Friday 21 May 2021

ओलंपियन सुशील पहलवान का नाम डॉक्टर को नहीं बताया। पुलिस ने दफा 302 क्यों लगा दी? सोनू महाल बदला लेगा या पैसा?





ओलंपियन सुशील पहलवान का नाम डॉक्टर को नहीं बताया। 

 इंद्र वशिष्ठ 
एक लाख रुपए के इनामी मुलजिम ओलंपियन सुशील पहलवान के खिलाफ सबसे अहम गवाह सोनू महाल और अमित है वह दोनों सिर्फ़ चश्मदीद गवाह ही नहीं है बल्कि इस मामले में घायल हुए पीड़ित भी है। 
 डाक्टर को सुशील का नाम नहीं बताया-
इस मामले में एक महत्वपूर्ण बात यह पता चली है कि सागर पहलवान,सोनू महाल और अमित ने अस्पताल में डॉक्टर को यह बताया ही नहीं कि उन्हें किसने इतनी बुरी तरह पीटा है। जबकि अगवा करने और सागर पहलवान की हत्या के आरोप में ही सुशील की तलाश की जा रही है।  सुशील को घायल बहुत अच्छी तरह से जानते भी है। इसके बावजूद इन लोगों ने डॉक्टर के सामने सुशील या किसी अन्य का नाम नहीं बताया।
सागर, सोनू महाल और अमित की एमएलसी में  लिखा है कि घायलों ने बताया है कि उन पर  हमला किया गया है।
पुलिस ने एफआईआर में भी यहीं दर्ज किया है
 एमएलसी में यदि सुशील का नाम होता तो पुलिस उसका नाम एफआईआर में दर्ज करती ही। फिर पुलिस को एफआईआर में यह नहीं लिखना पड़ता कि सरसरी दरियाफ्त में पता चला कि वारदात को सुशील ने अंजाम दिया है। पुलिस साफ लिखती कि घायलों ने डॉक्टर को बताया है कि सुशील ने पीटा है। 
सागर पहलवान ने भी अगर डॉक्टर को सुशील का नाम बता दिया होता तो वह एमएलसी में दर्ज होता। सागर का यह बयान मृत्यु पूर्व दिया बयान होने के कारण सुशील के खिलाफ मजबूत सबूत बन जाता।
 एमएलसी- डॉक्टर मरीज को देखते ही सबसे पहले उससे यह सवाल पूछते हैंं कि चोट कैसे लगी। मरीज जो बताता है डॉक्टर उसे जिस रजिस्टर में दर्ज करता है। उस दस्तावेज को मेडिकल लीगल सर्टिफिकेट ( एमएलसी)  कहा जाता है।
 सोनू महाल ने भी नाम नहीं लिया-
लेकिन हैरानी है कि तीनों ही घायलों ने सुशील  का नाम नहीं लिया। हत्या के अनेक मामलों में शामिल  सोनू महाल तो कुख्यात काला जठेड़ी गिरोह का  है। सोनू महाल के तो सुशील से डरने की संभावना नहीं है फिर उसने भी डाक्टर को क्यों नहीं बताया कि उसे सुशील ने अगवा कर पीटा है।
 वैसे  कई बार ऐसा भी होता है कि कुख्यात बदमाश अपने दुश्मन का नाम जानबूझ कर पुलिस को नहीं बताते। क्योंकि वह अदालत की बजाए खुद बदला लेने में यकीन करते है। 
हालांकि बाद में पुलिस को सोनू और अमित ने सुशील के खिलाफ बयान दे दिया है। लेकिन गवाहों ने शुरु में एमएलसी में ही सुशील का नाम बताया होता तो वह ज्यादा पुख्ता सबूत सुशील के खिलाफ होता।
 घायलों ने पुलिस को बाद में जो बयान दिया वह तो सोच समझ कर सुशील को फंसाने के लिए दिया गया है यह आरोप बचाव पक्ष के वकील अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान लगा सकते हैंं। वैसे भी पुलिस के सामने दिया गया बयान अदालत में मान्य नहीं होता। उस बयान से गवाह अदालत में मुकर भी सकता है। इसलिए पुलिस को मजिस्ट्रेट के सामने इन दोनों गवाहों के बयान कराने चाहिए थे। मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया बयान अदालत में मान्य होता है हालांकि गवाह उससे भी मुकर  सकता है। 
