Wednesday 9 June 2021

कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, IPS ने किया पुलिस का बंटाधार। खाकी को खाक में मिलाया। कमिश्नर, IPS के कर्मों का लेखा जोखा। महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता।




     कमिश्नर खाकी को खाक में मत मिलाओ।
   मंत्रियों से नजदीकियां,आईपीएस से दूरियां।

कमिश्नर और IPS के कर्मों का लेखा जोखा।
महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। 

 इंद्र वशिष्ठ 
महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। आचार्य चाणक्य की यह बात कमिश्नर और कई आईपीएस अफसरों पर खरी उतरती है।
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की संविधान, कानून के प्रति निष्ठा और पेशेवर काबिलियत में लगातार गिरावट सामने आ रही है। यह बहुत ही गंभीर और चिंताजनक स्थिति है। यह स्थिति सभ्य समाज के लिए तो बहुत ही खतरनाक है। सत्ता के लठैत बन कर कमिश्नर या आईपीएस किस स्तर तक गिर सकते हैं। इसका अंदाज़ा इन मामलों से लगाया जा सकता है। 
अफसरों की करतूतें देख कर ऐसा लगता है कि आईपीएस अफसरों ने ही खाकी को खाक में मिलाने की ठान रखी है।
पूर्व कमिश्नर ने दुत्कारा-
पिछले साल फरवरी में हुए दंगों के लिए दिल्ली पुलिस के अनेक पूर्व कमिश्नरों तक ने खुल कर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को जिम्मेदार ठहराया। अमूल्य पटनायक तो दंगों के दाग के साथ 28 फरवरी 2020 को सेवानिवृत्त हो गए। उनके बाद स्पेशल कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को कार्यवाहक कमिश्नर बनाया गया। 30 जून 2021 को रिटायर हो रहे सच्चिदानंद श्रीवास्तव को 21 मई 2021 को  कमिश्नर नियुक्त किया गया है।
तफ्तीश की खुल रही पोल- 
दंगों की जांच में पुलिस की भूमिका की पोल लगातार अदालत में अनेक मामलों में खुल चुकी  है। कमिश्नर के पुख्ता सबूतों के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार करने के दावे के अदालत में धज्जियां उड़ रही हैं।
रिबैरो ने आईना दिखाया।-
देश के मशहूर रिटायर्ड आईपीएस अफसर जूलियो रिबैरो द्वारा दंगों के मामलों की जांच में पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाना कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त है।
विपक्षी दलों और पीड़ित समुदाय द्वारा पुलिस पर सत्ता के लठैत बन कर झूठे मामलों में गिरफ्तार करने के आरोप लगाना तो आम बात है लेकिन जब कई पूर्व पुलिस कमिश्नर और देश के मशहूर आईपीएस अफसर तक कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लगाए तो समझ लेना चाहिए कि कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की भूमिका बहुत ज्यादा ही गड़बड़ है।
सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते- 
दंगों के एक मामले में पुलिस की तफ्तीश की पोल खोलते हुए कड़कड़डूमा अदालत के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रुसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब ‘अपराध और सजा’ के हवाले से कहा कि "सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते हैं और सौ संदेहों को एक साक्ष्य/प्रमाण नहीं बना सकते"। इसलिए दोनों आरोपियों को हत्या की कोशिश (धारा 307) और शस्त्र अधिनियम के आरोप से मुक्त (डिस्चार्ज) किया जाता है।’’ 
कमिश्नर की काबिलियत पर सवाल-
कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव कितने काबिल है। इसका पता उनके कार्यकाल में घटित इन मामलों से चलता है।
किसानों की ट्रैक्टर परेड से कुछ किसान लालकिले तक पहुंच गए। लालकिले पर निशान साहिब फहराया और पुलिस पर हमला भी किया। दिल्ली की सीमाओं से ये किसान इतना लंबा रास्ता तय कर लालकिला कैसे पहुंच गए? लालकिले पर झंड़ा फहराना अगर शर्मनाक अपराध है तो इसके लिए कमिश्नर ही जिम्मेदार है। 
किसानों को लालकिला पहुंचने से रोकने में विफल रहने के लिए पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को पद से हटाया जाना चाहिए था। क्योंकि पुलिस कमिश्नर के गैर पेशेवर रवैये ने  दिल्ली के लोगों की जान को खतरे में डाल दिया था। कमिश्नर ने पुलिस के जवानों की जान के साथ भी खिलवाड़ किया। लालकिले पर खाई में कूद कर सिपाहियों ने अपनी जान बचाई। उन सिपाहियों के शरीर पर न तो सुरक्षा कवच (बॉडी प्रोटेक्टर) था ना ही हेलमेट। क्या किसी रैली या आंंदोलन में सिपाहियों को बिना सुरक्षा कवच या हेलमेट के तैनात किया जा सकता है।
कमिश्नर का कबूलनामा -
इस घटना के बाद पुलिस कमिश्नर ने बताया कि 25 जनवरी की देर शाम को उन्हें ये समझ आया कि वे (किसान) अपने वायदे से मुकर रहे हैं। जो आतंकवादी और आक्रामक लोग (एगरैसिव और मिलिटेंट एलिमेंट्स) उनमें थे उनको उन्होंने आगे कर दिया है। मंच पर भी उनका कब्जा हो गया है। भड़काऊ भाषण दिए गए हैं। इससे उनकी मंशा शुरू में ही समझ मेंं आ गई। 
