Saturday 8 May 2021

मुलजिम सुशील पहलवान हाजिर हो। ओलंपियन पहलवान खूनी दंगल में चित्त। ओलंपिक विजेता बना फरार, इनामी अपराधी। कोच और पहलवानों ने छोड़ा अखाडा।

        मुलजिम सुशील पहलवान हाजिर हो।


ओलंपिक विजेता पहलवान  बना फरार, इनामी अपराधी।
 खूनी दंगल में ओलंपियन सुशील पहलवान चित्त।
 अच्छे कोच और पहलवानों ने छोड़ा अखाडा।

 इंद्र वशिष्ठ 
ओलंपिक में दो बार पदक जीत कर दुनिया में नाम कमाने वाले सुशील पहलवान की गिनती अब   फरार इनामी अपराधियों में हो गई है। पुलिस ने भी सुशील को दो तमगों फरार और इनामी मुलजिम से नवाज दिया है। कल तक जिस सुशील को कुश्ती जीतने पर लाखों रुपए के इनाम से सम्मानित किया जाता था अब उस सुशील के बारे में सूचना देने वाले को एक लाख रुपए का इनाम  दिया जाएगा।
 सुशील पहलवान की गु़ंडोंं से सांठगांठ की खबर पहले पुलिस के अलावा एक छोटे दायरे तक ही सीमित थी। लेकिन अब एक पहलवान की हत्या में शामिल पाए जाने से उसका असली चेहरा दुनिया के सामने भी उजागर हो गया है। छत्रसाल स्टेडियम में हुए खूनी दंगल ने सुशील को अर्श से फर्श पर चित्त दे मारा है।
 सुशील खुद जिम्मेदार-
अपराध जगत से जुड़ने और अपराध में शामिल होने के लिए सुशील खुद पूरी तरह जिम्मेदार है।लेकिन इसके लिए पुलिस भी पूरी तरह से कसूरवार है पुलिस अगर शुरु से ही सुशील पहलवान की हरकतों पर नजर रखती/ कार्रवाई करती तो वह शायद इतना निरंकुश नहीं हो पाता। पुलिस के निकम्मेपन या मिलीभगत के कारण ही पेशेवर गु़ंडे तो बेखौफ होते ही हैंं। लेकिन सुशील जैसों के मन से भी कानून का डर निकल जाता है।
कल तक पूरी दुनिया में पहचान बनाने  वाला अब पुलिस से बचने के लिए मुंह छिपाता भाग रहा है। कल तक गले में पदक पहना कर जिस सुशील की तस्वींरें खींची जाती थी।अब पुलिस उसके हाथ में अपराधी के नाम वाली तख्ती पकड़ा कर फोटो खींचेगी। 
ओलंपिक में भारत का नाम रौशन करने के लिए सुशील का नाम सम्मान से लिया जाता था। मुलजिम सुशील अदालत में हाजिर हो अब उसे ऐसे पुकारा जाएगा। अब थाना,जेल और अदालत के चक्कर लगाएगा। अदालत में कठघरे में खड़ा होगा।
 सब कुछ मिला फिर भी संतुष्ट नहीं- 
ओलंपिक पदक जीतने पर इनाम के रुप में करोड़ों रुपए, सरकारी नौकरी, शौहरत ,मान सम्मान सब कुछ सुशील को मिला। इसके बावजूद उसका अपराधियों के साथ सांठगांठ कर गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होना शर्मनाक है। 
 कोच,पहलवानों के साथ दुर्व्यवहार- 
सुशील पहलवान और उसके चेलों के दुर्व्यवहार और गुंंडागर्दी से तंग आकर रामफल और वीरेंद्र आदि कोच भी यहां से चले गए। बताया जाता है कि  काबिल कोचों और पहलवानों के साथ बदतमीजी और मारपीट तक की जाती है। इसलिए अपने सम्मान को बचाने के लिए कई काबिल कोच और पहलवान यहां से चले गए। द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित कोच रामफल और कई पहलवान तो ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त की अकेडमी  में चले गए हैं। वीरेंद्र ने नरेला में अपनी अकेडमी खोल ली।
बताया जाता है कि सुशील आदि ईर्ष्या के कारण किसी अन्य पहलवान को उभरता हुआ नहीं देख सकते । इसलिए उनके साथ ऐसा सलूक करते हैं ताकि वह वहां से चले जाएंं।
पहलवान बजरंग पूनिया भी यहां से छोड़ कर योगेश्वर के पास चला गया था। योगेश्वर दत्त ने भी  इसी वजह से इस अखाड़े को छोड़ा था।


