Thursday 8 September 2022

10 लाख वसूलने वाले पुलिसवाले ने पैर पकड़े। SHO का रीडर हिमायती बना। DCP उषा रंगनानी कार्रवाई करें।

        कमिश्नर संजय अरोड़ा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाओ।


दस लाख वसूलने वाले पुलिसकर्मी अब पैर पकड़ रहे हैं।

इंद्र वशिष्ठ 
पुलिसकर्मी किसी पर अत्याचार और वसूली करते समय तो निरंकुश, बेखौफ राक्षस जैसे हो जाते है। उस समय उन्हें कानून या वरिष्ठ अफसरों का बिल्कुल डर नहीं होता है
लेकिन जब शिकायत हो जाती है तो आईपीएस अफसरों के सामने ही नहीं, बल्कि शिकायतकर्ता के सामने भी मिमियाने/ गिडगिडाने लगते हैं। 

दस लाख वसूली मामले में एक नया मोड़ आया है। 6 सितंबर की शाम को दो पुलिसकर्मी अशोक विहार निवासी सुनील रोहिल्ला(62) के घर गए। सुनील घर में नहीं था। घर में सुनील के बुजुर्ग पिता थे। उनमें से एक पुलिसकर्मी सब-इंस्पेक्टर सुरेंद्र दलाल ने अपना परिचय अशोक विहार एसएचओ के रीडर के रुप में दिया।
सुरेंद्र के साथ गए पुलिसकर्मी ने सुनील के 92 वर्षीय पिता से कहा कि मेरी नौकरी चली जाएगी, सस्पेंड हो जाऊंगा, आपके पैर पकड़ रहा हूं।
सुनील के पिता ने इन पुलिसकर्मियों की सुनील से फोन पर बात कराई। पुलिसकर्मी ने कहा आपसे मिलना है बैठ कर बात करनी है।
डीसीपी से शिकायत कर देंगे-
 सुनील ने इन पुलिसकर्मियों से कहा कि हमें तंग मत करो, वरना मेरे पिता डीसीपी उषा रंगनानी से तुम्हारी शिकायत कर देंगे। 
सुनील उस अजय रोहिल्ला के ताऊ का लड़का है जिसे पुलिस ने अवैध हिरासत में रखा, उसकी पिटाई की और वसूली की। 
अजय की मां के साथ कार में सुनील भी बादली नहर पर पुलिसकर्मी मंजीत मलिक को दस लाख रुपए रिश्वत देने गया था। 
यह मामला उजागर होने के बाद एएटीएस के पुलिसकर्मी अब इस कोशिश में लगे हुए हैं कि अजय, सुनील आदि उनके खिलाफ बयान दर्ज न कराए। 
बचने के हथकंडे-
सच्चाई यह है कि जब पुलिसकर्मी भ्रष्टाचार आदि के मामले में फंस जाते हैं तो वह बचने के लिए पैर पकड़ने से लेकर धमकी देने तक के सारे हथकड़े इस्तेमाल करते हैं।
जबकि इस मामले में मोबाइल फोन और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज समेत इतने सबूत हैं कि अगर ईमानदारी से जांच की जाएं तो सभी आरोप साबित हो सकते हैं। इस मामले में तीन वकील भी चश्मदीद गवाह हैं। 
अशोक विहार थाना के एसएचओ के रीडर सुरेंद्र दलाल का एएटीएस के पुलिसकर्मी/अफसर को लेकर सुनील के घर जाने से भी आरोप साबित हो जाती। 

