Sunday 21 February 2021

पुलिस सुस्त,अपराधी चुस्त,लोग त्रस्त। अपराध के 55% मामलों में अपराधियों को पकड़ने में नाकाम पुलिस। कमिश्नर, IPS की पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान।

कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव
पुलिस सुस्त, अपराधी मस्त, लोग त्रस्त।
अपराध के 50 फीसदी मामले भी नहीं सुलझा पाई पुलिस। 
अपराध के 55 फीसदी मामलों में शामिल अपराधियों को पकड़ने में विफल ।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा।
कमिश्नर, IPS की काबिलियत पर सवालिया निशान।

इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी में लोग सबसे ज्यादा चोर और लुटेरों से त्रस्त है। घर और बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं है। हर समय नकदी, सामान, गाड़ी आदि चोरी होने/लुट जाने का डर बना रहता है। जेब से लेकर घर, दुकान, फैक्ट्री, गोदाम , गाड़ी आदि सब कुछ चोर, लुटेरों के निशाने पर हैं।
दिल्ली पुलिस के अपराध के आंकड़ों से भी पता चलता है कि सबसे ज्यादा चोरी,लूट/झपटमारी की वारदात ही होती हैं। यह अपराध सबसे ज्यादा हो रहा है इसके बावजूद पुलिस आधे से ज्यादा अपराधियों को पकड़ने और चोरी का माल बरामद करने में नाकाम रही है। इसका पता पुलिस के आंकड़ों से चलता है।
अपराध के 55 फीसदी मामले सुलझाने में विफल।-
दिल्ली पुलिस ने साल 2020 में अपराध के कुल 266070  मामले दर्ज किए है। देश की श्रेष्ठ और तेजतर्रार पुलिस होने का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस अपराध के  45 फीसदी मामलों को ही सुलझा पाई है। इसका मतलब साफ है कि शेष 55 फीसदी अपराधों में शामिल लाखों अपराधी अपराध करने के लिए अभी भी आजाद घूम रहे हैं।
चोरी के 169474 मामले-
पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव द्वारा  सालाना प्रेसवार्ता में पेश किए अपराध के आंकड़ों से पता चलता है कि राजधानी में चोरों,लुटेरों/स्नैचरों का बोलबाला/आतंक है। पुलिस ने चोरी के कुल 169474 मामले दर्ज किए है इनमें वाहन चोरी के 35019 मामले भी शामिल है। इनमें से चोरी के 164308 मामले तो ई-एफआईआर के माध्यम से  मोबाइल फोन और वेबसाइट के माध्यम से दर्ज किए गए हैं। 
लोग चोरों के सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। लेकिन पुलिस अफसरों की नजर में शायद यह अपराध कोई मायने नहीं रखता है। अफसर उन लोगों की पीड़ा/तकलीफ़ का अंदाजा भी नहीं लगा सकते जिनकी जीवन भर की जमा पूँजी, गहने,सामान आदि चोरी हो जाते हैं। 
पुलिस ने घर,दुकान, कारखाने, गोदाम आदि में हुई चोरी और वाहन चोरी के कितने मामलों को सुलझाया यानी कितने चोर पकडे़ गए है। चोरी का कितना माल /संपत्ति और वाहन बरामद किए यह जानकारी पुलिस कमिश्नर ने अपनी सालाना रिपोर्ट में भी नहीं दी है। इससे साफ पता चलता है कि पुलिस चोरों को पकड़ने और गाडियां बरामद करने में बुरी तरह फेल हो गई है। इसी लिए चोरी के मामले सुलझाने के आंकड़े पुलिस ने उजागर ने नहीं किए। इसके अलावा यह भी नहीं बताया कि आईपीसी के तहत दर्ज अपराध के कुल कितने मामलों को पुलिस ने सुलझा लिया है।
45 फीसदी ही अपराधी पकडे़ गए-
हालांकि एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने बताया कि आईपीसी के तहत दर्ज अपराध के कुल 250324 मामलों में से 45.71 फीसदी मामले ही सुलझाए गए है। वाहन चोरी और चोरी के अन्य मामलों को सुलझाने की दर बहुत ही कम रहती हैं।
