Wednesday 13 December 2023

संसद में सांसदों ने कानून की धज्जियां उड़ाई, पिटाई करने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ FIR कब होगी ? संसद की सुरक्षा का दावा धुएं में उड़ा। कमिश्नर, आईपीएस की काबलियत/ साख दाव पर।


तानाशाही नहीं चलेगी, लोकतंत्र बचाओ 

कानून बनाने वालों ने संसद में ही कानून हाथ में लिया


इंद्र वशिष्ठ
संसद की सुरक्षा में हुई गंभीर चूक ने दिल्ली पुलिस के सुरक्षा संबंधित दावों की तो धज्जियां उड़ा ही दी। दूसरी ओर पुलिस इस मामले में कानून और तफ्तीश के बुनियादी सिद्धांतों /प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन करती हुई भी नहीं दिख रही है। 
कमिश्नर की भूमिका-
इससे दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा और आईपीएस अधिकारियों की पेशेवर काबलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। 
पुलिस ने लोकसभा के अंदर और संसद के बाहर सड़क पर सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने के लिए हानिरहित धुएं का इस्तेमाल करने वाले आरोपियों के ख़िलाफ़ तो गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) जैसे अति कड़े कानून तक में मामला दर्ज कर दिया। क्या यह यूएपीए कानून का सरासर दुरूपयोग नहीं है? क्या सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना आतंकी गतिविधि या देशद्रोह होता है? 
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा बताएं कि लोकसभा में आरोपियों की बेरहमी से पिटाई करने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज क्यों नही किया ? 
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा और आईपीएस अधिकारियों ने संविधान और कानून को ईमानदारी और बिना भेदभाव के लागू करने की जो शपथ ली थी, अब उस पर खरा उतर कर दिखाएं। 
यह घटना अगर वाकई में संसद की सुरक्षा में गंभीर चूक का मामला है। तो फिर गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पुलिस कमिश्नर समेत संबंधित आईपीएस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई अभी तक क्यों नहीं की गई। 
तानाशाही बंद करो-
दो युवकों ने लोकसभा में दर्शक दीर्घा से सदन में कूद कर और रंगीन गैस का छिड़काव कर धुआं फैला कर सनसनी फैला दी। कुछ सांसदों ने दोनों युवकों को दबोचा और उनकी जमकर पिटाई करने के बाद सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दिया गया। युवकों ने तानाशाही नहीं चलने देंगे, काले कानून खत्म करो, लोकतंत्र बचाओ आदि नारे लगाए। कुछ सांसद जब इन निहत्थे युवकों को पीट रहे थे, तब इन युवकों ने कहा कि हम देश प्रेमी हैं, हमें मारो मत, हम प्रोटेस्ट कर रहे हैं।
सांसदों ने कानून हाथ में लिया-
 इन युवकों ने जो किया, उसके लिए तो उन्हें कानून के अनुसार सज़ा मिलेगी ही। लेकिन इस मामले में आरोपी की पिटाई करने वाले कथित बहादुर सांसदों के आचरण ने संसद की मर्यादा को भी तार तार कर दिया। कई सांसदों ने इन दोनों युवकों को बुरी तरह पीट कर कानून को अपने हाथ में लेने का अपराध किया है। सांसद हनुमान बेनीवाल, मलूक नागर तो बड़ी बेशर्मी से पिटाई करने की बात मीडिया में बोले भी हैं। निहत्थे आरोपी की पिटाई करने वाले कथित बहादुर सांसदों द्वारा युवकों की पिटाई करते समय का वीडियो और उनके बयान से भी साफ साबित हो जाता है कि सांसदों ने अपराध किया है।
विशेषाधिकार की ढाल-
कानून तो किसी को भी किसी की पिटाई करने की इजाज़त नहीं देता है। फिर चाहे पिटाई करने वाले विशेषाधिकार प्राप्त सांसद ही क्यों न हो। ऐसे में इन सांसदों के ख़िलाफ़ भी तो मुकदमा दर्ज होना ही चाहिए। कानून तो बिना भेदभाव के किए हरेक पर समान रूप से लागू होना चाहिए। लोकतंत्र के मंदिर में कानून बनाने वाले सांसदों द्वारा ही कानून अपने हाथ में लेना शर्मनाक है। सांसदों को विशेषाधिकार रुपी ढाल मिलती है। लेकिन विशेषाधिकार की यह ढाल उन्हें सदन में भी किसी को पीटने की/अपराध करने की इजाज़त तो नहीं देती है। 
लोकसभा अध्यक्ष कार्रवाई करें-
देश में अगर वाकई संविधान/कानून का राज है तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को स्वयं आगे बढ़ कर कानून हाथ में लेने वाले, संसद की गरिमा को गिराने वाले इन सांसदों के ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस से कहना चाहिए। 
पुलिस की डयूटी-
वैसे तो यह पुलिस का ही कर्तव्य है  कि किसी भी अपराध की सूचना मिलने पर वह ईमानदारी से एफआईआर दर्ज करके तफ्तीश करे। लेकिन अफ़सोस पुलिस ऐसा करती  दिखाई नहीं देती। दोनों युवकों की पिटाई की गई है पुलिस ने उनकी मेडिकल जांच तो कराई ही होगी। इन युवकों को जो चोटें लगी, वह कैसे लगी और किस ने उनको पीटा यह सब भी तो तफ्तीश में शामिल किया जाना चाहिए, वरना पुलिस की तफ्तीश पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। तफ्तीश तो तभी सही, निष्पक्ष और पारदर्शी मानी  जाएगी जब पिटाई करने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज की जाएगी। 
अगर आम जनता किसी संदिग्ध व्यक्ति/ आरोपी को पकड़ कर उसकी पिटाई कर देती है तो पुलिस जनता के ख़िलाफ़ तो तुरंत एफआईआर दर्ज कर देती है। 
मैसूर से भाजपा के लोकसभा सांसद प्रताप सिम्हा ने अभियुक्त सागर शर्मा (लखनऊ)  और मनोरंजन (कर्नाटक ) का संसद की कार्यवाही देखने का पास बनवाया था। 

