Tuesday 25 May 2021

जट्टा देख तेरा छोरा बिगड़ा जाए। जाटां के छोरे ही क्यूं बिगडै सै ? अपने छोरां नै संभाल जट्टा। नेताओं की चुप्पी। ओलंपिक से हवालात तक का सफरनामा।

         सुशील पहलवान अर्श से फर्श पर।
जाटों के छोरे ही क्यूं बिगड़ रे सै?
 अपने छोरों नै संभाल जट्टा।
 हत्या करने वाले ओलंपियन सुशील की निंदा नहीं की।
 सागर की मौत पर परिवार का साथ नहीं दिया। 
 जाट नेताओं की चुप्पी । 

 इंद्र वशिष्ठ 
ओलंपियन सुशील पहलवान हत्या जैसे जघन्य अपराध में गिरफ्तार हुआ है। लेकिन वारदात के बाद से आज तक किसी भी राजनैतिक दल के नेता और खासकर  जाट नेताओं ने सुशील की निंदा तक नहीं की हैं। ऐसे में सुशील को कड़ी सजा मिलनी चाहिए वाले बयान की इनसे उम्मीद लगाना ही बेकार है। हैरानी कि बात हैं कि सुशील ने जिस सागर पहलवान की हत्या की वह भी नेशनल जूनियर चैंपियन था। लेकिन केंद्र ,राज्य सरकार के खेल मंत्रियों और जाट नेताओं ने भी सागर की मौत पर दो शब्द संवेदना /अफसोस के व्यक्त नहीं किए। किसी जाट नेता ने भी सार्वजनिक रुप से सागर के पिता दिल्ली पुलिस के हवलदार अशोक से यह नहीं कहा कि सुशील को सजा दिलाने में हम आपके साथ खड़े हैं।
जाट नेताओं की चुप्पी- 
इस मामले ने राज नेताओं और खास कर जाट नेताओं का भी असली चेहरा उजागर किया है। इन नेताओं ने हत्या जैसा संगीन अपराध करने वाले सुशील की  निंदा करने वाला  कोई बयान बेशक  नहीं दिया है। लेकिन दूसरी ओर उसे बचाने के लिए ये एकजुट जरुर हो सकते हैं। इसके लिए सागर के परिवार पर सामाजिक दबाव बना कर या पैसा देकर समझौता कराने में भी जरुर यह आगे आ सकते हैं।
इस तरह ऐसा करके यह एक तरह से अपराधी का साथ देने से भी नहीं शरमाएंगे ।
 हमदर्दी तक नहीं जताई-
यहीं नहीं सागर पहलवान की मौत पर  किसी ने उसके परिवार से हमदर्दी जताने वाला सार्वजनिक रुप से कोई बयान भी नहीं दिया है। जबकि दोनों  जाट जाति के ही हैं। इससे यह पता चलता कि ऐसे नेता सिर्फ ताकतवर अपराधी का ही साथ देते है अपनी ही जाति के कमजोर पीड़ित का नहीं।
अगर कहीं सागर ने ही या किसी दूसरी जाति वाले ने सुशील को मार दिया होता तो यही नेता तुरंत गिरफ्तारी और सजा की मांग करने वाले बयान दे देकर आसमान सिर पर उठा देते यानी हरियाणा की भाषा में " धूम्मा ठा देते"। 
वैसे अपराधियों से सांठगांठ में तो सुशील और सागर दोनों बराबर के शामिल थे। लेकिन सुशील पहलवान जाटों की शान ओलंपिक पदक विजेता है तो उसके द्वारा हत्या करना भी इनको शायद कोई अपराध नहीं लगता है।
 बदमाशों को हीरो मत बनाओ- 
असल सच्चाई यह है कि जाट और गूजरों के लड़कोंं को बड़ा बदमाश बनाने में उनके समाज का भी  योगदान रहता है।  अपराध करने वाले बदमाश को समाज में हीरो की तरह सम्मान दिया जाता हैंं। जबकि होना यह चाहिए कि अपने समाज की ही भलाई के लिए इन्हें गलत रास्ते पर जाने वाले लड़कोंं को समझा कर सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। 
समाज की बात न मानने वाले बदमाशों का बहिष्कार करना चाहिए। बदमाशों को सम्मानित या उन्हें हीरो बना कर उनका महिमामंडन तो बिल्कुल ही नहीं करना चाहिए।
 यहींं वजह है कि इन जातियों के लड़के ही अपराध जगत में सबसे ज्यादा आते हैं।
