Monday 19 June 2017

जेटली, टाइम्स आफ इंडिया का दलाल संपादक बेनकाब। मोदी,मीडिया ,सारे नेता खामोश।


जेटली, टाइम्स आफ इंडिया का दलाल संपादक बेनकाब। मोदी,मीडिया ,सारे नेता खामोश।
इंद्र वशिष्ठ
प्रधानमंत्री जी क्या आपका 56 इंच की छाती ठोक कर यह  कहना "ना खाऊंगा ना खाने दूंगा " 'भ्रष्टाचार"​ बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा भी जुमला बन कर रह गया है । आप की​ नाक के नीचे आपके खासमखास अरुण जेटली और मीडिया मठाधीश अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का धंधा करते हैं और आपको भनक तक नहीं लगी।आपके सुपर काप जासूस एनएसए अजीत डोभाल को भी क्या सांप सूंघ गया था कि वह यह सब नहीं सूंघ पाए। कहां जाता है कि राजा वहीं कामयाब होता है जिसका खुफिया तंत्र मजबूत होता है। अगर ऐसा है तो यह ख़तरे की घंटी है लेकिन अब तो आपकी जानकारी में यह मामला आ चुका हैं फिर भी अभी तक आपके द्वारा चहेते जेटली के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करना आपकी भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है। जिससे आपमें और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं लगता हैं। राजनीतिक बयान बाजी पर केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का  केस करने वाले जेटली ने इस मामले के सार्वजनिक होने पर ना तो कोई बयान दिया और ना ही मामला उजागर करने वालों पर मानहानि का केस किया है। भाजपा के पाले मीडिया मठाधीश रजत शर्मा द्वारा सर्टिफाइड ईमानदार जेटली की चुप्पी से स्पष्ट​ हैं  कि ख़बर सही है।
 टाइम्स आफ इंडिया के संपादक  की इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के एक अफसर की लंदन में पोस्टिंग के लिए अरुण जेटली से सांठगांठ का सनसनीखेज खुलासा pgurus.com  ने किया है। संपादक का नाम है टाइम्स आफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव एडिटर दिवाकर अस्थाना और  इकोनोमिक टाइम्स के पूर्व संपादक  पी आर रमेश। कहावत है कि पाप का घड़ा एक दिन जरूर फूटता है। इस पूरे मामले में वित्त मंत्री अरुण जेटली, उसके  प्राइवेट सैकेटरी सीमांचल दाश और दलाल संपादक के गठजोड़ का खुलासा भी कुछ अच्छे पत्रकारों के कारण हो पाया है। 2004 बैच  का आईआरएस अफसर अनुपम सुमन प्राइवेट फंड से स्टडी लीव पर लंदन में है। अनुपम लंदन में  ट्रैक ब्लैक मनी आपरेशन के लिए बने पद पर तैनात होना चाहता है  उसकी चाहत को पूरा करने का ठेका इस दलाल संपादक ने लिया। अनुपम की पोस्टिंग के लिए इन दलालों,  अरुण जेटली और उसके पीएस दाश के बीच क्या क्या बात हुई और जेटली ने क्या आश्वासन दिया । यह सब बताने के लिए दिवाकर ने 31मई को चार बजे अनुपम को व्हाट्सऐप पर मैसेज  भेजा। लेकिन मैसेज भेजने के बाद किसी ने दिवाकर को बताया कि उसकी काली करतूत का वह मैसेज गलती से  टाइम्स के पत्रकारों के ग्रुप पर पहुंच गया है। टाइम्स के ही किसी पत्रकार ने संपादकों और जेटली की सांठगांठ के इस मैसेज को pgurus.com को पहुंचा दिया जिसने 8 जून को इस नापाक गठजोड़ को उजागर कर इन सबको नंगा कर दिया। कांग्रेस के समय नीरा राडिया टेप मामला सामने आने पर हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक वीर सिंघवी और एनडीटीवी की बरखा दत्त की करतूत उजागर हुई थी। उनका भी आज तक कुछ नहीं बिगड़ा है।इन दोनों दलालों दिवाकर और रमेश का भी अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है। टाइम्स आफ इंडिया ने भी इस दलाल को नहीं निकाला है। टाइम्स आफ इंडिया के  मालिक समीर जैन और विनीत जैन भी अपने फायदे के लिए  दलाल दिवाकर को इतने सालों से पाले हुए हैं। दिवाकर  की करतूत से उजागर हो गया कि मीडिया का वाच डॉग तो क्या वाच मैैन बनने लायक भी उसका चरित्र नहीं है। दिवाकर भी उन मीडिया मठाधीश  में शुमार है जो अपने फायदे के लिए नेताओं के  पोतडे धोते हैं और इतराते घूमते हैं।