पुलिस कमिश्नर के इस खुलासे से कमिश्नर की काबिलियत और भूमिका पर ही सवालिया  निशान लग जाते हैं। कमिश्नर का यह बयान ही उन्हें पद से  हटाने के लिए पर्याप्त था। 
सबसे पहला सवाल तो यह कि जब यह पता चल गया था कि आंदोलन का नेतृत्व मिलिटेंट के हाथों में चला गया है तो पुलिस ने ट्रैक्टर परेड को रद्द करने की तुरंत घोषणा क्यों नहीं की।आतंकियों को पकड़ा क्यों नहीं।
कमिश्नर आतंकी के नाम तो बता दो-
हालांकि कमिश्नर आज तक भी उन आतंकवादियोंं का नाम तक नहीं बता पाए है। इससे लगता है कि उन्होंने अपनी विफलता को छिपाने के लिए मिलिटेंट की कहानी सुनाई थी।
कमिश्नर,आईपीएस का अक्षम्य अपराध। 
बेकसूर लड़की को देशद्रोही बना दिया।- 
जलवायु /पर्यावरण कार्यकर्ता बेकसूर दिशा रवि को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने अक्षम्य अपराध किया है। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन और संयुक्त पुलिस आयुक्त प्रेमनाथ ने दिशा रवि के देशद्रोही होने की "कहानी" मीडिया में बताई।
जज धर्मेंद्र राणा ने न्याय का लट्ठ गाड दिया।-
 लेकिन अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली दिशा रवि को जमानत देकर दुनिया के सामने पुलिस के झूठ का पर्दाफाश कर दिया। जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को देशद्रोही बताने के पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि टूल किट में देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात ही नहीं है। सरकार से असहमति रखना अपराध नहीं है। जज धर्मेंद्र राणा ने इस तरह न्याय व्यवस्था में लोगों के भरोसे को कायम किया।
वीरता की तस्वीर-
इस मामले से इन तीनों आईपीएस अफसरों की काबिलियत और चरित्र की पोल खुल गई।
 वैसे "देशद्रोही" दिशा रवि की तस्वीर इन अफसरों को अपने घर में लगानी चाहिए। ताकि इनके परिवार और रिश्तेदार भी इन अफसरों की इस "बहादुरी" को देख देख कर गर्व से अपना सीना गर्व से चौड़ा कर सके। 
कमिश्नर,आईपीएस ने वर्दी को शर्मसार किया।- 
 21 साल की दिशा को देशद्रोह के मामले में फंसा देने से पता चलता है कि किसी को भी देशद्रोह के मामले में फंसा देना निरंकुश आईपीएस के लिए कितना आसान हो गया है। आईपीएस अफसरों ने खाकी वर्दी को खाक में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
माफी मांगना कब सीखोगे-
कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों मेंं अगर जरा भी शर्म बची है तो उन्हें दिशा से ही नहीं पूरी दुनिया से माफी मांगनी चाहिए। पुलिस ने जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के टूलकिट को ट्वीट करने के बाद ही एफआईआर दर्ज करके इस मामले का खुद ही अंतरराष्ट्रीयकरण किया। पुलिस की इस हरकत ने विदेश में भारत की छवि खराब कर दी।
 देशद्रोही ट्वीट-
पुलिस रस्सी का सांप बना देती है यह कहावत अब पुरानी हो गई है। एक ट्वीट से कैसे किसी को देशद्रोही बनाया जा सकता है इसका उदाहरण दिशा रवि का मामला है। पुलिस अकेडमी में भी इस उदाहरण को बताया जाना चाहिए। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव,आईपीएस प्रवीर रंजन और प्रेमनाथ के " देशद्रोही ट्वीट " विषय पर अकेडमी में लेक्चर भी आयोजित किए जाने चाहिए। ताकि प्रशिक्षण लेने वाले आईपीएस अपने इन वरिष्ठ आईपीएस की वीरता और पेशेवर "काबिलियत" को जान सके।
आईपीएस को जेल भेजा जाए - 
देशद्रोह के झूठे मामले में एक मासूम लड़की को फंसाने वाले इन अफसरों को अदालत द्वारा जेल भेजा जाए तो ही सही मायने में दिशा के साथ न्याय होगा। तभी सत्ता के लठैत बने आईपीएस ऐसे अपराध करना बंद करेंगे।
पूत के पैर पालने में दिख जाते हैं।- 
अपराध शाखा के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन का लिखा एक पत्र भी उनकी पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लगाने के लिए पर्याप्त है। प्रवीर रंजन ने पत्र में दंगों के मामले की जांच करने वाले अफसरों से कहा गया है कि हिंदु आरोपियों की गिरफ्तारी से इस समुदाय में रोष है इसलिए किसी को गिरफ्तार करते समय विशेष सावधानी बरतें। हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कैत ने ऐसा पत्र लिखने पर फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने प्रवीर रंजन से कहा कि वह अपने और पूर्ववर्ती अफसरों की ओर से लिखे गए ऐसे पांच पत्र अदालत को दिखाए।
टूलकिट मामले और इस पत्र से अंदाजा लगाया 
अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में अगर वह कमिश्नर बने तो क्या होगा।
मौलाना साद क्या अब पाक साफ हो गया?-