इस तरह ऐसा करके समाज एक तरह से अपराधी का साथ देता हैं।  ऐसा करने वाला समाज सही मायने में उन लड़कों का  भी शुभचिंतक नहीं बल्कि दुश्मन ही होता है।
 बदमाश की कुत्ते जिसी मौत- 
वैसे पैसे के लिए अपराध कर रहे बदमाशों को भी एक बात समझ लेनी चाहिए कि आज जो साथी तुम्हारे लिए जान देने और जान लेने की बात करते हैं। तुम्हारी मौत के बाद बदला लेने की बात तो दूर शायद अर्थी को कंधा देने तक भी नहीं आएंगे। इस पत्रकार ने  देखा है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिन बड़े बड़े कुख्यात गुंडों का अपराध जगत में वर्चस्व था जिनकी कई राज्यों में तूती बोलती थी। जिनके आगे नेता भी नतमस्तक रहते थे। जब वह पुलिस के हाथों कुत्ते की मौत मारे गए तो उनमें से कई के तो परिजन तक भी उनके शव लेने को तैयार नहीं होते थे।
 पुलिस की सांठगांठ -
ताकत के अहंकार में बंदूक के दम पर जीने वाले बदमाशों को एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि  वह इस भ्रम में न रहे कि वह अपने दम पर अपराध जगत में हैं। सच्चाई यह है कि कुछ बेईमान पुलिस वालों की सांठगांठ पर ही वह अपराध जगत मेंं है।
 वरना पुलिस जिस दिन ठान लेती है तो बड़े से बड़ा गुंंडा भी कुत्ते की मौत मारा जाता है। 
 भिखारी से भी गए बीते गुंडे-
वैसे भी पैसे के लिए अपराध करने वाला बदमाश बहादुर नहीं कायर ही होता है। किसी से जबरन वसूली करना बहादुरी नहीं भिखारी से भी निचले स्तर का काम  होता है। भिखारी तो मजबूरी में भीख मांगता है।
 कायरों की तरह छिप कर फोन पर धमका कर भीख सी मांगने वाले गुंडे बहादुर हो भी नहीं सकते। इसलिए लोगों को लूटने के बावजूद वह भिखारी ही बने रहते है। बहादुर हमेशा देने वाला यानी दाता ही होता है। 
गैंगवार की आशंका ? -
पुलिस सूत्रों के अनुसार वारदात के बाद हरियाणा के बदमाश  काला जठेड़ी ने सुशील से कहा कि, तूने सोनू को पीट कर ठीक नहीं किया। अब तेरी हमारी आमने सामने की दुश्मनी होगी। 
सुशील चाहता था कि काला जठेड़ी सोनू महाल को उसके खिलाफ बयान देने से मना कर दे। लेकिन सोनू महाल ने सुशील के खिलाफ बयान दे दिया है। हत्या के अनेक मामलों में आरोपी सोनू काला जठेड़ी का खास साथी और रिश्तेदार  है।
अब यह आशंका है कि सुशील पहलवान और काला जठेड़ी के बीच गैंगवार भी हो सकती है। 
 बदमाश बदला लेगा या पैसा ?- 
इसलिए वारदात के बाद से ही सुशील काला जठेड़ी को पैसा देकर या सामाजिक दबाव डलवा कर समझौता करने की कोशिश में लगा हुआ है। उसे मालूम था कि पुलिस तो ओलंपियन पहलवान होने के कारण उसका लिहाज कर सकती है। लेकिन काला उस पर जेल में भी हमला करवा सकता है।
वैसे तो सुशील की काला जठेड़ी से सांठगांठ, यारी थी लेकिन सोनू महाल की भी पिटाई करके सुशील ने उसको अपनी जान का दुश्मन बना लिया। 
वैसे पैसे के लिए अपराध करने वाले काला जठेड़ी और सोनू महाल भी सुशील से मोटी रकम लेकर चुप बैठ सकते हैं। लेकिन पैसे से ज्यादा अपने अपमान और पिटाई को अहमियत दी तो सुशील से बदला लेगा। सुशील के साथ नीरज बवानिया गिरोह के बदमाश भी वारदात में शामिल थे। ऐसे में काला जठेड़ी और सोनू अगर बदला नहीं लेंगे तो अपराध जगत में उनका दबदबा कम हो जाएगा। इसलिए दुश्मनी को खत्म कराने के लिए सुशील की ओर से जाट नेताओं द्वारा भी समझौते के लिए काला जठेड़ी पर दबाव डाला जा रहा बताते है। 