कैमरे क्यों नहीं लगाए ?- 
स्टेडियम में  सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हुए है। बताया जाता है कि कैमरे जान बूझकर नहीं लगाए गए। कैमरे लगने से स्टेडियम में आने वाले बदमाशों या अन्य संदिग्ध लोगों का  रिकॉर्ड  उसमें दर्ज हो जाता। स्टेडियम में होने वाली गतिविधियों की पोल खुल जाएगी। पहलवान यह नहीं चाहते इसलिए कैमरे नहीं लगाए गए। अगर कैमरे लगे होते तो चार मई की वारदात में शामिल अभियुक्तों के खिलाफ पुख्ता सबूत मिल जाता।
कैमरे न लगाए जाने के लिए स्टेडियम के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार है।
 स्टेडियम में आम आदमी की एंट्री नहीं- 
दूसरी ओर यह भी पता चला कि पहलवानों की दादागिरी के कारण आम आदमी तो स्टेडियम में  अखाड़े के क्षेत्र में घुस भी नहीं सकता।
आम आदमी को दूर रखने का मकसद भी यही है कि किसी को वहां मौजूद बदमाशों या पहलवानों की संदिग्ध गतिविधियों का पता न चल पाए।

 मंत्री और अफसर जिम्मेदार- 
स्टेडियम में पहलवानों की संदिग्ध गतिविधियां सालों से जारी रहने से दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री/खेलमंत्री मनीष सिसोदिया और अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। 
 जांच हो तो घोटाले निकलेंगे-
सूत्रों के अनुसार इस स्टेडियम में इतना कुछ गलत हो रहा है कि दिल्ली सरकार अगर ईमानदारी से जांच कराएं तो खेल, खिलाड़ियों के नाम पर किए जाने वाले घोटालों के भी चौंकाने वाले मामले सामने आ सकते हैं।