निजामुद्दीन स्थित मरकज में तब्लीग़ी जमात के जमावड़े को लेकर पुलिस ने मौलाना साद के खिलाफ पिछले साल गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था। लेकिन आज तक भी मौलाना को गिरफ्तार करना तो दूर उससे पूछताछ तक नहीं की गई। जबकि शुरु में पुलिस ने ऐसा प्रचार किया जैसे कोरोना फैलाने के लिए मौलाना साद और तब्लीगी जमात ही जिम्मेदार है। इस मामले से भी आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। क्योंकि मौलाना साद अगर कसूरवार है तो उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। 
आईपीएस पर भी एफआईआर हो-
दंगों के जिन मामलों में अदालत में पुलिस की कहानी की झूठी निकली है। उन मामलों के जांच अधिकारियों और संबंधित आईपीएस अफसरों के खिलाफ भी तो एफआईआर दर्ज की ही जानी चाहिए। क्योंकि किसी को झूठा फंसाना तो साफ तौर पर साजिशन किया गया अपराध होता है।
चिड़ीमार बना स्पेशल सेल- 
आतंकवादियों से निपटने का दावा करने वाला स्पेशल सेल अब चिड़ीमार बन चिड़िया यानी ट्विटर को डराने का काम करने लगा है। भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस के एक कथित टूल किट को लेकर ट्वीट कर दिया। ट्विटर ने उस पर मैनुप्लेटेड  टैग कर दिया। जिसमें तथ्य सही न हो या कुछ जोड़ तोड़ की गई हो उसे ट्विटर द्वारा मैनुप्लेटेड घोषित किया जाता है।
अब ऐसे मामले में भी पुलिस इस तरह सक्रिय हो गई, जैसे किसी आतंकवादी को पकड़ने जाना है। स्पेशल सेल की पूरी टीम ट्विटर के दफ्तर में और कांग्रेस के नेता को नोटिस देने के लिए भेजी गई। सिर्फ़ नोटिस देने के लिए स्पेशल सेल के 5-10 पुलिसकर्मियों को भेजने से यह लगता है कि पुलिस उन्हें डराना चाहती है। क्योंकि नोटिस देने जैसा मामूली काम तो एक सिपाही द्वारा भी बखूबी किया जाता है। 
कमिश्नर बताएं क्या सत्ताधारियों का अपराध, अपराध नहीं होता?- 
मंत्री अनुराग ठाकुर का गोली मारो सालों/गद्दारों को, सांसद प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के भडकाऊ बयानों पर पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। 
जनवरी 2020 में जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में घुस कर गुंडों ने छात्रों के साथ मारपीट की। इस वारदात का वीडियो दुनिया ने देखा एबीवीपी से जुुुड़ी कोमल शर्मा का नाम भी आया। यह सब जगजाहिर है लेकिन संविधान और कानून को ताक पर रख खाकी को खाक में मिलाने वाले आईपीएस अफसरों की नजर में यह सब अपराध मायने नहीं रखता। इसलिए आज तक इन मामलों में किसी नेता या किसी हमलावर को गिरफ्तार नहीं किया गया।
दूसरी ओर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में लाइब्रेरी में घुसकर भी इसी पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज कर अपनी बहादुरी दिखाई थी।

"मोदी जी हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दी।" ऐसे पोस्टरोंं पर भी सच्चिदानंद
श्रीवास्तव द्वारा गरीब पोस्टर चिपकाने वालों  को गिरफ्तार करना शर्मनाक है।
आईपीएस के एक फोन पर पकड़ा जाता।- 
 सागर पहलवान की हत्या के बाद सुशील पहलवान हरिद्वार गया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार रामदेव ने एक संयुक्त पुलिस आयुक्त को सुशील की मदद करने के लिए फोन किया था। इस पत्रकार ने 12 मई को ही यह उजागर कर दिया था कि रामदेव ने अगर किसी संयुक्त आयुक्त को फोन किया है तो वह रामदेव की ही जाति के सुरेंद्र सिंह यादव भी हो सकते हैं। क्योंकि सुरेंद्र सिंह यादव के नेतृत्व में ही इस मामले की जांच की जा रही थी।
वैसे रामदेव ने जिस भी आईपीएस को फोन किया हो वह अगर तुरंत हरिद्वार पुलिस को फोन कर देता तो सुशील पकड़ा जाता। 
रामदेव के सामने पुलिस का पवनमुक्तासन।-
इस मामले में रामदेव और आईपीएस के कनेक्शन का जिक्र आया। लेकिन पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की चुप्पी से साफ है कि रामदेव ने सुशील को पनाह दी थी।
एक लड़की को देशद्रोह के झूठे मामले में गिरफ्तार करने वाले बहादुर कमिश्नर और आईपीएस अफसरों की रामदेव का नाम आते ही फूंक निकल गई। रामदेव को सुशील को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार करना तो दूर  आईपीएस उसका नाम तक लेने से डरते हैं।
ओलंपियन सुशील स्कूटी पर घूम रहा था।- 
चिड़ीमार कमिश्नर का स्पेशल सेल भी सुशील पहलवान को पकड़ने में नाकाम रहा तो उसका आत्म समर्पण करा लिया। 
आईपीएस खुद को बहुत अच्छा कहानीकार होने के मुगालते में जीते हैं लेकिन सुशील पहलवान को स्कूटी पर घूमते हुए पकड़ने की कहानी ने ही आत्म समर्पण की पोल खोल दी। लॉकडाउन में बिना हेलमेट स्कूटी पर घूम घूम कर सुशील शायद खुद ही पुलिस को खोज रहा था। 