पुलिस ने तो चोरों को भी खुश कर दिया?-
पुलिस ने ऑनलाइन ई-एफआईआर और तीन हफ्ते में अनट्रेस रिपोर्ट की सुविधा लोगों को उपलब्ध कराई है।
दूसरी ओर ई-एफआईआर शुरु होने के बाद से इसका एक गंभीर और खतरनाक पहलू सामने आया है। अब लगता है कि वाहन चोरों को पकड़ना और वाहन बरामद करना पुलिस की प्राथमिकता में नहीं रहा है। पुलिस अब तीन हफ्ते में अनट्रेस रिपोर्ट दाखिल करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है।  इस वजह से ही अपराधी बेखौफ होकर वाहन चोरी कर रहे है। पुलिस यह सोच कर खुश हैं कि उसने चोरी की ई-एफआईआर की सुविधा उपलब्ध करा कर अपनी और लोगों की मुश्किल आसान कर दी है। जिसकी कार चोरी होती है वह यह सोच कर खुश हो सकता है कि उसे एफआईआर दर्ज कराने के लिए थाने का चक्कर नहीं काटना पड़ा। उसने ऑनलाइन ई-एफआईआर करा दी और तीन हफ्ते में उसे अनट्रेस रिपोर्ट भी मिल गई, जिससे वह जल्द से जल्द बीमा की रकम लेकर दूसरी गाड़ी खरीद सका।
पुलिस की कामचोरी से अपराधियों की मौज-
लेकिन इस व्यवस्था से तो पुलिस से भी ज्यादा खुश तो चोर ही हो सकते है। वाहन चोरों को भी मालूम है कि पुलिस की अब कार बरामद करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती। पुलिस अनट्रेस रिपोर्ट दाखिल करके अपना पल्ला झाड़ लेती है। ऐसे में कार बरामद करने और चोर को पकड़ने के लिए भला पुलिस मेहनत क्यों करेगी। इसलिए अपराधी बेखौफ होकर वाहन चोरी और वाहनों से बैटरी/ स्टीरियो /टायर आदि भी चोरी कर रहे हैंं। 
पुलिस ने लोगों को ई-एफआईआर की सुविधा देने के नाम पर एक तरह से अपने मूल कार्य/कर्तव्य से पल्ला झाड़ लिया है। अपराध रोकना और अपराध हो जाने पर अपराधियों को पकड़ना ही पुलिस का मुख्य कार्य होता है।
पहले वाहन चोरी/अन्य चोरी होने पर पुलिस घटनास्थल पर जाकर तफ्तीश करती थी। अब तो  ऐसा भी होता है कि जब कोई पीसीआर को फोन करके चोरी की सूचना देता है तो थाने से पुलिस शिकायतकर्ता को फोन करके कहती है कि तुम ही थाने आ जाओ। जबकि पुलिस का मूल काम यह होता है कि वह घटनास्थल पर जाकर साक्ष्य/ सबूत जुटाए, सीसीटीवी फुटेज आदि देखें और सही तरीक़े से तफ्तीश करे। ताकि अगर अपराधी पकड़ा जाए तो उन साक्ष्य/ सबूतों के आधार पर उसे अदालत में चोर साबित किया जा सके। लेकिन अब पुलिस घटनास्थल पर भी कम ही जाती है। ऐसे में यदि अपराधी कभी पकड़ा भी जाए तो पुलिस अदालत में यह साबित ही नहीं कर पाएगी कि यह चोरी उसी ने की थी। 
पहले वाहन चोरी होने पर वरिष्ठ अफसरों द्वारा समीक्षा की जाती थी। एसएचओ पर कार बरामद करने और वाहन चोरों को पकड़ने का दबाव रहता था। लेकिन अब तो पुलिस ने एक तरह से अपना पल्ला झाड़ कर चोरों को खुली छूट दे दी है। 
अब ऐसे हालात में भला अपराध और अपराधियों पर अंकुश कैसे लग पाएगा ? 
लोगों को सुविधा देने के नाम पर पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से पल्ला झाड़ लिया है। क्या यह पुलिस की कामचोरी नहीं है ?
क्या अनट्रेस रिपोर्ट देने से ही पुलिस को यह छूट मिल जाती है कि चोर को पकड़ना और वाहन/संपत्ति बरामद करना अब उसकी जिम्मेदारी नहीं है? 
क्या यह एक तरह से यह कानून की आंखों में धूल झोंकना नहीं  है ?

