Wednesday 19 May 2021

ओलंपियन सुशील पहलवान पर दफा 302 क्यों लगा दी, IPS की काबिलियत पर सवालिया निशान, FIR तक सही दर्ज नहीं की। चश्मदीद गवाह सोनू महाल गायब? अदालत में खुलेगी तफ्तीश की पोल।


ओलंपियन सुशील पहलवान पर दफा 302 क्यों लगा दी ?
IPS की काबिलियत पर सवालिया निशान।अदालत में उड़ेगी तफ्तीश की धज्जियां। 
 चश्मदीद गवाह सोनू महाल भी गायब? 

 इंद्र वशिष्ठ 
ओलंपियन सुशील पहलवान हत्या के मामले में अग्रिम जमानत के लिए अदालत में गुहार लगा रहा है। रोहिणी अदालत ने जमानत अर्जी खारिज कर ही दी। वैसे हत्या के मामले में अग्रिम जमानत मिलने की संभावना बहुत ही कम होती है। 
 इस मामले में तफ्तीश से जुुुड़ी कई ऐसी बातें हैं जिनसे पुलिस अफसरों की पेशेवर काबिलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
48 घंटे में पकड़ा जाता-
सबसे बड़ा सवाल तो यहीं है कि सुशील जब पतंजलि में शरण लेने गया तो रामदेव ने एक आईपीएस अफसर को फोन किया। वह आईपीएस अगर ईमानदारी से कर्तव्य पालन करता तो सुशील वारदात के 48 घंटों के भीतर ही पकड़ा जाता। एक तरह से हाथ आए सुशील को पकड़ने की बजाए अब पुलिस गैर जमानती वारंट और एक लाख का इनाम घोषित कर उसे जोर शोर से तलाश करने का दावा कर रही है।
 एफआईआर  -
इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण सवाल पुलिस की एफआईआर और तफ्तीश को लेकर उठता है। किसी भी वारदात के बारे में दर्ज की जाने वाली एफआईआर मुकदमे की बुनियाद होती है। एफआईआर दर्ज करने के बद ही तफ्तीश की शुरुआत होती है। सबूत ,साक्ष्य, गवाह के अलावा एफआईआर मुकदमे का अहम दस्तावेज होता है।  
 घायलों के बयान पर दर्ज  - 
सुशील के मामले में भी सबसे पहला सवाल यह उठता है पुलिस ने घायल सोनू महाल और अमित के बयान पर एफआईआर दर्ज क्यों नहीं  की ? मृतक सागर पहलवान के परिवार ने भी यह सवाल उठाया है।
 चार-पांच मई की रात में पीसीआर से छत्रसाल स्टेडियम में आधी रात को दो लड़कों द्वारा गोलियां चलाए जाने की सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने पाया कि घायलों को पीसीआर अस्पताल ले गई है। पुलिस वहां पहुंची तो पता चला कि घायलों को ट्रामा सेंटर ले जाया गया है। पुलिस ने घायल सागर पहलवान,सोनू और अमित की एमएलसी का जिक्र एफआईआर में किया है। 
 डीडी एंट्री पर एफआईआर क्यों- 
पुलिस ने पीसीआर कॉल और डीडी एंट्री के आधार पर आईपीसी की धारा 308 गैर इरादतन हत्या की कोशिश, 323/325, भारी वस्तु से साधारण चोट / गहरी चोट पहुंचाने, 341 जबरन रोक कर रखना, 506 जान से मारने की धमकी, 25/54/59 हथियार कानून और महामारी कानून आदि की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
 माडल टाउन थाने में यह मामला पुलिस ने वारदात की सूचना मिलने के 6 घंटे के बाद पांच मई को सुबह दर्ज किया। देरी की कोई जायज वजह भी नहीं बताई गई है।
एफआईआर देर से और घायलों के बयानों के बिना दर्ज करना पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है। 
 सरसरी दरियाफ्त ?-
पुलिस ने एफआईआर में लिखा है कि सरसरी दरियाफ्त से मालूम हुआ कि वारदात को सुशील पहलवान और उसके साथियों ने अंजाम दिया है।
जबकि पुलिस को मालूम था कि अस्पताल में तीनों घायल मौजूद है और वह इस मामले में पीडित और शिकायतकर्ता है। उनके बयान पर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी। लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया। 
 सुशील को फायदा ?-
इसका लाभ अदालत में सुशील पहलवान को  मिलेगा। इसके लिए पुलिस जिम्मेदार होगी। 