इस मामले में रोहिणी पुलिस ने भी हरियाणा के बदमाशों को आधी रात में घेवरा में पैदल घूमते हुए गिरफ्तार करने की कहानी बना कर अपनी खिल्ली उड़वाई। यह भी आत्म समर्पण ही था।
असल में श्रेय, प्रचार इनाम और अपने को काबिल दिखाने के चक्कर में अफसर ऐसी हास्यास्पद कहानी गढ़ देते है। इसीलिए अदालत में पुलिस की कहानियों की धज्जियां उड़ती हैं।
वैसे अगर आरोपी ने आत्म समर्पण किया है तो उसे आत्म समर्पण ही दिखाओगे तो कम से कम खिल्ली तो नहीं उड़ेगी।
सुशील ने कमिश्नर को चित्त किया।-
टूलकिट मामले में मीडिया में जोर शोर से कहानी बताने वाले कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने सुशील पहलवान के बारे में मीडिया में बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। मोबाइल झपटमार पकड़ने पर भी मीडिया में प्रचार पाने को लालायित रहने वाले आईपीएस सुशील के मामले में चुप्पी साध गए।
 सुशील के नौकर की रहस्यमय मौत।
 सुशील पहलवान के नौकर की 5 जनवरी 2018 को  रहस्यमय हालत में मौत हो गई। स्टेडियम से जुड़े ल़ोगों ने बताया कि माडल टाउन पुलिस ने मामला रफा दफा कर दिया। इस मामले में भी कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने चुप्पी साध रखी हैं।
वैसे सागर पहलवान हत्याकांड मामले की तफ्तीश पर शुरुआत से ही सवालिया निशान लग रहा है। अब अदालत में पता चलेगा कि अपराध शाखा के धुरंधरों ने सुशील के खिलाफ सबूत जुटाने में कितनी ईमानदारी से काम किया है।
कमिश्नर में आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई करने का दम नहीं -
संयुक्त पुलिस आयुक्त की कायराना हरकत- 
26 जनवरी 2021 को एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें सुरेंद्र सिंह यादव कह रहे हैं कि इनको (किसानों) को शांति से समझाओ, वरना ये हमारे ऊपर से जाएंगे। सुरेंद्र सिंह यादव ने जय जवान जय किसान के नारे लगाए और पुलिस कर्मियों से भी लगवाए। अनेक वरिष्ठ आईपीएस अफसरों ने सुरेंद्र सिंह यादव की इस हरकत को पुलिसवालों का मनोबल तोड़ने वाला बताया है। अफसरों का कहना है कि ऐसी कायराना हरकत करने वाले अफसर को तो फोर्स और सेना मे बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाता है। ऐसे अफसर को सेना में तो नौकरी से निकाल दिया जाता है।
जब सुरेंद्र यादव जैसे आईपीएस कमिश्नर की टीम मे हैं तो भला किसानों को लालकिला जाने से कौन रोक सकता था। वैसे सुरेंद्र यादव मातहतों को जलील करने के लिए भी बदनाम है।
 जालसाजी से अफसर बना ?-
पूर्वी जिला के एडिशनल डीसीपी संजय सहरावत के खिलाफ सीबीआई ने शिक्षा,जन्म के जाली प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है। लेकिन कमिश्नर ने सहरावत के खिलाफ कोई कार्रवाई  नहीं की।
डीसीपी एंटो की पोल खुली-
साल 2020 में डीसीपी एंटो अल्फोंस तबादला होने पर द्वारका जिले से तीन टच स्क्रीन कंम्यूटर अवैध रुप से अपने साथ ले गए थे। डीसीपी द्वारा किए गए कथित गबन के इस मामले को इस पत्रकार ने उजागर किया।
इस पत्रकार से एंटो ने कंम्यूटर लाने से साफ इनकार किया था। लेकिन कमिश्नर ने जांच कराई तो कंम्यूटर एंटो के पास ही मिले।
मामला उजागर हो जाने पर कंम्प्यूटर एंटो को री एलोकेट करके बचा लिया गया।
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने एंटो अल्फोंस के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। 
आईपीएस समीर शर्मा-
पिछले साल ही पश्चिम जिले के तत्कालीन एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा के निजी स्टाफ द्वारा सट्टेबाजों से वसूली का मामला सामने आया था। इस मामले में आईपीएस समीर शर्मा की भूमिका संदिग्ध थी। लेकिन समीर शर्मा के खिलाफ कोई  कार्रवाई नहीं की गई। समीर शर्मा का सिर्फ तबादला करके बचा लिया गया।
अगर कोई काबिल कमिश्नर होता तो उपरोक्त मामलों में सख्त कार्रवाई करता।
एफआईआर दर्ज नहीं करते-
सच्चिदानंद श्रीवास्तव के राज में आम आदमी की तो क्या पुलिसकर्मियों तक की एफआईआर सही दर्ज नहीं की गई । 
रामदेव पर एफआईआर नहीं की- 
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एलौपैथी और डॉक्टरों के बारे में आपत्तिजनक बयान देने  वाले रामदेव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायत दी। लेकिन कमिश्नर ने कोरोना योद्धाओं की एफआईआर तक दर्ज नहीं की।
सुशील ने दुकानदार को पीटा। 
माडल टाउन के दुकानदार सतीश गोयल की बकाया रकम मांगने पर ओलंपियन सुशील पहलवान और उसके साथियों द्वारा पिटाई करने का मामला सामने आया है।
सतीश ने पिछले साल 8 सितंबर को इस मामले की शिकायत माडल टाउन थाने में की थी। लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की।
डीसीपी के बेटे की एफआईआर 6 दिन बाद दर्ज।-