डीसीपी उषा रंगनानी कार्रवाई करें-
डीसीपी उषा रंगनानी, एसएचओ के रीडर सुरेंद्र दलाल की सीडीआर और सुनील के घर के आसपास लगे कैमरों की फुटेज से भी यह बात आसानी से पता लगा सकती है।
उत्तर पश्चिम जिले की डीसीपी उषा रंगनानी को एसएचओ के रीडर सुरेंद्र दलाल के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, कि वह बाहरी उत्तर जिले के एएटीएस के पुलिसकर्मी के साथ सुनील रोहिल्ला के घर क्यों गया था।
हवलदार को किसने भेजा-
डीसीपी को यह भी पता लगाना चाहिए कि 
रीडर सुरेंद्र दलाल सुनील रोहिल्ला के घर खुद गया था या उसे एसएचओ ने भेजा था। 
रीडर सुरेंद्र दलाल एएटीएस के किस पुलिसकर्मी को लेकर गया था  यह भी अफसर आसानी से पता लगा सकते हैं। 
सुनील आदि ने रकम का थैला मंजीत मलिक को दिया था इसलिए यह संभावना है कि सुनील के घर मंजीत मलिक ही गया होगा। मंजीत मलिक के मोबाइल फोन की सीडीआर से यह पता चल जाएगा।
इंस्पेक्टर कैसे बनाया?
पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा को यह जांच भी करानी चाहिए कि सतर्कता विभाग में जांच पेंडिंग होने के बावजूद संदीप यादव को इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नति कैसे दी गई।
एसीपी की भूमिका-
कमिश्नर को यह भी जांच करानी चाहिए कि जब वकील ने नाइट जीओ एसीपी विवेक भगत को अजय रोहिल्ला की गैरकानूनी हिरासत की शिकायत की थी तो एसीपी विवेक भगत ने उस पर क्या कार्रवाई की थी।





जिसने पहले खबर नहीं पढ़ी हो, उसके लिए पूरी खबर विस्तार से नीचे दी गई हैं-----


पैसे लेकर अपराधी को छोड़ दिया या बेकसूर से वसूली की?
दिल्ली पुलिस के दो इंस्पेक्टरों समेत कई पुलिस वालों पर वसूली के लिए एक व्यक्ति को अवैध तरीक़े से बंधक बनाने और यातनाएं देने का मामला सामने आया है।
पुलिस इंस्पेक्टरों ने पैसे लेकर अपराधी को छोड़ दिया या बेकसूर से वसूली की है। यह खुलासा तो अब जांच में ही होगा। लेकिन दोनों ही सूरत में मामला पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है।
बाहरी उत्तरी जिले के एएटीएस(वाहन चोरी निरोधक दस्ते) के इंस्पेक्टर संदीप यादव, इंस्पेक्टर पवन यादव और एएसआई राकेश आदि पर यह गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
 अदालत का डीसीपी को आदेश- 
रोहिणी अदालत की मेट्रोपोलिटन  मजिस्ट्रेट तपस्या अग्रवाल ने बाहरी उत्तरी जिले के डीसीपी बृजेन्द्र कुमार यादव को आदेश दिया है कि वह उपरोक्त पुलिसकर्मियों के मोबाइल फोनों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड सुरक्षित रखे।
अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि समय पुर बादली थाना, जहां पर एएटीएस का दफ्तर हैं वहां पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी सुरक्षित रखी जाए।
