Thursday 13 May 2021

रामदेव के सामने पुलिस का पवनमुक्तासन।ओलंपियन सुशील के खूनी दंगल में पुलिस चित्त। जिस पुलिस के डर से रामदेव सलवार पहन भागा। वहीं पुलिस अब डर रही रामदेव से।




रामदेव के सामने पुलिस का पवनमुक्तासन।
ओलंपियन सुशील के खूनी दंगल में पुलिस चित्त।

इंद्र वशिष्ठ
काल का चक्र देखिए , एक समय पुलिस से बचने के लिए रामदेव  सलवार पहन कर भागा था। अब लगता है कि रामदेव के कारण पुलिस ने सलवार के साथ साथ चूडियां भी पहन ली है।
छत्रसाल स्टेडियम में खूनी दंगल में पहलवान की हत्या कर ओलंपियन पहलवान ने पुलिस और कानून व्यवस्था को चित्त किया है। वहीं पुलिस रामदेव के सामने पवनमुक्तासन करती दिख रही है।

पुलिस को मुहूर्त्त का इंतज़ार?
हत्या के आरोपी सुशील पहलवान को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। 
पुलिस अफसर नाम न छापने की शर्त पर कई दिनों से मीडिया को बता रहे हैंं कि सुशील पहलवान ने हत्या के बाद पतंजलि हरिद्वार में शरण ली। पुलिस अफसर यह तक दावा करते हैं कि उन्हें पतंजलि के उस कमरे का नंबर तक भी मालूम है जिसमें सुशील ठहराया गया। पुलिस अफसरों का यहां तक कहना है कि पतंजलि में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच से भी इस बात की पुष्टि हो जाएगी। सुशील किस कार में वहां गया उसे यह भी मालूम है।
भूूूरा हरिद्वार छोड़ कर आया?-
पुलिस ने सुशील के साथी भूरा पहलवान को पकड़ा। पुलिस ने भूरा को पूछताछ के बाद छोड़ दिया। सूत्रों के अनुसार भूरा ने भी पुलिस को बताया कि वारदात के बाद सुशील ने उसे बुलाया था। वह उसे हरिद्वार छोड़ कर वापस आ गया। इसके बावजूद पुलिस ने भूरा को छोड़ दिया। जबकि पुलिस को तो भूरा को साथ ले जा कर उसकी निशादेही पर पतंजलि में छापा मारना चाहिए था जहां उसने सुशील को छोड़ा था।
अब सवाल उठता है कि पुलिस के पास जब सुशील के साथी भूरा की गवाही और इतनी सटीक सूचनाएं, जानकारी, साक्ष्य है तो पुलिस ने पतंजलि में छापा मार कर सुशील को गिरफ्तार क्यों नहीं किया। सुशील तो पकड़ा ही जाता साथ ही रामदेव भी अपराधी को शरण देने में गिरफ्तार होता। लेकिन ऐसा तो तभी हो सकता है जब पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर दमदार और काबिल होते। 
रामदेव कान पकड़ कर सुशील को लाएगा -
 पुलिस क्या इतनी भोली है कि वह मान रही है कि देशभक्ति का ढिंढोरा पीटने वाला रामदेव सुशील को कान से पकड़ कर खुद उनके सामने लाकर मिसाल बनाएगा।  पुलिस शायद यह सपना भी देख रही है कि रामदेव खुद पतंजलि के कैमरों की फुटेज सौंप कर कहेगा कि उसने सुशील की मौजूदगी की रिकॉर्डिंग सबूत के तौर पर पुलिस को देने के लिए संभाल कर रखी है। हो सकता है कि पुलिस रामदेव की कथित देशभक्ति से इतनी अभिभूत हो कि वह यह उम्मीद भी लगाए बैठी हो कि रामदेव खुद सुशील के खिलाफ देशहित में गवाह भी बन जाएगा। यह सब सोच कर ही शायद पुलिस देशभक्त रामदेव की ओर ही मदद की आस लगाए बैठी हो।
पुलिस पवनमुक्तासन,शीर्षासन में-
असल में लग रहा है कि रामदेव का नाम आते ही आईपीएस अफसरों की फूंक निकल गई और वह पवनमुक्तासन और शीर्षासन मुद्रा में आ गए। 
कमिश्नर,आईपीएस अफसरों को मालूम है कि रामदेव अब वह नहीं है जो पुलिस के डर से सलवार पहन कर भाग रहा था। जिसे पुलिस ने पकड़ा तो डर के मारे जिसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। रामदेव अब बड़ा व्यापारी ही नहीं बल्कि उस पर प्रधानमंत्री मोदी का वरदहस्त भी है। 
दूसरी ओर सत्ता के लठैत की तरह काम करने वाले अफसरों में कभी भी इतना दम नहीं होता कि वह सत्ता के करीबी व्यक्ति से पूछताछ भी कर ले।
 अगर ऐसा नहींं है तो पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव समेत आईपीएस अफसर सुशील मामले में रामदेव की भूमिका पर बोलने से भी डरते क्यों हैं। कमिश्नर की चुप्पी से साफ है कि सुशील को बचाने,शरण देने जैसे अपराध में रामदेव शामिल है।
लगता  है कि समय ने पुलिस को सलवार के साथ साथ चूडियां भी पहना कर रामदेव का हिसाब चुकता कर दिया। 
कमिश्नर,रामदेव की चुप्पी खोल रही पोल?
सुशील शरण लेने या मदद के लिए क्या रामदेव के पास गया या संपर्क साधा था?
पुलिस ने क्या रामदेव से तहकीकात की है?
इन सवालों पर  कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और रामदेव ने आज तक कोई जवाब नहीं दिया है। इन दोनों की चुप्पी से यहीं लगता है कि सुशील पतंजलि गया। अगर नहीं गया होता तो रामदेव और पुलिस चीख चीख कर इस बात का खंडन करते। 