 कमिश्नर की भूमिका- 
ओलंपियन पहलवान द्वारा दिल्ली पुलिस के हवलदार के बेटे की हत्या के सनसनीखेज मामले में भी पुलिस द्वारा कमजोर एफआईआर दर्ज किए जाने से कमिश्नर की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग जाता है। इसलिए कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को यह जांच करानी चाहिए कि कहीं सुशील को बचाने के लिए यह सब जानबूझ कर तो नहीं किया गया है।
कमिश्नर बताएं कि किस आईपीएस के आदेश पर वारदात के 6 घंटे बाद डीडी एंट्री के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई। किस आईपीएस ने सूचना मिलने के बाद भी हरिद्वार पुलिस को सुशील को गिरफ्तार करने के लिए नहीं कहा। 
मृतक सागर पहलवान के पिता अशोक दिल्ली पुलिस में हवलदार हैं। सागर के परिजनों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने घायलों के बयान पर एफआईआर दर्ज नहीं करके मामला हल्का बना दिया है।। 
पुलिस की तफ्तीश का जो आलम हैं उससे साफ पता चलता है कि अदालत में पुलिस की तफ्तीश की धज्जियां उड़ती नजर आएंगी।
 किस से दरियाफ्त की ?- 
पुलिस को एफआईआर में स्पष्ट लिखना चाहिए था कि किस व्यक्ति से दरियाफ्त में पता चला कि सुशील आदि ने वारदात को अंजाम दिया था। 
पुलिस को अदालत में भी यह साबित करना पड़ेगा।एफआईआर में लिखा है कि कोई चश्मदीद गवाह घटनास्थल पर नहीं मिला। 
 506 कैसे लगाई ?- 
दूसरा जब घायलों के बयान लिए बगैर एफआईआर दर्ज की गई तो जान से मारने की धमकी की धारा 506 पुलिस ने शुरू में ही कैसे लगा दी? यह धारा तो तभी लगाई जाती है जब शिकायकर्ता बताएं कि उसे किस ने जान से मारने की धमकी दी है।
 341 कैसे लगाई ?- 
यह धारा भी जब लगाई जाता है जब शिकायतकर्ता बताएंं कि उसे किस ने जबरन रोका था।
पुलिस ने एफआईआर तो डीडी एंट्री पर पुलिसकर्मी को शिकायतकर्ता बना कर दर्ज की है। तो उसमें घायलों के बयानों के बिना उपरोक्त धाराएं कैसे लिख दी गई ?
 एफआईआर पर सवाल?- 
पुलिस ने डीडी एंट्री पर एफआईआर क्यों दर्ज की गई है? उसका कोई कारण भी एफआईआर में दर्ज किया जाना चाहिए था। घायल अस्पताल में थे। पुलिस ने उनका बयान नहीं लिया। मान लो घायल अगर बयान देने की हालत में नहीं होते तो पुलिस डाक्टर से यह बात लिखवा कर लेती है और फिर यह बात एफआईआर में दर्ज की जाती है। लेकिन पुलिस ने एफआईआर में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है।
 मृत्यु पूर्व बयान अहम-
वारदात के कई घंटे के बाद पांच मई को सागर पहलवान की अस्पताल में मौत हो गई। अगर पुलिस ने पहले ही उसका उसका बयान दर्ज कर लिया होता तो मृत्यु पूर्व दिया यह बयान आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होता।
 गैर इरादतन हत्या के मामले में 302 क्यों ?- 
सागर की मौत के बाद पुलिस ने हत्या की धारा 302 और अपहरण की धारा 365 लगा दी।
 सामान्यतः धारा 308 के तहत गैर इरादतन हत्या की कोशिश का जो मामला दर्ज किया जाता है । उसमें घायल व्यक्ति की मौत हो जाने पर धारा 304 जोड़ी जाती। धारा 304 का मतलब होता है कि यह गैर इरादतन हत्या का मामला है। धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या के मामले में दस साल कैद की सजा और धारा 302 के तहत हत्या के मामले में आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक की सजा का प्रावधान है।
वैसे भी पुलिस को गोली चलने की सूचना मिली थी।तो पुलिस को धारा 307 के तहत हत्या की कोशिश का  मामला दर्ज करना चाहिए था। जिसे सागर की मौत के बाद हत्या की धारा 302 में तब्दील किया जाता और पुलिस की तफ्तीश पर सवाल नहीं उठता। पुलिस ने मौके से एक आरोपी प्रिंस दलाल को बंदूक के साथ पकड़ भी लिया था। 
