Saturday 30 January 2021

कमिश्नर, IPS की आंखों का पानी क्या बिल्कुल मर गया? IPS अफसर ने पुलिस की नाक कटवा दी ?पानी रोका, पुलिस और भाजपा की पोल खोलने वाले पत्रकार को गिरफ्तार किया।, IPS ईमानदार हैं तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।

        पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव
         संयुक्त पुलिस आयुक्त सुरेंद्र सिंह यादव 
कमिश्नर की आंख का पानी क्या बिल्कुल मर गया ?
कमिश्नर,IPS ने खाकी को खाक में मिलाया।
पानी रोका, पुलिस और भाजपा की पोल खोलने वाले पत्रकार को गिरफ्तार किया।
IPS अफसर ने दिल्ली पुलिस की नाक कटवा दी ?
सिंघु बार्डर पर दंगाई जा सकते है लेकिन पानी नहीं।
IPS अगर ईमानदार हैं तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।


इंद्र वशिष्ठ
आंख का पानी मर जाना वाली कहावत दिल्ली पुलिस के कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने चरितार्थ कर दी।
सिंघु बार्डर पर बैठे किसानों का पानी रोक कर और पुलिस और भाजपा की पोल खोलने वाले पत्रकार को गिरफ्तार करके कमिश्नर और आईपीएस अफसरों ने साबित कर दिया कि वह खाकी वर्दी की आन बान और शान को खाक में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। 
पुलिस का 'अमानवीय' चेहरा-
सिंघु बार्डर पर शांतिपूर्ण तरीके से बैठे आंदोलनकारी किसानों के लिए गए दिल्ली जल बोर्ड के पानी के टैंकरों पुलिस ने रोक कर बहुत  'मानवीय' और 'वीरता' का काम किया हैं। 

पानी रोका, दंगाईयों को नहीं -
दूसरी ओर दंगाईयों को वाहन समेत धरना स्थल तक जाने देने के लिए पुलिस ने रास्ता खोल दिया। इन लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों को वहां से जाने के लिए न केवल धमकाया बल्कि उन पर हमला कर दिया।  किसानों ने हमलावरों का विरोध किया तो बवाल हो गया। इस दौरान बहादुर पुलिस तमाशा देखती रही। हमला करने वाले आराम से वहां से चले गए। हाथ में तलवार लगने से एस एच ओ प्रदीप पालीवाल घायल हो गए। 
पुलिस ने इस मामले में 44 लोगों को गिरफ्तार  किया है। 
पुलिस का कहना है कि 200 "स्थानीय" लोग किसानों को वहां से स्थान खाली करने के लिए कहने गए थे। 
दूसरी ओर मीडिया में वायरल फोटो से पता चला कि हमलावरों में भाजपा और हिंदू संगठनों से जुड़े हुए लोग हैं । किसान संगठनों ने भी भाजपा सरकार को चेतावनी दी हैं कि वह आंदोलन को साम्प्रदायिक रंग देने से बाज आए।

कमिश्नर और आईपीएस की भूमिका पर सवाल-
इस मामले ने एक बार  फिर आईएएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया।
क्या पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव बता सकते हैं कि पानी रोकने का अमानवीय कार्य किस कानून के तहत किया गया। इसके अलावा 200 लोगों को पुलिस ने अंदर क्यों जाने दिया। वहां हुए बवाल के लिए पूरी तरह कमिश्नर जिम्मेदार हैं।