काबिलियत की पोल खोलते आंकड़े-
सच्चाई यह है कि हर साल पुलिस अपराध के  दर्ज कुल मामलों में से पचास फीसदी से ज्यादा मामलों को सुलझा ही नहीं पाती है। इससे पुलिस अफसरों की पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है। इसलिए अगर पुलिस भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज कुल अपराध में से कुल कितने मामले सुलझाए के भी आंकड़े दे देती तो उसकी पोल खुल जाती। 
35019 वाहन चोरी-
पुलिस ने साल 2020 में डकैती के 9, लूट के 1963, झपटमारी/ स्नैचिंग के 7965, वाहन चोरी के 35019 और अन्य तरह की चोरी के 134455 मामले दर्ज किए। साल 2020 में चोरी और वाहन चोरी के मामलों में कमी आने  का मुख्य कारण यह भी है कि कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन /तालाबंदी की अवधि मेंं चोरों को चोरी करने का मौका नहीं मिला। 
साल 2019 में डकैती के 15 ,लूट के 1956, झपटमारी के 6266, वाहन चोरी के 46215 और अन्य चोरी के 193504 मामले दर्ज किए गए थे।
40 फीसदी लुटेरे पकडे़ नहीं गए - दिल्ली में बेखौफ लुटेरों द्वारा मोबाइल फोन/नकदी/ पर्स आदि लूटने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। लेकिन पुलिस करीब साठ फीसदी मामलों में ही अपराधियों को पकड़ पाई है।
पुलिस ने साल 2020 में दर्ज झपटमारी के 7965 मामलोंं में से साठ फीसदी मामले सुलझाए और  6496 झपटमार/स्नैचरों को पकड़ा है। साल 2019 में झपटमारी के 59 फीसदी मामले सुलझाए और 5243 अपराधी पकडे़ थे।
पुलिस ने साल 2020 और 2019 में डकैती/लूट के 92 फीसदी मामले सुलझाने का दावा किया है।