 हत्या की नीयत कैसे साबित करेगी पुलिस- 
अभी पुलिस ने धारा 302 के तहत हत्या का जो मामला दर्ज किया है असल में वह तो धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में ही आता है। 
इसकी मुख्य वजह यह है कि अपराध के मामले में नीयत/इरादा, मकसद देखा जाता है। यह भी देखा जाता है कि क्या आरोपी को इस बात का ज्ञान/ जानकारी थी कि उसके इस कृत्य से किसी की जान भी जा सकती है। 
इस मामले में भी जो बातें अभी तक सामने आई  हैं उससे यह तो बिल्कुल साफ लगता है कि सुशील पहलवान का इरादा / नीयत तो हत्या की नहीं थी। उसने सिर्फ़ धमका कर, पीट कर अपनी कथित संपत्ति को खाली कराने की नीयत और मकसद से यह अपराध किया है। उसे हत्या ही करनी होती तो उन लोगों को उठा कर अपने घर में क्यों लाता। सुशील रहता भी स्टेडियम में ही हैंं। बेशक जिस रास्ते पर सुशील गु़ंडो के साथ चल रहा था उसका अंजाम एक न एक दिन ऐसा होना ही था। अब तो उसने हत्या कर दी वरना वह कभी किसी अन्य अपराध में गु़ंडो के साथ पकड़ा ही जाता। लेकिन यह मामला गैर इरादतन हत्या का ही है।
 गैर इरादतन हत्या, 304 का मामला है-
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल से सेवानिवृत्त डीसीपी वकील लक्ष्मी नारायण राव ने बताया कि इस मामले में जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार पुलिस को शुरु में डीडी एंट्री पर तो सिर्फ़ धारा 307 और धाारा 34 के तहत हत्या की कोशिश का ही मामला दर्ज करना चाहिए था। घायल की मौत हो जाने पर उसमें हत्या की धारा 302 जोड़ दी जाती।
पुलिस द्वारा धारा 308 के तहत गैर इरादतन हत्या की कोशिश का जब मामला दर्ज किया जाता है। उसमें घायल की मौत होने पर गैर इरादतन हत्या की धारा 304 जोड़ी जाती है।
 वकील एल एन राव ने बताया कि हत्या के  मामले में सुशील को किसी भी अदालत से अग्रिम जमानत मिलने की संभावना बहुत ही कम है। उसके सामने गिरफ्तारी और आत्म समर्पण के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं। हत्या के मामले में गिरफ्तारी के बाद पुलिस द्वारा अदालत में आरोप पत्र दाखिल किए जाने तक भी जमानत मिलने की संभावना कम ही होती है।
वैसे दिल्ली पुलिस के अनेक अफसरों का भी कहना है कि एफआईआर देख कर लगता है पुलिस ने केस कमजोर दर्ज किया है। 
 सुशील ने गलती कबूली ?- 
 पुलिस सूत्रों ने बताया कि सुशील ने वारदात के बाद हरियाणा के बदमाश काला जठेड़ी से  संपर्क किया। सुशील ने काला से कहा कि उससे गलती हो गई। वह तो सोनू आदि को इसलिए उठा कर लाया था कि थप्पड़ चट्टू मार कर, धमका कर उससे संपत्ति खाली करा लेगा। 
सूत्रों का कहना है कि काला जठेड़ी ने सुशील से कहा कि, तूने यह ठीक नहीं किया।अब तेरी हमारी आमने सामने की होगी।
सुशील चाहता था कि काला जठेड़ी सोनू को उसके खिलाफ बयान देने से मना कर दें। लेकिन सोनू ने सुशील के खिलाफ बयान दे दिया है। सोनू काला जठेड़ी का खास साथी है वह हत्या के अनेक मामलों में आरोपी है।
वैसे सुशील की कोशिश होगी कि पैसे के लिए अपराध करने वाले काला जठेड़ी और सोनू महाल को पैसा देकर खरीद लिया जाए। क्योंकि सोनू की गवाही से सुशील को सजा हो सकती है।
अदालत 304 कर देगी  - 
अदालत में पता चलेगी आईपीएस की काबिलियत -
दूसरी ओर इस मामले में नाम न उजागर करने की शर्त पर जांच से जुड़े आईपीएस अफसर ऐसी बातें बता रहे है जिससे अफसरों की भूमिका और तफ्तीश पर कई सवाल उठते हैं। 