रामदेव से डर रही पुलिस ?-
अगर सच्चिदानंद श्रीवास्तव की जगह कोई दमदार काबिल आईपीएस दिल्ली पुलिस का कमिश्नर होता तो जैसे पुलिस सुशील के सभी करीबियों से पूछताछ कर रही है ठीक उसी तरह रामदेव के यहां भी तुरंत जाती। पुलिस की तफ्तीश का तो सबसे असरदार, पारंपरिक,बुनियादी, मूल तरीका ही यह होता है कि आरोपी के परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों आदि के यहां तुरंत जाकर सुराग हासिल करना। जैसे पुलिस सुशील के ससुर सतपाल पहलवान और साले लव सहरावत समेत अन्य परिजनों,दोस्तों से पूछताछ कर रही है। उसी तरह पुलिस को शुरु में ही रामदेव और डीएसपी अनुज चौधरी के पास भी जाकर तहकीकात कर लेनी चाहिए थी। ताकि तफ्तीश में कोई चूक न हो।

आईपीएस खाकी को खाक में मत मिलाओ-
लानत है ऐसे कमिश्नर और आईपीएस अफसरों पर जो बेकसूर लड़की दिशा रवि (टूलकिट) को तो झूठे मामले में तुरंत गिरफ्तार कर जेल में डाल देते हैंं। यह तो भला हो जज धर्मेंद्र राणा का जिन्होंने अदालत मेंं पुलिस की खूब बखिया उधेड़ी और दिशा को जमानत पर छोड़ कर न्यायालय में लोगों के भरोसे को कायम रखा।
दूसरी ओर हत्या जैसे संगीन अपराध में शामिल ओलंपियन सुशील पहलवान को गिरफ्तार करना तो दूर रामदेव से पूछताछ करने तक की हिम्मत नही दिखाते।
रामदेव और नेताओं से ज्यादा कसूरवार ऐसे आईपीएस अफसर ही है जो संविधान और कानून की शपथ लेते है लेकिन मनचाहे पद पाने के लालच मे उस शपथ को भूल सत्ता के दरबारी या लठैत की तरह काम करते हैं।

आईपीएस को फोन किया?-
हरियाणा के मूल निवासी रामदेव यादव के अपनी जाति के दिल्ली पुलिस में मौजूद आईपीएस और निचले स्तर के अफसरों  से भी करीबी संबंध है। सुशील की मदद के लिए उसने एक आईपीएस को फोन भी किया बताया जाता है।
रामलीला मैदान से साल 2011 में प्रदर्शन समाप्त कराने के लिए भी यादव पुलिस अफसरों के माध्यम से रामदेव से बात की गई थी। लेकिन रामदेव अडा रहा जिस पर पुलिस ने उसे भी अपना असली रुप दिखा दिया।