 माडल टाउन में दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त डीसीपी सतवीर दहिया के बेटे दीपक को बदमाश काला जठेड़ी ने रंगदारी के लिए धमकी दी। दीपक ने माडल टाउन थाने में 25 दिसंबर 2020 को शिकायत दी। लेकिन पुलिस ने उसकी भी एफआईआर 6 दिन बाद दर्ज की।इस मामले में भी सुशील पहलवान का नाम आया है।
हवलदार के साथ नाइंसाफी-
ट्रैफिक पुलिस में तैनात हवलदार महेंद्र की छाती में चाकू मारा गया। केशव पुरम थाना पुलिस ने हत्या की कोशिश का मामला दर्ज करने की बजाए धारा 323 के तहत साधारण मारपीट का मामला दर्ज कर दिया। ट्रैफिक पुलिस में तैनात आईपीएस अफसर ने तत्कालीन डीसीपी विजयंता गोयल को सारी बात बताई। इसके बावजूद हत्या की कोशिश का मामला दर्ज नहीं किया गया। 
आईपीएस की भूमिका पर सवाल -
 इन सभी मामलों से आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। लेकिन कमिश्नर ने संबंधित अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
कमिश्नर,आईपीएस और उनकी पत्नियों ने धज्जियां उड़ाई।
पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव और उनके मातहत दर्जनों आईपीएस ही नहीं उनकी पत्नियां तक भी मास्क और दो गज दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ाते दिखाई दिए हैं।
ऐसे आईपीएस अफसरों को सात लाख से ज्यादा लोगों के चालान काटने का नैतिक रुप से कोई हक नहीं बनता है।
गृहमंत्री को गुलदस्ता- 
गृहमंत्री अमित शाह पुलिस मुख्यालय में बिना मास्क के पहुंचे तो कमिश्नर ने गुलदस्ते से उनका स्वागत किया। अगर कोई ईमानदार कमिश्नर होता तो गृहमंत्री का चालान काट कर अपने कर्तव्य पालन की मिसाल बनाता।
मंत्रियों से नजदीकियां,आईपीएस से दूरियां।
कमिश्नर पुलिस मुख्यालय में बैठक में अपने स्पेशल कमिश्नरों से तो दस-पंद्रह फीट की दूरी पर बैठते हैं। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह, गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी और सांसद प्रवेश वर्मा तक के साथ सट कर बैठते और खड़े होते हैं। मॉस्क, दो गज दूरी के नियम का उल्लंघन करने वाले कमिश्नर को क्या अपने स्पेशल कमिश्नर से ही कोरोना संक्रमण होने का खतरा है।
लालकिले पर सम्मानित-
30 जून को रिटायर हो रहे सच्चिदानंद श्रीवास्तव को अगर एक्सटेंशन दी जाती है या सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद दिया जाता है तो यह बिलकुल साफ हो जाएगा कि सत्ता का लठैत बन  दिशा रवि को फंसाने जैसे काम और भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए उनके आका नेताओं ने उन्हें इनाम(बख्शीश) दिया है। अगर ऐसा हुआ तो जिस लालकिले तक हुडदंगी किसानों को पहुंचने से रोकने में कमिश्नर विफल रहे। प्रधानमंत्री या गृहमंत्री को उसी लालकिले पर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को सम्मानित भी कर देना चाहिए।
 पत्रकारों पर बहादुरी दिखाई-
कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को ऐसे बुजदिल, कमजोर कमिश्नर के रुप में भी याद किया जाएगा जिसने अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर और गिरफ्तारी की कार्रवाई की।
 पत्रकार गिरफ्तार-
सिंघु बार्डर पर किसानों पर भाजपा के ल़ोगों ने हमला कर दिया। पत्रकार मनदीप पूनिया ने भाजपा और पुलिस की सांठगांठ की पोल खोल दी तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
 पत्रकार प्रताड़ित- 
इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार महेंद्र मनराल को मौलाना साद के ऑडियो टेप की खबर प्रकाशित करने पर नोटिस भेज कर पूछताछ के नाम पर परेशान किया गया।
26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड में शामिल एक युवक की मौत हो गई  पत्रकार राजदीप सर देसाई ने ट्वीट कर दिया कि मौत के लिए पुलिस जिम्मेदार है। इस पर पुलिस ने  उसके खिलाफ एफआईआर ही दर्ज कर दी।
अगर कोई खबर गलत है तो पुलिस के पास उसका खंडन करने का हक है। पुलिस के खंडन को मीडिया द्वारा प्रकाशित किया जाता है। अब ट्विटर का जमाना है अगर कोई तथ्य गलत है तो पुलिस के पास विकल्प है कि उसी ट्वीट के नीचे तुरंत अपना खंडन या स्पष्टीकरण दे सकती है। 
लेकिन गिरफ्तार या एफआईआर दर्ज करना तो सरासर तानाशाही है। इससे पता चलता है कि अंग्रेजों के राज में भी  ऐसे ही तानाशाह अफसर  के कारण ही देश गुलाम रहा होगा।
 कमिश्नर फोन करते थे- 
पिछले कई सालों में इस पत्रकार ने यह देखा है कि आईपीएस अफसरों को किसी खबर पर उनका पक्ष लेने के लिए फोन किया जाता है या व्हाट्सएप पर संदेश भेजा जाता है।
तो वह फोन रिसीव नहीं करते और कॉल बैक भी नहीं करते। जबकि पहले तो पुलिस कमिश्नर तक पत्रकारों को कॉल बैक करते थे।
