Wednesday 26 May 2021

कुर्सी वीर कलेक्टरों की गुंडागर्दी, IAS बनने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। अपनी गली में कलेक्टर भी शेर होता है।

 कलेक्टरों की गुंडागर्दी।
 IAS बनने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। 
 पुजारी को पीटने से कलेक्टर श्रेष्ठ नहीं हो जाता।

 इंद्र वशिष्ठ 
 महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता।
 ऊंचे कुल का जनमिया,  करणी ऊंच न होई।
 स्वर्ण कलश मदिरा भरा, साधु निंदा होई। 
  अपनी गली में तो हर कोई शेर होता हैं। 
यह कहावतें दो गुंडे कलेक्टरों ने चरितार्थ कर दी हैं।
वर्दी वाला गुंंडा सब ने बहुत सुना देखा है।  लेकिन आईएएस वाले गुंंडे कलेक्टर देश और दुनिया में शायद इस तरह पहली बार देखे जा रहे हैं। 
 कुर्सी वीर कलेक्टर- 
त्रिपुरा में एक विवाह समारोह में कलेक्टर शेलेन्द्र सिंह यादव द्वारा की गई गुंडागर्दी का वीडियो अभी दुनिया देख ही रही थी कि छतीसगढ़ में एक ओर गुंडे कलेक्टर रणवीर शर्मा का एक लड़के को पीटने और उसका मोबाइल तोड़ने का वीडियो सामने आ गया। 
कलेक्टर का नाम तो रणवीर शर्मा है लेकिन वह तो बे-शरमा कुर्सी का वीर निकला।

सूरज पुर में कलेक्टर रणवीर ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में साहिल से उसका फोन छीना और सड़क पर पटक दिया। कुर्सी वीर कलेक्टर ने  साहिल को थप्पड़ मार कर अपने अदम्य साहस और बेमिसाल वीरता का परिचय दिया।  कलेक्टर ने इसके बाद बेशर्मी की हद पार कर  लड़के को पुलिस वालों से भी पिटवाया। साहिल का कहना था कि वह टेस्ट कराने जा रहा था।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर सिर्फ़ हटाने को आदेश इस तरह दिया जैसे उन्होंने कलेक्टर को सजा देकर अपने कर्तव्य का पालन कर दिया हो। 
 मुख्यमंत्री वीरता पदक दें -
इस कलेक्टर ने जो किया वह भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है जिसके लिए कलेक्टर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए था। इसके अलावा विभागीय कार्रवाई के तहत निलंबित किया जाना चाहिए था। लेकिन मुख्यमंत्री ने ऐसा कुछ नहीं किया। 
 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कलेक्टर को वीरता पदक से सम्मानित करना चाहिए। मुख्यमंत्री को अपने इस चहेते कुर्सी वीर कलेक्टर का नाम राष्ट्रपति के वीरता पदक के लिए भी भेजना चाहिए। 
 कलेक्टर ने कुल का नाम रोशन किया-
कुर्सी वीर कलेक्टर को  लड़के को पीटने की वीरता प्रर्दशित करने वाली फोटो अपने घर में लगानी चाहिए। ताकि ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करने वाले इस कलेक्टर के मां बाप, पत्नी और बच्चे फोटो को देख देख कर उसकी वीरता से " गौरान्वित " होते रहे।
 कलेक्टर बहुत जान है इन हाथों में- 
वैसे लड़के को पीटने वाले बहादुर कलेक्टर को नक्सलियों के गढ़ में तैनात किया जाना चाहिए तब ही यह पता चल पाएगा कि उसके हाथों में कितनी जान है और वह रण का वीर है यह कुर्सी का।
 माफी नहीं काफी- कलेक्टर ने बाद में वीडियो जारी कर माफी मांग ली। लेकिन मान लो अगर कहीं लड़का कलेक्टर को पीट कर माफी मांगता तो क्या उसे माफी मिलती?

 रिश्वत लेते पकड़ा गया।- 
2012 बैच के आईएएस रणवीर शर्मा 2015 में जब कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में एसडीएम के रूप में तैनात थे, तब उन्हें एक पटवारी से 10 हजार रुपए लेते हुए रंगेहाथ पकड़ा गया था। जिसके बाद एंटी ब्यूरो की जांच कमेटी के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था।यहां से इन्हें राजधानी रायपुर में अवर सचिव मंत्रालय के रूप में स्थानांतरित किया गया था।
जानकारी के मुताबिक उस वक्त रणवीर शर्मा ने एक जमीन की खरीद-फरोख्त मामले में जांच रोकने और कार्रवाई नहीं करने के लिए पटवारी से घूस मांगी थी। जिसके बाद पटवारी सुधीर लकड़ा ने एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत कर दी थी।

