Thursday 15 June 2017

ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर , नेताओं के पोतडे धोने वाले पत्रकारों से देश को खतरा।




ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर , नेताओं के पोतडे धोने वाले पत्रकारों से देश को खतरा।

इंद्र वशिष्ठ
NDTV--सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, फुल आपरेशन हो।----- 
प्रधानमंत्री जी अगर आपकी नीयत सही है तो जिन मीडिया मठाधीशों पर CBI, ED, Police में केस दर्ज है उनके मामलों की जांच को 6 महीनों के अंदर पूरी कराएं और कोर्ट में जांच एजेंसी की ओर से मामला न लटके यह सुनिश्चित करें। ऐसा होने पर ही मीडिया की गंदी मच्छलियों को जल्द सबक मिलेगा।
 अगर आप ऐसा नहीं करते तो स्पष्ट हो जाएगा कि आप में और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है। और मामले को जान बूझ कर लटका कर रखने का मकसद मीडिया को डरा कर अपना भोंपू बनाना है। मीडिया के महाराक्षसो का सफाया करने के लिए बड़े आपरेशन की सख्त जरूरत है। वरना NDTV पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक भी सिर्फ मीडिया को डराने वाली और अपने को दबंग दिखाने का मोदी का पुलिसिया तरीका माना जाएगा। किसी समय गंगा के समान पवित्र माने जाने वाले पत्रकारिता का पेशा अब गंगा से भी ज्यादा मैला हो गया है। पत्रकारिता की पवित्रता को बहाल करने के लिए बड़े स्तर पर सफाई अभियान की शुरूआत की जरूरत है। मीडिया महाराक्षसों, कांग्रेस ,भाजपा, अंबानी का नापाक गठजोड़ इसके लिए बराबर जिम्मेदार हैं।

कलम के सिपाही की तलाश----
कृपया कोई यह बता दें कि NDTV के प्रणय रॉय पर CBI द्वारा दर्ज धोखाधड़ी यानी 420 के मामले को मीडिया पर हमला मान कर कथित नेशनल मीडिया के अंग्रेजी, हिंदी के कितने संपादकों ने अपनी कलम की पैनी धार से मोदी की निंदा, आलोचना में संपादकीय, लेख लिखा है। 
हर मामले में मदारी की तरह चीख चीख कर बहस कराने वाले कितने चैनल ने इस मामले में मोदी की आलोचना के लिए बहस कराई थी। मैं ऐसे कलम के सिपाही संपादकों के लेख पढ़ना चाहता हूं।
 फेसबुक पर मीडिया पर हमला प्रचारित करने वाले नव भारत टाइम्स के पूर्व पत्रकार शकील अख़्तर से मैंने यह जानकारी मांगी तो उनकी बोलती बंद हो गई और सवाल को ही वाहियात बता दिया। हद तो यह हो गई कि उनके कांग्रेसी छुट भईया नेता भी फेसबुक पर बकवास करने लगे । तब मैंने शकील और कांग्रेस के पोतडे धोने वालों को उनकी औकात वाला आईना दिखाया जिसे देखते ही शकील ने फेसबुक पर मुझे ब्लाक कर दिया। किसी को पुष्टि करनी हो तो शकील से कहें फेसबुक पर हुआ पूरा वार्तालाप दिखाएं। 
शकील की इस हरकत ने उसके संस्कार और उसकी कांग्रेस भक्ति मय पत्रकारिता की पोल खोल दी। शकील से मैंने यह भी पूछा कि मीडिया पर हमला है तो सभी मठाधीश संपादक प्रेस क्लब में क्यों नहीं पंहुचे थे।
 सचाई यह है कि आपराधिक मामले को प्रेस की आजादी पर हमले का मामला बनाने की बाबू मोशाय और उनकी मंडली द्वारा ही कोशिश की जा रही है । 
वैसे आजकल मीडिया के सभी मठाधीश मालिक संपादक तो मोदी के सामने दंडवत हैं। अरे मोदी के खिलाफ लिखने का दम नहीं है तो उन उद्योपतियों के खिलाफ ही लिखों जो बैंकों का लाखों करोड़ डकार गए। ऐसे उद्योपतियों को पूरी जिंदगी कांग्रेस ने पाला और अब मोदी ने गोद ले लिया। लेकिन मीडिया मठाधीश उनके खिलाफ भी नहीं लिखेंगे। मी
मालिक भी तो उद्योगपति हैं। मीडिया के मठाधीश संपादक भी कोई भाजपा तो कोई कांग्रेस​ तो कोई अंबानी का पाला हुआ है। अब मीडिया का आलम यह है कि आम आदमी की समस्याओं​ से उसे कोई मतलब नहीं। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा का राग दरबारी गाते हुए बेशर्मी और अकड़ के साथ संपादक होने पर इतराते घूमते हैं। पत्रकारिता धर्म का रत्ती भर भी पालन नहीं करते। यह स्थिति देश के लिए सबसे ख़तरनाक है। मीडिया का पतन देश के लिए सबसे ज्यादा नुकसान दायक है।