सलवार पहन भागा रामदेव-
साल 2011 में रामलीला मैदान में रामदेव ने प्रदर्शन किया था। उस समय कांग्रेस के लठैत बन कर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बृजेश कुमार गुप्ता और स्पेशल कमिश्नर धर्मेंद्र कुमार ने आधी रात को सो रहे बच्चों, महिलाओं, पुरुषों पर आंसू गैस और लाठीचार्ज कराया। सलवार सूट पहन कर भाग रहे रामदेव को पकड़ा गया। 
हालांकि पुलिस की इस बर्बर करतूत से रामदेव का ढोंग भी उजागर हो गया था रामदेव ने कहा कि पुलिस उसका एनकाउंटर कर देती इस लिए वह सलवार पहन कर भागा। इससे पता चला कि रामदेव अगर सही मायने में सन्यासी  या स्वामी होता तो उसे जीवन का मोह और मृत्यु का भय बिल्कुल नहीं होना चाहिए था। दूसरा अगर वह नेता होता तो भागने की बजाए गिरफ्तारी देकर हीरो बन सकता था। इससे साबित हुआ कि वह न तो स्वामी और ना ही नेता है। वह तो अवसरवादी व्यापारी है। जिन मुद्दों को लेकर वह कांग्रेस पर हल्ला बोलता था उन मुद्दों पर बोलते हुए अब उसकी फूंक क्यों सरक जाती है। इससे पता चलता है कि भाजपा के इशारे पर वह यह सब कर रहा था।
दमदार काबिल आईपीएस का अकाल-
वैसे अब दिल्ली पुलिस में दमदार काबिल आईपीएस अफसरों का अकाल पड़ गया है। अब तो हत्या जैसे जघन्य अपराध के मामले में भी आईपीएस अफसर तक खुल कर सुशील का नाम लेने से घबरा रहे थे। अफसर दमदार हो तो ही मातहतों की टीम अपराधियों के खिलाफ डटकर कार्रवाई कर पाती है। 
भाजपा सांसद के घर में घुस कर गु़ंडे को पकड़ा-
एक समय ऐसा था कि दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह की टीम ने भाजपा सरकार के कार्यकाल में भाजपा के ही सांसद गंगा राम के घर में घुसकर बदमाश राजन तिवारी को गिरफ्तार किया। इसके बाद बकायदा मीडिया को यह बताया भी कि भाजपा सांसद के घर से गिरफ्तार किया गया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुख्यात डीपी यादव ने यूपी पुलिस के दबंग इंस्पेक्टर प्रीतम सिंह की हत्या राजन तिवारी से करवाई थी।
सतपाल की गु़ंडो से यारी उजागर की-
तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह ने ही एक अन्य मामले में खुल कर मीडिया को यह भी बताया था कि दिचाऊं के गुंडे कृष्ण पहलवान को जिस दौरान पुलिस तलाश रही थी उस दौरान कृष्ण पहलवान सतपाल पहलवान के साथ छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में पुरस्कार वितरण कर रहा था। सतपाल पहलवान उस समय डिप्टी डायरेक्टर के पद पर था। 
टाइटलर को डांट दिया-
उत्तर पश्चिम जिले के भाई परमानंद इलाके में कुछ पहलवान सरकारी जमीन पर कब्जा करना चाहते थे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर ने तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंंह को फोन कर पहलवानों की सिफारिश की। डीसीपी कर्नल सिंह ने कब्जा कराने में मदद करने से  इनकार किया तो सत्ता के नशे में चूर टाइटलर ने डीसीपी से बदतमीजी से बात की। डीसीपी कर्नल सिंह ने पलट कर टाइटलर को ऐसा करारा जवाब दिया कि वह तत्कालीन कमिश्नर निखिल कुमार के पास शिकायत करने गया।
निखिल कुमार ने कर्नल सिंह से कहा कि खुद जवाब देने की बजाए मुझे बता देते। कर्नल सिंह ने कहा कि खुद जवाब देने की बजाए क्या मैं बच्चों की तरह रोता हुआ आपके पास शिकायत लेकर आता कि मंत्री ने मुझसे बदतमीजी की। 
खुराना को खरी खरी-
इसी तरह एक बार मोती नगर एसीपी के पद पर रहते हुए कर्नल सिंह ने भाजपा के दिग्गज मदन लाल खुराना को भी खरा जवाब दे दिया था।

.         कर्नल सिंह IPS (सेवानिवृत्त)

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