Wednesday 6 May 2020

सिपाही अमित की जान बचाने के लिए साथी डाक्टरों से गुहार लगाते रहे। कमिश्नर,IPS सोते रहे। पुलिस में रोष।मौत या सरकारी हत्या? LG, CM जिम्मेदार


सिपाही अमित की जान बचाने के लिए साथी  डाक्टरों से गुहार लगाते रहे,कमिश्नर IPS सोते रहे,  पुलिस में रोष। मौत या सरकारी हत्या ?,
मौत के लिए LG, CM जिम्मेदार।
जागो लोगों जागो,आवाज उठाओ,नेताओं को जगाओ।
चुप रहे तो सिपाही की तरह बिना इलाज के बेमौत मर जाओगे।
-जान बचाने का धर्म भूले डाक्टर।
-इलाज न करके मौत के मुंह में धकेलने का अपराध कर रहे डाक्टर/सरकार।

इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के सिपाही अमित की मौत हो गई। तड़पते अमित की जान बचाने के लिए  उसके दोस्त पुलिस कर्मी उसे लेकर अस्पतालों में भटकते रहे, गुहार लगाते रहे लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया। 
डाक्टरों द्वारा इलाज न करने के कारण युवा सिपाही की मौत हो गई। इसलिए यह मौत नहीं एक तरह से सरकारी हत्या है। इसके लिए दिल्ली के उप-राज्यपाल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिम्मेदार हैं। दिल्ली के नागरिकों के इलाज के लिए व्यवस्था करना इनका ही मुख्य कर्तव्य /कार्य है।
इस मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मातहत पुलिसकर्मियो के साथ कमिश्नर और आईपीएस द्वारा बिल्कुल अनाथ/गुलाम जैसा व्यवहार किया जाता है।

कमिश्नर, IPS कठघरे में -
आईपीएस अफसर अपने कुत्ते तक की सेवा/देखभाल के लिए सिपाही को लगा देते हैं। लेकिन तड़पते सिपाही अमित की जान बचाने के लिए आईपीएस तो क्या उसका एस एच ओ भी उसके साथ अस्पताल तक नहीं गया।

इस मामले ने उत्तर पश्चिम जिला पुलिस उपायुक्त विजयंता गोयल आर्य, संयुक्त पुलिस आयुक्त मनीष अग्रवाल, विशेष आयुक्त सतीश गोलछा और पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। इन सबकी भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है।
उप-राज्यपाल, मुख्यमंत्री जिम्मेदार-
अमित की मौत के लिए सीधे-सीधे उप-राज्यपाल अनिल बैजल , मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसर जिम्मेदार हैं। यह कोई आरोप नही सच्चाई है। 
अमित की जान बचाने में जुटे उसके साथी सिपाही नवीन की दूसरे सिपाही से फोन पर हुई बातचीत के वायरल आडियो रिकार्डिंग से यह बात पूरी तरह साबित हो जाती हैं। उपरोक्त सभी अपने-अपने कर्तव्य का पालन करने में बुरी तरह फेल साबित हो गए।

भारत नगर थाने में तैनात सिपाही अमित राणा (32)सोमवार को सीआरओ में गया था। इसके बाद वह अपने साथी सिपाही नवीन के गांधी विहार स्थित कमरे पर गया। वहां पर नवीन का दोस्त सिपाही अजीत (भैंसवाल निवासी) भी था।
अमित को थोड़ा बुखार महसूस हुआ तो उसने दवाई ली जिससे कुछ आराम हो गया। खाना खाकर रात 11 बजे अमित, नवीन और  अजीत सो गए।
नवीन ने बताया कि रात करीब दो बजे अमित एकदम से उठा और बताया कि सांस लेने में तकलीफ हो रही है। उसे गर्म पानी और चाय  पिलाई।

