Monday 8 March 2021

दिल्ली दंगों की तफ्तीश की पोल अदालतों में खुलने लगी।सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते,सौ संदेहों को सबूत नहीं बना सकते।


पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव

दंगों की तफ्तीश की पोल अदालतों में खुलने लगी।
सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते,
सौ संदेहों को सबूत नहीं बना सकते।

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस का दावा है कि दंगों के मामले में पुख्ता सबूत/साक्ष्यों के आधार पर ही आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। 
पुलिस कहती है कि दंगों के मामले की जांच में यह नहीं देखा जाता कि आरोपी किस धर्म/मजहब, जाति, पहचान या रंग का है। जिनके खिलाफ पुख्ता सबूत पाए गए उन्हें जेल की सलाखों के पीछे बंद किया गया है।
लेकिन पुलिस के दावों और तफ्तीश की पोल अब आए दिन अदालतों में खुल रही है। 
कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान-
ऐसे मामलों से पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबिलियत/ भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
उल्लेखनीय है कि दंगों की जांच में पुलिस की भूमिका पर देश के मशहूर रिटायर्ड आईपीएस अफसर जूलियो रिबैरो तक सवाल उठा चुके हैं। 

पुलिस के बारे में कहा जाता है कि वह रस्सी का सांप बना देती है। लेकिन लगता है अब पुलिस  खरगोशोंं को घोड़ा बनाने की कोशिश में लगी  है। लेकिन पुलिस की यह कोशिश अदालत में फेल हो रही है।
अदालत चकित -
पुलिस हत्या और हत्या की कोशिश तक के मामले में किस तरह की तफ्तीश करती है और कितने अजीबोगरीब आधार पर गिरफ्तार करती है। इस पर अदालत भी चकित हो जाती है।

पुलिस ने पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान हत्या के प्रयास के मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया था। लेकिन अदालत में पुलिस की तफ्तीश की पोल खुल गई। अदालत यह देख कर चकित रह गई कि पुलिस ने एक व्यक्ति की हत्या के प्रयास के आरोप में दो लोगों पर आरोप लगाने की पूरी कोशिश की जबकि कथित पीड़ित खुद पुलिस की जांच से गायब है। 
अदालत ने कहा कि अनुमान को खींच कर  साक्ष्य/सबूत का आकार/रुप नहीं  दिया जा सकता।
सौ खरगोशों से आप घोड़ा नही बना सकते-
कड़कड़डूमा अदालत के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रुसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की किताब ‘अपराध और सजा’ के हवाले से कहा कि ‘सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते हैं और सौ संदेहों को एक साक्ष्य/प्रमाण नहीं बना सकते। इसलिए दोनों आरोपियों को हत्या की कोशिश (धारा 307) और शस्त्र अधिनियम के आरोप से मुक्त (डिस्चार्ज) किया जाता है।’’ 