संसद की सुरक्षा में चूक का मामला ऐसे वक्त में आया है, जब आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर 2001 को संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में नौ जवान शहीद हुए थे।
संसद में 13 दिसंबर 2023 की घटना ने 8 अप्रैल 1929 को शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली में बम फेंकने की घटना की याद ताजा कर दी। 
असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह ने कहा था कि- 
बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।

संसद की सुरक्षा में चूक की के कुछ मामले-

वर्ष 2016 में सांसद भगवंत मान ने संसद में दाखिल होते समय सुरक्षा व्यवस्था का लाइव प्रसारण कर दिया। जांच कमेटी ने इसे सुरक्षा में गंभीर चूक माना था। 
काली मिर्च स्प्रे-
13 फरवरी 2014 को  तत्कालीन कांग्रेस सांसद एल राजगोपाल  ने सदन में  मिर्च स्प्रे छिड़क दिया था। आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने के कानून का विरोध  करने के दौरान सांसदों ने संसद की मर्यादा को तार तार कर दिया। माइक तोडे़, सांसदों में जमकर लात घूंसे चले।
 पिस्तौल -
1990 के दशक में बिहार के सांसद आनंद मोहन सिंह लोकसभा में पिस्तौल लेकर आ गए थे। 
दर्शक दीर्घा से सदन में कूदे-
1990 के दशक में ही उत्तराखण्ड राज्य के गठन के दौरान जब आंदोलन चरम पर था। तब तीन प्रदर्शनकारी दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूद गए थे। तीनों को हिरासत में लिया गया और थोड़ी देर बाद रिहा कर दिया गया।





(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)









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