भर्ती करने के लिए गुहार लगाते रहे -
मंगलवार तड़के अमित को हैदर पुर कोरोना सेंटर में भर्ती कराने के लिए ले गए। सेंटर वालों ने कहा हम सिर्फ टेस्ट कर सकते हैं। 
नवीन ने उनसे कहा कि अमित की तबीयत बिगड़ रही है भर्ती करके इलाज करो टेस्ट रिपोर्ट तो बाद में आती रहेगी। सेंटर वालों ने कहा कि अंबेडकर अस्पताल ले जाओ। अमित को अंबेडकर अस्पताल ले गए
इलाके के एसएचओ से बात की। एस एच ओ से डाक्टर ने कहा कि अस्पताल में भर्ती करने की सुविधा नहीं है मैं टेस्ट करवा दूंगा।
नवीन ने बताया कि डाक्टरों के आगे गुहार लगाई कि अमित की हालात तो देख लो भर्ती करके उसका इलाज तो शुरू कर दो। लेकिन अमित को भर्ती नहीं किया गया।
नवीन,राजेश और अजीत इसके बाद अमित को लेकर दीपचंद बंधु अस्पताल में यह सोच कर ले गए कि भारत नगर का एस एच ओ वहां कुछ तो करेगा।
एस एच ओ ने अस्पताल में तैनात सिपाही को बोल कर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ ली।
दीपचंद बंधु अस्पताल में कोरोना टीम ने अमित को देखा कुछ दवाएं दी और अशोक विहार सेंटर में कोरोना टेस्ट के लिए रैफर कर दिया।

कोरोना सेंटर में टेस्ट के लिए मिन्नतें की- 
अमित को दवा खिलाई जिससे एक बार कुछ आराम हुआ। अशोक विहार सेंटर में टेस्ट के लिए पहुंचे तो उनसे कहा गया है टेस्ट के लिए एक दिन के लिए तय संख्या के मरीजों के टेस्ट किए जा चुके हैं इसलिए अमित का टेस्ट नहीं किया जा सकता। मंगलवार बारह बजे बड़ी मुश्किल से उसका टेस्ट किया गया।
वहां मौजूद डाक्टर से कहा गया कि अमित को यहां भर्ती कर लो।

कोरोना सेंटर में सुविधा नहीं- डाक्टर ने कहा कि भर्ती तो कर लें लेकिन यहां पर कोई सुविधा नहीं है अमित को कोई खाना पीना भी नहीं खिलाएगा। उसे अपने आप खाना पीना करना होगा।
नवीन ने डाक्टर से कहा कि अमित की हालात तो ऐसी है कि वह खुद दवा भी नहीं ले सकता। नवीन  से कहा गया कि अमित को अपने कमरे पर ही ले जाओ,खाना पीना दो।

नवीन और अजीत अमित को वापस कमरे पर ले आए। इसके बाद शाम सात बजे नवीन खाने पीने का सामान लेने चला गया। नवीन वापस आया तो पाया कि अमित की जुबान तुतला रही है उससे बोला नहीं जा रहा है। अमित के फोन पर एस एच ओ का फोन आया हुआ था।
 उसने नवीन से कहा कि अमित को राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाओ वहां बात की है भर्ती कर लेंगे।

जान बचाने के लिए गाड़ी भगाते रहे-
नवीन और अजीत अमित को गोद में लेकर बड़ी मुश्किल से पांचवीं मंजिल से नीचे लाएं।
इसके बाद अस्पताल की ओर गाड़ी भगा दी। आइटीओ पहुंचे तो पाया कि अमित की आवाज बंद हो गई। गाड़ी रोकी देखा तो अमित के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही।
गाड़ी ओर तेज भगा कर राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी डाक्टर ने बताया कि धड़कन बंद हो गई है।
नवीन ने यह सारी बातें अपने साथी सिपाही लठिया को फोन पर रोते हुए बताई हैं।
अमित को ला दो-
नवीन ने रोते हुए बताया कि अमित की पत्नी का बार फोन आ रहा था वह कह रही थी कि मेरे अमित को मुझे ला कर दो। अब मैं उसे क्या जवाब दूं।
दुःखी और गुस्से में लठिया नवीन से कहता है कि अफसरों से कहो वह अमित को वापस लाए।
हरियाणा, सोनीपत में हुलाहेडी गांव के निवासी अमित के तीन साल का एक बेटा है।
अफसर बेशक साथ न दे हम तो अमित के परिवार साथ खड़े हैं-
सिपाही लठिया कहता है कि अफसर तो हमारे साथ नहीं है। हमें तो अमित के परिवार के साथ खड़े रहना है हम हर तरह से भाई के परिवार की  मदद करेंगे।
अपने कोरोना न होवै, तू डर मत-
लठिया नवीन को बताता है कि सोमवार को अमित ने उससे बात की थी अमित कह रहा था कि अपने कोरोना वरोना न होवै, तू डर मत।
लठिया ने अमित से कहा कि अगर हमारे साथ कोई उक चूक हो गई तो जो एस एच ओ अब ड्यूटी की खातर हमें पेल रहा है वह हमारे नजदीक भी नहीं आएगा। इसलिए अपनी सेफ्टी ज़रुरी है।