 इसके पहले  कलेक्टर /डीएम शैलेश कुमार यादव ने अपनी करतूत से उपरोक्त कहावत चरितार्थ कर दी थी।
त्रिपुरा में एक विवाह समारोह में कलेक्टर शैलेंद्र यादव द्वारा की गई गुंडागर्दी का वीडियो पूरी दुनिया देख रही है। दूल्हे और मेहमानों के साथ बदसलूकी, मारपीट और महिलाओं तक से दुर्व्यवहार कर  इस कलेक्टर ने अपने पद को तो कलंकित किया ही अपने संस्कारों का भी परिचय दिया है। पुजारी को पीट देने से भी यह कलेक्टर श्रेष्ठ नहीं हो जाता।
देश में न्याय, कानून का राज या लोकतंत्र अगर हैं तो सप्रीम कोर्ट/ हाईकोर्ट को गुंडों की तरह अपराध करने वाले इन दोनों कलेक्टरों को जेल भेजना चाहिए। जिससे नागरिकों का भरोसा न्याय व्यवस्था में बने।
पद की ताकत के नशे में चूर  कलेक्टर शैलेन्द्र यादव ने तो पुलिसवालों तक को गालियां दी उन्हें धकिया कर धमकाया।
कलेक्टर अपनी हद भूल गया-
 एक महिला ने शादी के लिए ली गई अनुमति का कागज दिखाया तो कलेक्टर शैलेंद्र ने उस कागज को फाड़ कर महिला के मुंह पर फेंक दिया। महिलाओं के प्रति एक कलेक्टर का ऐसा व्यवहार शर्मनाक हैं।
कलेक्टर शैलेंद्र यादव ने कहा कि गांवों वालों और अनपढ़ जैसी बातें मत करो धारा 144 को पढ़ो। कलेक्टर का यह कहना  गांवों वालों और अनपढ़ो का अपमान तो है ही इससे कलेक्टर शैलेंद्र यादव की मानसिकता का पता चलता है। कलेक्टर बन कर अपना अतीत और औकात भूल जाने वाले इस अफसर ने ऐसी हरकत की जैसे वह विलायत में राजमहल  में जन्मा है। और उसके सामने मौजूद लोग गुलाम हैं। पता चला कि यह उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के किसी गांव का ही पला बढ़ा हुआ है। 2003 में आईएएस बनने से पहले यह डॉक्टर था। इसके बाप दादा भी तो गांव के ही होंगे और अनपढ़ भी हो सकते हैं।
 कोरोना योद्धा डॉक्टर से बदसलूकी-
कलेक्टर के ऐसे व्यवहार का विरोध करते हुए एक व्यक्ति ने कहा मैं सर्जन हूं आप इस तरीक़े से बात मत करिए। यह सुनते ही कलेक्टर साहब ने तमतमा कर  पुलिस से कहा कि सरकारी अफसर के कार्य में बाधा पहुंचाने के आरोप में सर्जन को गिरफ्तार कर लो। इससे पता चलता है कि गलत बात का विरोध करने पर कलेक्टर के पद बैठा व्यक्ति भी सभ्य/शरीफ बेकसूर लोगों को कैसे झूठे मामले में फंसा देता है। एक ओर डाक्टर को कोरोना योद्धा कहा जा रहा हैं दूसरी कलेक्टर द्वारा ऐसा करना शर्मनाक,अपराध और  गैरकानूनी है।
 कलेक्टर ने कानून की धज्जियां उड़ाई-
कलेक्टरी के नशे में वह यह भूल गए कि धारा 144 लागू होने पर मजमा लगाने वालों को पहले धारा 144 लगी होने की  सूचना दी जाती और उन्हें वहां से चले जाने को कहा जाता है। इसके बाद ही लोगों को हटाने या गिरफ्तार करने की प्रक्रिया अपनाई जाती। लेकिन इस कलेक्टर ने ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
 कलेक्टर ने अपराध किया- 
 कोरोना नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ चालान या एफआईआर / गिरफ्तार किए जाने का प्रावधान है। लेकिन किसी के साथ बदतमीजी और मारपीट करने की इजाज़त तो कानून किसी को भी नहीं देता। किसी की पिटाई करना और  बदसलूकी करना साफ तौर अपराध का मामला है। अगर कोई आईएएस अफसर यह अपराध करें तो बहुत ही शर्मनाक है। 
आईएएस को संविधान और कानून तो मालूम ही होता है। इसके बावजूद जानबूझ कलेक्टर ने जो अपराध किया है वह अक्ष्मय है। इन दोनों कलेक्टर को ऐसी सजा दी जानी चाहिए, जिससे आगे से कोई अफसर ऐसा अपराध न करें। 
 नेताओं के सामने तो फूंक निकल जाती है- 
आम लोगों पर इस तरह ताकत दिखाने वाले  " बहादुर  आईएएस या आईपीएस अफसर को उस समय सांप सूंघ जाता है जब सत्ताधारी नेता उनके सामने ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।
आईएएस अफसर यह भूल जाते हैं कि सरकार ने जनता की सेवा के लिए उसे नौकरी दी हैं और जनता के टैक्स पैसे से उसे वेतन मिलता है। आईएएस शैलेंद्र यादव को तो नौकरी भी शायद संविधान की कृपा यानी आरक्षण के कारण ही मिली होगी। उस संविधान की भी इसने लाज नहीं रखी।
 आईएएस,आईपीएस सबकी जाति एक "राजपूत"- 