जागो लोगों जागो -
हरियाणा के नेताओं, पंचायतों को आगे आकर अपने हरियाणा को अपराध और अपराधी मुक्त राज्य बनाने की पहल करनी चाहिए। हरियाणा ने हमेशा से समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ अहम भूमिका निभाई है।
अब अपराध के दलदल में जाने से लड़कों को रोकने के लिए कदम उठाने की बहुत सख्त जरुरत है। नेताओं को पहलवानों और बदमाशों का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना बंद करना चाहिए। बदमाशों को भी समझ लेना चाहिए कि धूर्त नेताओं के लिए उनकी औकात केवल एक प्यादे/मोहरे जितनी ही होती है।

अपनों को डराना चाहते है-
 अपना दबदबा दिखाने के लिए बंदूकधारी बदमाशों को शादी आदि समारोह में बुलाना बंद करना चाहिए। वैसे ऐसा करने वाले लोगों की सोच पर तरस आता है।  वह शादी आदि समारोह में आए अपने रिश्तेदारों या अपने ही समाज को इस तरह बदमाश दिखा कर क्या साबित करना चाहते है? इससे तो यह लगता है वह कि अपने ही  रिश्तेदारों  या समाज को डरा कर अपना दबदबा बनाना चाहते है। 


ओलंपियन का हवालात तक का सफरनामा-

ओलंपिक में दो बार पदक जीत कर दुनिया भर में नाम कमाने वाले सुशील पहलवान की गिनती अब अपराधियों में हो गई है। पुलिस द्वारा भी दो तमगो फरार और इनामी मुलजिम से सुशील को नवाजा गया। कल तक जिस सुशील को कुश्ती जीतने पर लाखों रुपए के इनाम से सम्मानित किया जाता था। उस सुशील पर एक लाख रुपए का इनाम रखा गया । 
सुशील पहलवान की हत्या, लूट, जबरन वसूली और विवादित संपत्ति पर अवैध कब्जे करने वाले कुख्यात गु़ंडोंं से सांठगांठ की खबर पहले पुलिस के अलावा एक छोटे  से दायरे तक ही सीमित थी। लेकिन अब अपने ही चेले सागर पहलवान की हत्या कर देने से उसका असली चेहरा दुनिया के सामने भी उजागर हो गया है। छत्रसाल स्टेडियम में हुए खूनी दंगल ने सुशील को अर्श से फर्श पर चित्त दे मारा है।
 सुशील खुद जिम्मेदार-
अपराध जगत से जुड़ने और अपराध में शामिल होने के लिए सुशील खुद पूरी तरह जिम्मेदार है।लेकिन इसके लिए पुलिस भी पूरी तरह से कसूरवार है पुलिस अगर शुरु से ही सुशील पहलवान की हरकतों पर नजर रखती तो वह शायद इतना निरंकुश नहीं हो पाता। पुलिस के निकम्मेपन या मिलीभगत के कारण ही पेशेवर गु़ंडे तो बेखौफ होते ही हैंं। लेकिन सुशील जैसों के मन से भी कानून का डर निकल जाता है।
मुलजिम सुशील हाजिर हो-
कल तक पूरी दुनिया में पहचान बनाने वाला पांच मई से लेकर 23 मई तक पुलिस से बचने के लिए मुंह छिपाता भागता रहा। कल तक गले में पदक पहना कर जिस सुशील की तस्वींरें खींची जाती थी।अब पुलिस उसके हाथ में अपराधी के नाम वाली तख्ती पकड़ा कर फोटो खींचेगी। 
ओलंपिक में भारत का नाम रोशन  करने के लिए सुशील का नाम सम्मान से लिया जाता था। "मुलजिम सुशील अदालत में हाजिर हो" अब उसे ऐसे पुकारा जाएगा। अब थाना,जेल और अदालत के चक्कर लगाएगा। अदालत में कठघरे में खड़ा होगा।
 सब कुछ मिला फिर भी संतुष्ट नहीं- 
ओलंपिक पदक जीतने पर इनाम के रुप में करोड़ों रुपए, सरकारी नौकरी, शौहरत ,मान सम्मान सब कुछ सुशील को मिला। इसके बावजूद उसका अपराधियों के साथ सांठगांठ कर गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होना शर्मनाक है। 
ओलंपियन और पुलिस की नूरा कुश्ती-
कितना अजीब इतेफाक है कि ओलंपियन सुशील पहलवान को विश्व कुश्ती दिवस( 23 मई ) पर दिल्ली पुलिस ने हत्या के मामले में गिरफ्तार किया। 
पुलिस का कहना है कि फरार सुशील और अजय को मुंडका इलाके मेंं जब गिरफ्तार किया गया, तब वह स्कूटी पर जा रहे थे। इनामी अपराधी जिसे पुलिस तलाश कर रही थी क्या वह दिल्ली में ही स्कूटी पर खुलेआम घूम सकते हैंं ? इससे पुलिस की कहानी पर संदेह पैदा होता है। इससे तो यह लगता है कि सुशील ने पुलिस से मिलीभगत कर आत्म समर्पण किया है।
स्कूटी की कहानी हज्म नहीं हो रही-
पुलिस अफसर ही नहीं आम लोगों को भी पुलिस की कहानी हज्म नहीं हो रही।
इतने दिनों से पुलिस को चकमा दे रहा सुशील इतना मूर्ख तो नहीं ही होगा, कि वह दिल्ली में ही लॉकडाउन में स्कूटी पर बिना हेलमेट पहने खुलेआम घूम कर खुद ही पुलिस को पकड़ने का न्योता और मौका देता।
महिला खिलाड़ी की स्कूटी-
पुलिस ने बताया कि सुशील 22 मई को हरि नगर में रहने वाली अपनी दोस्त के घर गया और उसकी स्कूटी ले आया। सुशील की दोस्त हैंडबॉल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है। 