अमित की मौत से दुखी लठिया कहता है कि
 हम परिवार को छोड़ कर मौत के मुंह में खड़े हैं। किसी अफसर को कोई परवाह नहीं हमारी। ना हमारे महकमे को कोई फर्क पड़ता है। हम मरे या जिएं किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हम तो अपने आप में अकेले ही हैं।

सिपाही लठिया कहता है कि उप-राज्यपाल भी वैसे तो बड़े बड़े दावे कर रहे हैं कि पुलिस के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। 

अमित की मौत से दुखी नवीन के परिवार वालों ने नवीन से कहा कि वो तो गया तू तो ठीक रह ले यानी अपना ध्यान रखना। इस पर नवीन ने कहा अब मैं क्य क्या ठीक रह लूं।
अफसर ध्यान देते तो बच जाता सिपाही-
नवीन ने बताया कि अमित की मौत के बाद अब अफसर पूछ रहे हैं कि तुम किस किस से मिले थे। तुम्हारा ध्यान रखा जाएगा।
दुःखी नवीन और लठिया बात करते हैं कि अफसर अगर पहले ध्यान रख लेते तो माणस यानी अमित बच जाता।
अफसरों के रवैए से दुखी और नाराज़ नवीन कहता हैं अब अफसरों को कुछ नहीं बताना है अपने कमरे पर जाकर जो अपने लिए जो किया जाएगा खुद कर लेंगे।
अपने साथी की मौत से दुखी नवीन ने लठिया
से कहा कि ऐसी नौकरी की क्या ऐसी तैसी करनी है इससे तो अच्छा अपने घर रहो।

सिपाही की किसी ने नहीं सुनी-
नवीन ने मैक्स, लोकनायक, शालीमार बाग के कौशल,सरोज अस्पताल और दिल्ली सरकार की कोरोना हेल्प लाइन पर भी अमित की जान बचाने के लिए गुहार लगाई लेकिन किसी ने भी सुनवाई नहीं की। सबने कह दिया कि कोरोना की रिपोर्ट आए बिना मरीज़ को भर्ती नहीं किया जा सकता।

कोरोना योद्धा को भी भर्ती नहीं किया-
इस मामले से यह भी पता चलता है कि जब कोरोना योद्धा कहे जाने पुलिसकर्मी को ही अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया तो आम मरीजों का  कितना बुरा हाल होगा।

मरीज़ को मौत के मुंह में धकेलते डाक्टर/ सरकार-
कोरोना पाज़िटिव/ गंभीर बीमारी से पीड़ित या किसी भी रोगी का इलाज़ न करना या इलाज में लापरवाही बरतना अपराध की श्रेणी में आता है। 
ये कैसी सरकार है और कैसे डाक्टर हैं जो तड़पते मरीज़ का तुरंत इलाज करने की बजाए उसे खुद मौत के मुंह में धकेल देते हैं।
अमित को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी तो ऐसे में उसे तुरंत वेंटिलेटर/आक्सीजन की जरूरत थी। अगर समय रहते उसे इलाज मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी। अमित की मौत का मुख्य कारण कोरोना को नहीं मानना चाहिए। उसकी मौत का मुख्य कारण डाक्टरों द्वारा उसका इलाज न किया जाना है।

