Friday, 31 January 2025

चुनाव में पुलिस द्वारा लाइसेंसी हथियार जमा करना अवैध ? बंदूक जमा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती पुलिस, लाइसेंसी बंदूकों से चुनाव में भला कैसा खतरा ?



बंदूक जमा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती पुलिस

दिल्ली पुलिस द्वारा लाइसेंसी हथियार जमा कराना वैध या अवैध ? 



इंद्र वशिष्ठ, 
दिल्ली पुलिस द्वारा विधानसभा चुनाव के कारण आजकल लाइसेंसी हथियारों को जमा कराया जा रहा है। लेकिन सभी लाइसेंसी हथियारों को जमा कराना किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता। कानून की दृष्टि में भी यह वैध नहीं है। 
देश के दो हाईकोर्ट के फैसलों से तो पता चलता है कि चुनाव के नाम पर हथियार जमा कराना कानून सम्मत यानी वैध नहीं है। 
क्या दिल्ली पुलिस के आईपीएस अफसरों को लोगों की जान की परवाह और कानून की समझ/ जानकारी नहीं है ? दिल्ली में लगभग पचास हजार लोगों के पास लाइसेंसी हथियार हैं। 
जान माल खतरे में-
पुलिस किसी भी व्यक्ति को हथियार का लाइसेंस उसकी जान माल की सुरक्षा के लिए देती है। लेकिन चुनाव की घोषणा होते ही लाइसेंसी हथियार जमा करा लिए जाते हैं। चुनाव खत्म हो जाने के बाद हथियार वापस दे दिए जाते हैं। जिस व्यक्ति ने अपनी जान माल की सुरक्षा के लिए लाइसेंसी हथियार लिया है। ऐसे में उसका हथियार जमा करा कर पुलिस एक तरह से खुद ही उसकी जान माल को खतरे में डाल देती है। क्योंकि उसके दुश्मन या अपराधियों को भी यह बात मालूम होती है कि चुनाव के दौरान उसके पास आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी हथियार नहीं होता है। 
मान लो ऐसे में अगर कोई वारदात उसके साथ हो गई, तो उसकी जिम्मेदार पुलिस ही होगी। पुलिस को अगर कानून का पालन करने वाले लोगों के लाइसेंसी हथियार जमा कराने ही हैं तो पहले उन लोगों को पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराए। 
पुलिस के दावे पर सवाल-
पुलिस जान माल के खतरे का आकलन और व्यक्ति के चरित्र/आचरण आदि की पड़ताल करने के बाद ही हथियार का लाइसेंस देती है। व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई आपराधिक मामला तो दर्ज नहीं है यह सब देखने के बाद ही पुलिस लाइसेंस बनाती हैं। मतलब पुलिस पूरी छानबीन के बाद ही लाइसेंस बनाने का दावा करती है।
लेकिन फिर चुनाव के दौरान उस व्यक्ति का हथियार जमा कराने से तो पुलिस के ऊपर ही सवालिया निशान लग जाता है। 
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पुलिस वाकई जान माल के खतरे के आधार पर हथियार का लाइसेंस जारी करती है तो चुनाव के दौरान हथियार जमा करा कर वह खुद उस व्यक्ति की जान को खतरे में क्यों डाल देती है? 
भरोसा नहीं-
हथियार जमा कराने से तो लगता है कि गहन छानबीन के बाद लाइसेंस बनाने का पुलिस का दावा खोखला है, लगता है कि पुलिस को उस व्यक्ति/ लाइसेंसी पर भरोसा ही नहीं है। वरना पुलिस को यह क्यों लगता है कि चुनाव के दौरान सभी लाइसेंसी हथियारों का दुरुपयोग कर सकते है। 
उपरोक्त दोनों ही सूरत में पुलिस की पेशेवर काबलियत और दावों पर सवालिया निशान लग जाता है। क्योंकि अगर पुलिस ने वाकई गहन छानबीन के आधार पर लाइसेंस दिया है तो उसे कानून का पालन करने वालों के हथियार जमा नहीं कराना चाहिए।
अगर कोई लाइसेंसी हथियार का दुरूपयोग या अपराध के लिए इस्तेमाल करता है तो उसके खिलाफ तो कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन बिना किसी ठोस कारण के सभी लाइसेंसी हथियारों को जमा कराना किसी भी तरह से उचित नहीं है। 
यह तर्क दिया जाता है कि कानून- व्यवस्था बनाए रखने, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार हथियार जमा किए जाते हैं।  
लेकिन देश के दो हाईकोर्ट के फैसलों से तो पता चलता है कि चुनाव के नाम पर हथियार जमा कराना कानून सम्मत नहीं है। 
हथियार  जमा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती पुलिस: इलाहाबाद हाईकोर्ट -
लोकसभा चुनावों के बीच मार्च 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लाइसेंसी हथियारों को लेकर फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव में असलहा जमा नहीं कराया जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि सामान्य आदेश से असलहे जमा नहीं करा सकते हैं।
 हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई पुराने फैसलों का भी जिक्र किया। हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव में सुरक्षा के उपायों को आधार बनाते हुए लोगों से असलहा जमा कराने के लिए नहीं कह सकते हैं।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि किसी असलहा धारक से कानून व्यवस्था को खतरा लगे, तो उसके लाइसेंसी हथियारों को जमा करा सकते हैं
किसी भी व्यक्ति को तब तक लाइसेंसी हथियार जमा करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक उसके खिलाफ कोई विशिष्ट लिखित आदेश न हो।
 बाध्य न करें-
उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका में राज्य सरकार को यह आदेश देने की प्रार्थना की गई थी कि वह वैध हथियार लाइसेंस धारकों को केवल आगामी  चुनावों के आधार पर अपने हथियार जमा करने के लिए बाध्य न करे, हाईकोर्ट ने रिट याचिका का निपटारा करते हुए निर्देश दिया कि किसी भी व्यक्ति को हथियार जमा करने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति के खिलाफ विशेष निर्देश के साथ सक्षम प्राधिकारी द्वारा लिखित आदेश जारी न किया गया हो। 
हाईकोर्ट ने कहा कि कई निर्णयों और नियमों में राज्य को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया है कि वह किसी व्यक्ति को बिना किसी व्यक्तिगत नोटिस या संचार के, जिसमें यह कारण बताया गया हो कि हथियार जमा करना क्यों आवश्यक है, बाध्य न करे।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि कोई भी जिला मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक या उनके अधीनस्थ कोई भी अधिकारी आम नागरिकों को अपना हथियार जमा करने के लिए बाध्य नहीं करेगा, जब तक कि केंद्र सरकार का कोई आदेश न हो। 
 यदि किसी नागरिक का आपराधिक इतिहास हो या वह हथियार प्रदर्शित करता हुआ पाया जाए तो उसके विरुद्ध कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जा सकेगी। 
 जिला मजिस्ट्रेटों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे व्यक्तिगत मामलों की जांच करने के बाद लाइसेंस निलंबित करने तथा आपराधिक इतिहास वाले या जमानत पर रिहा या जिनका साफ सुथरा इतिहास नहीं है, उन व्यक्तियों से संबंधित मामलों में शस्त्र जमा कराने के आदेश पारित करें, क्योंकि इससे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 
पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि राज्य में शस्त्र लाइसेंसों और उनके जमा करने के सत्यापन के उद्देश्य से गठित स्क्रीनिंग समिति को ऐसे जमा करने के लिए ठोस कारण बताना होगा और समिति द्वारा कोई सामान्य आदेश पारित नहीं किया जाएगा। 
(रविशंकर तिवारी बनाम यूपी राज्य सिविल रिट याचिका संख्या 2844/2024 आदेश दिनांक : 22-03-2024 ) 