कमिश्नर ने 27 जनवरी को बताया था कि किसानों के आंदोलन और मंच पर आतंकियों का कब्जा हो गया था। 
क्या कमिश्नर बता सकते हैं कि कौन कौन से आतंकवादी वहां थे और उन्होंने उसी समय आतंकियों को पकड़ा क्यों नहीं। 
कमिश्नर को नेताओं की तरह बयान बाजी करने की बजाए आतंकियों को पकड़ कर अपनी बात साबित करनी चाहिए।
पुलिस ईमानदार है तो सिंघु बार्डर पर दंगा करने वाले उन 200 लोगों के नाम पता पता बताए ताकि पता चले कि वह स्थानीय निवासी हैं या बाहरी। ये लोग किस संगठन के हैं।
क्या कमिश्नर इस बात का जबाव दे सकते हैं कि उन्हें मातहत पुलिस कर्मियों और दिल्ली के लोगों की जान खतरे में डालने का जिम्मेदार क्यों न माना जाए ?
जान बचाने के लिए नारे लगाने वाले पानी रोक रहे।
 26 जनवरी को उत्तरी क्षेत्र के संयुक्त आयुक्त सुरेंद्र सिंह यादव किसानों की ताकत देख कर इतने घबरा/डर गए थे कि जान बचाने के लिए जय जवान जय किसान के नारे लगाने लगे और मातहतों से भी नारे लगवाए।। अब जब किसानों की संख्या वहां कम हैं तो किसानों का पानी तक रोक कर बहादुरी दिखा रहे हैं। इससे तो यह ही पता चलता है कि पुलिस ताकत या भीड़ की भाषा ही समझती है। कमजोर और संख्या में कम लोगों को वह जानवरों की तरह हांक देती है। इसी लिए पुलिस की छवि समाज में अच्छी नहीं। यही वजह है कि जब पुलिस को वकीलों ने पीटा था तो लोगों ने खुशी जताई थी।

आईपीएस ने नाक कटवा दी-
संयुक्त पुलिस आयुक्त सुरेंद्र सिंह यादव   नारे लगाने और मातहतों से भी नारे लगवाने को अनेक वरिष्ठ आईपीएस अफसरों द्वारा बहुत ही कायराना और गलत हरकत माना जा रहा है। 
स्पेशल कमिश्नर स्तर के एक अफसर का कहना है कि हम ऐसे कैसे कानून व्यवस्था संभालेंगे ? यह तो ठीक ऐसे हुआ कि जैसे चोर आ जाए तो उसे देख कर पुलिस चोर की जय,चोर की जय के नारे लगाने लग जाए। वर्दीधारी की ऐसी कायराना हरकत भ्रष्टाचार से भी गंदी बात मानी जाती है।
यह तो जंग के मैदान में पीठ दिखा कर भागने जैसी कायराना हरकत है।
पुलिस महानिदेशक स्तर के एक रिटायर्ड आईपीएस अफसर का कहना है कि पुलिस/ सेना में तो ऐसे पीठ दिखाने वाले अफसर या जवान को नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता हैं। 

इस बारे में सुरेंद्र यादव का कहना है कि उन्होंने दंगाइयों पर काबू पाने के लिए अपनी ओर से हर संभव की कोशिश की थी। 
आईपीएस ने छिप कर जान बचाई-
हालांकि आंसू गैस और लाठीचार्ज के बावजूद किसानों को रोक पाने में पुलिस विफल हो गई। हालात इतने बेकाबू हो गए थे कि आईपीएस अफसरों तक ने मुकरबा चौक पुल के नीचे अंडरपास और झाड़-झाडियों वाले स्थान पर छिप कर अपने आप को उग्र भीड़ से बचाया।

मातहतों से अभद्रता -
वैसे यह वहीं सुरेंद्र सिंह हैं जिन पर गलत व्यवहार करने का आरोप लगा कर पिछले साल इनकी रेंज के तत्कालीन डीसीपी गौरव शर्मा और विजयंता गोयल आर्य छुट्टी पर चले गए थे। हालांकि यादव ने इन आरोप से इनकार किया है।
कुछ साल पहले की बात है आईपीएस एस एस यादव ने उतरी जिला के मौरिस नगर थाने के सब इंस्पेक्टर राम चंद्र को अपने एक दोस्त के सामने ना केवल गालियां दी बल्कि सब इंस्पेक्टर से उठक बैठक भी लगवाई थी। सब इंस्पेक्टर इतना आहत हुआ कि आत्महत्या की बात करने लगा। यह मामला  रोजनामचे में भी दर्ज किया गया।  मातहतों के साथ अभद्र व्यवहार के लिए यादव शुरु से ही जाने जाते हैं। 