जान बचाने का धर्म भूल गए डाक्टर-
माना कि कोरोना की अभी तक कोई दवा या टीका नहीं बना है। लेकिन मरीज़ के लक्षणों के आधार पर तो इलाज किया ही जा सकता है। 
किसी को शुगर, हाइपरटेंशन, हार्ट, किडनी या कोई अन्य बीमारी है तो उसकी इन बीमारियो का भी इलाज न किया जाना उसे जान-बूझ कर मौत के मुंह में धकेलना ही तो हैं।
जैसा कि अमित के मामले में हुआ है उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी तो उसे तुरंत भर्ती करके आक्सीजन देने चाहिए थी।

मौत के मुंह में धकेल रही सरकार-
सरकार इस समय मरीजों के साथ बड़ा ही अजीब और अमानवीय व्यवहार करके खुद उनकी जान से खिलवाड़ कर रही है इमरजेंसी की हालात में इलाज के लिए पहुंचे मरीजों को कह दिया जाता है कि कोरोना टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद भर्ती और इलाज किया जाएगा।
सरकार का यह तरीका मुख्यमंत्री, स्वास्थ मंत्री और डाक्टरों की अक्ल का दिवालियापन ही जाहिर करता है।
इन लोगों को क्या इतनी भी समझ नहीं है कि इमरजेंसी की गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचे मरीज को सबसे पहले भर्ती करके उसकी जान बचाने की हरसंभव कोशिश की जाती है। टेस्ट कराने और टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर इलाज करने की बारी तो इसके बाद ही आती है।
डाक्टरों को तो यह बात अच्छी तरह मालूम ही होती है फिर अब क्या वह कोरोना के डर से इतनी मामूली-सी बात भी भूल गए।

मुख्यमंत्री के लिए डूब मरने की बात-
 जब ऐसे गंभीर मरीजों को भर्ती ही नहीं किया जा रहा तो अरविंद केजरीवाल बताए कि वह और वेंटिलेटर किसके लिए खरीद रहे हैं?
अस्पताल, डाक्टर ,वेंटिलेटर सब कुछ होने के बावजूद राजधानी में इस तरह बिना इलाज के सिपाही या किसी का भी मरना किसी भी संवेदनशील मुख्यमंत्री के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात होती है।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में होने वाली आपराधिक लापरवाही के कई मामले इस पत्रकार द्वारा पहले भी लगातार उठाए गए हैं लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी अमित की मौत से यह साबित हो गया।

एक करोड़ देने से सिपाही की मौत का दाग़ नहीं धुलेगा।-
लोगों के इलाज की व्यवस्था करने में नाकाम केजरीवाल को लगता होगा कि मौत के बाद सिपाही के परिवार वालों को एक करोड़ रुपए देने से उस पर लगा यह दाग धुल जाएगा। लेकिन यह दाग धुलने वाला नहीं है। अस्पताल में मरीज को भर्ती न करना, इलाज में लापरवाही करना पेशे/धर्म की नजर से पाप  और कानून की नजर में अपराध  है।

कमिश्नर में दम है तो करे मुख्यमंत्री और डाक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज-
पुलिस आम आदमी के साथ हुए ऐसे मामले में तो आसानी से एफआईआर दर्ज करेगी ही नहीं। 
लेकिन पुलिस कमिश्नर कम से कम अपने सिपाही की मौत के मामले में तो इंसानियत/ ईमानदारी/ हिम्मत दिखाए मुख्यमंत्री/डाक्टर/अस्पताल प्रशासन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अपने कर्तव्य का पालन करे।

केजरीवाल का आदेश या डाक्टरों की मनमानी ?-
डाक्टर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने, इलाज करने से मना तो सरकार यानी केजरीवाल के आदेश से ही कर रहे होंगे। अगर डाक्टर अपनी मर्ज़ी से मना कर रहे हैं और केजरीवाल इसमें शामिल नहीं है तो वह उन अस्पतालों और डाक्टरों के खिलाफ खुद कार्रवाई करके दिखाएं जो मरीजों को भर्ती न करके या इलाज न करने का अपराध कर रहे हैं।