आत्म समर्पण की पोल खोली वीडियो ने - 
पुलिस के  दावे की पोल एक वायरल वीडियो ने भी  खोल दी।
जिससे यह लगता है कि सुशील ने स्पेशल सेल को नूरा कुश्ती में चित्त कर दिया।
 वीडियो में  सड़क पर एक व्यक्ति दो लोगों के साथ आराम से जा रहा है। वह सुशील बताया जा रहा है।
अब यह सवाल उठता है कि यह वीडियो किसने बनाया और वायरल किया है ?
दिल्ली पुलिस ने तो मीडिया को ऐसा कोई वीडियो जारी किया नहीं है।
 स्पेशल सेल भी सुशील का आत्म समर्पण या  गिरफ्तार करते हुए का वीडियो बना कर वायरल करेगी नहीं? 
पुलिस ने बताया है कि सुशील स्कूटी पर सवार था। जबकि वीडियो में तो कारें दिखाई दे रही है। इस वीडियो के बारे में पुलिस की चुप्पी से तो यह साफ है कि वीडियो सही है।
इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि यह वीडियो सुशील के साथियों ने ही बनाया होगा। उन लोगों ने वीडियो वायरल इसलिए किया होगा ताकि पुलिस उनके साथ धोखा करके कोई दूसरी "कहानीना बना दे। कोई हथियार आदि प्लांट न कर दे। इसके अलावा इस वीडियो से सुशील बाद में अदालत में पुलिस की कथित गिरफ्तारी की कहानी को झूठी साबित भी कर सके। 
वैसे सुशील पहलवान पर इनाम की घोषणा होते ही और अग्रिम जमानत याचिका खारिज होते ही यह तय माना जा रहा था कि अब वह आत्म समर्पण कर सकता है। 
तफ्तीश - 
सुशील की गिरफ्तारी के बाद इस मामले की तफ्तीश अपराध शाखा को सौंप दी गई।
लेकिन इस मामले की तफ्तीश पर शुरु से सवालिया निशान लग रहा है। 
एफआईआर पर सवालिया निशान- 
अदालत मे यह सवाल भी उठाया जा सकता है कि जब खुद घायलों ने ही अस्पताल में डाक्टर के सामने सुशील का नाम नहीं लिया तो पुलिस ने किस आधार पर सुशील को हत्या का आरोपी बनाया ? 
सागर पहलवान के परिवार ने भी सवाल उठाया था कि पुलिस ने घायलों के बयान पर एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की ?
 वैसे पुलिस को जब पता चल गया था कि एमएलसी में घायलों ने सुशील का नाम नहीं लिया है तो ऐसे में तो पुलिस को घायलों के बयान पर ही एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। क्योंकि घायलों ने पुलिस को जो बयान दिया उसमे सुशील का नाम शामिल है। 
दफा 302-
पुलिस ने वारदात की सूचना मिलने के 6 घंटे बाद डीडी एंट्री पर एफआईआर दर्ज क्यों की?
पुलिस ने गैर इरादतन हत्या की धारा 304 की बजाए हत्या की धारा 302 क्यों लगाई ?
पुलिस ने शुरु मेंं ही घायलों के बयान के बिना ही जान से मारने की धमकी की धारा 506 और जबरन रोकने की धारा 341 किस आधार पर लगा दी।
चश्मदीद के बिना नाम लिखा-
पुलिस ने एफआईआर में लिखा है कि घटनास्थल पर कोई चश्मदीद नहीं मिला। 
 सरसरी दरियाफ्त से पता चला कि सुशील और उसके साथियों ने वारदात को अंजाम दिया है। अदालत में पुलिस को यह साबित करना पडे़गा कि चश्मदीद नहीं मिला तो सुशील का नाम उसने एफआईआर में कैसे लिख दिया । 
पुलिस ने सुशील को बचाने के लिए जानबूझ कर यह सब किया या पुलिस की लापरवाही है। दोनों ही सूरत में पुलिस कसूरवार मानी जाएगी और अदालत में इसका फायदा सुशील को ही मिलेगा।
 वैसे दिल्ली पुलिस के अनेक अफसरों का भी कहना है कि एफआईआर देख कर लगता है पुलिस ने केस कमजोर दर्ज किया है। 