आठ अगस्त से लेकर दस अगस्त तक की मोबाइल फोनों की सीडीआर और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज सुरक्षित रखी जाए। 
इंस्पेक्टर संदीप यादव, इंस्पेक्टर पवन यादव आदि के सरकारी मोबाइल फोनों के अलावा उनके निजी मोबाइल फोनों की सीडीआर भी सुरक्षित रखी जाए।
जिससे पुलिसकर्मियों की मौके पर मौजूदगी/लोकेशन, शिकायतकर्ता के परिजनों को वसूली के लिए कॉल करने आदि का पता लगाया जा सकता है।
 वसूली के लिए अत्याचार-
आरोप है कि प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाने वाले अजय रोहिल्ला को एएटीएस वाले 8 अगस्त को रास्ते से ही कार समेत अगवा कर ले गए। हथकडी लगा कर गैरकानूनी तरीक़े से बंधक बंना कर रखा और उसकी पिटाई की गई।
आरोप है कि अजय रोहिल्ला को गैरकानूनी तरीके से मोबाइल फोन की सीडीआर निकलवाने के आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी देकर लाखों रुपए की मांग की गई। वसूली के बाद ही अजय रोहिल्ला को छोड़ा गया।
 10 लाख वसूलने का आरोप - 
अजय के वकील सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया कि दस लाख रुपए वसूलने के बाद अजय को छोड़ा गया। अजय से मांगे तो तीस लाख रुपए गए थे। 
पुलिस को रकम अजय की मां/परिजनों ने दी। रकम बादली इलाके में नहर के पास दी गई।
 मंजीत मलिक नामक पुलिसकर्मी रकम लेने आया था।
पुलिस ने अजय रोहिल्ला का लैपटॉप और मोबाइल फोन भी गैरकानूनी तरीके से अपने पास रखा हुआ है। जो उसे अभी तक वापस नहीं दिया है।
आईपीएस ईमानदारी से जांच करें- 
आईपीएस अफसर अगर ईमानदारी से जांच कराएं, अजय की मां/परिजनों और पुलिस कर्मियों के मोबाइल फोन की सीडीआर देखें तो यह भी आसानी से पता चल जाएगा कि कौन पुलिसकर्मी अजय की मां की लोकेशन (नहर) पर मौजूद था। इससे ही पता चल जाएगा कि वह पुलिसकर्मी वसूली की रकम लेने गया था।
अजय को जब पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाया हुआ था तब आधी रात के बाद तक वकील संजय शर्मा, करन सचदेवा और नितिन भारती आदि भी उसकी पैरवी करने वहां मौजूद थे। 
 निरंकुश, बेखौफ-
अगले दिन तक भी जब अजय रोहिल्ला पुलिस की गैरकानूनी हिरासत में था तभी वकील संजय शर्मा ने इस मामले की शिकायत पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा, स्पेशल कमिश्नर दीपेंद्र पाठक, संयुक्त आयुक्त विवेक किशोर आदि को की।  जिले के नाइट जीओ एसीपी विवेक भगत को तो 8-9 अगस्त की रात में ही सूचना दी गई थी। 
वरिष्ठ अफसरों को शिकायत करने के बावजूद अजय रोहिल्ला को पैसा वसूलने के बाद ही छोड़ा गया। इससे पता चलता है कि आईपीएस अफसरों के चहेते इंस्पेक्टर कितने बेखौफ और निरंकुश हो गए हैं।