ये हम लोगों के ऊपर से जाएंगे-
पुलिस के जवान ही नहीं आईपीएस अफसर तक कितने डरे, सहमे और असहाय थे। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उत्तरी क्षेत्र के संयुक्त पुलिस आयुक्त सुरेंद्र सिंह यादव  ने पुलिस के जवानों से कहा कि 'शांति से इनको (किसानों)  समझाओ वरना ये हम लोगों के ऊपर से जाएंगे'। इसके साथ ही यादव ने जय जवान, जय किसान के नारे लगाए और मातहतों ने भी नारे लगाए।
संयुक्त पुलिस आयुक्त एस एस यादव का नारे लगाता हुआ वीडियो पुलिस कमिश्नर के गैर पेशेवर रवैये, काबलियत की पोल खोलने के लिए काफी है। इससे पता चलता है कि कमिश्नर ने अपने जवानों और दिल्ली के लोगों की जान को खतरे में डाल दिया था। 
इससे यह साफ पता चलता है कि पुलिस बल कितना डरा हुआ था। इसके लिए पूरी तरह से कमिश्नर जिम्मेदार है। 
पुलिस बल को मौके की नजाकत या गंभीरता के आधार पर कार्रवाई करने का अधिकार होता है।  लालकिले पर हमला हुआ, पुलिस के जवानों ने लालकिले की खाई में कूद कर अपनी जान बचाई। इसके बावजूद पुलिस कमिश्नर यह कह कर अपनी पीठ थपथपा रहें है कि हमने संयम से काम लिया। यह सिर्फ़ पुलिस की नाकामी को छिपाने की कोशिश है।
 सच्चाई यह हैं कि इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए पुलिस की कोई तैयारी नहीं थी। इस मामले से कमिश्नर की पेशेवर काबिलियत  की पोल खुल गई है।

पत्रकार की गिरफ्तारी-
कमिश्नर,IPS ने खाकी को खाक में मिलाया-
पुलिस और भाजपा की किसान आंदोलन को दबाने/कुचलने की कोशिश की पोल खोलने वाले पत्रकार मनदीप पूनिया को गिरफ्तार कर सत्ता के लठैत बने पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों ने खाकी वर्दी को खाक में मिला दिया। पुलिस ने मनदीप पर सिपाही राजकुमार पर हमला करने का आरोप लगाया हैं। पुलिस के अनुसार मनदीप ने किसानों के साथ मिलकर बैरीकेड तोडे़ और वह सिपाही राजकुमार को खींच कर धरनास्थल की ओर ले जा रहा था। पुलिस ने घटना का समय 30 जनवरी की शाम साढे छह  बजे का बताया है लेकिन अली पुर थाने में पुलिस ने इस मामले की एफआईआर आधी रात के बाद यानी 31 जनवरी को करीब डेढ बजे दर्ज की है।
पुलिस ने सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालने, मारपीट/हमला/ चोट पहुंचाने के आरोप में धारा 186/353/332/34 के तहत मामला दर्ज किया है।
सच्चाई यह है कि भाजपा के लोगों ने किसानों पर जब हमला किया था तो मनदीप ने भी यह सच्चाई उजागर की थी कि हमले में भाजपा की पार्षद का पति अमन डबास समेत भाजपा के लोग शामिल थे। पुलिस ने इस दौरान मूकदर्शक बन कर हमलावरों की मदद की थी।
मोदी जी क्या यही आपका राम राज्य  है ?