अपहरण- पुलिस ने साल 2020 और 2019 में  फिरौती के लिए अपहरण के क्रमशः 11 और 15 मामले दर्ज किए। सभी मामले सुलझा लिए।
जबरन वसूली- साल 2020 और 2019 में जबरन वसूली के क्रमशः120 और 179 मामले दर्ज किए। पुलिस ने क्रमशः 87 फीसदी और 74 फीसदी मामलों में अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया।
हत्या- साल 2020 में हत्या के 472 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 53 लोगों की हत्या उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में की गई थी। हत्या के 90 प्रतिशत मामलों में आरोपी पकडे़ गए।  साल 2019 मेंं हत्या के कुल 521 मामलों में से 87 प्रतिशत सुलझाए गए थे। 
महिलाओं के खिलाफ अपराध- साल 2020 में बलात्कार के 1699, उत्पीड़न/मोलेस्टेशन के  2186, महिलाओं के अपहरण के 2938, महिला के शील/ लज्जा के अपमान के 434 और पॉक्सो एक्ट के 65 मामले दर्ज किए गए ।
साल 2019 में बलात्कार के 2168, मोलेस्टेशन  के 2921 महिलाओं के अपहरण के 3672,महिला के शील का अपमान/ खिलवाड़ के 495 और पॉक्सो एक्ट के 109 मामले दर्ज किए गए।
पुलिस ने साल 2020 में  बलात्कार के 96 फीसदी, मोलेस्टेशन के 90 फीसदी,महिलाओं के अपहरण के 57 फीसदी,महिला के शील का अपमान/ खिलवाड़ के 85 फीसदी और पॉक्सो एक्ट के 94 फीसदी मामलों में आरोपियों को गिरफ्तार किया। ।
पुलिस ने साल 2019 में  बलात्कार के 95 फीसदी, मोलेस्टेशन के 88 फीसदी,महिलाओं के अपहरण के 64 फीसदी,महिला के शील का अपमान/ खिलवाड़ के 79 फीसदी और पॉक्सो एक्ट के 90 फीसदी मामलों में आरोपियों को गिरफ्तार किया। ।
अपनों से भी खतरा- पुलिस के अनुसार साल 2020 में बलात्कार के  मामलों में गिरफ्तार आरोपियों में से 44 फीसदी परिवार के सदस्य या दोस्त, 26 फीसदी अन्य जानकर, 14 फीसदी रिश्तेदार, 12 फीसदी पड़ोसी, दो फीसदी मालिक या सहकर्मी और दो फीसदी अजनबी हैं।
हत्या के कारण -
साल 2020 में 44 फीसदी हत्याएं पुरानी दुश्मनी/विवाद के कारण हुई।  21 फीसदी हत्याएं मामूली सी बात पर अचानक तैश में आकर आपा खोने के कारण की गई।   17  फीसदी मामलों में अन्य कारणों से और आठ फीसदी में पैशन/जुनून के कारण हत्या कर दी गई। सिर्फ 7 फीसदी मामलों में अपराध के लिए हत्या की गई।  
पुलिस के आंकड़ों से ही पता चलता है कि हत्या हो या बलात्कार ज्यादातर मामलों में आरोपी जानकार या रिश्तेदार थे। इसका मतलब जघन्य अपराध को सुलझाने के लिए पुलिस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।
सजा दर कम-37 फीसदी लुटेरों को ही सजा
दिल्ली पुलिस साल 2019 में हत्या के 54 फीसदी, हत्या की कोशिश के 49 फीसदी  ,
अपहरण के पचास फीसदी, वसूली के छियालीस फीसदी,डकैती/ लूट के 37 फीसदी,बलात्कार के 23 फीसदी, मोलेस्टेशन के 34 फीसदी,महिलाओं के अपहरण के 39 फीसदी,महिला की लाज/ शील के अपमान के 26 फीसदी और पॉक्सो एक्ट के 68 फीसदी मामलों में ही अपराधियों को अदालत द्वारा सजा दिलवा पाई।

तफ्तीश पर सवाल-
सजा की कम दर से पता चलता है कि पुलिस अपराधियों के खिलाफ लगाए अपने आरोपों को अदालत में साबित नहीं कर पाती है। इससे लगता है कि पुलिस की तफ्तीश में ही कहीं न कहीं कोई कमी होती होगी जिसका फायदा अपराधियों को मिल जाता है। इससे पुलिस की तफ्तीश और पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है।

सजा दर की तुलना -
देश भर मेंं  पुलिस साल 2019 में  बलात्कार के 28 फीसदी, मोलेस्टेशन के 27 फीसदी,महिलाओं के अपहरण के 24 फीसदी,महिला की शील का अपमान/ खिलवाड़ के 22 फीसदी और पॉक्सो एक्ट के 35 फीसदी मामलों में ही अपराधियों को अदालत द्वारा सजा दिलवा पाई।