सच्चाई यह है कि चाहे किसी भी जाति का व्यक्ति हो आईएएस और आईपीएस बनने के बाद ज्यादातर का दिमाग पद, ताकत के नशे में इतना खराब हो जाता है कि वह खुद को सेवक की बजाए राजा/ मालिक और लोगों को गुलाम/शूद्र प्रजा मान कर व्यवहार करते हैं। इन सबकी एक ही जाति राजपूत हो जाती है राजपूत यानी जिसका राज/सत्ता उसके पूत। ऐसे अफसर संविधान, कानून और देश के प्रति निष्ठा वफादारी की बजाए सत्ता के लठैत बन कर आंख मूंद कर अपने आकाओं के इशारों पर नाचते हैं। सत्ताधारियों के संरक्षण के कारण ये आम जनता पर जुल्म तक करते हैं। मनचाहा पद पाने के लिए तो ये नेताओं की चरण वंदना तक कर सकते हैं। आम जनता पर जुल्म कर शेर बनने वाले  अफसर नेताओं के सामने दुम हिलाते हैं। सच्चाई यह है कि अब भी समाज में दो ही जाति है ताकतवर और कमजोर की। नेता, जज,आईएएस,आईपीएस सब राजा या ब्राह्मण की श्रेणी में आते हैं बाकी सारी जनता शूद्र की श्रेणी में जीवन बिता रही है।
 अफसरों को सबक सिखाने का हक मिले- 
आईएएस हो या आईपीएस अगर इस तरह की गुंडागर्दी करना बंद नहीं करेंंगे तो वह दिन दूर नहीं जब लोग इन्हें दौड़ा दौड़ा कर पीटने को मजबूर हो जाएंगे।
लोगों को पीटने वाले निरंकुश कलेक्टर या पुलिस पर अंकुश लगाने का एक तरीका यह भी हो सकता है। सरकार द्वारा लोगों को यह अधिकार दिया जाए कि कानून हाथ में लेकर गुंडागर्दी करनेवाले अफसर के साथ लोग पलट कर वैसा ही करें जैसा गुंडों के साथ किया जाता। अभी तो हालात ऐसे हैं कि लोग आत्मरक्षा में पलट कर हाथ उठा देंं तो उन्हें सरकारी अफसर पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता। होना यह चाहिए कि जो भी अफसर ऐसी हरकत करता है और ल़ोग बचाव मेंं हाथ उठा देंं तो उसे सरकारी अफसर पर हमला नहीं माना जाना चाहिए। क्योंकि जो अफसर खुद कानून का पालन नहीं करता तो अपराध करने पर उसे सरकार द्वारा संरक्षण क्यों दिया जाए। इन अफसरों को इसी तरीक़े से सबक सिखाया जा सकता है। क्योंकि इनके खिलाफ शिकायत की जाए तो नौकरशाह और नेता मिल कर उसे बचा लेते हैं। 
ब्राह्मण और यादव समाज के नेताओं ने भी  इन दोनों कलेक्टरों की करतूत की निंदा तक नहीं की। 
 कमिश्नर में दम नहीं- 
गृहमंत्री अमित शाह बगैर मॉस्क लगाए दिल्ली पुलिस मुख्यालय में गए। कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ईमानदारी से कर्तव्य और कानून का पालन करने वाले होते तो वह गृहमंत्री का चालान करके मिसाल बना सकते थे। लेकिन सच्चाई यह है कि कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर ही नहीं उनकी पत्नियां तक नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं। दूसरी ओर यह पुलिस अफसर नियमों का पालन कराने के नाम पर जनता के जम कर चालान कराते हैं।

गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः । प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते॥ 
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने श्रेष्ठ गुणों और सच्चरित्र का महत्व स्वीकार किया है।
वे कहते हैं कि इन्हीं के कारण साधारण इंसान श्रेष्ठता के शिखर की ओर अग्रसर होता है जिस प्रकार महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, उसी प्रकार ऊंचे आसन पर विराजमान व्यक्ति महान नहीं होता। महानता के लिए इंसान मेंथ सदुगणों एवं सच्चरित्र का होना जरूरी है। इससे वह नीच कुल में जन्म लेकर भी समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है।

ऊंचे कुल का जनमिया,  करणी ऊंच न होई।
स्वर्ण कलश मदिरा भरा, साधु निंदा होई।
संत कबीरदास
भावार्थ-
कोई चाहे कितने ही उच्च कुल  में जन्म ले यदि उसके कर्म व्यवहार आदर्श निम्न हैं तो संसार उसकी निंदा ही करता है जिस प्रकार कलश चाहे सोने का ही क्यों न हो यदि उसमें शराब भरी हुई है तो सज्जन लोग उसे अच्छा नहीं कहते हैं


(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में तीस साल से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)



No comments:

Post a Comment