शायद  ऐसे आईपीएस इस भ्रम में जीते हैं कि फोन नहीं सुनेंगे या जवाब नहीं देंगे तो खबर रुक जाएगी। इनका सोचना ठीक ऐसा है कि अगर मुर्गा बांग नहीं देगा तो सुबह नहीं होगी। 
ऐसे आईपीएस को समझ लेना चाहिए कि बात न करने से उनकी ही भूमिका पर सवालिया निशान लगता है। वैसे नाकाबिल और अहंकारी आईपीएस अफसर ही ऐसा व्यवहार करता है।

गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः । प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते॥ 
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने श्रेष्ठ गुणों और सच्चरित्र का महत्व स्वीकार किया है।
वे कहते हैं कि इन्हीं के कारण साधारण इंसान श्रेष्ठता के शिखर की ओर अग्रसर होता है जिस प्रकार महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, उसी प्रकार ऊंचे आसन पर विराजमान व्यक्ति महान नहीं होता। महानता के लिए इंसान में सदुगणों एवं सच्चरित्र का होना जरूरी है। इससे वह नीच कुल में जन्म लेकर भी समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है।

पुलिस कमिश्नर और आईपीएस की पोल खोलने वाले मामलों की खबरें विस्तार से नीचे दी गई हैं।

जज धर्मेंद्र राणा ने न्याय का लट्ठ गाड दिया। 
दिशा को देशद्रोही बताने वाले कमिश्नर,आईपीएस की खुल गई पोल।
अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली दिशा रवि को जमानत देकर दुनिया के सामने दिल्ली पुलिस का पर्दाफाश कर दिया। 
जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को देशद्रोही बताने के पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ा दी। 
जज ने अपने आदेश में कहा कि टूल किट में  देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात ही नहीं है।
अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा के आदेश के मुख्य अंश।
टूलकिट की सामग्री में कहीं देशद्रोह नहीं है।
26 जनवरी की हिंसा के मामले में गिरफ्तार लोगों से पुष्टि नहीं। सरकार से असहमति रखना अपराध नहीं है। 
मुखर जनता मजबूत लोकतंत्र का संकेत-
एक उदासीन और बेहद विनम्र जनता के मुकाबले जागरूक और मुखर जनता एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र का संकेत है।
भारत की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता कभी भी अलग अलग विचारों की विरोधी नहीं रही।ऋग्वेद में एक श्लोक में भी लिखा गया है कि हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहे जो किसी से न दबे,उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों।
 मौखिक दावे-
सिर्फ मौखिक दावे के अलावा मेरे संज्ञान में ऐसा कोई सबूत नहीं लाया गया जो इस दावे की तस्दीक करता हो कि आरोपी या उनके सह साजिशकर्ता की साजिश के बाद किसी भी भारतीय दूतावास में किसी तरह की कोई हिंसा हुई है।
खालिस्तानी से संपर्क का सबूत नहीं-
जज ने कहा कि दिशा रवि का पीजेएफ़ के खालिस्तानी समर्थक कार्यकर्ताओं से संबंध के भी कोई सबूत नहीं हैं। इस बात के भी कोई सबूत नहीं मिले हैं 26 जनवरी को हुई हिंसा का संबंध दिशा रवि या पीजेएफ से है
जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को एक लाख के पर्सनल बॉन्ड पर ज़मानत दी। उन्होंने कहा, "रिकॉर्ड में कम और अधूरे सबूतों को ध्यान में रखते हुए मुझे 22 वर्षीय लड़की, जिसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, वो ज़मानत के नियम तोड़गी, इसका भी ठोस कारण नहीं मिल रहा है।"
जज ने कहा कि तथाकथित 'टूलकिट' से पता चलता है कि इससे किसी भी तरह की हिंसा भड़काने की कोशिश नहीं की गई।
नागरिक सरकार की अंतरात्मा के रखवाले-
किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की अंतरात्‍मा के रखवाले होते हैं और उन्‍हें केवल इस वजह से जेल में नहीं डाला जा सकता कि वे सरकारी नीतियों से असहमति जताई हैं। सरकार के चोट खाए गुमान को मदद के लिए राजद्रोह नहीं लगाया जा सकता। एक जागरूक और मुखर नागरिक समाज एक स्‍वस्‍थ्‍य और जीवंत लोकतंत्र की निशानी है।
"26 जनवरी की हिंसा से दिशा के जुड़ाव के सबूत नहीं"-
जज धर्मेंद्र राणा ने कहा, "मेरे सामने इस बात का लेशमात्र सबूत भी नहीं पेश किया गया है कि 26 जनवरी 2021 को हुई हिंसा करने वालों का पीजेएफ या आरोपी से कोई जुड़ाव हो।" कोर्ट ने कहा कि 'ऑन रिकॉर्ड ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह लगता हो कि दिशा किसी अलगाववादी विचार को मानने वाली हैं। अभियोजन पक्ष यह नहीं बता सका कि दिशा रवि ने कैसे अलगाववादी तत्वों को ग्‍लोबल ऑडियंस दी।'
वॉट्सऐप ग्रुप बनाना या टूलकिट का एडिटर होना अपराध नहीं है-