देश भर की पुलिस से अपने को श्रेष्ठ दिखाने वाली और सबसे ज्यादा संसाधनों वाली दिल्ली पुलिस अपराधियों को सजा दिलाने की कम दर होने पर अपनी सजा दर को बेहतर दिखाने के लिए अपनी तुलना पूरे देश की सजा दर से करती है। पुलिस यह दिखाना चाहती है कि देश भर में तो सजा दर उनसे भी कम है।
दंगों में 53 मरे 581 घायल- 
साल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामलों में पुलिस ने 755 मामले दर्ज किए। इनमें से 400 मामलों में 1881 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
जेएनयू मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल- 
जेएनयू में घुस कर छात्रों पर हमला करने वालों को पुलिस ने एक साल बाद भी गिरफ्तार नहीं किया है। हमलावरों में शामिल लड़की समेत अनेक गुंडों के वीडियो वायरल होने के बावजूद पुलिस द्वारा हमलावरों को गिरफ्तार न करना कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है।
तब्लीगी जमात -निजामुद्दीन मरकज और तब्लीगी जमात के मुखिया मौलाना मोहम्मद साद के खिलाफ अपराध शाखा के तेजतर्रार अफसर करीब एक साल से जांच ही कर रहे हैं। तफ्तीश की कछुआ चाल ने पुलिस अफसरों की तफ्तीश करने की काबिलियत पर सवालिया निशान लगा दिया है।
पुलिस जमात के 233 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। 
लेकिन गैर इरादतन हत्या मामले के मुख्य आरोपी मौलाना मोहम्मद साद के बारे में पुलिस की अभी तक जांच ही चल रही है। पहले मरकज को खाली कराने में देर करने वाली पुलिस अब मुख्य आरोपी को गिरफ्तार करने मेेंं भी देरी क्यों कर रही है ? क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण हैं ?
 
सुपरदारी -
पुलिस ने साल 2020 में करीब 60 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति लोगों को सुपरदारी पर दी। यह संपत्ति केस प्रॉपर्टी के रुप में थानों में जमा थी। पुलिस ने अदालत से यह संपत्ति सुपरदारी पर लोगों को दिलवाने में मदद की। सोने के 738 गहने, चांदी के 572 गहने, हीरे के 20 गहने, 8341 दोपहिया वाहन, 422 टीएसआर, 1456 चार पहिया वाहन, 6633 मोबाइल फोन और 219 लैपटॉप/ कंम्प्यूटर आदि सुपरदारी पर लोगों को सौंप दिए गए।

पोल खोलते आंकड़े-
दिल्ली पुलिस द्वारा 2019 में अपराध के 316261 मामले, साल 2018 में 262612 मामले और साल में 2017 में 244714 मामले दर्ज किए गए।
साल 2016 में तो अपराध के 75 फीसदी से ज्यादा मामलों को पुलिस सुलझा नहीं पाई। साल 2016 में आईपीसी के तहत अपराध के 209519 मामले दर्ज हुए थे। पुलिस सिर्फ 56613 मामलों को ही सुलझा पाई।

    पुलिस सही FIR ही दर्ज़ नहीं करती।
इसलिए पुलिस द्वारा दिए गए आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर होते हैं।
 अपराध बढ़ने का मुख्य कारण है पुलिस का वारदात को सही दर्ज न करना। अपराध के  मामले सही दर्ज होंगे तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दवाब बनेगा। इसलिए पुलिस की कोशिश होती है कि अपराध के मामले कम से कम दर्ज किए जाए या फिर हल्की धारा में दर्ज किया जाए। लेकिन ऐसा करके पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करती हैं। इसीलिए बेख़ौफ़ लुटेरों ने आतंक मचा रखा है। महिला हो या पुरुष कोई भी कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हैं।
लूटपाट और लुटेरों पर अंकुश लगाने में नाकाम पुलिस अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने में जुटी रहती है।