इस मामले की मानवाधिकार आयोग को भी शिकायत की गई। पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने एएटीएस द्वारा दर्ज मामले  की जांच अपराध शाखा को सौंप दी है।
दूसरी ओर वकील नितिन भारती की ओर से भी वकील संजय शर्मा ने अदालत में  शिकायत दायर की जिस पर अदालत ने सीसीटीवी फुटेज और पुलिसकर्मियों की सीडीआर सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। वकील नितिन ने पुलिसकर्मियों पर उसके साथ भी दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है।
 पुलिस की कहानी- 
बाहरी उत्तरी जिला के डीसीपी बृजेंद्र कुमार यादव ने दस अगस्त को एएटीएस की एक कहानी मीडिया में  दी। पुलिस ने पवन कुमार नामक व्यक्ति को आठ अगस्त को गिरफ्तार कर दावा किया कि पवन मोटी रकम लेकर गैरकानूनी तरीके से लोगों को मोबाइल फोन की सीडीआर उपलब्ध करवाता था। पवन नोएडा की वीनस डिटेक्टिव एजेंसी में काम करता है।
पवन किस पुलिस कर्मी या मोबाइल नेटवर्क कंपनी के किस व्यक्ति के माध्यम से सीडीआर निकलवाया करता था। पुलिस ने यह बात उस समय मीडिया को नहीं बताई। इस मामले में बाद में कई अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया। 
पुलिसकर्मी या मोबाइल नेटवर्क कंपनी के लोगों की मिलीभगत के बिना सीडीआर निकाली ही नहीं जा सकती।
सूत्रों से पता चला है कि सीडीआर मामले में एक पुलिसकर्मी भी शामिल है।
 किसे बुलाया, किसे छोड़ा और क्यों -
अजय के वकील ने बताया कि कि इस मामले की जांच के नाम पर  ही पुलिस ने अजय रोहिल्ला के अलावा  एक अन्य डिटेक्टिव एजेंसी की मालिक महिला और उसकी महिला कर्मचारी आदि को भी बुलाया था। 
 कमिश्नर ईमानदारी से जांच कराएं -
इस मामले में सबसे बड़ा और गंभीर सवाल यह है कि क्या अजय रोहिल्ला भी गैरकानूनी तरीके से सीडीआर उपलब्ध कराने के अपराध में शामिल है। अगर  हां, तो पुलिस ने उसे छोड़ कर संगीन अपराध किया है। 
लेकिन अगर अजय बेकसूर है तो पुलिस द्वारा वसूली और यातनाएं देना भी तो अपराध ही है।
दोनो ही सूरत में पुलिस की भूमिका संदिग्ध हो जाती है।  
पुलिस कमिश्नर अगर  ईमानदारी से जांच कराएं  तो ही यह पता चल सकता है कि जांच के नाम पर एएटीएस में डिटेक्टिव एजेंसियों की महिलाओं समेत किन-किन लोगों को बुलाया गया था और उनकी भूमिका क्या थी। उन सभी को बुलाने और छोड़ने की पूरी कहानी सामने आनी चाहिए। 
सीडीआर उपलब्ध कराने में क्या कोई पुलिसकर्मी शामिल है? क्या एएटीएस ने उस पुलिसकर्मी को पकड़ने की कोशिश की थी या उसे बचाया गया है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार अपराध शाखा को इस मामले की जांच में पुलिसकर्मी के शामिल होने का पता चला है। अपराध शाखा उसकी तलाश कर रही है।
निष्पक्ष जांच की दरकार - 
इस मामले में एक अजीब संयोग सामने आया है।  
बाहरी उत्तरी जिले के डीसीपी  बृजेंद्र कुमार यादव है। उनके मातहत आरोपी इंस्पेक्टर संदीप यादव और पवन यादव हैं। अपराध शाखा जो अब इस मामले की जांच कर रही उसके मुखिया स्पेशल कमिश्नर रविंद्र यादव हैं। 
इंस्पेक्टर संदीप यादव डीसीपी का चहेता बताया जाता है।
ऐसे में आईपीएस अफसरों की जिम्मेदारी बनती है कि वह पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से जांच कर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करके दिखाएं।
इंस्पेक्टर कैसे बना दिया?-
सतर्कता विभाग कितने साल मे जांच पूरी करेगा ? -
इंस्पेक्टर संदीप यादव और हवलदार संदीप शौकीन के खिलाफ अलवर के नवीन बंसल ने भी मार्च 2019 में दिल्ली पुलिस के सतर्कता विभाग में शिकायत की थी। लेकिन अब तक इंस्पेक्टर संदीप यादव आदि  के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। नवीन बंसल का आरोप है कि 2019 में तत्कालीन सब- इंस्पेक्टर संदीप ने असली अपराधी को छोड़ दिया और उसे  झूठे मामले में फंसा दिया । सतर्कता विभाग में शिकायत होने के बावजूद संदीप को सब-इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। नवीन का आरोप है कि उससे रिश्वत की मांग की गई। शिकायत वापस लेने के लिए धमकी दी गई। इंस्पेक्टर संदीप यादव और हवलदार संदीप शौकीन की धमकी देने की ऑडियो रिकॉर्डिंग भी उसने सतर्कता विभाग को दी हुई है। लेकिन सतर्कता विभाग ने इंस्पेक्टर संदीप यादव और हवलदार संदीप शौकीन का अभी तक वॉयस सैंम्पल भी नहीं लिया है।
 एसीपी ने 15 लाख मांगे-
सीबीआई ने 31अगस्त को बाहरी उत्तरी जिले  के बवाना थाना स्थित नारकोटिक्स शाखा में तैनात एसीपी बृज पाल  के खिलाफ नशे के सौदागर से 15 लाख रुपए रिश्वत मांगने का मामला दर्ज किया है। इस मामले में एएसआई दुष्यंत गौतम को सात लाख 89 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया है।


(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)




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