐसी मिट्टी पलीत करा दी की बच्चे भी पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे। कहावत है कि  पुलिस की मार के आगे तो भूत भी नाचता है । पुलिस को किसी की भी पिटाई करने का हक देने का बिलकुल भी पक्षधर नहीं हूं। पुलिस निरंकुश नहीं होनी चाहिए । लेकिन पुलिस को नेता ऐसा भी तो न बनाए कि कोई भी उस पर पत्थर मारने लगे। सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और  पुलिस पर पत्थर मारने वाले के साथ तो वैसे ही निपटना चाहिए जैसे पुलिस गुंड़ों से निपटती है। पुलिस की हालत अगर ऐसी ही  रही तो गुंड़े बेखौफ घूमेगें और शरीफों का जीना मुश्किल हो जाएगा। कहानी है  कि एक बार एक साधु के कहने पर सांप ने लोंगो को डसना /काटना छोड़ दिया । कुछ समय बाद साधु सांप के पास आया तो सांप को लहूलुहान मरणासन्न हालत में पाया। साधु के पूछने पर सांप ने बताया कि आपका कहना मान कर लोगों को डसना छोड़ दिया, जिससे लोगों में उसका डर खत्म हो गया और पत्थर मार-मार कर उसका यह हाल कर दिया। इस पर साधु ने कहा कि मैंने डसने से मना किया था फुफकारने से नहीं। इसी तरह पुलिस के फुफकारने मात्र से भी कोई पत्थर मारने की हिम्मत नहीं करेगा। पुलिस के पिटने के लिए वह आईपीएस अफसर भी जिम्मेदार होते है जो मलाईदार पोस्टिंग के लिए अपने आका नेता के इशारे पर नाचते है। आईपीएस नेता की मंजूरी की बाट देखने की बजाए अगर हालात की मांग के अनुसार खुद बल प्रयोग का फैसला करे तो स्थिति को बेकाबू होने से रोका जा सकता है और पुलिस को पीटने की भी कोई हिम्मत नहीं करेगा।
आईपीएस अफसर भी गुलाम की तरह पुलिस का इस्तेमाल करते है।-- देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस जब नेता के लठैत की तरह काम करती है तो बाकी देश के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। 4-6-2011 को रामलीला मैदान में रामदेव को पकड़ने के लिए सोते हुए औरतों और बच्चों पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता और धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर फिरंगी राज को भी पीछे छोड़ दिया। उस समय ये अफसर भूल गए कि पेशेवर निष्ठा,काबलियत को ताक पर रख कर लठैत की तरह लोगों पर अत्याचार करने का खामियाजा भुगतना भी पड़ सकता है। इसी लिए प्रमुख दावेदार होने के बावजूद अन्य कारणों के साथ इस लठैती के कारण भी धर्मेंद्र कुमार का दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सपना चूर चूर हो गया। रेलवे पुलिस के डीजी का पद भी मुश्किल से मिल पाया।
धर्म ना देखो अपराधी का -- रामलीला मैदान की बहादुर पुलिस को 21 जुलाई 2012 को सरकारी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की कोशिश करने वाले गुंड़ों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। माहौल बिगाड़ने लिए जिम्मेदार बिल्डर नेता शोएब इकबाल के खिलाफ पुलिस ने पहले ही कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुंड़ों ने पुलिस को पीटा, पथराव और आगजनी की। लेकिन अफसरों ने यहां गुंड़ों पर भी  रामलीला मैदान जैसी मर्दानगी दिखाने का आदेश पुलिस को  नहीं दिया। इस तरह आईपीएस अफसर भी नेताओं के इशारे पर पुलिस का इस्तेमाल कहीं बेकसूरों को पीटने के लिए करते है तो कहीं गुंड़ों से भी पिटने देते है। अफसरों की इस तरह की हरकत से निचले स्तर के पुलिसवालों में रोष पैदा हो गया था।
 बुखारी का भी बुखार क्यों नहीं उतारती सरकार ---दिल्ली पुलिस ने जामा मस्जिद के इमाम को  सिर पर बिठाया हुआ है। कोर्ट गैर जमानती वारंट तक भी जारी करती रही हैं लेकिन दिल्ली पुलिस कोर्ट में झूठ बोल कह देती है कि इमाम मिला नहीं। जबकि इमाम पुलिस सुरक्षा में रहता है। मध्य जिले में तैनात रहे कई डीसीपी  तक इमाम अहमद बुखारी को सलाम  ठोकने जाते रहे हैं। दिल्ली पुलिस में कर्नल सिंह ( वर्तमान ईडी डायरेक्टर ) ने ही इमाम की सुरक्षा कम करने की हिम्मत दिखाई थी। शंकराचार्य जैसा व्यक्ति जेल जा सकता है तो इमाम क्यों नहीं? एक मस्जिद के अदना से इमाम को सरकार द्वारा सिर पर बिठाना समाज के लिए खतरनाक है। इमाम को भला पुलिस सुरक्षा देने की भी क्या जरूरत है।  कानून सबके लिए बराबर हो होना चाहिए।अहमद बुखारी के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं इसका भी खुलासा सरकार को करना चाहिए। 

                                                 (दैनिक बन्दे मातरम 9-9-2017)

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