---NDTV तो एक मौका है किसी समय गंगा की तरह पवित्र माने जाने वाले पत्रकारिता के पेशे की पवित्रता को वापस बहाल होना चाहिए। छोटे से भी अपराध में आरोपी का पोस्ट मार्टम करने में मीडिया अपनी पूरी प्रतिभा झोंक देता है। कोर्ट में बाद में वह चाहे बरी हो जाए लेकिन मीडिया की दी सज़ा वह पूरी जिंदगी भुगतता है।
 दूसरी ओर मीडिया के किसी मठाधीश पर आपराधिक मामले में जांच होने के पहले ही उसे क्लीन चिट ही नहीं दे देते बल्कि उसे मीडिया की आज़ादी पर हमला स्वयं भू मठाधीश घोषित कर देते है। क्या यह मीडिया का दोगलापन नहीं है। मीडिया के बीच मौजूद महाराक्षसो को मीडिया वाले बाहर नहीं करेंगे तो क्या कोई पाकिस्तानी​ आकर करेगा।
 मीडिया के महाराक्षस और भ्रष्ट नेताओं​ का गठजोड़ राजनीति और मीडिया का ही नहीं देश का भट्ठा बिठाते रहेंगे। नेता या पुलिस के भ्रष्ट होने की तुलना में जज और मीडिया का पतन देश के लिए सबसे ज्यादा ख़तरनाक है। ईमानदार पत्रकारों की तकलीफ़ ये मठाधीश क्या जाने।

 छाछ बोले तो बोले छलनी भी बोले जिसमे सत्तर छेद---
मोदी का भूत कांग्रेस माता भक्तों में ही नहीं भाजपा के कट्टर भाजपा भक्तों में भी किस कदर समाया हुआ है इसकी बानगी पेश है। पंजाब केसरी के बुजुर्ग पत्रकार मनमोहन शर्मा ने मुझे मोदी भक्त कह दिया। शर्मा जी को दिया जवाब आपसे साझा कर रहा हूं । जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। शर्मा जी क्षमा सहित पूछना चाहता हूं आपके पंजाब केसरी के खिलाफ केशव पुरम थाने में जमीन कब्जा करने का जो केस दर्ज हुआ। उसके बारे में कभी भूल कर भी आपने पत्रकारिय प्रतिभा दिखाई क्या। 

दूसरों पर अंगुली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांक लेना चाहिए। ब्राह्मण और पत्रकार दोनों का धर्म समाज को सच और सही राह दिखाना है। आपने ब्राह्मण​ और पत्रकार दोनों के ही धर्म का पालन नहीं किया । इसलिए आपको यह भी नज़र नहीं आया कि मैं आशंका जता रहा हूं कि कहीं यह सब मीडिया को डरा कर भोंपू बनाने की नीयत तो नहीं।आपका तो मालिक ही भाजपा की गोद में बैठ कर सांसद बना हैं। आप ईमानदार हैं तो मोदी से कह कर कब्जा करने वाले अश्विनी को गिरफ्तार कराए और कब्जा हटवा के दिखाए। 

आपका मालिक भक्ति से भाजपा सांसद बन गया है और भक्त मुझे बता रहे हैं। आपकी समझ पर तरस आता है। जिंदगी में आपने भी अपने मालिक की तरह भक्ति भरी पत्रकारिता की होगी। मै तो ब्राह्मण और पत्रकार दोनों के धर्म 27साल से लट्ठ गाड के निभा रहा हूं। मेरी खबरें ही मेरी पहचान है। आप की तरह भक्ति मय पत्रकारिता नहीं करता। मेरे बारे में किसी से ज्ञान वर्धन कर ले या मेरा ब्लॉग http://indervashisth.blogspot.com पढ़ लें आपको पता चल जाएगा कि पत्रकारिता क्या होती। आपने अपने बुजुर्ग होने की भी मर्यादा नहीं रखी तथ्य के आधार पर बात करने​ की बजाए भक्त कह कर मुझे जवाब देने को मजबूर किया। 
आप तथ्यों के आधार पर मेरे लेख में कमी निकालते तो आपका स्वागत करता।यह जवाब उन सभी पत्रकारों के लिए भी है जो आपने आका नेताओं​ को खुश करने के लिए बकवास कर रहे हैं। 
मैं तो अब भी अपना कर्म उस साधु की तरह कर रहा हूं जो बार बार डंक मारने वाले बिच्छू को भी डूबने से बचाने का अपना कर्म करना नहीं छोड़ता है।
अक्ल के अंधे कांग्रेस माता और भाजपा दाता के उन सभी भक्त पत्रकारों के लिए जिन्हें पढ़ना तो दूर शायद गिनती तक नही आती। वह घर में अपने बच्चों से भी लेख में मौजूद मठाधीशों के नाम​ की गिनती करा लेते तो पता चल गया होता कि ज्यादा नाम भाजपा से जुड़े मठाधीशों के है। पंजाब केसरी के अश्वनी कुमार, जी न्यूज के लाला सुभाष चन्द्र,सुधीर चौधरी, रजत शर्मा, चंदन मित्रा, अरुण शौरी, शेखर गुप्ता,अर्णब गोस्वामी और दीपक चौरसिया को भी कांग्रेसी​ अंध भक्त क्या अब अपने प्रणय रॉय, राजदीप सरदेसाई,बरखा दत्त, तरुण तेजपाल की तरह कांग्रेसी​ ही मानने लगे हैं।।असल समस्या यह है कि कांग्रेस भाजपा देखने वाले ज्यादातर पत्रकार उन दलों के प्रवक्ताओं​ से भी ज्यादा वफादारी दिखाने की होड़ में हैं।
 हीरा तहां ना खोलिए जहां कुंजडो की हाट।

इंद्र वशिष्ठ
पूर्व विशेष संवाददाता, दैनिक भास्कर
पूर्व क्राइम रिपोर्टर सांध्य टाइम्स( टाइम्स आफ इंडिया ग्रुप)






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