पुलिस को चार मई को आधी रात के बाद छत्रसाल स्टेडियम में गोलियां चलने की सूचना मिली। घायल पहलवान सागर  ( 23) निवासी (माडल टाउन थर्ड एम 2/1), सोनू निवासी एमसीडी कालोनी और अमित कुमार निवासी रोहतक को पीसीआर अस्पताल ले गई। सागर की मौत हो गई। सागर के पिता अशोक दिल्ली पुलिस में हवलदार हैं।
 संपत्ति का असली मालिक कौन ?-
पुलिस सूत्रों के अनुसार माडल टाउन  स्थित  करोड़ों की संपत्ति पर सुशील ने  पहलवान सागर आदि को वहां रखा हुआ था। सुशील अब उनसे संपत्ति खाली कराना चाहता था। सागर ने संपत्ति खाली करने से इंकार कर दिया। इस बात को लेकर सुशील का उनसे कुछ दिन पहले भी  झगड़ा हुआ था। काला जठेड़ी ने उस समय समझौता करा दिया और सुशील से कह दिया कि संपत्ति बेच कर हिस्सा आपस में हिस्सा कर लेंगे। सागर पहले स्टेडियम में ही रहता था।
चार मई की रात को सुशील अपने चेलों और गु़ंडो के साथ उस संपत्ति पर गया वहां से सोनू ,सागर और अमित आदि को उठा कर स्टेडियम में ले गए। वहां पर इन सबको फावड़े के हत्थे से पीटा गया। इस दौरान गोलियां भी चलाई गई। 
सुशील ने जिस संपत्ति को लेकर यह अपराध तक कर दिया उसका असली मालिक कौन है और सुशील को वह संपत्ति किस तरीके से मिली इसका खुलासा पुलिस को करना चाहिए ।
 गैंगवार की आशंका ? - 
पुलिस सूत्रों के अनुसार सुशील ने वारदात के बाद हरियाणा के बदमाश काला जठेड़ी से  संपर्क किया। सुशील ने काला से कहा कि उससे गलती हो गई। वह तो सोनू आदि को इसलिए उठा कर लाया था कि थप्पड़ चट्टू मार कर, धमका कर उससे संपत्ति खाली करा लेगा। 
सूत्रों का कहना है कि काला जठेड़ी ने सुशील से कहा कि, तूने यह ठीक नहीं किया। अब तेरी हमारी आमने सामने की होगी। 
सुशील चाहता था कि काला जठेड़ी सोनू को उसके खिलाफ बयान देने से मना कर दें। लेकिन सोनू ने सुशील के खिलाफ बयान दे दिया है। सोनू काला जठेड़ी का खास साथी है वह हत्या के अनेक मामलों में आरोपी है।
इसलिए अब यह आशंका है कि सुशील पहलवान और काला जठेड़ी के बीच गैंगवार हो सकती है।
सुशील की काला जठेड़ी के अलावा सुंदर भाटी, नीरज बवानिया समेत अनेक कुख्यात बदमाशों से सांठगांठ है। ये सब टोल टैक्स, अवैध कब्जा और विवादित संपत्ति आदि का धंधा करते है। यह सारे गुंडे स्टेडियम में आते रहते है। लेकिन दिल्ली पुलिस के अलावा सब को ये दिखाई दे रहा था। इस पत्रकार ने साल 2017 में एक लेख में यह खुलासा कर पुलिस अफसरों को आगाह किया था कि सुशील और बंदूकधारी गुंडों का स्टेडियम में जमावड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। पुलिस वहां नजर रखे तो गुंडों को पकड़ सकती है। 
चार मई की रात जो हुआ उसके लिए पुलिस ही जिम्मेदार है।
इससे  पता चलता है कि पुलिस की सुशील से या तो सांठगांठ थी या यह पुलिस का जबरदस्त निकम्मापन है। दोनों ही सूरत में पुलिस दोषी है।
पुलिस अगर गंभीर होती और छत्रसाल स्टेडियम पर नजर रखती तो वहां आने जाने वाले बदमाशों को गिरफ्तार भी कर सकती थी। 
पुलिस सूत्रों के अनुसार काला जठेड़ी के भाई को जब कभी हरियाणा पुलिस भी पूछताछ के लिए उठाती है तब भी सुशील अपने नाम और रसूख का इस्तेमाल कर उसकी मदद करता है।
 दिल्ली में घूम रहा था-
सूत्रों के अनुसार वारदात के अगले दिन यानी बुधवार की दोपहर (एक, डेढ़ बजे) तक सुशील दिल्ली में ही मौजूद था। 
यह भी पता चला है कि सुशील कोशिश कर रहा है कि पुलिस उसे इस मामले में बचा ले तो वह अन्य अभियुक्तों को पुलिस के सामने पेश कर देगा। बताया तो यह तक जाता है कि सुशील के कई साथी /चेले पुलिस के सामने पेश हो कर हत्या की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने को भी तैयार है।
सूत्रों के अनुसार 5 मई को दोपहर तक सुशील दिल्ली में घूम कर अपने बचाव में जुटा हुआ था। जैसे ही उसे पहलवान सागर की मौत की सूचना मिली वह दिल्ली से बाहर भाग गया। उसके फोन की लोकेशन पश्चिम उत्तर प्रदेश के बाद बंद हो गई थी। 
पुलिस को यह भी पता चला है कि वह आत्म समर्पण भी कर सकता है।
 सजायाफ्ता पार्षद का बेटा- 
इस मामले में आरोपी अजय कांग्रेस के निगम पार्षद सुरेश पहलवान( बक्करवाला) का बेटा है। सुरेश बक्करवाला दिल्ली पुलिस का बरखास्त सिपाही है। सुरेश बक्करवाला को 1993 में 49 लाख रुपए लूटने के मामले में  करोल बाग पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस मामले में सरेश के अलावा दिल्ली पुलिस के ही बरखास्त सिपाही जगवीर उर्फ जग्गा को भी गिरफ्तार किया गया था।