 आंकड़ों की बाजीगरी कर अपराध कम दिखाने का नमूना-

डीसीपी मोनिका भारद्वाज का कारनामा,
88 वारदात एक ही एफआईआर में दर्ज कर दी।-
पश्चिम जिले की तत्कालीन डीसीपी मोनिका भारद्वाज को भी अपराध कम दिखाने के लिए अलग अलग दिन और स्थानों पर हुई चोरी की 88 वारदात को एक ही एफआईआर में दर्ज करने में महारत हासिल है। 
तिलक नगर थाना इलाके में साल 2019 में एक से दस मई  के अंदर अलग-अलग स्थानों पर लगे एटीएम से अपराधियों ने लोगों का डाटा चोरी कर उनके बैंक खातों से लाखों रूपए निकाल लिए।
वारदात के शिकार हुए लोगों ने  पुलिस को शिकायत की लेकिन पुलिस ने उसी समय एफआईआर दर्ज नहीं की। जब करीब 88 शिकायतें पुलिस को मिल गई तब जाकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।
इसमें भी पुलिस ने अलग-अलग एफआईआर दर्ज करने की बजाए सारे मामले एक ही एफआईआर में दर्ज कर दिए। जो कि कानूनन गलत है।
पुलिस ने दिया अपराधियों को मौका--
पुलिस अगर सबसे पहले मिली शिकायत पर ही एफआईआर दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर देती तो अपराधी पहले ही पकड़ में आ जाते और इतने सारे लोगों की रकम चोरी होने से बच जाती।
 बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करते हैं। --
इस तरह आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एस एच ओ तक खुद को सफ़ल अफसर दिखाते हैं।

लोगों को FIR दर्ज कराने के लिए अड़ना चाहिए।
लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस ने उनके साथ हुई वारदात की सही एफआईआर दर्ज की  है या नहीं है। यानी लूट को लूट और चोरी को चोरी में ही दर्ज़ किया गया है।

लोगों के जागरूक न होने के कारण ही पुलिस लूट, झपटमारी को चोरी में या लॉस्ट रिपोर्ट में दर्ज़ कर देती है ।-
एफआईआर/ ई-एफआईआर और लॉस्ट रिपोर्ट सभी  के प्रिंट आम आदमी को  एक जैसे ही लगते हैं। इस लिए उन्हें पुलिस की धोखाधड़ी का पता नहीं चलता।
लूट-झपटमारी का शिकार हुआ व्यक्ति तो रिपोर्ट दर्ज करा कर निश्चित हो जाता हैं कि उसने तो एफआईआर दर्ज करा दी और अब पुलिस अपराधी को पकड़ कर उसका सामान वापस दिला देगी।
लेकिन पुलिस जब लूट, झपटमारी, चोरी को कानून की सही धारा में एफआईआर ही दर्ज नहीं करती तो भला अपराधी को पकड़ने की कोशिश क्यों करेगी।

एफआईआर और लॉस्ट रिपोर्ट में अंतर को पहचाने-
ई-एफआईआर- चोरी के मामले में ऑनलाइन ई-एफआईआर दर्ज किए जाने की व्यवस्था है।  जेबकटने , मोबाइल चोरी/बैग से  सामान चोरी होने पर चोरी की रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए लेकिन पुलिस ज्यादातर मामलों में चोरी की रिपोर्ट दर्ज करने की बजाए लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने के लिए शिकायतकर्ता को राजी कर लेती  है। 