अदालत ने कहा, "वॉट्सऐप ग्रुप बनाना या किसी अहान‍िकारक टूलकिट का एडिटर होना अपराध नहीं है। इसके अलावा उस टूलकिट या पीजेएफ के साथ लिंक आपत्तिजनक नहीं पाया गया है, ऐसे में उन्‍हें टूलकिट और पीजेएफ से लिंक करने वाला सबूत मिटाने के लिए वॉट्सऐप चैट डिलीट करना बेमायने हो जाता है।" कोर्ट ने कहा, "उसकी (दिशा) पहचान छिपाने की कोशिश और कुछ नहीं, केवल बेवजह के विवादों से बचने की कवायद मालूम होती है।"
जज ने कहा कि दिशा को जमानत न देने की कोई वजह मौजूद नहीं है
 आवाज उठाना देशद्रोह तो जेल ठीक-
दिशा ने अदालत में कहा कि किसानों के प्रदर्शन को वैश्विक स्तर पर उठाना राजद्रोह है तो मैं जेल में ही ठीक हूं। 
पुलिस ने कहा कि टूलकिट का मंसूबा भारत को बदनाम करना और अशांति पैदा करना था।
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दंगों की तफ्तीश की पोल अदालतों में खुलने लगी।
सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते, सौ संदेहों को सबूत नहीं बना सकते।
कमिश्नर का दावा है कि दंगों के मामले में पुख्ता सबूत/साक्ष्यों के आधार पर ही आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। 
पुलिस कहती है कि दंगों के मामले की जांच में यह नहीं देखा जाता कि आरोपी किस धर्म/मजहब, जाति, पहचान या रंग का है। जिनके खिलाफ पुख्ता सबूत पाए गए उन्हें जेल की सलाखों के पीछे बंद किया गया है।
लेकिन पुलिस के दावों और तफ्तीश की पोल अब आए दिन अदालतों में खुल रही है। 
कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान-
ऐसे मामलों से पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबिलियत/ भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
 दंगों की जांच में पुलिस की भूमिका पर देश के मशहूर रिटायर्ड आईपीएस अफसर जूलियो रिबैरो तक सवाल उठा चुके हैं। 
पुलिस के बारे में कहा जाता है कि वह रस्सी का सांप बना देती है। लेकिन लगता है अब पुलिस खरगोशोंं को घोड़ा बनाने की कोशिश में लगी  है। लेकिन पुलिस की यह कोशिश अदालत में फेल हो रही है।
अदालत चकित -
पुलिस हत्या और हत्या की कोशिश तक के मामले में किस तरह की तफ्तीश करती है और कितने अजीबोगरीब आधार पर गिरफ्तार करती है। इस पर अदालत भी चकित हो जाती है।
पुलिस ने पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान हत्या के प्रयास के मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया था। अदालत यह देख कर चकित रह गई कि पुलिस ने एक व्यक्ति की हत्या के प्रयास के आरोप में दो लोगों पर आरोप लगाने की पूरी कोशिश की जबकि कथित पीड़ित खुद पुलिस की जांच से गायब है। 
अदालत ने कहा कि अनुमान को खींच कर  साक्ष्य/सबूत का आकार/रुप नहीं  दिया जा सकता।
सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते-
कड़कड़डूमा अदालत के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रुसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब ‘अपराध और सजा’ के हवाले से कहा कि "सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते हैं और सौ संदेहों को एक साक्ष्य/प्रमाण नहीं बना सकते"। इसलिए दोनों आरोपियों को हत्या की कोशिश (धारा 307) और शस्त्र अधिनियम के आरोप से मुक्त (डिस्चार्ज) किया जाता है।’’ 
मान लो हत्या की कोशिश की है-
पुलिस ने इमरान उर्फ तेली और बाबू पर दंगों के दौरान मौजपुर रेड लाइट के पास एक भीड़ का हिस्सा होने का आरोप लगाया था, जिसमें कथित राहुल पर गोली चलाई गई थी।
पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी व्यक्ति दंगाई भीड़ का हिस्सा थे और इस लिए "यह माना जाना चाहिए कि उन्होंने हत्या के प्रयास का अपराध किया था"। 
जिसे गोली लगी वह कहां है ?-
अदालत ने कहा कि जिस कथित पीड़ित राहुल को गोली मारी गई वह कहां है ? उसका बयान भी रिकॉर्ड पर नहीं है।
पुलिस ने बताया कि राहुल, जिसे कथित रूप से दंगाइयों द्वारा गोली मार दी गई है, ने अपने मेडिको लीगल केस (एमएलसी) में गलत पता और गलत मोबाइल फोन नंबर दिया था।
पुलिस ने पीड़ित को देखा तक नहीं- 
अदालत ने कहा, 'जब तक पुलिस अस्पताल पहुंचती, कथित पीड़ित राहुल गायब हो चुका था। ऐसा नहीं है कि राहुल ने कोई शुरुआती बयान दिया और फिर गायब हो गया।
इससे स्पष्ट है कि पुलिस ने राहुल को कभी नहीं देखा। 
किसने, किसे गोली मारी मालूम नहीं- 
एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने पुलिस से सवाल किया, कि "यह मामला ऐसा है, जहां कौन कहेगा कि किसने किस पर गोली चलाई और किसके द्वारा और कहांं पर ।’’ “कथित पीड़ित को पुलिस ने कभी देखा तक नहीं है। उसने कभी किसी गोली की चोट या किसी भीड़ / दंगाइयों के बारे में कोई बयान नहीं दिया। ऐसे में पुलिस की जांच से भी पीड़ित के अनुपस्थित रहने पर आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 कैसे बनाई जा सकती है,"?