हथियार जमा करना अवैध-
झारखंड हाईकोर्ट ने भी मई 2024 में लोकसभा चुनाव में सभी हथियार लाइसेंसधारियों से हथियार जमा करने के आदेश को वैध नहीं माना।
एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि इस तरह का आदेश कानून की नजर में वैध नहीं ठहराया जा सकता। 
हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने बोकारो जिला के उपायुक्त (डीसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत उपायुक्त ने सभी लाइसेंसधारी हथियारधारकों को अपने हथियार जमा करने का निर्देश दिया था। साथ ही हथियार जमा नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही गई थी। अदालत ने प्रार्थी के हथियार को वापस करने का निर्देश भी उपायुक्त को दिया। 
हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी द्वारा जारी किया गया आपत्तिजनक आदेश, जिसमें सभी लाइसेंस-धारियों को एक ही झटके में अपने हथियार जमा करने का निर्देश दिया गया है, भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार नहीं है, और मनमाना है और दिमाग का उपयोग नहीं करने को दर्शाता है। 
स्क्रूटनी-
कोर्ट ने कहा कि उपायुक्त और जिला निर्वाचन पदाधिकारी को हथियार जमा करने के पहले सभी लाइसेंसधारियों की स्क्रूटनी करनी चाहिए। स्क्रूटनी में यदि यह पता चले कि लाइसेंस लेने वाले का आपराधिक रिकॉर्ड है और वह चुनाव में बाधा पहुंचा सकता है तो वैसे लोगों से ही हथियार जमा कराया जाना चाहिए। यदि किसी के भी विरुद्ध कुछ भी प्रतिकूल नहीं मिलता है, यदि लाइसेंसधारी स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें जमा करने का निर्देश देना आवश्यक नहीं है।
चुनाव आयोग के निर्देशों की गलत व्याख्या-
हाईकोर्ट ने कहा कि  एक सामान्य आदेश जारी करके राज्य ने न केवल भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को गलत तरीके से पढ़ा या गलत व्याख्या की, बल्कि उन्होंने लाइसेंसधारियों की विभिन्न श्रेणियों को एक साथ जोड़ दिया, जो वे नहीं कर सकते थे, क्योंकि लाइसेंसधारी जो किसी आपराधिक मामले में शामिल है या अपने कुछ कार्यों के कारण स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए खतरा बन जाता है, उसे कानून का पालन करने वाले हथियार लाइसेंसधारी के बराबर नहीं माना जा सकता है, जिसके खिलाफ किसी को भी, यहां तक कि राज्य को भी कोई शिकायत नहीं है। नागरिकों की यह श्रेणी, जो कानून का पालन करने वाले हैं और जिनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं है, उन्हें अन्य श्रेणियों के बराबर नहीं माना जा सकता है। 


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