अथ श्री आईपीएस कथा-

नादान पुलिस को बदनाम न करो-
कहीं ऐसा तो नहीं कि लालकिला मामले में फेल हो गई पुलिस अब कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती हो।
हो सकता है कि पानी के टैंकर में आतंकी छिपे हुए हो या टैंकर में बम/ हथियार सप्लाई किए जा रहे हो। 
इसलिए पुलिस की नीयत पर शक मत करें। पुलिस की नीयत और नजर तो इतनी अच्छी है कि उसे 25 जनवरी को ही मालूम चल गया था कि सिंघु बार्डर पर आतंकी मौजूद  हैं और आंदोलन का नेतृत्व भी अब आतंकियों के हाथ में है। इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें पकड़ा नहीं। असल में पुलिस ने सोचा होगा कि आतंकवादी बेचारे वक्त के मारे हुए हैं। इसलिए कम से कम पुलिस तो उन्हें न सताए। इसलिए क्यों न अपने युवा कार्यक्रम के तहत मानवीय आधार पर इन आतंकियों को सुधरने के लिए लालकिले तक आराम से जाने दिया जाए। 
पुलिस चाहती तो जिंदा जाते क्या आतंकी-
फिर भी न जाने लोग पुलिस को बुरा क्यों समझते हैं। लोग यह भूल जाते है कि दिल्ली पुलिस में  वीरता पदक पाने वाले ऐसे अफसर हैं जो आतंकियो को चुटकियों में ढे़र करने में माहिर हैं। ऐसे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट होने के बावजूद पुलिस ने आतंकियों को छूना तो दूर अब तक उनकी पहचान तक उजागर नहीं की ताकि उनका भविष्य खराब न हो। इससे ज्यादा पुलिस का मानवीय चेहरा और क्या देखना चाहते हो। 
पुलिस का त्याग देखो आतंकियों के लिए अपनी वर्दी / नौकरी और मातहतों की जान तक दांव पर लगा दी। 
गृहमंत्री मेहरबान, कमिश्नर पहलवान -
ये तो भला हो गृहमंत्री का जिन्होंने पुलिस कमिश्नर के विशिष्ट कार्य और कर्त्तव्य परायणता को समझा और सराहा वरना कोई ओर होता तो बेचारे इतने काबिल कमिश्नर की नौकरी तक खा जाता।
किसानों से ज्यादा पानी की जरूरत पुलिस को-
अब ऐसा कमिश्नर इतना निर्दयी थोड़ी हो सकता है कि वह किसानों का पानी रोकेगा। असल में होता यह है कि जिसकी आंख का पानी सूख जाए तो उसे पानी और लहू में भेद पता नहीं चलता। अब लोगों का क्या, लोग तो यह भी कह देंगे कि पानी रोक दिया पर पुलिस ने वहां लहू बहने दिया।
अरे भाई तुम फिर पुलिस की नीयत पर शक कर रहे हो। सैंकड़ों सज्जन युवा झंडे डंडे लेकर किसानों से शिष्टाचार भेंट करने जाना चाहते थे। अब भला पुलिस उन्हें रोक कर अपनी कर्तव्य निष्ठा/ वफादारी पर उंगली उठवाती।
बेचारी नादान पुलिस को यह थोड़ा ही पता था कि वह  कथित स्थानीय लोग भी किसानों की तरह पुलिस के साथ विश्वासघात करेंगे। वहां जाकर किसानों का लहू बहाएंगे। 
पुलिस को लगा सदमा-
पुलिस तो इतनी भोली है कि दंगाई जब किसानों पर पत्थर लाठी मारने लगे तो पुलिस को इतना जबरदस्त सदमा लगा कि वह जड़वत हो शायद एकटक यह ही देखते रहे कि पत्थर बरस रहे हैंं या फूल। अब लोगों का क्या है वह पुलिस के बारे में कुछ भी बकवास कर देते है। जैसे अब कह रहे हैं कि पुलिस ने पानी जाने से रोक दिया लेकिन गुंडों को आदर सहित किसानों तक जाने दिया।
आईपीएस ने कितनी 'ईमानदारी' से अपने कर्तव्य का पालन किया है यह भला लोगों को क्या पता। वफादार आईपीएस की कद्र तो नेता ही कर सकते हैं। इसलिए वह रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें अपने साथ में जोड़ कर रखते हैं। लोगों का क्या हैं कुछ तो लोग कहेंगे ही लोगों का काम ही है कहना।