वीडियो अहम सबूत-
पुलिस ने घटनास्थल से सुशील के साथी प्रिंस दलाल को बंदूक के साथ गिरफ्तार किया था।
पुलिस को उसके मोबाइल फोन से वारदात का एक वीडियो मिला है जिसमें सुशील पिटाई करते हुए दिखाई दे रहा है। सुशील के खिलाफ यह एक ऐसा पुख्ता सबूत है जो उसे सजा दिलवाने में अहम भूमिका निभा सकता है।
लेकिन इसके बावजूद भी अगर सुशील अदालत में बच गया तो उसके लिए दोनों घायल  और पुलिस की कमजोर तफ्तीश ही जिम्मेदार मानी जाएगी। 

 आईपीएस के एक फोन से हवालात - 
पुलिस सूत्रों के अनुसार वारदात के बाद सुशील हरिद्वार  गया था। सुशील के साथ हरिद्वार  गए भूूूरा पहलवान ने पुलिस को पूछताछ के दौरान यह बताया कि उनके सामने ही रामदेव ने दिल्ली पुलिस के एक संयुक्त पुलिस आयुक्त को सुशील को बचाने के लिए फोन किया था। हरियाणा के मूल निवासी रामदेव के अपनी यादव जाति के  आईपीएस अफसरों से अच्छे संबंध हैं। रामदेव ने अगर किसी संयुक्त पुलिस आयुक्त को फोन किया है तो वह सुरेंद्र सिंह यादव भी हो सकते हैं। उन्हें फोन करने की संभावना इसलिए भी है क्योंकि उनके नेतृत्व में जांच की जा रही थी। वैसे रामदेव ने चाहे जिसे फोन किया हो वह आईपीएस अगर ईमानदार और वर्दी का वफादार होता तो तुरंत हरिद्वार पुलिस को फोन पर सूचना देकर सुशील को पकड़वा सकता था। सुशील वारदात के 48 घंटे के अंदर हवालात में होता।
रामदेव का नाम लेने से डरते आईपीएस-
सुशील हरिद्वार गया था इसका पता उस रास्ते के टोल टैक्स नाके पर लगे सीसीटीवी कैमरे की 6 मई की फुटेज से भी चल गया है। फुटेज में कार में सुशील और उसका साथी साफ नजर आए हैं।
सुशील की गिरफ्तारी के बाद भी यह पुष्टि हो गई कि सुशील को पांच मई की सुबह जैसे ही सागर की मौत की सूचना मिली। उसने अपने एक पुराने साथी को बुलाया और उसके साथ हरिद्वार चला गया। लेकिन आईपीएस अफसर तक खुलकर अब भी रामदेव का नाम लेने से डरते हैंं। वैसे नाम गुप्त रखने की शर्त पर पुलिस अफसर शुरु से ही रामदेव का नाम बता रहे है।
पुलिस अगर ईमानदारी से काम करे तो वह  फरार अपराधी को पनाह देकर उसकी मदद करने के अपराध में रामदेव को गिरफ्तार कर सकती है। 
झगड़े का कारण-
सागर पहलवान  2013 से स्टेडियम में ही रहता था और बाद में उस फ्लैट पर भी रहा जो सुशील की पत्नी सावी के नाम बताया गया है।  फ्लैट को खाली कराने या बकाया किराए के विवाद अलावा और किस बात को लेकर सुशील ने यह अपराध किया। फ्लैट का असली मालिक कौन था।फ्लैट को लेकर क्या विवाद था। करोड़ों रुपए कीमत का यह फ्लैट क्या पूरी रकम का भुगतान करके कानूनी तरीक़े से खरीदा गया है या अवैध तरीक़े से कब्जा कर हथिया लिया गया। क्या सुशील ने सरकारी अफसर होने के नाते इस फ्लैट के बारे में विभाग को सूचना दी है।
सुशील से गहन पूछताछ के बाद ही पुलिस को इन सब सवालों के सही जवाब और झगड़े की  असली वजह पता चलेगी। हालांकि सुशील से शुरुआती पूछताछ के आधार पर पुलिस ने बताया कि फ्लैट के किराए के पैसों को लेकर झगड़ा हुआ था।