लॉस्ट रिपोर्ट- वस्तु, दस्तावेज आदि खो जाने पर व्यक्ति खुद भी ऑनलाइन लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज कर सकता है।
इसके लिए थाने जाने की जरूरत नहीं है।
लॉस्ट रिपोर्ट सिर्फ पुलिस को दी गई एक सूचना भर है जिसके आधार पर मोबाइल फोन का दूसरा सिम, लाइसेंस या अन्य दस्तावेज दोबारा बनवा सकते हैं। इससे ज्यादा इसका कोई महत्व नहीं है। इसलिए अगर आप यह सोचते हैं कि लॉस्ट रिपोर्ट दर्ज करने से पुलिस आप का सामान बरामद करने की कोशिश करेगी तो आप भ्रम में हैं।
मोबाइल फोन छीन जाने या चोरी होने के मामले में पुलिस का रटा-रटाया जवाब होता है कि फोन सर्विलांस पर लगा दिया गया है।  पुलिस की मोबाइल फोन बरामद करने की दर बहुत ही शर्मनाक है।
अपराध की एफआईआर दर्ज होने पर आंकड़ों के माध्यम से पता चलता है कि किस तरह का अपराध बढ रहा है। पुलिस पर अपराधी को पकड़ने का दबाव रहता है। 
अपराध दर्ज न करके  या लूट/ झपटमारी/ चोरी को सामान गुम होने का मामला बना कर "लॉस्ट रिपोर्ट" में दर्ज़ कर पुलिस अपराधियों की ही मदद कर रही है। इसलिए अपराधी बैखौफ है और अपराध दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।
अपराध सही दर्ज होगा तभी अंकुश लगेगा अपराध और अपराधी पर-- 
अपराध सभी दर्ज हो और सही धारा में दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की  सही तस्वीर सामने आएगी । अपराध की सही तस्वीर के आधार पर ही अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना सफल हो सकती है। 
अपराध को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करना अपराधी की मदद करना और अपराध को बढ़ावा देना है। मान लो एक लुटेरा पकड़े जाने पर 100 वारदात करना कबूल करता है लेकिन उसमें से दर्ज दस भी नहीं पाई जाती है अगर 100 की 100 वारदात दर्ज होती तो लुटेरे को सभी मामलों में जमानत करानी पड़ती,जेल में काफी  लंबे समय तक रहता। जमानत और इतने केसों को लड़ने के लिए उसे वकीलों को इतना पैसा देना पड़ता कि उसकी हालत खराब हो जाती। इसके अलावा इतने सारे केस में से कुछ में तो सजा होने की संभावना रहती । ऐसे में वह लंबे समय तक जेल में रहता। इस तरह अपराध और अपराधी पर अंकुश लग सकता है। अब हालात ये है कि अपराधी को मालूम है कि पुलिस सारी वारदात सही दर्ज ही नहीं करती है इसलिए वह बेखौफ वारदात की सेंचुरी बनाता है। पकड़ा भी जाता है तो जल्द जेल से बाहर आकर फिर से वारदात करने लगता है।

आम आदमी के नहीं वीवीआईपी के लिए पुलिस-
मुख्यमंत्री केजरीवाल की बेटी से ऑनलाइन ठगी करने वाले अभियुक्तों को पुलिस ने तुरंत पकड़ लिया। 
प्रधानमंत्री की भतीजी और जज के मोबाइल छीनने के मामले में पुलिस ने चौबीस घंटे में लुटेरों को पकड़ लिया था। पुलिस सिर्फ वीवीआईपी लोगों, नेताओं और वरिष्ठ नौकरशाह के फोन तो तुरंत बरामद कर देती है। आम आदमी के छीने/ लुटे/ चोरी हुए फ़ोन बरामद करने में पुलिस की रत्ती भर भी रुचि नहीं होती। आम आदमी की रिपोर्ट तक आसानी से दर्ज नहीं की जा रही हैं।

चोरों को पकड़ने में पुलिस हमेशा फिसड्डी-

साढ़े 4 लाख से ज्यादा चोरियां हुई।
सिर्फ 57 हजार मामले सुलझाए।

साल 2016, 2017और 2018 में चोरी के कुल 461989 मामले दर्ज किए गए ।  सिर्फ 57100 मामले पुलिस ने सुलझाए है। सिर्फ 27216 मामलों में ही चोरी का माल बरामद किया गया है। पुलिस ने सिर्फ 18581 मामलों में अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया है। इससे पता चलता है कि चोरी के मामलों को सुलझाने में पुलिस की बिल्कुल रुचि नहीं है।

तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने राज्य सभा में बताया था कि  साल 2018 में नवंबर तक पुलिस ने चोरी के 165296 मामले दर्ज किए। इनमें से 18194 मामले रद्द किए गए। 147102 मामलों में से पुलिस ने सिर्फ 20141 मामले सुलझाए है। इनमें से भी सिर्फ 7852 मामलों में चोरी हुआ सामान बरामद हुआ है। 23776 चोरों को गिरफ्तार किया गया है।
साल 2017 में चोरी के 165765  मामले दर्ज किए गए। इनमें 19796 मामले रद्द किए गए। चोरी के 145969 मामलों में से 22438 मामले सुलझाने में पुलिस सफल हुई। सिर्फ 10406 मामलों में चोरी का सामान बरामद कर पाई। 26337 चोर गिरफ्तार किए गए।
साल  2016 में चोरी के 130928  मामले दर्ज किए गए। इनमें से  8999 मामले रद्द किए गए। चोरी के 121929 मामलों में से 14521 मामले सुलझाए गए सिर्फ 8958 मामलों में चोरी का सामान बरामद किया गया। 17685 चोर गिरफ्तार किए गए।

चार्जशीट का आलम-
पुलिस की तफ्तीश का आलम यह है कि  साल 2016 में 8003, साल 2017 में  7411और  साल 2018 में 3167 मामलों में ही  अदालत में आरोपपत्र /चालान दाखिल किया गया।

लाखों मोबाइल चोरी/ खोए/ लुटे-
अगर पुलिस ईमानदारी से जेब कटने और मोबाइल चोरी के ही मामले दर्ज करे तो चोरी के मामलों का आंकड़ा दस लाख से भी ऊपर पहुंच सकता है। इसका पता इससे लगाया जा सकता है कि  दिल्ली में हर महीने ही करीब दो लाख मोबाइल फोन चोरी/गुम ,लूट/झपट लिए जाते है। यानी रोजाना लगभग सात हजार  लोग अपना मोबाइल फोन गंवा देते है।
साल 2018 में 30 जून तक ही मोबाइल चोरी/ खोने/ लूट  के करीब बारह लाख  (1158637)मामले दर्ज  हुए थे । इनमें 1129820 मामले मोबाइल गुम/खोने ,  26440 चोरी, 1715 झपटमारी  और  662 लूट  के तहत दर्ज हुए है ।

मोबाइल गुम हुआ या चोरी ?-
सचाई यह है मोबाइल फोन खोने ( लॉस्ट रिपोर्ट) के रुप में दर्ज हुए अधिकांश मामले चोरी और झपटमारी के ही होते है। झपटमारी ,चोरी में एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी और अपराध के आंकड़े से अपराध की वृद्धि उजागर हो जाएगी। इस लिए पुलिस में यह परंपरा है कि झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में एफआईआर दर्ज न की जाए।  झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट कराने पहुंचे व्यक्ति को पुलिस कह देती है रिकवरी के चांस तो है नहीं और तुम्हारा काम तो खोने की पुलिस रिपोर्ट से भी चल जाएगा । पहले ऐसे मामलों में पुलिस एनसीआर दर्ज करके या कागज पर लिखी शिकायत पर थाने की मोहर लगा देती थी । अब यह काम ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट से हो जाता है ।
पुलिस अगर ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करे तो उस पर झपटमारों, चोरों को पकड़ने का दवाब बनेगा  है। पुलिस को तफ्तीश में मेहनत करनी पड़ेगी। जो वह करना नहीं चाहती। 

इसलिए अपराध को सही दर्ज न करना एसएचओ,डीसीपी और पुलिस कमिश्नर से लेकर गृह मंत्री तक के अनुकूल है । लेकिन ऐसा करके ये अपराधियों की मदद कर रहे है । अपराधी को भी मालूम है कि अगर पकड़ा भी गया तो उसके खिलाफ दर्ज मामले तो बहुत ही कम मिलेंगे । 



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