 बदला या पैसा ?-
आरोपी द्वारा चश्मदीद गवाह को डरा कर, पैसा या सामाजिक दबाव देकर बिठाया भी जाता है। इस मामले में भी समय बताएगा कि पैसों के लिए अपराध कर रहा सोनू महाल भी क्या पैसा लेकर चुप बैठ जाएगा। लेकिन अगर उसने पैसे से ज्यादा अपने अपमान और पिटाई को अहमियत दी तो वह सुशील के साथ दुश्मन जैसा ही सलूक भी कर सकता है। ऐसे में उसके सामने दो रास्ते है एक कानूनी जिसमें वह अदालत में ठोक कर सुशील के खिलाफ गवाही देगा। दूसरा है सुशील से बदला लेने के लिए वह उसकी जान लेने की कोशिश भी कर सकता है।  पुलिस सूत्रों ने बताया कि काला जठेड़ी ने सुशील से कह दिया था कि यह तूने ठीक नहीं किया। अब हमारी तुम्हारी आमने सामने होगी। 
 तफ्तीश पर सवाल- 
पुलिस की तफ्तीश पर अदालत में भी सवाल उठ सकते हैंं। 
अदालत में बचाव पक्ष के वकील द्वारा यह सवाल भी  उठाया जा सकता है कि जब खुद घायलों ने ही डाक्टर के सामने सुशील का नाम नहीं लिया तो पुलिस ने किस आधार पर सुशील को हत्या का आरोपी बनाया ? 
सागर पहलवान के परिवार ने भी सवाल उठाया था कि पुलिस ने घायलों के बयान पर एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की?
 वैसे पुलिस को जब पता चल गया था कि एमएलसी में घायलों ने सुशील का नाम नहीं लिया है तो ऐसे में तो पुलिस को घायलों के बयान पर ही एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। क्योंकि घायलों ने पुलिस को जो बयान दिया उसमे सुशील का नाम शामिल है। 
पुलिस ने वारदात की सूचना मिलने के 6 घंटे बाद डीडी एंट्री पर एफआईआर दर्ज क्यों की?
पुलिस ने गैर इरादतन हत्या की धारा 304 की बजाए हत्या की धारा 302 क्यों लगाई ?
पुलिस ने शुरु मेंं ही घायलों के बयान के बिना ही जान से मारने की धमकी की धारा 506 और जबरन रोकने की धारा 341 किस आधार पर लगा दी।
पुलिस ने सुशील को बचाने के लिए जानबूझ कर यह सब किया या पुलिस की लापरवाही है। दोनों ही सूरत में पुलिस कसूरवार मानी जाएगी और अदालत में इसका फायदा सुशील को ही मिलेगा।
 गैर इरादतन हत्या, 304 का मामला है-
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल से सेवानिवृत्त डीसीपी वकील लक्ष्मी नारायण राव ने बताया कि इस मामले में जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार पुलिस को शुरु में डीडी एंट्री पर तो सिर्फ़ धारा 307 और धाारा 34 के तहत हत्या की कोशिश का ही मामला दर्ज करना चाहिए था। घायल की मौत हो जाने पर उसमें हत्या की धारा 302 जोड़ दी जाती।
पुलिस द्वारा धारा 308 के तहत गैर इरादतन हत्या की कोशिश का जब मामला दर्ज किया जाता है। उसमें घायल की मौत होने पर गैर इरादतन हत्या की धारा 304 जोड़ी जाती है।