एक वरिष्ठ आईपीएस का भी कहना है  कि मामला सही मायने में धारा 304 के तहत ही दर्ज किया जाना चाहिए था। इस बात पर आईपीएस अफसरों में विचार विमर्श हुआ था। लेकिन गैर इरादतन हत्या का मामला बनाने से कल को अदालत यह न कह दे कि हत्या की  धारा 302 क्यों नहीं लगाई। इसलिए सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव से भी सलाह करके यह तय हुआ कि पुलिस अपनी ओर से धारा 302 ही लगा दे। ऐसे में गेंद अदालत के पाले में होगी।अदालत अपने आप तय कर देगी कि गैर इरादतन हत्या है या इरादातन हत्या। 
आईपीएस के निशाने पर आईपीएस-
दूसरी ओर जांच से जुड़े एक आईपीएस अफसर द्वारा इस तरह बताया गया है जिससे यह लगे कि उत्तर क्षेत्र के संयुक्त पुलिस आयुक्त सुरेंद्र सिंह यादव ने ही धारा 302,365 लगवा कर केस को मजबूत बनाया है वरना उनके वरिष्ठ अफसर ने तो धारा 304 लगा कर सुशील को बचाने की कोशिश की थी।
जब इस पत्रकार ने वरिष्ठ आईपीएस अफसरों से बात की तो उपरोक्त असलियत सामने आई जिससे पता चला कि धारा 302 क्यों लगाई गई है।
आईपीएस का दिवालियापन उजागर-
वैसे एक बात तय है कि इस आईपीएस अफसर का यह कहना सरासर गलत साबित हो गया है कि धारा 304 लगवा कर वरिष्ठ आईपीएस अफसर केस कमजोर करवा देते। इस तरह की हरकत से इस आईपीएस की पेशेवर काबिलियत का दिवालियापन ही उजागर होता है। 
बयान बदलवाने से फायदा नहीं-
सूत्रों का कहना है कि सुशील तो यह कोशिश कर रहा है कि इस मामले में घायल सोनू महाल और अमित पुलिस को दिए बयान को बदल दे। जिससे वह इस मामले में बच जाए।
लेकिन जांच से जुड़े  आईपीएस अफसर का कहना है कि एफआईआर पीसीआर कॉल और डीडी एंट्री के आधार पर दर्ज की गई जिसमें शिकायतकर्ता पुलिसकर्मी है। पुलिसकर्मी को आरोपी बिठा नहीं सकते।
इसलिए घायलों के बयान बदल लेने से भी सुशील को अभी कोई फायदा नहीं मिलेगा। गिरफ्तारी से वह बच नहीं सकता है।
सुशील का पिटाई करते हुए  वीडियो भी अहम सबूत है।
 मजिस्ट्रेट के सामने बयान- 
 घायलों के मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज ना कराना पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है। पुलिस अगर वाकई आरोपी सुशील आदि के खिलाफ मजबूत केस बनाना चाहती थी तो उसने घायलों के मजिस्ट्रेट के सामने बयान क्यों नहीं कराए? 
वरिष्ठ आईपीएस अफसर दावा कर रहे हैं कि पुलिस की तफ्तीश बिल्कुल ठीक चल रही है और पुलिस के पास इतने मजबूत साक्ष्य हैं कि सुशील बच नहीं सकता। लेकिन पुलिस के इन दावों की असलियत तो आने वाले समय में अदालत मे ही सामने आएगी।
 सोनू महाल गायब हो गया ?-
जांच से जुड़े एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने बताया कि घायलों में से एक डर कर भाग गया यानी गायब हो गया है। घायल सोनू महाल हत्या के अनेक मामलों में शामिल है। शायद वह  इस डर से गायब हो गया होगा कि आपराधिक इतिहास होने के कारण कहीं पुलिस उसे भी किसी अन्य मामले में गिरफ्तार न कर ले। दूसरे घायल अमित को कोरोना हो गया है।
पुलिस को मालूम था कि सोनू इस मामले में पीडित और अहम गवाह ही नहीं कुख्यात अपराधी भी हैं। मजिस्ट्रेट के सामने उसका बयान दर्ज कराने से केस मजबूत हो जाता। जब तक उसका बयान दर्ज नहीं हो जाता पुलिस को उसे सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिए थी।
सोनू कुख्यात अपराधी है और वह सुशील से बदला लेने के लिए या दुश्मनों से अपनी जान बचाने के लिए भी गायब हो सकता है। 
पुलिस अफसरों ने उसकी सुरक्षा/ निगरानी के लिए पुलिस क्यों नहीं तैनात की थी।