सिपाही वफ़ा करके तन्हा रह गए-
पिछले साल वकीलों द्वारा पीटे गए घायल पुलिसकर्मिर्यों को देखने/ हाल जानने  के लिए उत्तरी जिले की डीसीपी मोनिका भारद्वाज और तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक कई दिनों के बाद गए थे। जबकि मोनिका भारद्वाज को बचाने की कोशिश में उसका आपरेटर घायल हुआ था।
सिपाही अमित के मामले ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया कि अफसरों को मातहतों की परवाह नहीं है।

IPS के कुत्तों की देखभाल के लिए पुलिस-

दक्षिण जिला के तत्कालीन डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने दफ्तर में अपने कुत्तों के लिए कमरे बनवाए, कूलर लगाए और देखभाल के लिए पुलिसकर्मी लगा दिए थे।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने रोमिल बानिया के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर इस सवाल का जवाब भी नहीं दिया कि  रोमिल बानिया ने कुत्तों के कमरे के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग किया या भ्रष्टाचार के धन से कमरे बनाए।








12 comments:

  1. Rip�� hamara sistem not good

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  2. Is se bura kuch ho nahi sakta ye end h

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  3. So sad, shame shame delhi police, kaidi dil ki police, bakwash.

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  4. All india m police k jawano or officers ke yehi halat hai jawano ko koi dekhne wala tak nhi hai..jaan jaati hai to jaaye kya frk pdta hai

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  5. It's seems to be a carelessness on many agencies, since they were responsible for his ill health and subsequently resulted in to death of a Corona warrior. Defaulters are to be pinpointed and booked properly through departmental inquiries and stop future reccorance of such bad inssident. Our condolence to Corona warrior and salute. God give place his soul in heaven. Captain Hari Kishan Choudhary

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  6. ये सरकार का अमानवीयता पूर्ण व्यवहार अति निंदनीय तो है ही व सरकार के ऐसे व्यवहार से कोरोनावायरस को हराने में कार्यरत कर्मचारीयों का मनोबल भी कमजोर करेगा।

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  7. यह न केवल सरकार ओर प्रशासन की असफलता है अपितु सरकार द्वारा धन इकट्ठा करने का साधन बन गया है कोरोना । सोशल मीडिया के मुताबिक केंद्र सरकार ने वर्ल्ड बैंक से one billion डॉलर का कर्ज लिया, केंद्रीय कर्मचारियों के भत्ते, सैलरी में कटौती, देश के लोगों द्वारा अपने खून पशीने की कमाई में से दिए गए अरबों रुपए के दान, का कोई हिसाब नहीं।और इलाज के नाम पर ठेंगा। और तो ओर केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारो ने अपने कमाई को बढ़ाने के लिए शराब के ठेके खोलकर आम लोगों की जान का सौदा किया है।। कुछ तो शर्म करो देश के कर्णधारो ,जब राज करने के लिए लोग ही नहीं रहेंगे तो राज किस पर करोगे।। ओर अगर इस जनता की सटीक गई तो क्या ये तुम्हें राज करने लायक छोड़ेंगी।

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  8. यह न केवल सरकार ओर प्रशासन की असफलता है अपितु सरकार द्वारा धन इकट्ठा करने का साधन बन गया है कोरोना । सोशल मीडिया के मुताबिक केंद्र सरकार ने वर्ल्ड बैंक से one billion डॉलर का कर्ज लिया, केंद्रीय कर्मचारियों के भत्ते, सैलरी में कटौती, देश के लोगों द्वारा अपने खून पशीने की कमाई में से दिए गए अरबों रुपए के दान, का कोई हिसाब नहीं।और इलाज के नाम पर ठेंगा। और तो ओर केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारो ने अपने कमाई को बढ़ाने के लिए शराब के ठेके खोलकर आम लोगों की जान का सौदा किया है।। कुछ तो शर्म करो देश के कर्णधारो ,जब राज करने के लिए लोग ही नहीं रहेंगे तो राज किस पर करोगे।। ओर अगर इस जनता की सटीक गई तो क्या ये तुम्हें राज करने लायक छोड़ेंगी।

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  9. Department में बहुत सारी खामियां हैं जिन्हें समय रहते सुधारा नहीं गया तो आगे चलकर समस्या ओर बढ़ सकती हैं please सभी अपना ख्याल रखें।

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  10. It's not good for all Delhi people's.

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