 वकील एल एन राव ने बताया कि हत्या के  मामले में सुशील को किसी भी अदालत से अग्रिम जमानत मिलने की संभावना बहुत ही कम है। उसके सामने गिरफ्तारी और आत्म समर्पण के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं। हत्या के मामले में गिरफ्तारी के बाद पुलिस द्वारा अदालत में आरोप पत्र दाखिल किए जाने तक भी जमानत मिलने की संभावना कम ही होती है।
वैसे दिल्ली पुलिस के अनेक अफसरों का भी कहना है कि एफआईआर देख कर लगता है पुलिस ने केस कमजोर दर्ज किया है। 
सुशील हत्या में शामिल है-
हत्या के बाद से ही सुशील फरार है जिससे साफ पता चलता है कि वह हत्या में शामिल है। इसके बावजूद अगर सुशील अदालत में बच गया तो उसके लिए दोनों घायल और पुलिस की कमजोर तफ्तीश ही जिम्मेदार मानी जाएगी। 
अदालत में यह सामने आ ही जाएगा कि पुलिस ने अपनी ओर से केस कितना मजबूत बनाया है? 
 आईपीएस की भूमिका- 
पुलिस सूत्रों के अनुसार वारदात के बाद सुशील हरिद्वार गया था। सुशील को हरिद्वार छोड़ कर आए भूूूरा पहलवान ने पुलिस को पूछताछ के दौरान बताया कि उनके सामने ही रामदेव ने एक आईपीएस अफसर को सुशील को बचाने के लिए फोन किया था। वह आईपीएस अगर ईमानदार और वर्दी का वफादार होता तो तुरंत हरिद्वार पुलिस को सूचना देकर सुशील को पकड़वा सकता था। सुशील हरिद्वार गया था इसका पता उस रास्ते के टोल पर लगे सीसीटीवी कैमरे की 6 मई की फुटेज से भी चल गया है।
 सुशील करेगा खुलासा- 
सागर  2013 से स्टेडियम में ही रहता था और बाद में उस फ्लैट पर भी रहा जो सुशील की पत्नी सावी के नाम बताया गया है।  फ्लैट को खाली कराने / बकाया किराए या किस  बात को लेकर सुशील ने यह अपराध किया। इसका पूरा खुलासा तो सुशील के पकड़े जाने के बाद ही हो पाएगा।
चार मई की रात सुशील अपने दोस्त नीरज बवानिया के गिरोह के गु़ंडो के साथ सागर पहलवान, सोनू महाल और अमित को माडल से अगवा करके स्टेडियम में लाया। वहां तीनों की बुरी तरह डंडों से पिटाई की गई। सागर की बाद में अस्पताल में मौत हो गई।
 वीडियो अहम सबूत-
पुलिस ने घटनास्थल से सुशील के साथी प्रिंस दलाल को बंदूक के साथ  गिरफ्तार किया था।
पुलिस को उसके मोबाइल फोन से वारदात का एक वीडियो मिला है जिसमें सुशील पिटाई करते हुए दिखाई दे रहा है। सुशील के खिलाफ यह एक ऐसा अहम सबूत है जो उसे सजा दिलवाने में अहम भूमिका निभाएगा।
इस मामले में सारा दारोमदार घायलों के बयान,  अन्य गवाहों ,सीसीटीवी फुटेज और उस वीडियो आदि सबूतों पर टिका जिसमें सुशील पिटाई करता दिख रहा है।
पार्षद का बेटा- 
इस मामले में पचास हजार का इनामी आरोपी अजय कांग्रेस के निगम पार्षद सुरेश पहलवान( बक्करवाला) का बेटा है। अजय सरकारी स्कूल में पीटीआई है। अजय का पिता सजायाफ्ता
सुरेश बक्करवाला  दिल्ली पुलिस का बरखास्त सिपाही है।





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