चार मई की रात सुशील अपने दोस्त नीरज बवानिया के गिरोह के गु़ंडो के साथ सागर पहलवान, सोनू महाल और अमित को माडल से अगवा करके स्टेडियम में लाया। वहां तीनों की बुरी तरह डंडों से पिटाई की गई। सागर की बाद में अस्पताल में मौत हो गई। सागर के पिता अशोक धनखड़ दिल्ली पुलिस में हवलदार हैं।

कोच,पहलवानों के साथ दुर्व्यवहार- 
सुशील पहलवान और उसके चेलों के दुर्व्यवहार और गुंंडागर्दी से तंग आकर द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित कोच रामफल और कई पहलवान तो ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त की अकेडमी  में चले गए हैं। कोच वीरेंद्र मान ने भी नरेला में अपनी अकेडमी खोल ली। 
पहले भी एफआईआर- 
साल 2018 में भी सुशील पहलवान और उसके साथियों के खिलाफ पहलवान प्रवीण राणा की शिकायत पर आईपी स्टेट थाने में मारपीट का मामला दर्ज किया गया था। इंदिरा गांधी स्टेडियम में कुश्ती ट्रायल के दौरान पहलवान प्रवीण और उसके साथियों के साथ मारपीट की गई थी। लेकिन पुलिस ने सुशील को गिरफ्तार नहीं किया।
ओलंपियन का अंडरवर्ल्ड कनेक्शन -
सुशील की काला जठेड़ी के अलावा सुंदर भाटी, नीरज बवानिया समेत अनेक कुख्यात बदमाशों से सांठगांठ है। ये सब टोल टैक्स, अवैध कब्जा और विवादित संपत्ति आदि का धंधा करते है। यह सारे गुंडे स्टेडियम में आते रहते थे। लेकिन दिल्ली पुलिस के अलावा सब को ये दिखाई दे रहा था। इस पत्रकार ने साल 2017 में एक लेख में यह खुलासा कर पुलिस अफसरों को आगाह किया था कि सुशील और बंदूकधारी गुंडों का स्टेडियम में जमावड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। पुलिस वहां नजर रखे तो गुंडों को पकड़ सकती है। 
चार मई की रात जो हुआ उसके लिए पुलिस ही जिम्मेदार है।
सतपाल की बदमाशों से यारी-
छत्रसाल स्टेडियम से बदमाशों का दशको  पुराना नाता है।
सुशील के ससुर सतपाल पहलवान की भी गुंडों से यारी रही है।
 दो दशक पहले की बात है कि एक बार दिचांऊ के कुख्यात गुंडे कृष्ण पहलवान को जबरन वसूली के एक मामले में पुलिस तलाश कर रही थी। उस दौरान फरार कृष्ण स्टेडियम में आयोजित समारोह में सतपाल पहलवान के साथ पुरस्कार बांट रहा था। इस पत्रकार ने इस सांठगांठ को उजागर किया था। कृष्ण पहलवान को गिरफ्तार करने के बाद अपराध शाखा के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह ने भी यह बात  मीडिया को बताई। सतपाल पहलवान उस समय डिप्टी डायरेक्टर (खेल) के पद पर था।