हत्या की कोशिश का कोई सबूत नहीं-
अदालत ने एक मार्च 2021 को दिए फैसले में कहा, ‘‘फौजदारी न्याय प्रणाली" कहती है कि आरोपी व्यक्ति पर आरोप तय करने (चार्ज फ्रेम)  के लिए उसके खिलाफ कुछ सबूत/सामग्री होनी चाहिए। अनुमान/पूर्वधारणा सबूत का स्थान नहीं ले सकता। आरोप पत्र में धारा 307 या शस्त्र कानून के तहत मामला चलाने के लिए कोई सबूत नहीं है।’’
उनके पास से किसी भी हथियार की बरामदगी भी नहीं हुई थी।
अदालत ने कहा हालांकि दोनों आरोपियों के खिलाफ गैर कानूनी तरीके से जमा होने और दंगा करने के आधार पर मामला चलाया जा सकता है। इस लिए मामले को मैजिस्ट्रेट की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया।
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हत्या के आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं, हाईकोर्ट ने जमानत दी-
दिल्ली हाइकोर्ट ने पिछले साल हुए दंगों के दौरान हुई हत्या के तीन आरोपियों को 21 फरवरी 2021 को जमानत दे दी।  
हाइकोर्ट के जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि जुनैद, चांद मोहम्मद और इरशाद के खिलाफ प्रत्यक्ष, परिस्थितिजन्य या फॉरेंसिक/वैज्ञानिक किसी भी तरह के सबूत नहीं हैंं। 
इन तीनों पर फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के दौरान शाहिद नाम के शख्स की हत्या का आरोप है। ये 1 अप्रैल 2020 से जेल में थे। 
पुलिस के मुताबिक ये तीनों उन लोगों में शामिल थे जो सप्तर्षि बिल्डिंग की छत पर थे और दूसरे छत पर मौजूद लोगों को निशाना बना रहे थे। पुलिस का आरोप है कि इसी दौरान गोली लगने से सप्तर्षि बिल्डिंग की ही छत पर मौजूद शाहिद की मौत हो गई थी। 
पुलिस ने गोलीबारी की अनदेखी की-

जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि वीडियो में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि हेलमेट पहने एक व्यक्ति मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से फायरिंग कर रहा था। उस वीडियो में, फायरिंग केवल मोहन नर्सिंग होम बिल्डिंग से दिखाई दी है, ना कि सप्तऋषि बिल्डिंग से होती हुई दिखाई दी है। पुलिस ने जांच में केवल एक तरफ की इमारतों पर ध्यान केंद्रित किया, मोहन नर्सिंग होम की तरफ से की गई गोलीबारी की अनदेखी की है।
अपने समुदाय के व्यक्ति को मार देंगे?-अदालत ने यह भी कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि याचिकाकर्ता दंगे के दौरान अपने ही समुदाय के व्यक्ति को मार देंगे।
अदालत ने कहा, "न तो आरोपियों का कोई मकसद था और न ही अभियोजन पक्ष ने पूरे मामले में किसी भी मकसद का आरोप लगाया है। इस लिए यह मानना ​​मुश्किल है कि याचिकाकर्ता सांप्रदायिक दंगे का इस्तेमाल अपने समुदाय के व्यक्ति को मारने के लिए कर सकते हैं।
दूसरे समुदाय के लोगों को जाने देते ?-अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष का खुद मानना है कि याचिकाकर्ताओं ने सप्तऋषि बिल्डिंग में मौजूद  मुकेश, नारायण, अरविंद कुमार और उनके परिवार के सदस्यों को उनकी जान बचाने के लिए वहां से जाने दिया। ऐसे में अगर वे (आरोपी) सांप्रदायिक दंगे में शामिल थे और दूसरे समुदाय के लोगों को नुकसान पहुंचाना चाहते थे तो फिर उन्होंने उक्त लोगों को जाने क्यों दिया?
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तब्लीगी जमात के पाप गिनाने से पुलिस के पाप कम नहीं हो जाते।-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर और IPS जिम्मेदार-
सच्चाई यह है कि मरकज में हजारों लोगों की उपस्थिति के लिए पुलिस अफसर जिम्मेदार हैं। एक तो पुलिस ने लॉकडाउन लागू होने के बाद भी उनको हजारों की संख्या में मरकज में जमा होने दिया, दूसरा उनको वहां से तुरंत निकालने की कार्रवाई/व्यवस्था नहीं की। मौलाना और उसके 6 साथियों के खिलाफ एफआईआर भी 31 मार्च 2020 को दर्ज की गई। पुलिस महामारी के भयंकर संकट के दौर में भी सिर्फ मरकज वालों को नोटिस थमा कर चेतावनी देकर अपनी खानापूर्ति करती रही।
NSA का आना , पुलिस कमिश्नर की नाकामी?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा 28-29 मार्च 2020 को आधी रात को मरकज के मौलाना से मिलना। इसके बाद मरकज से लोगों को निकालना शुरू करना।
इससे पता चलता है कि क्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव और वरिष्ठ आईपीएस अफसर इस मामले से निपटने में असफल/ नाकाम हो गए थे?
क्या पुलिस कमिश्नर और वरिष्ठ आईपीएस अफसर मरकज जैसे मामले को अपने स्तर पर सुलझाने के काबिल नहीं हैं।
मौलाना साद का एफआईआर दर्ज होने के बाद फरार हो जाना भी पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हैं।
दिल्ली में दंगों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल  दंगा ग्रस्त इलाकों में गए थे।
उस समय दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर बृजेश कुमार गुप्ता तक ने  कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को अगर सड़कों पर उतरना पड़ा है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
मरकज के मामले में भी अजीत डोभाल के जाने से एक बार फिर पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अधिकारियों की नाकामी उजागर हुई है।




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