दिल, विवेक,आत्मा ये क्या जाने  -
इसलिए हे मेरे  "बहादुर" आईपीएस तुम लोगों की बात को दिल पर न लेना। अरे भाई माफ करना मैं यह तो भूल गया कि ऐसे अवतारी आईपीएस का दिल और आत्मा से कोई लेना देना ही नहींं होता। क्योंकि यह दोनों चीज अगर पास होंगी तो वह अपने आकाओं की बात का आंख मूंद कर भला पालन कैसे कर सकते हैं। यह दोनों चीजें जागृत होंगी तो बुद्धि और विवेक भी सक्रिय हो जाएगा। फिर उसे मनचाहे पद  का वरदान कैसे प्राप्त होगा।
नौकरी के दौरान और नौकरी के बाद भी सत्ता सुख /पद भोगना हैं तो इन सब इंद्रियों पर जीत पाना सबसे जरुरी हैं। 
जैसे सांसारिक मोह माया का त्याग करने पर ही मोक्ष मिलता है। इस तरह जो आईपीएस दिल, दिमाग, आत्मा को अपने से दूर रखने में सफल हो जाता है। वह राजनेता रुपी गुरु को पा जाता हैं। इसके बाद गुरु से दीक्षा लेकर, गुरु के बताए रास्ते पर आंख मूंद कर अमल /साधना करने से  मनचाहे पद का मरते दम तक सुख भोगने का वरदान/फल प्राप्त कर लेते हैं।
हे आईपीएस कुछ तो लाज वर्दी की रख लो-
हे दिल्ली पुलिस के आईपीएस मेरी बातों का बुरा मत मानना, वैसे अच्छा बुरा मानने के लिए भी संवेदनशील दिल होना चाहिए। जो आप पहले ही दफन कर चुके हो। आपके पास तो सिर्फ़ निरंकुश ताकत है जिसका इस्तेमाल किसी पर भी कर सकते हो।
सब ताक पर, खाकी खाक पर-
जब आप अपने धर्म, परिवार के संस्कार, अपनी पढ़ाई लिखाई और पुलिस सेवा के लिए ली गई शपथ को ताक पर रख चुके हो तो इन बातों का भला तुम्हारे लिए क्या मूल्य होगा।
लेकिन फिर भी उम्मीद है कि कभी न कभी तो तुम्हारी आत्मा तुम्हें झिंझोड़ेगी ही , जिसे तुमने दबा कर रखा हुआ हैं और दबाई हुई चीज एक न एक दिन ऊपर उठती ही है।

खुद को खुदा मत समझो, पहले वाले भी इसी भ्रम में थे-
वैसे ये बातें सिर्फ़ अब के अफसरों के ऊपर ही लागू नहीं है। पहले भी ऐसे महानुभाव आईपीएस हुए जिन्होंने सत्ताधारियों को गुरु धारण कर आईपीएस की वर्दी को खाक में मिलाया। हो सकता है आप में से कई ने ऐसे ही अफसरों से इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा ली हो।
सरकार चाहे किसी भी दल की हो जब तक आईपीएस आंख मूंद कर सत्ता के लठैत बनते रहेंगे पुलिस में सुधार हो ही नहीं सकता।
जब भी कोई आईपीएस बनता है मीडिया उसे सिर आंखों पर बिठाती है उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, विकट परिस्थितियों के बावजूद सफलता पाने की कहानियां बच्चों को प्रेरित करने के लिए बताई जाती है। लेकिन यह देख कर अफसोस होता है कि ईमानदारी, मेहनत और आदर्शवादी बातें करने वाला वह अफसर कुछ समय बाद ही एकदम उल्टा आचरण करने लगता है। अपराध के मामले दर्ज न करना, मातहतों का नौकर/ गुलाम की तरह इस्तेमाल करना, सरकारी गाड़ियों और अन्य संसाधनों का निजी इस्तेमाल करना भी भ्रष्टाचार ही होता है। जो अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन नहीं करता वह बेईमान ही होता है।
आईपीएस अगर ईमानदार हैं तो ईमानदार नजर आना जरूरी है।

 गुस्ताखी माफ।

          पत्रकार मंदीप FIR   
 

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