डेपुटेशन से डेपुटेशन का खेल-
सुशील मूल रुप से रेलवे के अफसर है।  रेलवे से वह एनडीएमसी में प्रतिनियुक्ति पर गए थे। एनडीएमसी से वह दिल्ली सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए। करीब पांच वर्ष से वह छत्रसाल स्टेडियम में ओएसडी (खेल) के  पद पर थे। डेपुटेशन से डेपुटेशन पर इतनी लंबी अवधि के लिए जाने का भी यह अलग तरह का ही मामला है। सुशील के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होने के बाद  प्रतिनियुक्ति रद्द कर उसे वापस रेलवे में भेज दिया गया।
पार्षद का बेटा- 
इस मामले में गिरफ्तार पचास हजार का इनामी आरोपी अजय कांग्रेस के निगम पार्षद सुरेश पहलवान( बक्करवाला) का बेटा है। अजय सरकारी स्कूल में पीटीआई है। अजय का पिता सजायाफ्ता सुरेश दिल्ली पुलिस का बरखास्त सिपाही है।
दिल्ली सरकार के अफसर जिम्मेदार-
छत्रसाल स्टेडियम जो अपराधियों का अड्डा बन गया था। इसके लिए स्टेडियम की जिम्मेदारी संभालने वाले अफसर भी जिम्मेदार है। स्टेडियम में होने वाली संदिग्ध गतिविधियां क्या उन्हें दिखाई नहीं देती थी?  स्टेडियम से गलत लोगों से मुक्त कराने के लिए अब  दिल्ली सरकार को भी वहां से गलत लोगों को हटाने की कार्रवाई करना चाहिए।
सरकारी पैसे पर मौज-
अखाड़े समेत स्टेडियम के कोने कोने में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए। संदिग्ध गतिविधियां पकड़ी न जाए इस लिए पहलवान यहां सीसीटीवी कैमरे लगने नहीं देते थे।
स्टेडियम में रह चुके एक कोच ने बताया बड़ी संख्या में पहलवान अवैध रुप से भी रहते  है।   पहलवानों ने कमरों में एयरकंडीशनर भी लगाए हुए है। जिसका बिजली का बिल सरकार को भरना पड़ता है।
ईमानदारी से जांच हो तो खेल और खिलाड़ियों के नाम पर होने वाले घोटालों का भी खुलासा होगा।

मैराथन धाविका मूक दर्शक-
मैराथन धाविका और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित डिप्टी डायरेक्टर आशा अग्रवाल  छत्रसाल स्टेडियम की प्रशासक है। सुशील पहलवान उनके मातहत ही था। लेकिन बताया जाता है कि वह सिर्फ़ नाममात्र की अफसर है।
पहले सतपाल पहलवान का और उसके बाद  सतपाल के दामाद सुशील पहलवान का ही स्टेडियम पर एकछत्र राज था। इनके डर के कारण आशा अग्रवाल मूक दर्शक बनी रहती हैं।
एक बार उनके दफ्तर की दीवार पर ही अश्लील बातें लिख दी गई थी। इससे पता चलता है कि स्टेडियम में कितनी गुंडागर्दी थी।



(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में तीस साल से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।) 

1 comment:

  1. आदरणीय, यूं तो मैं आपके लगभग सभी लेखों को सरसरी तौर पर पड़ता रहता हूं लेकिन आज तो सुशील कुमार के बारे में जो लेख लिखा है, जमा धूम्मा ठा दिया आप ने भी। उसके अपराधिक चरित्र और उसकी जाति विशेष के‌ नेताओ की चुप्पी पर आपकी बेबाक टिप्पणी सराहनीय है और आपके सही मायने में क्राईम रिपोर्टर होने पर मुहर लगाती है।
    आपका आनन्द!

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