मान लो हत्या की कोशिश की है-
पुलिस ने इमरान उर्फ तेली और बाबू पर दंगों के दौरान मौजपुर रेड लाइट के पास एक भीड़ का हिस्सा होने का आरोप लगाया था, जिसमें कथित राहुल पर गोली चलाई गई थी।
पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी व्यक्ति दंगाई भीड़ का हिस्सा थे और इस लिए "यह माना जाना चाहिए कि उन्होंने हत्या के प्रयास का अपराध किया था"। 
जिसे गोली लगी वह कहां है ?
अदालत ने कहा कि जिस कथित पीड़ित राहुल को गोली मारी गई वह कहां है ? उसका बयान भी रिकॉर्ड पर नहीं है।
पुलिस ने बताया कि राहुल, जिसे कथित रूप से दंगाइयों द्वारा गोली मार दी गई है, ने अपने मेडिको लीगल केस (एमएलसी) में गलत पता और गलत मोबाइल फोन नंबर दिया था।
पुलिस ने पीड़ित को देखा तक नहीं- 
अदालत ने कहा, 'जब तक पुलिस अस्पताल पहुंचती, कथित पीड़ित राहुल गायब हो चुका था। ऐसा नहीं है कि राहुल ने कोई शुरुआती बयान दिया और फिर गायब हो गया।
इससे स्पष्ट है कि पुलिस ने राहुल को कभी नहीं देखा। 
किसने, किसे गोली मारी मालूम नहीं- 
एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने पुलिस से सवाल किया, कि "यह मामला ऐसा है, जहां कौन कहेगा कि किसने किस पर गोली चलाई और किसके द्वारा और कहांं पर ।’’ “कथित पीड़ित को पुलिस ने कभी देखा तक नहीं है। उसने कभी किसी गोली की चोट या किसी भीड़ / दंगाइयों के बारे में कोई बयान नहीं दिया। ऐसे में पुलिस की जांच से भी पीड़ित के अनुपस्थित रहने पर आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 कैसे बनाई जा सकती है,"?
हत्या की कोशिश का कोई सबूत नहीं-
अदालत ने एक मार्च 2021 को दिए फैसले में कहा, ‘‘फौजदारी न्याय प्रणाली" कहती है कि आरोपी व्यक्ति पर आरोप तय करने (चार्ज फ्रेम)  के लिए उसके खिलाफ कुछ सबूत/सामग्री होनी चाहिए। अनुमान/पूर्वधारणा सबूत का स्थान नहीं ले सकता। आरोप पत्र में धारा 307 या शस्त्र कानून के तहत मामला चलाने के लिए कोई सबूत नहीं है।’’
उनके पास से किसी भी हथियार की बरामदगी भी नहीं हुई थी।
अदालत ने कहा हालांकि दोनों आरोपियों के खिलाफ गैर कानूनी तरीके से जमा होने और दंगा करने के आधार पर मामला चलाया जा सकता है। इस लिए मामले को मैजिस्ट्रेट की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया।
हत्या के आरोपियों के खिलाफ किसी तरह के सबूत नहीं, हाईकोर्ट ने जमानत दी-
दिल्ली हाइकोर्ट ने पिछले साल हुए दंगों के दौरान हुई हत्या के तीन आरोपियों को 21 फरवरी 2021 को जमानत दे दी।  
हाइकोर्ट के जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि जुनैद, चांद मोहम्मद और इरशाद के खिलाफ प्रत्यक्ष, परिस्थितिजन्य या फॉरेंसिक/वैज्ञानिक किसी भी तरह के सबूत नहीं हैंं। 
इन तीनों पर फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के दौरान शाहिद नाम के शख्स की हत्या का आरोप है। ये 1 अप्रैल 2020 से जेल में थे। 
पुलिस के मुताबिक ये तीनों उन लोगों में शामिल थे जो सप्तर्षि बिल्डिंग की छत पर थे और दूसरे छत पर मौजूद लोगों को निशाना बना रहे थे। पुलिस का आरोप है कि इसी दौरान गोली लगने से सप्तर्षि बिल्डिंग की ही छत पर मौजूद शाहिद की मौत हो गई थी। 
पुलिस ने गोलीबारी की अनदेखी की-
बचाव पक्ष के वकील सलीम मलिक ने अदालत में एनडीटीवी का एक वीडियो भी पेश किया था।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि वीडियो में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि हेलमेट पहने एक व्यक्ति मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से फायरिंग कर रहा था। उस वीडियो में, फायरिंग केवल मोहन नर्सिंग होम बिल्डिंग से दिखाई दी है, ना कि सप्तऋषि बिल्डिंग से होती हुई दिखाई दी है। पुलिस ने जांच में केवल एक तरफ की इमारतों पर ध्यान केंद्रित किया, मोहन नर्सिंग होम की तरफ से की गई गोलीबारी की अनदेखी की है।
नर्सिंग होम से गोलीबारी-
मोहन नर्सिंग होम की छत पर हेलमेट पहने एक व्यक्ति राइफल निकाल रहा है और एक अन्य व्यक्ति है जो हथियार को रूमाल के साथ कवर कर रहा है। उन्हें वीडियो में भी देखा जा सकता है। लेकिन ऐसा लगता है कि जांच एजेंसी ने इमारत के एक तरफ ही ध्यान केंद्रित किया है। हालांकि अभियोजन पक्ष ने स्वीकार किया कि दोनों पक्षों के उपद्रवी एक-दूसरे पर पथराव कर रहे थे और गोलीबारी कर रहे थे।  

अपने समुदाय के व्यक्ति को मार देंगे ?अदालत ने यह भी कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि याचिकाकर्ता दंगे के दौरान अपने ही समुदाय के व्यक्ति को मार देंगे।

अदालत ने कहा, "न तो आरोपियों का कोई मकसद था और न ही अभियोजन पक्ष ने पूरे मामले में किसी भी मकसद का आरोप लगाया है। इस लिए यह मानना ​​मुश्किल है कि याचिकाकर्ता सांप्रदायिक दंगे का इस्तेमाल अपने समुदाय के व्यक्ति को मारने के लिए कर सकते हैं।

दूसरे समुदाय के लोगों को जाने देते ?-अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष का खुद मानना है कि याचिकाकर्ताओं ने सप्तऋषि बिल्डिंग में मौजूद  मुकेश, नारायण, अरविंद कुमार और उनके परिवार के सदस्यों को उनकी जान बचाने के लिए वहां से जाने दिया। ऐसे में अगर वे (आरोपी) सांप्रदायिक दंगे में शामिल थे और दूसरे समुदाय के लोगों को नुकसान पहुंचाना चाहते थे तो फिर उन्होंने उक्त लोगों को जाने क्यों दिया? 

मुख्य हमलावर नहीं पकड़ा गया-

अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस अभी तक मुख्य हमलावर को गिरफ्तार नहीं कर सकी है, जिसने गोली चलाई थी, जिससे शाहिद मारा गया था और याचिकाकर्ताओं से हथियार की किसी भी तरह की कोई बरामदगी नहीं हुई है।





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