मीडिया की आज़ादी की दुहाई देकर मोदी को कोसने वाले अरुण शौरी, कुलदीप नैयर,एचके दुआ , बाबू मोशाय प्रणय रॉय, और आजतक के मालिक अरूण पुरी की भी इस मामले में बोलती बंद हो गई है। क्या इस मामले  में एनडीटीवी की वह पत्रकारिय प्रतिभा किसी को दिखाई  दी जिसका वह झूठा  ढिंढोरा​ पीटता है।किसी चैनल और अखबार ने इस मामले में छोटी सी खबर भी नहीं दी। इस मीडिया मठाधीश के खिलाफ एडिटर गिल्ड ने प्रेस क्लब के साथ मिलकर अब क्यों नहीं आवाज उठाई। ये सिर्फ मीडिया महाराक्षसो के समर्थन में ही आवाज उठाते हैं।इससे मेरी बात एक बार फिर साबित हो गई कि मीडिया मठाधीश चोर चोर मौसेरे भाई हैं।कांग्रेस तो क्या कम्युनिस्ट पार्टी और  भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे केजरीवाल जैसे भोंपू भी चुप है। जेटली के नंबर वन दुश्मन  सुब्रमण्यम स्वामी ,राम जेठमलानी और कीर्ति आजाद  की जुबान को भी लकवा मार गया लगता है। भ्रष्ट लालू के समर्थक बिहारी भांड शाट गन शत्रुघ्न​ के कारतूस भी  बुझ गए हैं। देश द्रोह के नारे लगाने वालोें को पटक  कर मारने का बयान देने वाले बयान बहादुर आर के सिंह की औकात नहीं है कि  देश को दीमक की तरह चाट रहे इन असली देश द्रोहियों के खिलाफ बयान भी हलक से निकाले। भाजपा का धुर विरोधी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा जमूरा लालू भी चुप है। इस मामले में अगर बिहारी बाबू दिवाकर शामिल नहीं होता तो ये सारे बिहारी बाबू भी जेटली के खिलाफ बयान बहादुर बन जाते। इससे स्पष्ट है कि मीडिया मठाधीश और भ्रष्ट नेता एक ही गैंग के है। दिल्ली पुलिस में मौजूद प्रभाकर भी अपने इस मठाधीश भाई और भ्रष्ट आईपीएस अफसरों के दम पर ही मलाईदार पद पर रहा है।इस समय भी एफआरआरओ के अहम पद पर तैनात हैं। ईमानदारी का ढोंग करने वाले  प्रभाकर के  किस्से भी  जगजाहिर है।

जागो लोगों जागो अब तो समझ जाइए कि मीडिया​ को इसलिए आम आदमी की समस्या से कोई मतलब नहीं है। असली देशद्रोही ये भ्रष्ट नेता , मीडिया के राक्षस और भ्रष्ट नौकरशाह हैं। छोटे-छोटे मामलों में खुद संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट इस मामले में संज्ञान ले तो पता चलेगा कि देश में न्याय व्यवस्था जिंदा।

इंद्र वशिष्ठ 
पूर्व क्राइम रिपोर्टर सांध्य टाइम्स टाइम्स ग्रुप
पूर्व विशेष संवाददाता दैनिक भास्कर



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