एक अन्य मामले में सुरेश सजायाफ्ता अपराधी  है। सुरेश के पास से 1993 में चोरी का माल बरामद हुआ था। 
आईपीसी की धारा 411(एफआईआर76/93) के तहत दर्ज इस मामले में उसे 2003 में  एडिशनल सेशन जज राकेश कपूर ने कैद और जुर्माने की सजा दी थी।
 लॉकडाउन में गुंडे कारों में कैसे घूमते रहे?- 
दिल्ली में लॉक डाउन लगा हुआ है उसके बावजूद पांच गाड़ियों में सवार हथियारबंद पहलवान और बदमाश स्टेडियम में कैसे पहुंच गए ? ये सब जिन रास्तों से आए वहां पर मौजूद पुलिस ने वाहनों की चेंकिंग की होती तो यह तभी पकडे़ जा सकते थे।
एक गाड़ी से दोनाली बंदूक बरामद हुई अगर पुलिस कार की चेकिंग करती तो बंदूक आसानी से दिखाई दे जाती। 
 पुलिस की भूमिका पर सवाल-
दूसरी ओर इस मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैंं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने घायलों के बयानों पर एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? पुलिस ने ऐसा करके क्या  सुशील को बचाया है? क्योंकि इसका फायदा सुशील को अदालत में मिल सकता है।
पुलिस अगर सागर की मौत से पहले उसका भी बयान दर्ज कर लेती तो यह पुलिस के पास अभियुक्तों के खिलाफ मजबूत सबूत होता। 
पुलिस ने पीसीआर काल और थाने में दर्ज डीडी एंट्री के आधार पर मुकदमा दर्ज किया है। 
पुलिस ने एफआईआर में लिखा है कि गोलियां चलने की सूचना मिली थी। पुलिस घटनास्थल पर गई तो पता चला कि घायलों को पीसीआर अस्पताल ले गई है। सरसरी दरयाफ़्त से पता चला कि सुशील और उसके साथियों ने वारदात को अंजाम दिया है। 
माडल टाउन पुलिस को जब पता चल गया था कि घायलों को पीसीआर अस्पताल ले गई है तो पुलिस को अस्पताल जाकर घायलों के बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। 
पुलिस ने इस मामले में सुशील के साथी आसोधा गांव निवासी  प्रिंस दलाल को बुधवार को बंदूक के साथ गिरफ्तार किया था। प्रिंस के मोबाइल से पुलिस को एक वीडियो मिला है जिसमें सोनू,सागर और अमित की पिटाई करने वाले दिखाई
 पहले भी एफआईआर- 
साल 2018 में भी सुशील पहलवान और उसके साथियों के खिलाफ पहलवान प्रवीण राणा की शिकायत पर आईपी स्टेट थाने में मारपीट का मामला दर्ज किया गया था। इंदिरा गांधी स्टेडियम में कुश्ती ट्रायल के दौरान पहलवान प्रवीण और उसके साथियों के साथ मारपीट की गई थी। पुलिस ने सुशील को गिरफ्तार नहीं किया।
 गु़ंडोंं का अड्डा- 
वैसे इस स्टेडियम से बदमाशों का पुराना नाता है। दो दशक पहले की बात है कि एक बार दिचांऊ के कुख्यात गुंडे कृष्ण पहलवान को जबरन वसूली के मामले में पुलिस तलाश कर रही थी। उस दौरान कृष्ण स्टेडियम में आयोजित समारोह में सतपाल पहलवान के साथ पुरस्कार बांट रहा था। इसका खुलासा उस समय इस पत्रकार ने किया था। कृष्ण पहलवान को गिरफ्तार करने के बाद अपराध शाखा के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह ने भी यह बात मीडिया को बताई। सतपाल दिल्ली सरकार में खेल निदेशक के पद पर था। एक सरकारी अफसर की इस तरह की हरकत बहुत ही गंभीर अपराध है। लेकिन नामी पहलवान होने के कारण उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
 डेपुटेशन से डेपुटेशन ?- 
सतपाल पहलवान का दामाद सुशील पहलवान मूल रुप से रेलवे का अधिकारी है रेलवे से वह उत्तर दिल्ली नगर निगम में डेपुटेशन पर गया और वहां से वह दिल्ली सरकार में डेपुटेशन पर चला गया। डेपुटेशन से ही दूसरी जगह  डेपुटेशन पर इस तरीक़े से जाना भी उसके रसूख को दिखाता है। करीब पांच साल से वह छत्रसाल स्टेडियम में ओएसडी (खेल) के पद पर है।
 महिला डायरेक्टर से अश्लीलता-
एक बार महिला डिप्टी डायरेक्टर आशा अग्रवाल के बारे में इस स्टेडियम में उनके दफ्तर की दीवार पर अश्लील टिप्पणी लिखी गई थी जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्टेडियम में गुंडे बे रोक टोक आते जाते हैं।

 अपडेट-18 मई को रोहिणी अदालत ने सुशील की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।  17 मई को सुशील पर एक लाख का इनाम घोषित किया गया। 15 मई को अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी किया।

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