घायल चश्मदीद सोनू के इस तरह गायब हो जाने  से भी पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
 कमिश्नर करें खुलासा ? -
हरियाणा के मूल निवासी रामदेव यादव के अपनी जाति के दिल्ली पुलिस में मौजूद अनेक आईपीएस अफसरों  से अच्छे संबंध हैंं। सुशील की मदद के लिए अगर उसने किसी संयुक्त आयुक्त को फोन किया है तो वह उत्तरी रेंज के सुरेन्द्र सिंह यादव भी हो सकते हैं। क्योंकि उनके नेतृत्व में ही हत्या के इस मामले की जांच भी की जा रही है। राम देव ने सुरेंद्र यादव या किसी अन्य आईपीएस अफसर को फोन  किया था। इसके बारे में यादव हो या कोई अन्य आईपीएस, वह तो खुलकर यह बात कबूलेगा नहीं। हां, अगर उस अफसर ने रामदेव से बात करने के बाद तुरंत ईमानदारी से कर्तव्य पालन करते हुए हरिद्वार पुलिस को सुशील को पकड़ने के लिए भेजा होता। तो वह जरूर यह बात खुल कर कबूल/उजागर करता। रामदेव ने किस संयुक्त पुलिस आयुक्त या आइपीएस को फोन किया इसका पता लगाने का सबसे आसान तरीका है कि पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव  रामदेव से जुड़े आईपीएस अफसरों के मोबाइल फोन का पांच मई से लेकर अब तक का कॉल रिकॉर्ड निकलवा ले। ताकि पता चल सके कि किस आईपीएस अफसर ने खाकी से गद्दारी कर रामदेव से दोस्ती निभाई और हत्या आरोपी सुशील को बचाया।
 कमिश्नर,रामदेव की चुप्पी खोल रही पोल?
 सुशील शरण लेने या मदद के लिए क्या रामदेव के पास गया या संपर्क साधा था?
पुलिस ने क्या रामदेव से तहकीकात की है? 
इन सवालों पर  कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और रामदेव ने आज तक कोई जवाब नहीं दिया है। इन दोनों की चुप्पी से यहीं लगता है कि सुशील पतंजलि गया। अगर नहीं गया होता तो रामदेव और पुलिस चीख चीख कर इस बात का खंडन करते।
पुलिस की सांठगांठ या निकम्मापन-
चार मई की रात जो हुआ उसके लिए पुलिस ही जिम्मेदार है।
इससे  पता चलता है कि पुलिस की सुशील से या तो सांठगांठ थी या यह पुलिस का जबरदस्त निकम्मापन है। दोनों ही सूरत में पुलिस दोषी है।
पुलिस अगर गंभीर होती और छत्रसाल स्टेडियम पर नजर रखती तो वहां आने जाने वाले बदमाशों को गिरफ्तार भी कर सकती थी। 

सुशील की पत्नी के नाम फ्लैट-
हरियाणा निवासी सागर पहलवान 2013 से    छत्रसाल स्टेडियम में ही रहता था।
कुछ समय से वह माडल टाउन में सुशील के  एक फ्लैट में रहने लगा था।
सुशील ने कुछ समय पहले उससे फ्लैट खाली करा लिया। लेकिन उसका किराया बकाया रह गया था।
सागर माडल टाउन तीन में दूसरे फ्लैट में रहने लगा। सागर के साथ गु़ंडे काला जड़ेठी का साथी सोनू महाल भी रहता था।
 सुशील को पता चला कि सागर उसके बारे में गलत बातें बोलता है।
चार मई की रात को सुशील अपने चेलों और नीरज बवानिया गिरोह के गु़ंडो के साथ वहां पर गया वहां से सोनू ,सागर और अमित आदि को उठा कर स्टेडियम में ले गए। वहां पर इन सबको फावड़े के हत्थे से पीटा गया। इस दौरान गोलियां भी चलाई गई। 
सुशील के जिस फ्लैट में पहले सागर किराए पर रहता था। वह सुशील की पत्नी के नाम बताया जाता है। 
सागर के परिवार वालों का कहना है कि सुशील किसी भी अन्य पहलवान को उभरता हुआ नहीं देख सकता था। 
सजायाफ्ता पार्षद का बेटा- 
इस मामले में पचास हजार का इनामी आरोपी अजय कांग्रेस के निगम पार्षद सुरेश पहलवान( बक्करवाला) का बेटा है। अजय सरकारी स्कूल में पीटीआई है। अजय का पिता सजायाफ्ता
सुरेश बक्करवाला  दिल्ली पुलिस का बरखास्त सिपाही है। 



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